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किसी अनंतमूर्ति ने कहा कि लोकतंत्र के डर से वह देश छोड़ देगा.
आपको क्या लगता है ? कि वो सचमुच चला जाएगा (?)
यदि हॉं तो like दबाऐं
यदि नहीं तो comment दिखाएं
यदि गीदड़भभकी है तो share चटकाएं
यदि बुद्धीजीवी बन रहा है तो kick लगाऐं (लेकिन ज़ुकरबर्ग ये ऑप्शन कब लाएगा रे)
समझ सके तो समझ ज़िन्दगी की उलझन को
सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं.............
जाँ निसार अख़्तर

मुजफ्फरनगर दंगे का असर अब वहां की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है। इस कड़ी में 'चीनी उद्योग' पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। क्योंकि जाट और मुस्लिम दोनों ही मुजफ्फरनगर चीनी उद्योग के लिए बेहद अहम् है। जाट लोगों के पास जमीन है तो मुस्लिम लोगों के पास श्रम शक्ति। अब यदि पलायन कर गयी मुस्लिम आबादी वापस नही लौटती है तो वहां के चीनी उद्योग की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। अर्थव्यवस्था हिन्दू - मुस्लिम में भेद नहीं करती लेकिन राजनीतिज्ञ .............

समय के साथ सामंतवाद ने भी अपना रूप बदल लिया पहले शासक का बेटा वंशानुगत आधार पर शासक बनता था,
अब जनता शासक नेताओं के वंशजों को चुनकर शासन सौंपती है मतलब अब सामंतवाद ने लोकतांत्रिक रूप धारण कर लिया !!

चांदनी उतारी है आज खुश्क कलम में, निगाहोँ में ढाला है आसमानी नूर
हर हर्फ़ में ज़ाहिर है तुम्हारी ही चाहत, आज लिखती हूँ पूरी क़ायनात में तुम्हेँ
........सोनाली......

छाया बन के बादल कि दरिया उमड़ पड़ा
मैं बहती चली गई .. वो समंदर हो गया !!

लंच बॉक्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली ख्याति ऑस्कर में उसका दावा मजबूत कर सकती थी लेकिन भारत की तरफ ऑस्कर में नामांकन गुजराती फिल्म द गुड रोड को मिला है। द गुड रोड भी शानदार फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है लेकिन लंच बॉक्स को भेजा जाना चाहिए था। अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में इरफान की पहचान भी फिल्म के लिए मददगार हो सकती थी। लेकिन, इस बार बड़ी गलती हुई है
फिल्म "शोले" रमेश सिप्पी और जावेद-सलीम से
पूछना चाहूँगा जब रामगढ़ गाँव में
बिजली नहीं थी तो पानी टंकी में पानी कैसे भरते थे

रिश्ते रिस-रिस कर दर्द देते हैं.........
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उफ़्फ़!! ए जिंदगी !! क्यों नखरे करती हो...................

सौरमंडल मे सूर्य तो एक ही जगह स्थित है, घूमती तो पृथ्वी है. और जब धरती सूरज से मुख फेरती है तो उस ओर अँधेरा होता है.
उसी प्रकार जब हम 'उससे'* मुह फेरते हैं तभी हमारे जीवन मे अन्धकार होता है...!
( उससे* , यानी परमात्मा, ईश्वर, खुदा आदि... परमात्मा के रूप और भी हैं, आप जो माने... 'तुझमे रब दीखता है , यारा मैं क्या करूँ..' एक ये भी सही....)

ऑस्कर के लिए भेजी गई गुजराती फिल्म 'द गुड रोड' | '
सेकुलरो ने नाराजगी दिखाते हुए देश छोड़कर जाने की धमकी दी

सवा करोड़ में कश्मीर सरकार गिराई जा सकती है तो नुक्कड़ के मशहूर दक्खीलाल कचौड़ीवाले अमरीका सरकार गिरा सकते होंगे।

चाचा आज भोरे भोरे कहिन हैं :
"हो गई है ग़ैर की शीरीं बयानी, कारगर
इश्क़ का उस को गुमाँ हम बेज़बानों पर नहीं"

अपना फोटो लगाके लोग 40 लोगों को क्यों टैग करते हैं समझ नहीं आता.

