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गुरुवार, 29 मई 2014

फ़ेसबुक पर केवल बेसिर-पैर की बातें …..

 

 

Ajit Gupta

मैंने देखा है कि फेसबुक पर कुछ लोगों की कभी कोई पोस्‍ट नहीं आती लेकिन आपकी पोस्‍ट पर ऊल-जलूल लिखने के लिए सबसे पहले आ धमकते हैं। आप कैसी भी बात लिखें लेकिन ये लोग छिछालेदारी करने से बाज नहीं आते, ऐसा लगता है कि ऐसे लोग फेसबुक पर केवल इसीलिए हैं कि वे बिना सर-पैर की बातें कर सकें। उनका अपना कोई भी दृष्टिकोण या विचार नहीं है। इसलिए ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़कर रखना मुझे उचित नहीं लग रहा है। क्‍या ऐसे लोगों को ब्‍लाक कर दिया जाए?

 

 

प्रवीण 'सुनिये मेरी भी'

एक मित्र ने पोस्ट लगाई और अनेकों अन्यों की तरह मुझे भी टैग कर दिया उसमें, एक फोटो थी तीन सिगरेट पीती लडकियों की और उन (नई सदी की नारी) पर एक कविता... उन लड़कियों को दुश्चरित्र बताती टिप्पणियों की भीड़ लग गई... मुझे याद आये अपने गाँव, जहाँ औरतें हुक्का गुड़गुड़ाती हैं, घर के पुरुष सदस्यों से माँग/ मँगवा कर बीड़ी पीती हैं और कोई तम्बाकू पीने की वजह से उनके चरित्र पर लांछन नहीं लगाता... वैसे यह कौन सी मानसिकता है मित्रों, कि सिगरेट पीता लड़का तो माचो हीरो या इंटेलेक्चुअल और सिगरेट पीती लड़की दुश्चरित्र ?

 

 

Padm Singh

अमेठी और राय बरेली वालों ने तो 'हाइली क्वालिफाइड' सांसदों को चुन कर दिल्ली भेजा था लेकिन

 

संतोष त्रिवेदी

सुनते हैं कि कबीर और तुलसी के नये उत्तराधिकारी आ गए हैं। अब समाज और देश का विकास होकर रहेगा

 

 

 

अनूप शुक्ल

सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोडी है।

-राहत इन्दौरी

 

 

DrArvind Mishra

कबीर और तुलसी कितना पढ़े थे भाई जो आज भी उनके बिना कोई सिलेबस पूरा नहीं होता ?
मसि कागज़ छुयो नहीं कलम गही नहि हाथ
बुद्धि विवेक भैया लोगों औपचारिक शिक्षा का मुहताज नहीं है !

 

 

 

Lalit Sharma

देखा गया है कि चाय से अधिक गरम केतली होती है। मंत्री बनने के बाद उसके भाई-भतीजे रिश्तेदार उससे बड़े मंत्री हो जाते हैं और यहीं से भ्रष्टाचार की शुरुवात होती है। नमो ने माना है कि समस्त भ्रष्टाचारों की जड़ भाई-भतीजावाद है, उन्होने ने अपने मंत्रियों को जो निर्देश दिए वो काबिल-ए-तारीफ़ हैं। अब देखना है कितने मंत्री इस निर्देश पर अमल करते हैं।

 

 

 

टी एस दराल

हमे तो समझ मे नहीं आता कि :

* ये टैग करना क्या होता है ?
* लोग टैग क्यों करते हैं ?
* इसके क्या फायदे या नुकसान हैं ?

ज़रा बताइये तो !

 

 

दिनेशराय द्विवेदी

बात ये नहीं कि बीजेपी में कोई अच्छा शिक्षाविद नहीं है। पर ज्यादा पढ़ा लिखा खुराफात भी ज्यादा करता है। खुराफाती शिक्षाविद से बारहवीं पास शिक्षामंत्री बेहतर है।

 

 

Shivam Misra feeling human

  "मैं झुक गया तो वो सज़दा समझ बैठे;
मैं तो इन्सानियत निभा रहा था,
वो खुद को ख़ुदा समझ बैठे।"

 

 

Ashok Gupta

फैजाबाद अयोध्या ...भगवान् राम की नगरी ...कभी बिजली जाती नहीं | आएगी तब न जायेगी ...काश !.............................................................................

 

 

अनूप शुक्ल

  "हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है। इसे जब किसी का मन आता है, दो लात लगा देता है।"

-स्व. श्रीलाल शुक्ल लिखित उपन्यास 'रागदरबारी' से

 

 

Raja Kumarendra Singh Sengar

  स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता पर उठे विवाद को सार्थक दृष्टि से देखने की जरूरत है..
यदि उनकी शैक्षिक योग्यता मंत्री पद के अथवा मानव संसाधन मंत्री हेतु उपयुक्त नहीं है तो......
अब राष्ट्रपति... राज्यपाल.... मंत्रियों... सांसदों... विधायकों आदि सहित अन्य संवैधानिक पदों हेतु शैक्षिक योग्यता का... अधिकतम आयु का निर्धारण किया जाना चाहिए....
राजनैतिक सुधार हेतु एक कदम इस ओर भी उठाया जाना चाहिए....

