अक्सर दोस्तों को ये कहते देखते सुनता हूं कि फ़ेसबुक ने ब्लॉगिंग का बेडा गर्क करके रख दिया है । ब्लॉगिंग की थमी रफ़्तार के लिए फ़ेसबुक ही जिम्मेदार है आदि आदि । यही सोच कर इस ब्लॉग को बनाया कि , ब्लॉगजगत तक फ़ेसबुक पर कही सुनी जा रही बातों को , साझा किए जा रहे वाक्यों , संदर्भों को ब्लॉगजगत के पाठकों तक पहुंचाया जाए ताकि ये देखा महसूस किया जाए कि क्या सच में ही फ़ेसबुक सिर्फ़ समय की बर्बादी भर है , क्या सच में ही वहां कुछ भी सार्थक , औचित्यपूर्ण नहीं हो रहा है , आइए देखते हैं कि आज वहां मित्र/दोस्त क्या लिख पढ रहे हैं
कल शाम रामबाग स्टेशन गया था। वापसी मे सड़क के किनारे यह गुम्मा सैलून दिखा और उसके पास विज्ञापन - डा. कुमार बवासीर को एक टीके से जड़ से खत्म करते हैं।
डा. कुमार को बायो साइन्सेज मे नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिये। नहीं?
गुड मोर्निंग फ्रेन्ड्स... हमारे यहाँ (गोरखपुर में) दो कहावत है...
१. बाप पदे ना जाने और पूत शंख बजावे (बाप पादना नहीं जानता है और पूत शंख बजा रहा है)
२. बाप चमार, बेटा दिलीप कुमार.
यह दो कहावतें बहुत सारे फेसबुकियों और ब्लौगर्ज़ पर बिलकुल फिट बैठती है...(पर्सनल क्सपीरियंस)
(मैं अपने तानों से बहुत सारे फेसबुकर्ज़ को खो रहा हूँ, पता नहीं क्यूँ लोग यह सोचते हैं कि मैंने उनके लिए लिखा है. थैंक्स गौड.. वो लोग मेरे दोस्त नहीं हैं.)
आज फिर से सुबह ने सूरज के लिए दरवाज़ा खोला और मैंने नये दरवाज़ों के लिए अपनी आंखें खोली...
उसका होना भी क्या होना है
जिसे पाना है
न खोना है
बस इतना होना है कि
आंसुओं के झरने में
ग़म का पैरहन धोना है....
*'छोटा खयाल' शृंखला से*
मैं यह नहीं कहूँगा कि मैं 1000 बार असफल हुआ, मैं यह कहूँगा कि ऐसे 1000 रास्ते हैं जो आपको असफलता तक पहुँचाते हैं। - थॉमस एडिसन
पेट्रोल के दाम बढाये जाने के विरोध में मैंने साइकल चलाई.एक ही चक्कर लगाया और नेताओं की तरह फोटो भी खिंचवा ली और फेसबुक मे अपनी दीवार पर पोस्टर की तरह चिपका भी दी.अधिकांश लोगों पसंद भी की लेकिन कुछेक लोगों ने नाराजगी भी जताई.उनका कहना था कि महंगाई मैं तो पेट्रोल गाडी चलाता ही नही तो फिर विरोध क्यों?फिर चार चक्के से सीधे दो चक्के पर आना कुछ जमा नही.मुझे भी लगा की बात तो सही है चार चक्के से सीधे दो चक्के पर आने की बजाय बीच का रास्ता निकाला जाये.अब बीच का रास्ता यानी तीन चक्के की सवारी.या तो आटो या रिक्शा!दोनो ही चलाना अपने बस का नही था.फिर याद आया कि अपने पास तीन चक्के वाली सवारी चलाते हुये एक तस्वीर भी है सो सोचा कि दुनिया भर के पोस्टर हमारी दीवार पर लोग चिपका कर चले जाते हैं तो क्यों ना एक पोस्टर हम खुद अपना भी चिपकाते चलें.लिजिये मज़ा इस पोस्टर का और बताईये कैसा लगा!
मुझे याद है ,थपकी देकर,
माँ अहसास दिलाती थी !
मधुर गुनगुनाहट सुनकर
ही,आँख बंद हो जाती थी !
आज वह लोरी उनके स्वर में, कैसे गायें मेरे गीत !
कहाँ से ढूँढूँ ,उन यादों को,माँ की याद दिलाते गीत !