उफ़ ! गुमशुदगी दर्ज करा दी है किसी ने.. हमारे नाम की
सिर्फ हुआ इत्ता कि हम तपते बदन बाहर नहीं निकले ?

तुम्हारी मां की बड़ी याद आती है शांतनु..उर्मि जब मोबाइल पर शांतनु से बात कर रही थी तो लग रहा था, अब रो देगी..पास अगर शांतनु होता तो पक्का रुला देता..वो बस इतना कहता- देख,देख..अब रोई उर्मि. अब रुकेगी नहीं और उर्मि पहले तो गला दबा दूंगी तेरा कहती और फिर सचमुच रोने लग जाती. लेकिन
पिछले चार दिनों से मुंबई में फंसा शांतनु फोन पर ऐसा नहीं कर सकता था.उसने पलटकर पूछा- तेरी सास तुझे याद आ रही है और मैं नहीं ?
शांतनु, सच कहूं..तुम जब भी मुझसे दूर होते हो, तुम्हें मिस्स तो करती हूं लेकिन मांजी की बहुत याद आती है. तुम्हारा कहीं जाना होता कि इसके पांच-सात दिन पहले से मेरे साथ होती. इस बीच तुम कब चले जाते, बहुत पता नहीं चलता. रात होते अपने कमरे में जाती तो देखती कि उन्होंने ऑलआउट लिक्विड हटाकर मच्छरदानी लगा दी है और फिर..आ उर्मि, जरा मूव लगा दूं, घंटों कम्पूटर पर आंख गड़ाए बैठी रहती है.
अच्छा तो सासू मां की याद इसलिए ज्यादा आती है कि वो सेवा-सत्कार करती थी...सेवा-सत्कार वैसे मैं भी तो कम नहीं करता..सेल्फिश उर्मि..सेल्फिश,सेल्फिश......


आयं पिरिया मैडम, ई जो राते दिने भोरे भिनसारे 24*7,सवा सौ करोड़ जनता तक हक़ पहुँचाऊ प्रोजेक्ट में भाई लोग आपको रगेदे हुए हैं, "पांच सौ करोड़ के इमेज बिल्डिंग कॉन्ट्रैक्ट" में से आपको आपका वाजिब हक़ दिया है कि नहीं उन्होंने ??
देख लीजिये, न दिया हो तो आप अपना हक़ लीजियेगा जरूर..

राहुल ने हड़ौती क्षेत्र में कहा कि गरीबी के पीछे सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी नहीं वरन निरंतर बीमारी है। गांधी ने कहा कि मजदूरों से पूछिए कि वे इलाज पर कितना खर्च करते हैं। कांग्रेस इस समस्या को पूरी तरह से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है आने वाले सालो में हम आपको रोटी देंगे लेकिन रोजगार नहीं ... ना आपके पास इलाज करने का पैसा होगा ना आप बीमार .. क्योकि बीमारी केवल मानसिक स्थिती है ......

मानव जब जंगल में रहते थे , उस समय भी उनकी जन्मपत्री बनायी जाती , तो वैसी ही बनती , जैसी आज के युग में बनती है। वही बारह खानें होते , उन्हीं खानों में सभी ग्रहों की स्थिति होती , विंशोत्तरी के अनुसार दशाकाल का गणित भी वही होता , जैसा अभी होता है। आज भी अमेरिका जैसे उन्नत देश तथा अफ्रीका जैसे पिछड़े देश में लोगों की जन्मपत्र एक जैसी बनती है। लेकिन क्या उन जन्मपत्रियों को हर वक्त एक ढंग से पढा जा सकता है ??

बिलकुल ठीक कह रहे हैं जेठमलानी. केवल आसाराम की पीड़िता ही नहीं, वसंत विहार वाली और यहां तक कि वह 5 साल की वह बच्ची भी मानसिक रोगी थी जो हैवानियत की शिकार हुई. अव्वल तो वो सभी बच्चियां-लड़कियां-स्त्रियां मानसिक रोगी ही हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ की शिकार हुईं या हो रही हैं या होंगी. मानसिक रूप से सबसे ज़्यादा स्वस्थ वही लोग हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ जैसे महान कार्य करते हैं. जेठमलानी तो पता नहीं साबित कर पाएंगे या नहीं, मुजफ्फरनगर गए माननीयों ने इसे साबित भी कर दिखाया

