![]()
मैं बहुत कुछ लिखना चाहता हूं, मगर कमजोरी...वह स्थायी थकावट, जो मेरे ऊपर तारी रहती है, कुछ करने नहीं देती। अगर मुझे थोड़ा-सा सुकून भी हासिल हो, तो मैं वो बिखरे हुए खयालात जमा कर सकता हूं, जो बरसात के पतंगों की तरह उड़ते रहते हैं, मगर...अगर...अगर करते ही किसी रोज मर जाउंगा और आप भी यह कहकर खामोश हो जाएंगे, मंटो मर गया।...मंटो तो मर गया, सही है... मगर अफसोस इस बात का है कि मंटो के यह खयालात भी मर जाएंगे, जो उसके दिमाग में महफूज हैं।
--मंटो ने अहमद नदीम कासिमी को 12 फरवरी, 1938 को एक ख़त में लिखा।
सूरत बदल गई पर दिल तो वही पुराना,
हम तो समझ रहे पर नासमझ ज़माना !
एक बड़ा तबका निजी और समाजिक जीवन में तमाम सफलताओं के बावजूद इस बात को लेकर दुखी रहता है कि वो जो बनना चाहता था वो बन नही पाया .
कद्रदान मुझ जैसे मिला हो कोई तो बताओ ?
कद मेरा तुमसे पहले न बड़ा था ,न बड़ा है !
सुप्रभात !
किस्मत का हाल भी है तेरी जुल्फ के जैसाअपनी कोशिशों से तो बस ये उलझा ही करेरिश्तों के बदले सीन, हीर मिले मजनूं सेऔर लैला से मुलाकात तो अब रांझा ही करेदारु मिल जाये उसे, तो खेंच ले अकेला हीदुख हों अगर पास, तो उनको वो सांझा ही करेएयर इंडिया का पायलेट है या सुब्रहण्यम स्वामीजो मिल जाये उसे, उससे वो जूझा ही करेदूर रहना आलोक से, खतरनाक से हैंउन्हे तो रोज ही खुराफात सूझा ही करेइश्क की पहेली के हल होते ही नहींजो भी बूझे, उम्र भर बूझा ही करे
आदमी विज्ञापन ,
आदमी इंटरनेट ,
आदमी है घोटाला
आदमी कुछ नहीं साइबर का एक शोला
नाचता , हांफता , दौड़ता सा आदमी
निरंतर बैचेन , बेलिहाज़
अब पूंजी में बदल गया है आदमी
चंचल पूंजी ...
हर समय अस्थिर ...
न जाने हम कि अब क्या है आदमी
हमारी पकड़ से तो अब बाहर है आदमी
आदमी है एक पहेली
वो न सुलझी है न सुलझा है आदमी |
-
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_tW-CzMxYTWuNAhYpJAxZTONXH5pINFnFPqGlKWN5JOdUKwxlUEzhi-5RQDs7JqbbQE_XBiBFhIh9ZsjA7Nld7YBIDmsnHjv4yCat8NyER4D8E6OYfWW02r4Qf_mb-9o-vcn_X0bYnQ6LDg14X2Cw=s0-d)
कभी
कभी ये नादान शब्दों के घेरे हमारे जज्बातों को समेट नहीं पाते, ये एहसास
यूँ ही बारिश के रंग में घुलकर बहते रहते हैं इन गलियारों में... जाने
क्यूँ अचानक से इस बारिश में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, जैसे
ऑक्सीजन इन पानियों में भीगकर कुछ और ही बन गया है...
