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रविवार, 28 जुलाई 2019

बोलते हैं ये चेहरे







 जैसा कि  मैं इस ब्लॉग के बारे में पहले भी कहता बताता रहा हूँ कि  इसे मैं सिर्फ इस उद्देश्य से बनाया था कि  फेसबुक पर मेरी मित्र सूची में शामिल मित्रों दोस्तों द्वारा रोजाना लिखी जा रही पोस्टों को सहेज कर संकलित कर यहां साझा कर लेता हूँ ताकि फेसबुक और ब्लॉग्गिंग के बीच एक सेतु भी बना रहे और ब्लॉग जगत के दोस्त जो वहां न पढ़ पाएं हो वो ये यहां पढ़ लें | 

लीजिये कुछ चुनिंदा पोस्ट टिप्पणियां आप भी पढ़िए



शहीदों के परिजनों का बलिदान सर्वोपरि है:-
कारगिल शहीदों के परिवार के सदस्‍यों को नमन

मातृभूमि की रक्षा से देह के अवसान तक
आओ मेरे साथ चलो तुम सीमा से शमशान तक
सोये हैं कुछ शेर यहाँ पर उनको नहीं जगाना
टूट न जाए नींद किसी की धीरे-धीरे आना
आँसू दो टपका देना चाहे ताली नहीं बजाना
सैनिक का बलिदान अकेला नहीं है। उसके साथ उसके परिजन भी बलिदान करते हैं। शहीद का शव ताबूत में परिजनों के बीच आता है और फिर शमशान जाता है। कल्‍पनाओं में मैं भी वहां खड़ा हूं और सोच रहा हूँ……..काश इस शहीद को मैं शहीद न कहकर इसके नाम से आवाज दूँ और ये जी उठे…..



दुनिया के सारे मरद ये कहते हैं कि औरतों की अक्ल उनके घुटनों में होती है।😏
क्या उन्हे पता है कि मरदों की अक्ल कहाँ होती है??🤔🤓
(जो घुटने देख कर घास चरने चली जाती है )



दिन ( बोले तो 24 घण्टों वाला एक दिन ,एक तारीख वाला एक दिन ) को दो मनमाफिक हिस्सों में बँट जाने देने का ...
जब मर्जी सोने का ,वो भी बिना रात का इंतजार किये ... और जब मर्जी उठने का ,ये भी बिना सूरज की किरणों के जागने का इंतजार किये ...
फुलटुस मौज में जिंदगी जीने का ,जिंदगी काटने का नहीं ...
परेशानियों का क्या ... हो सकता है उनका भी मूड बदल जाये और वो भी खिलखिला कर हाई फाई कर दें ... निवेदिता




सुन मेरी पुकार_ओ_रब्बा__
———————————
हे
मधुसुदन_
नाग_नाथन_हार
मैं हूँ
एक कोई भी_
बेहद खूबसूरत ‘जवान’_लड़की_
रंग, सुगन्ध_अलबत्ता_
अलग ही है मेरी
अलबेली रचते हो तुम_
निषाद कन्या सत्यवती सा_
ऐसों की क़िस्मत भी_?
पूर्वाग्रह से ग्रसित
कई भुजंगो ने
शान्तनु सा हमें
संबंधो के
सत्ता के_
नंगे विज्ञापन के_
ताने_उलाहने में
जकड रखा है
मुझे तो
तुम ठीक से जानते भी नहीं
हम कुछ ख़ास
है भी नहीं_?
तुम्हारे लिए_
प्यार से_अरमान से_सुकून से_
ठीक से_
सोच कर जवाब दो_
करूँ निर्णय
सत्यवती सा_
कई अछौहनी जनों का_
रुधिर बहवा दूँ_?
या
मुझे_
मुक्त कराना चाहोगे_
तुम_?