आ ! मैं अपनी साँसों से तेरे लिए उमर बुन दूँ. सूरज मुझको ला दे साजन, अपने माथे पर जड़ लूँ...
[मौत से डरी लड़की का बयान]
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आज फिर हमारे अंधे क़ानून को असाम के पाँच अवयस्कों ने सामूहिक रूप से मुँह चिढ़ाया। इन जन्मजात शैतानों ने दुष्कर्म के लिए फिर एक दस साल की बच्ची को निशाना बनाया।
जहाँ के युवा सेक्स को 'शुद्ध देसी रोमांस' और विकृत मानसिकता दिखाने को 'ग्रैंड मस्ती' मानने लगे हों, जहाँ माँ-बाप पर बनने वाले अश्लील चुटकुलों का दखल सुपरहिट फिल्मों तक में हो गया हो, वहाँ की असलियत के बारे में अंदाज़ा लगाने की जरूरत ही नहीं क्योंकि उस समाज का आइना ही उनकी सूरत दिखा रहा है।
जहाँ के युवा आधुनिकता के नाम पर अपने कोटों में पश्चिम के लोफर और बिगडैल युवाओं की असभ्यताओं की जेबें जोड़ने को आमादा हों, वहाँ क्या उम्मीद करें और कैसे? ये तक नहीं सोचते कि जहाँ के जैसा वो बनना चाहते हैं वहाँ भी सभ्य समाज में वह सब मान्य नहीं जो वो सीख रहे हैं।
मैंने पहले भी कहा था और फिर कह रहा हूँ कि दिल्ली में हाल ही में फाँसी की सजा सुनाये गए दरिंदों के रोने-कलपने और जिंदगी के लिए गिड़गिड़ाने की फुटेज बनाई जावें और इन अपराधों के परिणाम से डराने के लिए विभिन्न चैनलों पर इन्हें विज्ञापनों की तरह चलाया जावे। हो सकता है कोई फर्क पड़े। माइनरों पर नया क़ानून तो ये लोग बनाने से रहे, क्योंकि माइन और माइनरों से सरकार को बड़ा लगाव है।

इश्क के नशे में डूबा...............तो ये जाना....
इश्क में पिट जाओ तो किसी को ना बताना....:)))))

आप सभी को विश्वकर्मा जयन्ती की शुभकामनाएँ... असली इंजीनियर डे तो आज है जी... मेरा निक नेम भी इन्हीं इंजीनियर के नाम पर पड़ा था....

काश कुछ इलाज़ कर पाती इन जेठमलानियों जैसों की मानसिक बीमारी का.....मैं भी उन हजारों लाखों करोड़ों महिलाओं जितनी ही बेबस हूँ जो सिर्फ घृणा से थूक सकती हैं पर कुछ कर नहीं सकती....

क्या एक जातिहीन और नास्तिक समाज हमारे वर्तमान समाज से बेहतर नहीं होगा? यह मेरी एक सहज जिज्ञासा है, जिसका उत्तर मैं अपने सभी सुधी मित्रों से जानना चाहता हूँ। अगर आपको लगता है कि जातिहीन और नास्तिक समाज ज्यादा श्रेयस्कर है, तो उस दिशा में किस तरह बढ़ा जा सकता है- कृपया व्यावहारिक सुझाव दें।

कुछ उजाले की चकाचौंध से डरते हैं,
कुछ अँधेरे में परछायिओं से डरते हैं,
हम भी हैं तनहा अपनी रहबर निहारते,
पर जाने क्यूँ आपकी अंगडायिओं से डरते हैं !
कुछ को ख्वाब देख के जीने की आदत है,
कुछ को मैखाने में पीने की आदत है ,
हम हैं परेशां दीवानापन की आदतों से,
पर जाने क्यों शादी की शहनाईयों से डरते हैं!!
इंतजार कर रहा हूँ जुश्तजू जो है ,
इज़हार भले ही न करूँ आरज़ू तो है ,
कुछ मोहबत में किस्से सुने हैं ऐसे ,
हम अभी से आपकी तनहायिओ से डरते हैं !!

