फेसबुक पर मित्रों द्वारा साझा कुछ अनमोल , कुछ अलहदा मैं ब्लॉग जगत के लिए सहेज लेता हूँ इस कड़ी में आज पढ़िए रतन बागवान जी द्वारा ट्रेवल लवर्स , समूह पर साझा की गई ये सुन्दर अद्भुत पोस्ट।
रतन बागवान जी
गढ़ छोड्यो पर हठ नही, ईमान बांध लियो लार,
चाकर हाँ प्रण वीर रा, सब गाड़ी लोहार।
मेवाड़ या राजस्थान के बारे में अनेकों किवदंतियां है, बहुत से साथियों को लगता होगा कि ये सब केवल कपोल कल्पित बातें हैं जिनका वास्तव में कहीं कोई अस्तित्व नही। लेकिन ऐसा नही है, मेवाड़ या राजस्थान की धरा पर असत्य और मिथ के लिए कोई स्थान नही है इसकी एक बानगी गाडोलिया लुहारों को देख कर समझी जा सकती है।
मेवाड़ के महान योद्धा महाराणा प्रताप की सेना और अकबर की सेना के बीच युद्ध जब अनिर्णीत रहा और महाराणा प्रताप ने प्रण लिया कि जब तक मेवाड़ आज़ाद नही हो जाता तब तक वे महलों में न रह कर जंगलों में रहेंगे, मखमली सेज पर न सो कर धरती माता के आंचल तले सोएंगे और घास फूस का भोजन करेंगे।
तब मेवाड़ी सेना को हथियार बना कर देने वाले गाडोलिया लुहारों ने अपने राणा के प्रण से सहमति दिखाई और स्वयं के लिए भी ये मापदंड तय कर दिए कि हम मेवाड़ की सम्पूर्ण आज़ादी होने तक:-
1. मेवाड़ वापस नही जाएंगे।
2.पक्के भवन में निवास नही करेंगे।
3. रात्रि में दीपक नही जलाएंगे।
4. गाड़ी में जीवन बसर करेंगे।
5. कुँए से पानी निकालने का रस्सा नही रखेंगे।
अपने इन 5 कठिन वचनों पर वे आज तक कायम हैं, महाराणा प्रताप ने अपने जीते जी लगभग 80% मेवाड़ को मुगलों से स्वतंत्र करवा लिया था, लेकिन फिर पूर्ण स्वतंत्रता मिलने से पूर्व ही उनका देहावसान हो जाने से ये मुहिम अधूरी ही रह गई थी, इस वजह से ये गाडोलिया लुहार आज तक अपने वचन पर अटल हैं।
भौतिक साधनो से लबरेज इस दुनिया के ऐशो आराम के
साधन इनको अब तक विचलित नहीं कर पाये है। आज भी कड़ी तपस्या व मेहनत करते हुए लोहे को कूट कर खेती व घर का सामान बनाकर अपना जीवन यापन कर रहे है।
हालांकि 6 अप्रैल 1955 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने विजय स्तम्भ पर भारतीय ध्वजा फहरा कर इनकी प्रतिज्ञा पूरी करवाई थी लेकिन फिर भी इनमें से अधिकतर आज भी अपनी उसी शैली में जीवन बसर कर रहे हैं। इनके इस समर्पण को कोटि कोटि नमन है।