 

 

Prabhat Ranjan

बड़े-बड़े घोटाले पढ़े-लिखे लोगों ने ही किए हैं!

 

 

श्याम कोरी 'उदय'

 

"यदि स्मृति ईरानी अंगूठा छाप होतीं तब भी बहस का कोई औचित्य नहीं होता क्योंकि हमारे संविधान में ये कहीं नहीं लिखा है कि कोई अंगूठा छाप मंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बन सकता !"

 

 

 

Shyamal Suman

 

सभी के जिन्दगी में इक मुहब्बत की कहानी है
कोई बनता कभी राजा कोई राजा की रानी है
मगर होते सुमन घायल मुहब्बत में सभी कैसे
निशाना भी लगाते फिर दिखाते यह निशानी है

 

 

 

Vineet Kumar

 

मेरी मां की बेनिटी बॉक्स खरीदी नहीं होती. ग्रोवरसन्स नाम की ब्रा की एक कंपनी होती जो कि अभी भी है..उसके बेहद खूबसूरत और मजबूत डब्बे होते. मां की बिंदी, छोटा सा आइना, फ्रेस्का टेलकम पाउडर, आइब्रो और साथ में बिको टर्मरिक की ट्यूब होती.
मां जब शाम को घर का सारा काम करके सिंगार करती तो आइब्रो छोड़कर बाकी चीजें मुझे भी लगाती.

शाम को जब मैं दोस्तों के साथ खेलने जाता जिसमे कि एकाध लड़के को छोड़कर मेरी बहनें और उनकी सहेलियां ही होती तो सब यही कहती- तुमने भी विक्को लगाए हैं. दूसरी कहती- इसकी मम्मी ने लगा दिए हैं. लेकिन कोई नहीं कहता कि इसने लड़कियोंवाली क्रीम लगाए हैं. विक्को लड़कियोंवाली क्रीम नहीं थी..मेरी तो छोड़िए, पापा काम काम भी इसी बेनिटी बॉक्स से चल जाता, बस अलग से ओल्ड स्पाइस की जरूरत पड़ती..

आज सैन्दर्य प्रसाधन के दम पर मर्द बनाने/दिखने की जो होड़ है और अपने को लड़कियों से अलगाने और उसके लिए नयनचारा( eye candy) बनने की बेचैनी, सोचता हूं तो लगता है- हमारा बचपन कितना प्रोग्रेसिव रहा है.

 

 

Khushdeep Sehgal

 

देश में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि मंत्री बनने के लिए किसी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की ज़रूरत होती है...इसलिए स्मृति ईरानी का एचआरडी मंत्री बनना सांविधानिक दृष्टि से गलत नहीं है..लेकिन यहां इससे बड़ा सवाल ये है कि स्मृति ने चुनाव आयोग को अपनी शिक्षा को लेकर दो अलग अलग बातें बताई हैं...2004 में उन्होंने दिल्ली में चांदनी चौक से लोकसभा चुनाव लड़ा था तो अपने हलफनामे में कहा था कि उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कॉरेस्पॉंडेस से 1996 में बीए कम्पलीट किया था...अब 2014 में स्मृति ने अमेठी से चुनाव लड़ा तो अपने हलफनामे में कहा कि उन्होंने 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग से बीकॉम का पार्ट वन (फर्स्ट ईयर) पूरा कियां था...पार्ट वन कोई डिग्री नही होती, इसलिए इस हिसाब से उनकी शैक्षणिक योग्यता बारहवीं है...खैर उनके मंत्री बनने पर कोई सवाल नहीं, सवाल इस बात पर कि उनकी कौन सी बात सच है...2004 वाली या 2014 वाली...अगर कोई एक बात गलत है तो उन्होंने चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने का अपराध किया है...अब इस पर चुनाव आयोग ही कोई फैसला ले सकता है....

 

 

ऋता शेखर 'मधु'

 

 

पलकों तले ख्वाब सजाए रखना
कोमल जज्बात जगाए रखना
यथार्थ का धरातल है बड़ा कठोर
अशकों के मोती छुपाए रखना
सबकुछ ही मिले मुमकिन तो नहीं
जो मिल गया वो बचाए रखना
समुन्दर में लहरें आती ही रहेंगी
मजबूती से साहिल टिकाए रखना
आँधियों ने किसी को भी छोड़ा नहीं
दीपक की लौ को जलाए रखना
......ऋता

 

पलकों तले ख्वाब सजाए रखना<br />कोमल जज्बात जगाए रखना<br />यथार्थ का धरातल है बड़ा कठोर<br />अशकों के मोती छुपाए रखना<br />सबकुछ ही मिले मुमकिन तो नहीं<br />जो मिल गया वो बचाए रखना<br />समुन्दर में लहरें आती ही रहेंगी<br />मजबूती से साहिल टिकाए रखना<br />आँधियों ने किसी को भी छोड़ा नहीं<br />दीपक की लौ को जलाए रखना<br />......ऋता