राहुल के भाषण का इंतज़ार
12 पार्टियां कर रही है
लेकिन......
राहुल का भाषण देना
मुस्किल ही नहीं नामुमकिन है

आपके बोले हुए शब्द ...फिर आप तक वापस आयेंगे इसलिए हमेशा अच्छा और मीठा बोलें ~ET~ _/\_

मुझे आज भी याद है ..जब मै पहली बार हाई स्कूल जाने के लिये बड़ी ही उत्सुक था ...आपस मे दोस्तो के साथ चर्चाये गर्म थी ....तब मेरे बाबूजी ने एक ही बात कही ......'अब बाहर की दुनिया देखोगे, पर याद रखना घर मे तुम्हारी भी बहने है और बाप का सम्मान' ! उस समय इन बातो का अर्थ नहीं समझ पाया था ...पर आज यही मेरा सबक है .....और गुरुमंत्र भी ! अजय'शिशोदिया'
एक बात बताए कि किसान हमें रोटी देता है या हम किसान को रोटी देते है?

कुछ भी शांत नही है ,,
न देश,
,न सियासत,
, न दिल
, न दिमाग,
,न धडकन
और
न ही मन,
,,,,,,,,,,एक अजीब सी बेचैनी ने घेर रखा है,,
,,मुझे और मेरे वतन को,,,,
,,,,राम जाने कब,,,,,शकुन नसीब होगा,,,,,,,,,,,ऐसे थोड़े होता है ,,,,,,,,,,,,,,,?

खडी खबड : दंगा इतना बडा था और दिल्ली को बताया तक नही : पी एम
कम से कम बता देते तो मैं ये तो कह देता : ठीक है

आज सुबह जब मैंने फ़ेसबुक पर मित्रों से पूछा

आज दिल्ली बलात्कार कांड पर आरोपियों की सज़ा का निर्णय आ सकता है । मौजूदा कानूनों के अनुसार चारों को ही " मृत्युदंड या आजीवन कारावास" में से कोई एक सज़ा सुनाई जाएगी । मैं आप सबसे सिर्फ़ एक सज़ा चुनने को कहूंगा और ये भी कि सिर्फ़ यही सज़ा क्यूं । शाम को , इन्हें सुनाई गई सज़ा और उसका प्रभाव और जो सज़ा इन्हें नहीं दी गई , दोनों पर एक कानूनी पोस्ट लिखूंगा , मैं यहां आप सबकी राय भी लेना चाहता हूं ............आप देंगे न
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Bhavesh Kumar Jha bhai inko baizzat bari kar do public dekj legi

फाँसी देने से अपराधियों को उनके कुकृत्य की सही सजा नहीं मिलेगी.....आजीवन कारावास हो ताकि वे पूरी उम्र अपने दुष्कर्म को याद कर अपने हश्र को देख, महसूस कर सकें...
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Life sentence because themain perpetrator of crime is going virtually scot free.

मैं कोई कानूनी जानकार नहीं हूँ पर मेरी राय मे मृत्युदंड से कुछ भी कम सज़ा देना इस तरह के अपराधियों के हौसले बुलंद करना होगा ! जेल मे वो क़ैद मे तो रहेंगे पर मौज मे रहेंगे ... अपने यहाँ की जेलों मे जिस तरह का माहौल है वो छिपा नहीं है ... पैसे के दम पर सज़ा हाल मज़ा बन जाती है !
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AJAY JI, MAINE APNE WALL PAR JO LIKHA HAI VO ZAROOR DEKHNA SIR
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No jail no death.. Hath pavan kaat do aur chhod to mathe pe likh ke ............. Main. B...... Ri hun. Agr koi eske baad himat kr le to..