कुछ व्यक्ति मिलने के सालों बाद दुख का कारण बनते हें। उनका मुखौटा बहुत मोटा और गहरा होता है। वक्त के साथ मुखौटा उतरता है तो घिनौना रूप नजर आता है। कल ऐसा ही कुछ हुआ। बहुत दुखी हूं। क्यों मिला और क्यों मिलवाया उन्हें दोस्तों से ? आठ महीने में दो व्यक्ति नजरों से गिरे। उन्हें सख्त चोट आई होगी। बावजूद इन दुखों के विश्वास कायम है नए लोगों में।
शीशा हो तो तोड़ भी देता
पत्थर दिल को क्या छेड़ूँ
अपना दिल ही बागी निकला
पहले उसको तो घेरूँ
नफरत की दीवार
खड़ा करने को इतना आतुर हूँ
घाव की मोती पिरो पिरोकर
दिनभर उसको ही फेरूँ
aaj ki panktiyan.....
प्रिंट मीडिया
हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया
ख़बरों का संसार
टीवी या अखबार
कुछ भी देख लो मेरे यार
विज्ञापनों ने बदल दी देश की हवा
एनलार्ज, ब्रेस्ट टोनर, उभार और उभारने की दवा
विज्ञापनों कि रेल-पेल
एनर्जिक ३१, सांडा, मस्त कलंदर, जापानी तेल
इन सबको इतनी मात्रा में इतने विस्तार में
पढ़ कर लगता है
देश का पुरुषार्थ कहीं खो गया
और पूरा देश कहीं हिजड़ा तो नहीं हो गया
और शायद हो ही गया है
तभी तो कोई मुंह नहीं खोलता
भरे चोराहे पर हत्या हो जाये या बलात्कार
भरे दफ्तर रिश्वत का गरम बाज़ार
भरे घर में दहेज़ हत्या, भ्रूण हत्या,
गालियां मंडित अनाचार
कोई कुछ नहीं बोलता
कोई कुछ नहीं बोलता
--योगेन्द्र मौदगिल
एक क्लासिकल भजन सुन रहा था.... "मनमोहना बड़े झूठे"
.....अब तक कनफ्यूज़ हूँ ये भजन किसके लिए लिखा गया है ?
कलम मेरी 'उदय', उन मगरुरों के लिए नहीं चलती
सच ! जो, खुद को कलम के देवता समझते हैं !!
जल जलकर आज भी वैसे ही पिघलता है मोम ,
तुमने पत्थर को पिघलाने के लिए तिल्ली जलाई होगी !
सुप्रभात !
बछिया मेरी..सुबह शाम रोती है गाँव में
चरते चरते छाला जो पड़ गया....पाँव में
पेट्रोल पम्प पर नोटिस बोर्ड:
डर तो सबको लगता है, लेकिन डर के आगे जीत है! आइये और कार में पेट्रोल डलवाईए!
अब फ़िक्सरों को साल भर का आराम...
आजकल खबरें आ रही हैं कि..... मंगल पर पानी था......आगे आने वाले समय में आने वाली खबरें होंगी..... पृथ्वी पर पानी था...
चेन्नई वाले यह सोचकर मैच हार गए की जीतने वाली टीम को जो कार मिलेगी वो 'पेट्रोल कार' है ...
शायद धोनी भी अंतिम ओवर में ब्रावो को यही समझा रहे थे.... :P
शाहरुख़ खान की धमकी काम आई, इस बार के के आर चैम्पियन नहीं बनेगा तो मैं आई पी एल की अपनी टीम बेच दूंगा ;-)
आजतक शाहरुख की तारीफ में ऐसे लोट रहा है,मानो ये रन शाहरुख ने ही बनाए हों. खिलाड़ियों पर कोई बात नहीं हो रही. आइपीएल ने क्रिकेट को मालिक प्रधान बना दिया है, खिलाड़ी टट हो गया है. शाहरुख की टीटीएम,ताबड तोड़ तेल मालिश शुरु..
जो चीजें घरों में रहती थी वो अब हर चीज अब बाजारू है
पहले बाजारों में दूध बिकता था अब गली गली में दारु है|
सोचने से कोई राह मिलती नहीं
चल दिए हैं तो रस्ते निकलने लगे
तू ही था जिसपर मुझे नाजिश था कभी
आज तेरे ख्याल भी खामोश फीके हैं
अच्छा होता अगर मुम्बई में अपने ख़राब बर्ताव के साथ-साथ शाहरुख रा वन के लिए लोगों से माफी मांग लेते!
हर साँस पे आती थी याद, उसकी हंसीं अदा !
मालूम न था के तन्हाईयों में खंजर बनेंगीं !!