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गुरुवार, 10 नवंबर 2011

चेहरे कहां चुप रहते हैं

फ़ेसबुक के तमाम बुकियों को सादर स्नेह ,नमस्कार सहित हरेश भाई द्वारा प्रस्तुत और चाणक्य सिंह जी द्वारा हाईपोथिकेटेड चित्र , आपकी नज़रे इनायत के लिए ये रहा , और कुछ अन्य चेहरों की बातें भी ..देखिए








  • हर बार, जब रात को घर आने पर
    बाहर का खाना ना खाने की इच्छा और
    भूख की तडप, मैगी नूडल खिलाती है

    माँ, तब तेरी बहुत याद आती है




आज का ज्ञान :-
एक मिनट कितना लम्बा होता है यह इस पर निर्भर करता है कि बाथरूम के दरवाज़े के किस ओर आप है !

इन रास्तों पर उसके क़दमों के निशाँ दिखते हैं यूँ धुँधले धुँधले से.... यूँ ही बेखयाली में एक दूसरे का हाथ पकडे चलेंगे कभी न कभी




आवाज़ें। मीठी, तिक्त, गुनगुनाती, सहलाती, दुलराती, थपकाती, दुत्कारती, पुचकारती, बहलाती, भगाती, बुलाती, मिलाती, हटाती, समझाती आवाज़ें। कभी संगी, तो कहीं बैरी आवाज़ें। आवाज़ें, झरनों की, ज्यूं बहनों की। हवा की, ज्यूं प्रेयसी की। समंदर की, जैसे धैर्य स्वर, जिद्दी प्रलय को उत्कट, जो बात न मानी तो संकट लाने को आतुर सुनामी की तरह। की-बोर्ड की, जैसे रचा जा रहा हो तुरत-फुरत में क्षणभंगुर साहित्य। कभी सनसनाती, कभी सिहराती आवाज़ें। मौन तोड़, नया सन्नाटा रचने को आतुर आवाज़ें।
किसी लता ने दरख्त से सटकर कहा है... मेरी कोंपलें तुम्हारा सीना छूकर कुछ उकेरना चाहती हैं। कुरेदना चाहती हैं तुम्हें, ताकि तुम लहलहा उठो।
बांस के दिल में बैठकर हवा ने आवाज़ का जिस्म ओढ़कर मिठास की गंगा बहाई है। एक आवाज़, गुम हो गई थी कहीं, सीप की कोख में, मोती बनने के लिए।
बागानों में उगी चाय की पत्तियों से छनकर आई थी भूपेन हजारिका की आवाज़। पठार में तैर रहा है कितने ही मजनुओं का आर्तनाद और उधर, मथुरा की बयार में व्याप्त है कान्हा का आह्वान। उनकी ओर भागती गोपियों के पैरों की पायल की छनछन की आवाज़ें शहद सी कानों में घुलती जा रही हैं।
आवाज़ों के इस झुरमुट में मन कभी खो जाना चाहे, पुकारे इन्हें तो कहीं दूर हटकर चुप्पियों की चादर ओढ़ने को मन ललचाए। आवाज़ का जंगल दूर-दूर तक फैला है। इनके बीच किस पगडंडी पर ठहरी हुई है मां तुम्हारी लोरी की आवाज़... आओ, सुनाओ न अपनी दैवीय आवाज़ में एक गीत... बहुत कड़ी दोपहर है मां... मैं थोड़ी देर सोना चाहता हूं।




  • इक बचपन का जमाना था ,खुशियों का खजाना था ,,
    चाहत चाँद को पाने की थी ,दिल तितली का दीवाना था ,,
    खबर न थी कभी सुबह कि ,और न शाम का ठिकाना था ,,
    थक हार के आना स्कूल से ,पर खेलने भी जाना था ,,
    दादी की कहानी थी ,परियों का फ़साना था ,,
    बारिश में कागज की नाव थी ,हर मौसम सुहाना था ,,
    हर खेल में साथी थे ,हर रिश्ता निभाना था ,,
    गम की जुबां न होती थी ,न ही जख्मो का पैमाना था ,,
    रोने की वजह न थी ,न हसने का बहाना था ,,
    अब रही न वो जिंदगी ,जैसा बचपन का जमाना था








  • पुस्तक एक ऐसा तोहफ़ा है जो आप बार बार खोल सकते हैं


  • तेरी दी हुई ज़िंदगी एक कर्ज़ की मानिंद है मेरे पास ,
    साल दर साल किश्त चुकाती हूँ ..आज एक किश्त ओर उतर गई ....:)



  • ‎"ऐ दिल तूं आज जरा कंही बैठ करथोडा मुझे सुस्ता लेने दे
    आज मुझे नहीं, आज जरा उसको मेरी याद आ लेने दे
    आशा


कांग्रेसी मुख्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अन्ना हजारे से कहा कि वे भ्रष्टाचार दूर करना है तो चुनाव लड़कर दिखाएँ.
अन्ना का जवाब ::: आपने तो चुनाव लड़ा, भ्रष्टाचार कितना दूर किया?



Water park'Plitice Lakes. europe..Coratia.




चिंतन

आओ अपने ही अन्दर कुछ ऐसा ढूंढे |
दिल की गहराई में छिपी गहराई ढूंढे |

कहीं न कहीं तो छुपा हुआ है वो राज़ |
सितारे और सूरज जहां पर हैं बेहिसाब |

आपस में जो करते रहते हैं ये बातें |
उन्ही तन्हाइयों में कोई गहराई ढूंढे |

अपने भीतर वो सीपी जिसमे हैं मोती |
वो खानें जहां बन रहें हैं बेशुमार मोती |

चलो आज उन्ही से उनका पता हम पूछें |
वो सूरज जिसकी खातिर जी रहें है लोग |

वो पूनम जिसका नशा पी रहें हैं सब लोग |
आज उन्ही से उस राज़ का हम पता पूछे |

आओ अपने ही भीतर रह कर ये बात पूछे |
आओ अपने ही भीतर रह कर ये राज़ पूछे |




  • Sach hai ekdam
     



    • एक ये ख्वाहिश के कोई ज़ख्म न देखे दिल का
      एक ये हसरत की कोई देखने वाला होता
       

      समय बदल गया है, जमाना बदल गया है,
      एक हमहीं हैं जो सदियों पुराने से लगते हैं..
      By - Myself
       


2 टिप्‍पणियां:

  1. खूब प्रसन्न रहो वत्स ... बाबा के ज्ञान का ऐसे ही प्रचार करते रहो ... जय हो !

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह...क्या जबरदस्त संकलन है....
    बहुतै बढ़िया...

    जवाब देंहटाएं

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