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_v0eVYmv6OCeOOrWhP0rzwBb5RsIEigtAW5e3e0RrKcRgKHJuS3z9stP5i36ahHk632fR6iZOalCtNWFRo7wWpU2t1o25rKTbRbr3AvDI8uZCACt91eSUSO4FTUznD04d3tRDeAjbppHpxXfjNEI_6m5w=s0-d)
दोस्तो ! इस बार गर्मियों की छुट्टियों में कहां जाना चाहिये ? ज़रा मशवरा दीजिए ।
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_v6-Jq604FW9lr8v2JUbVeBdvId9lJl1F4fymHk9IQRXn2IAgC5rfy362Iw445_jWk6KjYy4_bRH4_pFRINGaxU9iM_oCHPQNc8qLbM4lr89FXlF29d48Oaxo-qY-toliruV5DVR_NMrLHekK01aRm0=s0-d)
तारो के तेज में चन्द्र छिपे नहीं
सूरज छिपे नहीं बादल छायो
चंचल नार के नैन छिपे नहीं
प्रीत छिपे नहीं पीठ दिखायो
रण पड़े राजपूत छिपे नहीं
दाता छिपे नहीं मंगन आयो
कवि गंग कहे सुनो शाह अकबर
कर्म छिपे नहीं भभूत लगायो।
कवि गंग
चिलचिलाती धुप
सुलगती जमीन
और आग उगलता आसमान
ऐसे ठीक दुपहरिया में
किसी वीराने में जाकर
एकदम से मस्त होकर
सुहानी मौसम का आनंद महसुसना
कितना मनमोहक
बोलो भला
पगला गया है क्या
मरने का उपाय सुझा रहे हो का
हे हे
दिखावे पे ना जाओ
अपनी अकल लगाओ
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_u97tQeHG4C-BRgyZZk2pkny_Ww042hRz7NaSlsGUUngVxpWYlHWrLj5Y-BqAQk_fY0Qg_zlYd5UQM010lS2QK_hqYI6DhrS6jMm-GlbRvxcl_hKCWZdSroy0itdeHy-20lZicu88NC7EOg7Q=s0-d)
जरा सोचिए......देश के भविष्य का वास्ता देकर एक नारा दिया गया था ...... दो या तीन
बच्चे, होते हैं घर में अच्छे । इस पर देश वासियों ने अमल किया भी, नहीं भी
। कारण कुछ भी रहे हों, तीन बच्चे... अच्छे होते तो थे.... पर घर में, सफर
में नहीं । अब नारा देने वालों ने मुसीबत कम करने में मदद की और दूसरा
सीधा सपाट सा नारा ठोंक दिया... हम दो, हमारे दो । जी हां, हम दो, हमारे
दो । इसके बाद, चैन से सो...हरकत बंद,
तीसरे पर प्रतिबंध । यह नारा कुछ ठीक लगा । सफर में रंग रहे । दो बच्चों का
संग रहे । मियां बीवी के गिले शिकवे समाप्त । परिवार की इस मिली-जुली
उपलब्धि को फिफ्टी-फिफ्टी बांट कर चलो मजे से, सफर हो या सैर सपाटा ।
परिवार, न बढ़ा, न घटा । जनसंख्या भी जहां की तहां । मगर मेरे देश के
लल्लुओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी और बड़े परिवार को संभालने में चारा तक खा
गये । नतीजा..... नारा, न रहा ।
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_t1rGcGU5A2luY2Cvq-B9yKfJgqQg4-khWNtLWBZ1Da2B3f2m0aA-yeKzPFvQNkBxEhFwcIkDat_cpGqbng-4t-2o3azExNQdKT9M-MBeqTi9QMWJF78DwY5Op4H0KcjCRwwQ_E5-Yju4lOBZqKVTe-PZB-0os=s0-d)
मैंने
यहाँ कोई एक बात लिखी..उसी आशय की कोई बात किसी और ने कही दूसरी जगह पढ़ी
..उसने कहा ..कि उसने तो ये बात कही और पढ़ी ..ये आपकी नहीं है जब कि मैंने
कही से पढ़ के नहीं लिखी थी..जानती हूँ कि मै अपनी जगह पे सही हूँ.फिर भी
सवाल ये है कि --- एक ही विचार/बात क्या दो लोगो के दिमाग में नहीं आ सकती ?
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_uJEfDOPgB7GdWN46YXWAVtR7TKCUwoJgJbq_MBI8tHmyRr0s1s2looi4kf5fa9OezdlIJ_OG4knTidpRuqKJPnjA16nP8VScmgBCJ3SjGWa9ggph_9E9be9npx1xalpW6udkudlGekbDevmK2UMBZvnA=s0-d)
एक
पुरानी, घिसी-पिटी कहानी को नए अंदाज में किस तरह कहा जा सकता है,
निर्देशक हबीब फैज़ल ने 'इशकजादे' में इसी कौशल को दिखाया है। फिल्म में