चलो ना शोर में बैठें, जहां कुछ न सुनाई दे
कि इस ख़ामोशी में तो सोच भी बजती है कानों में
बहुत बतियाया करती है यह फापे कुटनी तन्हाई!
- गुलज़ार

कभी दो कमरों में छह लोगों का वास था,
अब छह कमरों में दो लोगों का ठौर है ।
वक्त वक्त की बात है इतना समझ लीजे,
वो भी इक दौर था, ये भी एक दौर है।


रोज की तरह कल भी जब कमलनाथ ने अपने सभी विधायकों को फोन करके पूछना शुरू किया कि मेरे शोना बाबू ने खाना खाया की नहीं....
तो पता चला कि आठ विधायकों का मोबाइल" नाट रिचेबल" है.
बस कमलनाथ आज सरपट दिल्ली भागे आये हैं 🤣 लगता है राहुल गांधी के मूत्र में अब पहले वाली तासीर नहीं रही.
#सरकार तो गई लागे है😂



बिहार यूपी के लोगों से बकैती जितनी करा लो। मतलब हमेशा ही भाई साब ये इसी मूड में मिलेंगे आपको।इनकी कोई बात सीधी टू द प्वॉइंट नहीं होगी। एकदम अलग ही ज़ोन में जीते हैं। सब यहां बाबा ही मिलेंगे।
(इतने अच्छे लैंग्वेज में इससे ज्यादा नहीं कहा जा सकता, जिस लैंग्वेज में मेरे मन में विचार आ रहे हैं वो लिखने पर ब्लॉकधाम को पहुंचा दिए जाएंगे 😆)



संविधान में ४२ वें संशोधन करके उसकी प्रस्तावना में "धर्मनिरपेक्ष" शब्द
जुड़वाने वालों ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मृत्यु के बाद 1984 इस देश में सबसे बड़ा नरसंहार किया गया | करने करवाने वाली इनकी ही पार्टी थी और आज इन्हें संविधान खतरे में नज़र आ रहा है | तुम्हारा खुद का लिखा इतिहास उतना ही काला है जितनी कालिख आज ये राजनीतिक पार्टी अपने चरित्र पर लिए घूम रही है
आज  के लिए बस इतना ही 

बुधवार, 24 जुलाई 2019

चेहरों ने कुछ कहा है



मेरे फेसबुक मित्रों के बेहतरीन स्टेटस ,कथ्य ,फोटो आदि को सहजने और उसे ब्लॉग जगत के साथियों तक पहुंचाने के उद्देश्य से इन्हें यहां साझा करता हूँ | आप भी देखिये की इन चेहरों के क्या कुछ कहा पढ़ा सुना देखा है। .........






किसका ये रंग रूप झलकता है जिस्म से,
ये कौन है जो मेरी रगों में उतर गया ?
~आलोक

सुन्दर गांव , सुन्दर घर - जहां हमारा बचपन गुजरा। सामने दोनों ओर वर्षा-बहार का पेड़ , उससे नीचे कनेर का पेड़ तो आप देख ही रहे हैं। जैसा कि मुझे याद है , इससे नीचे गेट के बिलकुल नजदीक दोनों ओर उड़हुल का पेड़ भी था। या फोटो बाद का है , तबतक किसी कारणवश पेड़ कट गया होगा। पीछे के बगीचे में तो फल-फूल देनेवाले बहुत सारे पेड़ थे।





ईस्क़ है
या है
टीस-
दिल, दिमाग़, बदन को एेंठता रहता है
इस बार
सारा का सारा
गुरूर
टूटा-फूटा क्यूँ लगता है
यूँ
जैसे
मिट्टी हुआ हो मेरा पूरा वजूद
चाहनेवालों
तुम में
है कोई कुम्हार सा ?
ज़रा सा
हाथ लगा दे
चक्करघिन्नी
चाक पे धर दे
जला दे आग में
भले फिर
मेरी कृति कह
अपना दावा कर दे
कोई मनाहट नहीं होगी
मैं चाहती हूँ
कि
बस
रूह को करार तो आये___!