सिर्फ और सिर्फ 'मृत्यु दंड'
कारण ----जब कोई बलात्कार की घटना होती है तब संजीदे व्यक्ति के मन में तुरंत यह ख्याल आता है ,ऐसा उसकी बहन,बेटी , पत्नी, बहु के साथ भी हो सकता है और इस कल्पना मात्र से ही वह भयभीत और उससे उपजे क्रोध से विचलित / पागल सा हो जाता है । पीड़ित के विषय में घटना का नाट्य क्रम जानकार बस बेबस सा हो जाता है और तुरंत यही इच्छा होती है कि बलात्कारी को जान से मार दिया जाए । जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी ऐसे अपराधी को जान से मार देना चाहिए तभी लोगो का नज़रिया बदल सकता है ,अपराधियों का भी और जनता का भी । आजीवन कारावास पाए हुए ,जीवित अपराधी के प्रति धीरे धीरे कहीं न कहीं ऐसा माहौल बनने लगता है ,समय के साथ ,कि उसे सहानुभूति मिलने लगती है । जबकि ऐसे अपराधी के प्रति किसी भी प्रकार की दया दिखाने वाले को भी सजा दी जानी चाहिए ।
"एक अलिखित व्यवस्था ऐसी भी होनी चाहिए कि ऐसे मामलों में कोई भी वकील इन अपराधियों की ओर से इनकी पैरवी न करे "।

हाथ पाँव काटने या नपुंसक करने की सजा अभी यहाँ नही है। । ।उम्रकैद देने से भी उनको तो सही सजा मिलेगी लेकिन बाकी समाज में सही सन्देश नही जायेगा । । क्यूंकि इस तरह के अपराध में सजा होने में सालो लगते थे । तो सबको ये ही लगता था के अगर रहने की बात है तो जेल में भी रह लेंगे । । और ये ही बात उम्रकैद में है क्यूंकि कोई कितना भी अपंग हो या कैद में हो जीना चाहता है और मेरे हिसाब से इन अपराधियों से जीने का अधिकार ही छीन लिया जाये । । तो मृत्युदंड
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मृत्यु दंड, क्योंकि यह उस लड़की के साथ न्याय होगा!

मृत्यु दंड ही क्यों ? क्या इस से बड़ी सजा नहीं सोची जा सकती ?

मेरे सोच के हिसाब से सर मुंडबा के हल्दी चुना और कालिख लगा के जूतें की माला पहना के गधे पर बीठा के एक सहर में घुमाया जय अगर बच गया तो दुसरे सहर में |

sajaye maut Ajay ji ....
q ki esse jo ensaan ke roop me darinde hain unke man me kuch to dar paida hoga.

सिर्फ मृत्यु दंड ...... क्योंकि ऐसा करने से किसी और को ऐसी हरकत करने का साहस नहीं होगा और न्याय व्यवस्था पर भी विश्वास बहाल होगा ...... इसमें भी मैं विशेषकर नाबालिग मान कर कम सजा पाए को तडपा - तडपा कर ....

मेरा मानना है कि इन चारो को बीच चौराहे पर लटकाकर गोली मार देनी चाहिए जिससे कि जो देखे वह भी एक बार गलत काम करने से सोंच में पड़ जायेगा

ऐसों को दिए जाने लायक सजा का प्रावधान अपने देश की संविधान में है ही नहीं

मृत्युदंड XXXXX

mrityudand... kyunki ye ajiwan karawas me to ye log aish karte hain....free me khana, free me rahna... aur jo aise darinde hain unhe koi pachhtawa kabhi nahi hoga...

Aisi saja jo ouro ke liye bhi sabak ban jay - inhe beech chourahe par gaad kar aam public se pitwa pitwa kar marva do.

bilkul denge ji aap likhiye to sahi ...

life imprisonment till death... (उम्र कैद बा मुशक्कत) फांसी तो मुक्ति है.

मृत्युदंड छोड़कर कुछ भी. सीधी बात! जो जीवन दे नहीं सकता, वो जीवन ले भी नहीं सकता
इन प्रतिक्रियाओं के अलावा इसी फ़ैसले के बाद और पहले आई और प्रतिक्रियाएं कुछ यूं रहीं

मैं ऐसे दर्जनों न्यायप्रिय चेहरे को दानता हूं दो स्त्री आवाज को कुचलने का कोई मौका नहीं छोडते लेकिन बात-बात पर फांसी से कम तो न्याय ही नहीं लगता

अभी देश में यह मुद्दा है ही नहीं कि फाँसी की सजा दंडसूची में होनी चाहिए या नहीं। अभी तो वह सर्वोच्च दंड है। इस मामले में इस से कम दिया नहीं जा सकता था। इस कारण जो हुआ वह ठीक है। मुझे लगता है कि अभी जो परिस्थितियाँ हैं उन में फाँसी के दण्ड को दण्ड सूची से हटाना मुद्दआ नहीं बन सकता। अभी तो समाज खुद कितना न्यायपूर्ण है? जब समाज एक स्तर तक न्यायपूर्ण होगा तो फाँसी की सजा को दण्ड सूची से हटाना मुद्दआ बन सकता है औऱ उसे वहाँ से हटाया भी जा सकता है।

आज सभी देश की न्याय प्रणाली की गौरव गाथा गा रहे हैं। कोई कह रहा है अब भी देश में कानून जिंदा है, कोई कहता है देश में कानून निष्पक्ष है...
कुछ दिनों पहले नाबालिक बलात्कारी को बाल सुधार गृह भेजे जाने के निर्णय पर यही लोग देश की न्यायिक प्रणाली पर लानत भेज रहे थे???

ओह, निर्भया के अपराधियो, तुमने उसे ही नहीं थोड़ा हमें व हमारी आत्मा को भी मारा है। तुम्हें फाँसी की सजा मिलने पर हमारा संतुष्ट होना यही सिद्ध करता है। तुम हम सबके भी अपराधी हो। काश, तुमने मनुष्य योनि में जन्म न लिया होता। काश, किसी स्त्री ने तुम्हें अपने गर्भ में न पाला होता। तुम मॉन्स्टर किसी स्त्री के पुत्र, भाई, पति या पिता न होते। ताकि कोई स्त्री तुम्हारा पक्ष लेकर और तुम्हारे लिए टसुए बहाकर स्त्री जाति को और अधिक क्षोभ और लज्जा का पात्र न बनाती।

मेरी मानो तो मौत से भी भयानक सजा मिलना चाहिए था उन चारो दानवों को . मगर क्या इससे उन लुच्चे लफंगे गली के कुत्तों को कोई फर्क पड़ेगा . आँखों में एक्सरे मशीन लगा कर लड़कियों को घूरने वाले , फब्तियां कसने वाले उन कमीनों को कोई फर्क पड़ेगा ?
मुझे नहीं लगता हैं .
दामिनी बलात्कार केस में जो फैसला आया है वो सभी पिता और भाई के लिए बहुत बड़ी जीत है मगर आधी .
जब तक गलियों में मुहल्लों में स्कुल कॉलेज सार्वजनिक स्थलों पर इनको चिन्हित कर के पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई जायेगी तब तक कुछ नहीं बदलने वाला .
साथ ही लड़कियों को भी तैयार रहना पड़ेगा विरोध करने के लिए चाहे वो बात से हो या लात से हो .
ऐसे कितने वाकये हैं जिसमें लड़कियाँ अपने परिवार के सदस्यों से उन पिल्लों की शिकायत नहीं कर पाते हैं क्यों की उन्हें डर रहता है खुद के पाबन्दी का भी और पिल्लों से भी .
इस लिए हमें अपने घर से ही इसकी शुरुआत करनी होगी अपने बहन को बेटी को बताना होगा की हर परिस्थिति में हम उनके साथ हैं .
तब जा कर कुछ बदल सकता है और जीस दिन हमारी बेटियां उन नामुरादों को सबक सिखायेगी उस दिन हमें पूरी जीत मिलेगी .
मैं सभी क्रांतिकारी संग मिडिया एवं सोशल मिडिया तथा सामाजिक संगठन का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ की उनलोगों के बदौलत ही हम आज एक परिवर्तन कर सके .

जैसे कोई बेहतर लिबास हो वैसे ही ये सजा इन घटिया लोगों पर खूब अच्छी लग रही है..मानवता का यैसा भी पैरोकार नहीं की दरिंदो के लिए मौत दूभर लगे.. बल्कि आगे के अपील के लिए इन्हें कोई वकील न मिले वैसा कुछ हो ..लेकिन कोई बेगैरत तो निकल ही आएगा

गैंगरेप के चारों आरोपियों को जिला अदालत के द्वारा फांसी की सजा देने का अभी फैसला आया है, ये फिर उच्च न्यायालय में जायेंगे फिर सुप्रीम कोर्ट जायेंगे और फिर राष्ट्रपति के पास जायेंगे। सारा मामला इसे अधिक से अधिक दिन तक खींचने का है।