किलो के भाव में गोलियां चली हैं, लेकिन मुंबइयां फिल्मों की तरह इन
गोलियों के अंधड़ में मरता एक भी नहीं है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर
को केंद्र में रखकर लिखी इस कहानी में पुलिस नाम की चिड़िया दूर दूर तक
नहीं दिखायी देती। लेकिन, पर्दे पर जो भी दिखायी देता है, उसे भरोसे लायक
बनाने में अर्जुन कपूर और परिणिती चोपड़ा ने शिद्दत से कोशिश की है। फिल्म
पैसा वसूल है, लेकिन बच्चों को न दिखाएं तो बेहतर है :-)
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_urgVQogWXdeSzotB2KLcTETnkNKU6RFeofkt3lD5MuTDJyJ5f2OiSmVmrgzKWgfh3fsZe7oltrNuf5G8_rbQwVI1xbXPzj93ewdqPU_Yp0SJ-nMdKNijn5hjwharcHsxEM6fW0KYS2NgifFxf4hqFMaVo=s0-d)
आज शाम को जबरदस्त गोलगप्पा पार्टी होगा..... घर में ही बनेगा और फ़िर नो लिमिट का गैरैन्टी.... :-)
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_ubkVM9VJ9jijaLYtaV14CPLgWJh44gZb5diGHlkKJtUfu5r2SWYfcfaM7WsOyixSYeLHPTHQI1C6YPTXFlbyW3t5Q05PFnb2ETS1TjABziVy0NBGuK--EmztWq2nffzwElEptydtPyxx9HzeyGpT8Njbo=s0-d)
जब
कोई पूरे होशो-हवास में यह कह रहा हो कि फ़लां को फ़लां अपराध के लिए सरे-आम
गोली मार देनी चाहिए, फ़ांसी पर लटका देना चाहिए, सामाजिक बहिष्कार कर देना
चाहिए......तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि वह फ़ासीवादी-तालिबानी मानसिकता का
अहंकारी व्यक्ति है और लोकतंत्र और उदारता का चोला उसने किसी मजबूरी या
रणनीति के तहत पहन रखा है। अपनी बात को अंतिम सत्य मानने वाले ऐसे किसी
समूह के हाथ में सत्ता दे देने का मतलब है कि भविष्य में आप भ्रष्टाचार या
अन्य किसी बुराई की अपनी तरह से व्याख्या करने की स्वतंत्रता भी खो देने
वाले हैं।
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_u41UddOBZzp-U8tmoO3L4xO59E7ujAglGbQHaDWnFAzc9j6i12VBO5AJkEXYwI6RkNWxRyXPAYllPSbnzQZdLW34VSMqdEzWtUD55iQBth1l-Mf-r2nO7C--aWSXHhK_Y6CqYpT-FK8o-UGSs=s0-d)
शंकर
ने एक कार्टून बनाया जब अम्बेडकर और नेहरु दोनों ज़िंदा थे. मुझे पूरा यकीन
है कि इन दोनों ने इस कार्टून को पसंद किया होगा. मगर इस पर ही दलित
राजनीति शुरू हो गई. सरकार ने तुरंत माफी मांग ली. किताब से हटा दो, यह
फतवा भी इशु हो गया. कल संसद में जो हुआ उस पर ही एक कार्टून बनना चाहिए.
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_soaoBuHUvW0ZRjCnbUE0sAo42D2Z7tQJxDsXm9m82_AQ52eS4U_T-eXoIvLojdtgZ3h9cVlCn20qIRJspGbI1lV2oEcje6EkAXO9NrMI1eJ8sKliVZ56B9R_Lqgfz0CkJTj6rBkwW7VW3rO02BIBhF=s0-d)
हँसी आती है मुझे तेरी हर बात से
बेतुकी जो होती हमेशा शुरुआत से
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_vHlvIc-0skDXs0c2YmquwIrBur_TjAAcqAjuXksqb5GqcfgFWTJYaA2E7LSEDfh7dSPBMeRohr8USPpMVDQ5No4XgY9W511txgaChd1hkeL8AZ3qmJEQWlpH6wGjbMrTKJFaA-uTTnM3GRXEqeInjsDA=s0-d)
इश्क में दिल सबसे ज्यादा संक्रमित होता है इसलिए डिटोल का इस्तेमाल अवश्य करें...
कभी कभी ये नादान शब्दों के घेरे हमारे जज्बातों को समेट नहीं पाते, ये एहसास यूँ ही बारिश के रंग में घुलकर बहते रहते हैं इन गलियारों में... जाने क्यूँ अचानक से इस बारिश में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, जैसे ऑक्सीजन इन पानियों में भीगकर कुछ और ही बन गया है...