बिमारी आपको गिल्ट फ्री कर देती है।
इतना सारा पढ़ना है, इतना लिखना है, योग के लिये जाना है, वाक के लिए जाना है । पूरे समय बज़र सा सर पर बजता रहता है। कोई नेटफ्लिक्स पर अच्छी फिल्म या सीरीज़ सुझाता तो रुआंसी सूरत से कह देती ,'समय ही नहीं है'....भले ही समय इधर उधर में ही बीत जाए ।
जो लोग कम बीमार पड़ते हैं, उन्हें बीमारी की समझ भी देर से आती है । संडे रात ही तय कर लिया, अब अगले हफ्ते से सारा रूटीन सुचारू रूप से अपनाउंगी। वरना बस "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" ही सच होकर रह जायेगा। फिटनेस पर लिखने वाले को खुद भी गम्भीरता से अपनाना भी चाहिए।
सोमवार, सुबह लंबे वाक के लिए चली गई। थकान होने लगी तो सोचा, 'कल ट्रैफिक में तीन घण्टे ड्राइव किया है ।क्लच-ब्रेक करते पैर दुख रहे होंगे।' योगा में कुछ आसन ठीक तरह से नहीं हो पाए तब चिंता होने लगी , 'अब उम्र हावी हो रही है दो दिन के गैप में ही असर दिखने लगा। '

दोपहर को जब बुखार चढ़ा तब समझ मे आया 'अच्छा ! बेटे जी से वायरल का गिफ्ट मिला है।'
पर एक निश्चिंतता भी तारी हुई अब बिना किसी अपराधबोध के जो चाहे टी वी पर देखा जा सकता है ।चादर तानी,रिमोट उठाया और सोती जागती आँखों से एक के बाद एक पांच एपिसोड देख डाले। पहले एक फ़िल्म देखी ,'एलिज़ाबेथ' । फिर लगा इनका पूरा इतिहास जानना चाहिए। किताबों में तो बस फैक्ट्स लिखे होते हैं। यहाँ, चिट्ठियों, दस्तावेजों, तस्वीरों, वीडियो क्लिपिंग्स के साथ बड़े रोचक ढंग से सबकुछ बताया गया है।
एक चिंता ये भी हो रही थी, नवनीत खाली समय में ढूंढ ढूंढ कर जानकारीपूर्ण विडियोज़ देखते रहते हैं,मैं तो बहुत पीछे रह जाऊँगी 😀
खैर तो बीमारी एन्जॉय ही कर रही हूँ। अब ठीक हो रही हूँ तो फिर गिल्ट ट्रिप की यात्रा शुरू होने वाली है।😊





हैं यादों की गुफ़्तगू इनमें
ये पल मुक़र्रर हैं तेरे लिए...
चुरा रहा है...चोरी- चोरी
ये हसीन शाम का मंज़र इन्हें...




तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
-तहज़ीब हाफ़ी😊




भोला शंकर ने पूछा - महाराज , कुछ पुरातात्विक महिलायें ‘जय श्री राम’ को भड़काऊ और आपत्तिजनक बता रहे हैं !
हमने कहा - तो हम क्या करें ?
भोला बोला - नहीं , मेरा मतलब इस पर आपका क्या कहना है ?
हमने कहा - उनकी आपत्ति वाजिब है !
ये सुनते ही भोला के अंदर बजरंगी ज्वाला धधक उठी , फूँफकारते हुए बोला - क्या वाजिब है ?
हमने आरएमडी के मसाले और जर्दे की कर-नाटक सरकार को थूकते हुए कहा - अबे, अरण्य में लक्ष्मण ने यही उद्घोष कर इनके बुआ की नाक काटी थी !






Sagar Nahar is feeling loved.


याद है मुझको एक दिन तुमने नयन मूंद मेरे पूछा था
कौन हूं बोलो कौन हूं बोलो कौन हूं बोलो
मैंने कहा था तुम हो मेरी जीवन वीणा ज्यूं दीपक संग बाती
भूल न जाना लिखना पाती
-मधुकर राजस्थानी



- दीदी सब्जी बनाएं है का?
- बनाएं थे, लेकिन सब खत्म हो गया।।
- कोई बात नहीं, गुड्डू कोलगेट साथ रोटी खा लेगा, अच्छा लगता है उसको। मरजन्सी के लिए एक डब्बा एस्ट्रा रखते है कोलगेट, ओ भी लाल वाला।
- और गुड्डू के पापा?
- उनका का है? वो तो बर्फो साथ खा लेते है।