 

 

 

Sumit Pratap Singh


स्मृति ईरानी के कम उम्र पर कैबिनेट मंत्री पद सँभालने को लेकर चर्चा का बाज़ार गर्म है। लोगों को यह आपत्ति है कि उनकी बजाय किसी बूढ़े खूसट को यह पद क्यों नहीं सौंपा गया। कुछेक उनके 12वीं पास होते हुए भी कैबिनेट मंत्री बनने पर तंज कस रहे हैं। मैंने कई ऐसे लोग देखे हैं जो कम आयु व कम पढ़े-लिखे होकर भी अपनी कार्यकुशलता से लोगों को अचंभित करते हैं। स्मृति ईरानी को हमने संसद व विभिन्न टी.वी. चैनलों पर वक्तव्य देते हुए अथवा बहस में भाग लेते खूब देखा व सुना है। आप ही बताइए क्या वो किसी भी कोण से मंत्री पद संभालने में अक्षम दिखीं। कुछेक सेक्युलर मानसिकता के मूर्ख मानव अपने-अपने दलों का मोदी नामक सुनामी में सफाया होने के उपरांत खीजकर स्मृति ईरानी को मंत्री पद दिए जाने को मोदी जी व स्मृति के बीच गलत सम्बन्ध होने का हवाला दे रहे हैं। यह उनकी सड़ी मानसिकता को प्रदर्शित करता है। जैसा वे अपने आकाओं को अब तक देखते आये हैं वैसे ही उन्हें सभी जन दिखाई देते हैं। नमो को चाहनेवालों से निवेदन है कि वे इन मूर्खों के बहकावे में न आयें। हमने नमो पर इतना विश्वास करके उन्हें देश की सत्ता की चाबी सौंपी है तो इतना यकीन भी रखें कि वो जो फैसला लेंगे वह अपने देश के लिए उचित ही होगा।

 

 

Anshu Mali Rastogi

 

बाबा जो इत्ते दिनों से दिखाई नहीं दे रहे हैं, कहीं खुद भी डिग्री की जुगाड़ में तो नहीं लगे हैं। इत्ता बड़ा संस्थान चला रहे हैं, कल को किसी ने डिग्री मांग ली तो?

 

 

Pramod Tambat

 

देश में सबसे दयनीय हालत यदि किसी क्षेत्र की है तो वह शिक्षा का क्षेत्र है। मानव संसाधन मंत्रालय में किसी अनुभवहीन व्यक्ति को बिठाना न केवल अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय है बल्कि यह भाजपा के उन पढ़े-लिखे, अनुभवी और कई दशकों से विरोध की राजनीति कर रहे उन लोगों का भी अपमान है जो शिक्षा के क्षेत्र को शायद कई गुना ज्यादा बेहतर तरीके से समझते है। देश की कीमत पर किसी को उपकृत किया जाना कुछ पचा नहीं साहब।

 

 

Renu Roy

 

बिछी थी बिसात,हम खेलते चले गये...
उफ़ ये जिंदगी ,हमें शतरंज सी लगी ..

 

 

Srijan Shilpi

 

जहां तक मैं समझता हूं कि स्मृति ईरानी ने इस बार के लोक सभा चुनाव में अपनी शैक्षणिक डिग्रियों के बारे में सही जानकारी दी है. फिर वह चुनाव हार भी गई.

ऐसे में उनपर आरोप क्या बनता है? और यदि आरोप सच भी होता तो चुनाव आयोग इस मामले में हारे हुए उम्मीदवार के खिलाफ क्या कार्रवाई कर सकता था!

जब चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा भरे जाने वाले शपथ-पत्रों को ऑनलाइन किए जाने की व्यवस्था नहीं थी, जब उनकी छानबीन नहीं की जाती थी तो उम्मीदवार अपने विवरणों को भरने के मामले में सतर्क नहीं होते थे.

अब यदि इस चुनाव में सभी उम्मीदवारों द्वारा भरे गए शपथ पत्रों की तुलना पिछले चुनावों के दौरान भरे गए उनके शपथ पत्रों के ब्यौरों के साथ किया जाए, तो ज्यादातर मामलों में विसंगतियां नजर आ जाएंगी, फिर एक Pandora's box खुल जाएगा और किसी समाधान तक पहुंचा नहीं जा सकेगा.

शैक्षणिक योग्यता से अधिक संपत्ति, मुकदमे और पत्नी संबंधी विवरण के मामले में विसंगतियां अधिक गंभीर प्रकृति की होती हैं.

आशा है कि इस तरह के विवाद उठने के बाद उम्मीदवार अब शपथ पत्र दायर करते समय अपने सही विवरण देने के प्रति अधिक सचेत रहेंगे.