दोस्तो ! इस बार गर्मियों की छुट्टियों में कहां जाना चाहिये ? ज़रा मशवरा दीजिए ।
तारो के तेज में चन्द्र छिपे नहींसूरज छिपे नहीं बादल छायोचंचल नार के नैन छिपे नहींप्रीत छिपे नहीं पीठ दिखायोरण पड़े राजपूत छिपे नहींदाता छिपे नहीं मंगन आयोकवि गंग कहे सुनो शाह अकबरकर्म छिपे नहीं भभूत लगायो।कवि गंग
चिलचिलाती धुप
सुलगती जमीन
और आग उगलता आसमान
ऐसे ठीक दुपहरिया में
किसी वीराने में जाकर
एकदम से मस्त होकर
सुहानी मौसम का आनंद महसुसना
कितना मनमोहक
बोलो भला
पगला गया है क्या
मरने का उपाय सुझा रहे हो का
हे हे
दिखावे पे ना जाओ
अपनी अकल लगाओ
चिलचिलाती धुप
सुलगती जमीन
और आग उगलता आसमान
ऐसे ठीक दुपहरिया में
किसी वीराने में जाकर
एकदम से मस्त होकर
सुहानी मौसम का आनंद महसुसना
कितना मनमोहक
बोलो भला
पगला गया है क्या
मरने का उपाय सुझा रहे हो का
हे हे
दिखावे पे ना जाओ
अपनी अकल लगाओ
जरा सोचिए......देश के भविष्य का वास्ता देकर एक नारा दिया गया था ...... दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे । इस पर देश वासियों ने अमल किया भी, नहीं भी । कारण कुछ भी रहे हों, तीन बच्चे... अच्छे होते तो थे.... पर घर में, सफर में नहीं । अब नारा देने वालों ने मुसीबत कम करने में मदद की और दूसरा सीधा सपाट सा नारा ठोंक दिया... हम दो, हमारे दो । जी हां, हम दो, हमारे दो । इसके बाद, चैन से सो...हरकत बंद, तीसरे पर प्रतिबंध । यह नारा कुछ ठीक लगा । सफर में रंग रहे । दो बच्चों का संग रहे । मियां बीवी के गिले शिकवे समाप्त । परिवार की इस मिली-जुली उपलब्धि को फिफ्टी-फिफ्टी बांट कर चलो मजे से, सफर हो या सैर सपाटा । परिवार, न बढ़ा, न घटा । जनसंख्या भी जहां की तहां । मगर मेरे देश के लल्लुओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी और बड़े परिवार को संभालने में चारा तक खा गये । नतीजा..... नारा, न रहा ।
मैंने यहाँ कोई एक बात लिखी..उसी आशय की कोई बात किसी और ने कही दूसरी जगह पढ़ी ..उसने कहा ..कि उसने तो ये बात कही और पढ़ी ..ये आपकी नहीं है जब कि मैंने कही से पढ़ के नहीं लिखी थी..जानती हूँ कि मै अपनी जगह पे सही हूँ.फिर भी सवाल ये है कि --- एक ही विचार/बात क्या दो लोगो के दिमाग में नहीं आ सकती ?
एक पुरानी, घिसी-पिटी कहानी को नए अंदाज में किस तरह कहा जा सकता है, निर्देशक हबीब फैज़ल ने 'इशकजादे' में इसी कौशल को दिखाया है। फिल्म में किलो के भाव में गोलियां चली हैं, लेकिन मुंबइयां फिल्मों की तरह इन गोलियों के अंधड़ में मरता एक भी नहीं है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर को केंद्र में रखकर लिखी इस कहानी में पुलिस नाम की चिड़िया दूर दूर तक नहीं दिखायी देती। लेकिन, पर्दे पर जो भी दिखायी देता है, उसे भरोसे लायक बनाने में अर्जुन कपूर और परिणिती चोपड़ा ने शिद्दत से कोशिश की है। फिल्म पैसा वसूल है, लेकिन बच्चों को न दिखाएं तो बेहतर है :-)
आज शाम को जबरदस्त गोलगप्पा पार्टी होगा..... घर में ही बनेगा और फ़िर नो लिमिट का गैरैन्टी.... :-)
जब कोई पूरे होशो-हवास में यह कह रहा हो कि फ़लां को फ़लां अपराध के लिए सरे-आम गोली मार देनी चाहिए, फ़ांसी पर लटका देना चाहिए, सामाजिक बहिष्कार कर देना चाहिए......तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि वह फ़ासीवादी-तालिबानी मानसिकता का अहंकारी व्यक्ति है और लोकतंत्र और उदारता का चोला उसने किसी मजबूरी या रणनीति के तहत पहन रखा है। अपनी बात को अंतिम सत्य मानने वाले ऐसे किसी समूह के हाथ में सत्ता दे देने का मतलब है कि भविष्य में आप भ्रष्टाचार या अन्य किसी बुराई की अपनी तरह से व्याख्या करने की स्वतंत्रता भी खो देने वाले हैं।
शंकर ने एक कार्टून बनाया जब अम्बेडकर और नेहरु दोनों ज़िंदा थे. मुझे पूरा यकीन है कि इन दोनों ने इस कार्टून को पसंद किया होगा. मगर इस पर ही दलित राजनीति शुरू हो गई. सरकार ने तुरंत माफी मांग ली. किताब से हटा दो, यह फतवा भी इशु हो गया. कल संसद में जो हुआ उस पर ही एक कार्टून बनना चाहिए.
हँसी आती है मुझे तेरी हर बात से
बेतुकी जो होती हमेशा शुरुआत से
इश्क में दिल सबसे ज्यादा संक्रमित होता है इसलिए डिटोल का इस्तेमाल अवश्य करें...
बहुतै ज़ोरदार मारा है झा जी :-)
जवाब देंहटाएंआभार !
हर चेहरा कुछ कहता है। बहुत उम्दा। नई सोच से। कुछ नया उभरता है।
जवाब देंहटाएंbadhiya sankalan kiya jha ji
जवाब देंहटाएंवाह अजय भाई ... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएं