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शनिवार, 5 मई 2012

चेहरों की बातें ……..फ़ेसबुक






इन दिनों कमाल धमाल रूप से ब्लॉगिंग् में और कहें कि ब्लॉग पोस्टों में इस बात की खूब चर्चा हो रही है कि फ़ेसबुक की तीव्रता और उसकी आक्रामक शैला ने कहीं न कहीं ब्लॉगिंग से उसके धुरंधरों को खींच कर अपनी तरफ़ कर लिया है । जो कभी दिन रात ब्लॉगिंग में रमे उलझे रहते थे अब फ़ेसबुक पर लगाता स्टेटस अपडेट और बहस विमर्श , बतकुच्चन , और टिप्पणियों में व्यस्त हैं । हमने यही सोच कर तो इस ब्लॉग को बनाया था , तो चलिए देखते हैं कि हमारे अंतर्जालिए दोस्त फ़ेसबुक पर आज क्या पढ देख लिख कह रहे हैं ……………



फेसबुक ने करवाई घर में चोरी!!
संभव है ?



आज फ़िर लिट्टी चोखा है, बहुत ही ज्यादा पसंद का हो गया है।


  • Parveen Chopra मैंने इस लिट्टी चोखे के बारे में इतना सुन लिया है..विनोद दुवा के शो में भी ...और भी बहुत जगह पर। मुझे इसे खाने की बहुत इच्छा है। काश, मैं इसे खा पाऊं .... मिलेगा तो दिल्ली में ही मिलेगा। वैसे यह जो खाकी रंग की चीज़ दिख रही है, यह क्या है, यह तो मीठी होगी?

ईमानदारी की तरह घट रही हैं बेटियां
 
 

जीवन का पृष्ठ क्या दिया अपना , तुम तो हाशिये तक फ़ैल गए
मुस्कुराने के चंद शब्द ढूंढे हमने , और शे'र . तुम्हारे सज गए ..


जिसने भी मैगी का आविष्कार किया है मैं उस महानुभाव के लिए नोबेल पुरस्कार की सिफारिश करता हूं। रसोई बनाने में नाकाबिल मुझ जैसे आलसियों के लिए वरदान है मैगी। आह मैगी, वाह मैगी
 

जो धरती से अम्बर जोड़े
उसका नल प्लंबर तोड़े
 

अब खबर वो है जो छपती नहीं,
और जो छपता है, वो यशो गान है.

आप सभी का इतना प्यार और अपनापन पाकर अभिभूत हूं। ईश्वर से एक ही प्रार्थना है कि आने वाले वर्षों में भी आपका प्यार ऐसे ही मेरे जीवन का हिस्सा बने रहे।
 

एक वाकया है जैनेद्र और राहुल सांकृत्यायन में इस बात पर बहस हो रही थूी भगवान है या नहीं , जैनेन्द्र का मानना था भगवान है ,राहुल का कहना था भगवान नहीं है, दोनों ने पक्ष-विपक्ष में खूब तर्कदिए। यह बहस बहुत लंबी चली,घंटों खर्च हो गए। अंत में अज्ञेय ने हस्तक्षेप किया और कहा भगवान था और मर गया। दोनों पक्ष बड़े खुश हुए।


कभी पढ़ा था "सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात" इसके आगे था "न ब्रूयात सत्यं अप्रियम"...जब सत्य अप्रिय हो तो क्या करना चाहिए? चुप रह जाना चाहिए?
 
कैनवास पर कभी जिंदगी को पेंट करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए ,जिंदगी चलती रहती है ,जबकि पेंटिंग स्थिर होती है |कुछ यूँही जिंदगी भी महज एक कविता नहीं हो सकती !कविता लिख जाने के बाद, समय के किसी छोर पर खामोश बैठी रहती है ,जबकि जिंदगी नयी गजलों ,नए गीतों नए शब्दों की तलाश में आगे बढ़ जाती है

अब तो ई संसद बड़ी मुखर है जी ......छुईमुई जो है सो है :)
Pankaj Dixit के पोस्टर...
 

शहर का आबो-हवा अब कुछ इस कदर बदल गया है ,
कि दुप्पटे की तलाश में ,हवा का दम निकल गया है !!!!
 
कुछ दिन हुए मेरे फोन से सारे कॉन्टेक्ट डिलीट हो गए हैं. अभी मेरे फोन में सिर्फ उनका ही नंबर है जिनसे मुझे बात करनी थी या फिर उनके जिन्हें मुझसे बात करनी थी. सो कृपया उलाहना देना बंद करें कि मैंने उनसे उनका नंबर नहीं माँगा या उन्हें पिछले कुछ दिनों से फोन नहीं किया. क्योंकि इतने दिनों में वे सभी उलाहना देने वाले भी तो मुझे फोन नहीं किये हैं, जरूरत तो आपको भी मेरी नहीं थी!!

मेरा यह स्टेटस उनके लिए नहीं है जिन्हें इस बात की समझ है, और जिन्हें यह पढ़ कर बुरा लग रहा हो, मुझे उनकी परवाह नहीं है.. आजिज आ चुका हूँ ऐसे उलाहने सुन-सुन कर.
 
 

मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा
मेरी आवाज़ को दर्द के साज़ को तू सुने ना सुने

मुझे देखकर कह रहे हैं सभी मोहब्बत का हासिल है दीवानगी
प्यार की राह में फूल भी थे मगर मैने काँटे चुने

जहाँ दिल झुका था वहीं सर झुका मुझे कोई सजदों से रोकेगा क्या
काश टूटें ना वो आरज़ू ने मेरी ख़्वाब जो हैं बुने
 

जेठ की दुपहरी

जेठ की तपती दुपहरी
आग जो बरसा रही
बर्फ़ की चादर लपेटे
ठंढ भी शरमा रही ।

स्याह लावा हर सड़क पर
बस पिघलता जा रहा
चीख प्यासे पाखियों की
दिल को अब दहला रही ।

दूर तक दरकी है धरती
घाव बस सहला रही
सोत पानी का दिखा कर
आंख को भरमा रही।

हर नदी अब भाप बन कर
धुंध में मिल जा रही
तलहटी की रेत भी अब
भय से बस थर्रा रही ।
0000
हेमन्त कुमार
 

आप्तवाक्य> फेसबुकीय मूर्खता जन्मसिद्ध अधिकार है; पर उसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिये। शुभ रात्रि।
 

समाज-विज्ञान के नियमानुसार मँहगाई और नैतिकता में व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध है अर्थात आम जन-जीवन में मँहगाई जितनी बढ़ेगी नैतिकता उसी अनुपात में घटेगी - अतः हे वर्तमान सरकार के कर्णधारों यदि संभव हो तो नैतिक-मूल्यों पर दया करते हुए मँहगाई को घटाने की दिशा में सच्चे मन से कदम उठायें अन्यथा भारतवासी आपलोगों को जल्द ही वर्तमान जिम्मेवारी से मुक्त करते हुए शीघ्र गद्दी से उठा देंगे
 
 
तो आज के लिए इतना ही ...अब मिलेंगे कल कुछ और चेहरों के साथ 

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

कम्बख्त इच्छायें भी तरावट मांगती हैं :)....फ़ेसबुक से कुछ कतरे







आइए देखें कि , दोस्त इन दिनों , फ़ेसबुक पर क्या लिख पढ और देख सुन रहे हैं ...इन कतरों से जानते हैं

एक मित्र के लिए, जिसे होले बहुत पसंद है - सुप्रभात



  • मैं उनकी आँखों से सपने देखता हूँ,
    मेरी आँखें उन्हें जो देखती हैं !
     

    आज मेरी माँ की लाडो बेटी का जन्मदिन है. हालाँकि इस बात पर हमारा झगड़ा अभी तक चल ही रहा है. वो क्या है ना कि इसमें भी नम्बर वन टू थ्री फोर का मामला है. थ्री फोर में कोई टेंशन नहीं है. लेकिन वन और टू को लेकर हममें अब तक कोई समझौता नहीं हुआ है. मजे कि बात ये है कि क्रमानुसार देखे तो नंबर थ्री यानी कि मैं और नंबर फोर यानी कि मेरी सबसे प्यारी व नकचढ़ी बहन निकिया (निशि) में नम्बर वन के लिए द्वंद्व बना हुआ है. खैर आज मुझे जो खुशी हो रही है उसे तो मैं फेसबुक में सबको बताना चाहूंगी, निक्की तुम्हारे केक का पूरा हिस्सा आज मैं खाऊँगी, और तो और पूरी सब्जी खीर ये सब भी तुम्हारावाला हिस्सा भी आज मेरे हिस्से में आ गया है. फोन पे इन सबकी भीनी-भीनी महक भेज दूँगी आज उसी से संतोष कर लेना.....आज पापा के दोनों बगल में मैं ही बैठूंगी...... और तुम मुझे ठेल ठेल कर कोई कोशिश नहीं कर सकती... वैसे मुझे डर है इतना सब सुनने के बाद तुम जल्दी से टिकट करा के बेंगुलुरु से घर आ जाओगी, वैसे भी सभी तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे है. we all miss you very much on your day....... happy birthday to my नकचढ़ी sis!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
     

    तेरे बगैर किसी चीज की कमी नहीं
    तेरे बगैर तबीयत उदास रहती है
    रात तो रात है
    धूप भी रात लगती है.......
     
     

    प्यार की डगर पे लडको तुम दिखाओ चल के...
    ये लडकियाँ हैँ तुम्हारी आशिक तुम्हीं हो कल के
     
    सौ हेमंत
    सौ बसंत
    सौ शरद
    बदलने के बावजूद
    कभी कभी
    जलता ही
    रह जाता है
    मन का मौसम
    ग्रीष्म की तरह
    जाने क्यों ?

    आशा पांडे ओझा
     


    जय हो ढोंगी बाबा की :)

    १. हर मजनू को उसकी लैला से प्यार का इजहार करने का एक सुनहरा अवसर दिया जाएगा.. :D
     
    उसने कहा सुन
    अहद निभाने की ख़ातिर मत आना
    अहद निभानेवाले अक्सर मजबूरी या
    महजूरी की थकन से लौटा करते हैं

    तुम जाओ और दरिया-दरिया प्यास बुझाओ

    जिन आँखों में डूबो
    जिस दिल में भी उतरो
    मेरी तलब आवाज़ न देगी

    लेकिन जब मेरी चाहत और मेरी ख़्वाहिश की लौ
    इतनी तेज़ और इतनी ऊँची हो जाये
    जब दिल रो दे
    तब लौट आना

    | फराज़
     
    भूख से इन्सान पैदा होता है. उम्र भर उसे भूख सताती है- प्रेम की, रोटी की, शांति की. भूख और प्यास हमारे सबसे बड़े भुत हैं. मैं सबसे पहले इन भूतों से मुक्ति पाना चाहता हूँ. दूसरी मुक्ति मुझे आप से आप मिल जाएगी.
    - कुर्तुल एन हैदर (आग का दरिया)
     


    चिलचिलाती धूप में डेढ़ किलोमीटर का आफ्टरनून वॉक करके एक जगह पहूंचा हूँ। इतनी कम दूरी के लिये कोई टैक्सी वाला आने तैयार ही नहीं हुआ। एक को पूछा, दूसरे को ...तीसरे को और पूछते पूछते सबके ना करने के बीच जब मंजिल करीब दिखी तो पैदल ही 'दाब' दिया :)

    भयंकर गर्मी के बीच रास्ते में पानी का टैंकर जाता दिखा जिसके होज पाईप से पानी लीक हो रहा था। मन किया टैंकर वाले को कीमत अदा कर गाड़ी साईड में लगवाऊं और टैंकर के वाल्व खोल उसके बंबे के मोटे पानी से खूब तरी लूँ :)

    कम्बख्त इच्छायें भी तरावट मांगती हैं :)
     
    मैं चलता हूं
    मतलब अखबारों के पास रुकता हूं
    कुछ खबरें पकड़ता हूं
    कुछ खबरों में खुद को जकड़ता हूं
    आप सोच रहे होंगे कि
    मैं क्‍यों इतना अकड़ता हूं
    अकड़ अकड़ कर हो जाता हूं मैं ढीला
    खबरों का मन और मानस में
    बनाता हूं एक खूबसूरत मजबूत टीला
    फिर उस टीले पर सबको चढ़ाता हूं
    मैं तो उतर आता हूं
    आप सबको वहीं पर छोड़ आता हूं।

    तैयार रहिए
    कुछ न कहिए
    सुनते रहिए
    पसंद करिए
    टिप्‍पणी कहिए
    विचारों में करवट
    तरावट महसूसिए

    पुस्‍तक मेले की सोचिए
     
     
    मित्रता अनुरोध भेजने वाले उन मित्रों के प्रति खेद है, जिनका आग्रह चाह कर भी स्वीकार कर पाना अनेकानेक कारणों से संभव नहीं।
    सबसे पहला तो यह कि गत लगभग साढ़े तीन माह में 2 हज़ार से अधिक लोगों को अनफ़्रेंड करने के बाद भी मेरी मित्रता सूची में 4000 + का आंकड़ा पहले ही पूरा हो चुका है, अधिकतम 5000 तक नहीं ले जा सकती क्योंकि कुछ अवकाश बना रहना चाहिए। ऐसे में मैं चाह कर भी मनवांछित लोगों को पढ़ नहीं पाती।
    प्रतिदिन 6-से 10 लोगों को ( जिन्होने वर्ष भर से कभी कोई संवाद नहीं किया या जिनकी प्रोफाईल से कुछ संदिग्ध प्रतीत होता है) को सूची से हटाने के बाद ही किन्हीं नए मित्रों को जोड़ा जा पा रहा है। किन्तु अधिकांश का आग्रह अस्वीकार करना पड़ता है।
    ऐसे मित्र बुरा न मानें। वे मित्रतासूची में न होकर भी नेट पर जुड़े रह सकते हैं क्योंकि मेरे अधिकांश अपडेट सार्वजनिक होते हैं, हर कोई उन्हें पढ़ सकता है उन पर अपनी प्रतिक्रिया लिख सकता है। अतः संवाद में कोई समस्या नहीं।
    सब्स्क्रिप्शन का विकल्प भी खुला है, इसके द्वारा सभी अपडेट आपको आपकी प्रोफाईल में मिल सकते हैं। सब्स्क्राईब करने में कोई अड़चन अथवा सीमा नहीं है। मैं अपनी प्रोफाईल को पेज़ बनाने अथवा एक और नई प्रोफाईल बनाने के फिलहाल पक्ष में नहीं हूँ। अतः यह मेरी सीमा है। क्षमा कीजिएगा।
     


    पिछले एक घंटे से गोरखपुर से नई दिल्ली के लिए रिज़र्वेशन के प्रयास में लगा हूं. आइआरसीटीसी की सूचना के मुताबिक 26 मई की तारीख में अभी काफ़ी बर्थ शेष हैं, लेकिन पूरा प्रॉसेस होने के बाद पासवर्ड वेरीफिकेशन की जगह कोई डिब्बा ही नहीं बन रहा है. कम से कम 10 बार कोशिश कर चुका हूं, पर नतीजा निल. ये है कांग्रेसी पारदर्शिता. अकसर ऐसा ही होता है. आप क्या कर लेंगें
    एक आंचलिक -पूर्वांचली शब्द है -समौरी -जिसका अर्थ है समवयी लोग -मित्रगण क्या इस शब्द की व्युत्पत्ति को प्रकाशित कर सकेगें!
     
     

    Sudha upadhyaya
    हम चुप हैं की खलल न पड़े चुप्पी में
    आप चुप हैं की सबकुछ कहा जा चुका है
    वे भी चुप हैं की जवाब देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं
    आवो बात कर लें इसी बारे में
    जिसे लेकर इतने लम्बे अरसे तक हम चुप रहे ...
     

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

फ़ेसबुक के कुछ कतरे ....












‎'' वेस्टइंडीज के किसी विचारक् ने एक बार कहा था कि भाषा का चुनाव अपने लिए एक दुनिया का चुनाव करना होता है और हालांकि मैं किसी दुनिया के ऊपर भाषा के कल्पित प्रभुत्व को नहीं मानता, पर भाषा का चुनाव करते समय ही किसी साहित्यकार के सामने खड़े सबसे अहम् सवाल का जवाब मिल जाता है कि मैं किस के लिए लिख रहा हूँ. मेरा पाठक कौन है.
अगर केन्या का कोई लेखक अंग्रेजी में लिखता है तो बेशक उसका कथ्य कितना भी क्रन्तिकारी क्यों न हो, वह निश्चय ही केन्या के किसानों, मजदूरों तक नहीं पहुँच पाता और न उसका इनके साथ सीधा संवाद ही बन पाता है. - न्गूगी वा थ्यांगो ''
Santosh Chaturvedi saab' kee wall se, thanks!
 


आज हमरी रायबरेली मा वोट पर रही है , बहुत मुश्किल है कांगरेस के बरे अबकी दई !
हम तो जा नहीं पायेन मुदा सब लोग नीक मनई क वोट दें !
 


मंजिलों से दूर बेवजह चल पड़े हम मयखाने में
आई पुलिस पड़ा छापा हम मिले तहखाने में
 



  • कान्हा आज भी रोता है कभी-कभी राधा की याद में... :-/
 
 

  • प्रधानमंत्री पद की इससे ज्‍यादा दुगर्ति क्‍या हो सकती है कि जनता सुनने को न आये.. यही अटल की सभा मे लोगो को खड़े होने की जगह नही मिलती थी.. इतने मे भी क्या का्ंग्रेस 22 सीट भी बचा पाने का दावा कर सकती है ? 
     


    काम करो ऐसा, कि पहचान बन जाये;
    हर कदम ऐसा चलो, कि निशान बन जाये!
    यहाँ ज़िन्दगी तो सभी काट लेते हैं;
    ज़िन्दगी जियो ऐसी, कि मिसाल बन जाये!
     


    चंद दिनों पहले sms के जरिये 'एक बच्ची की डायरी' मिली | आप भी पढिये
    : 15 जून - में माँ की कोख में आ गयी हूँ.....|
    : 17 जून - में एक टिशु बन चुकी हूँ.....|
    : 30 जून - माँ ने बाबा से कहा कि तुम बाप बनने वाले हो.....|
    : माँ और बाबा बहुत खुश है...|
    : 15 सितम्बर - में अब अपने दिल कि धडकन महसूस कर सकती हूँ.....|
    : 14 अक्टुबर - अब मेरे नन्हे-नन्हे हाथ-पैर है, मेरा सिर हे.....|
    : 13 नवम्बर - आज मेने खुद को अल्ट्रासाउंड मशीन की स्क्रीन पर खुद को देखा | वाह में एक लडकी हूँ....|
    : 14 नवम्बर - में मर चुकी हूँ | में मार दी गयी, क्योंकि में एक लडकी थी |

    लोग माओं बीबियों और प्रेमिकाओं से मोहब्बत करते है,
    तो फिर बेटियां क्यों कत्ल कर दी जाती है....................?

    डायरी की आखिरी लाइन पढ़ते हुए जो आलम हुआ उसे में बयाँ नही कर सकता हु |

     


    अंत में नागार्जुन जी की एक मजेदार कविता:

    पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार
    गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गये चार
    चार पूत भारत माता के, चारों चतुर प्रवीन
    देश निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन
    तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो
    अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो
    दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक
    चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया है एक
    एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा
    पुलिस पकड़ के जेल ले गई,
    बाकी बच गया अंडा!
     


    यूपी चुनाव ने एक नई परिभाषा गढ़ी है, पहले खुर्शीद अब बेनी प्रसाद वर्मा के आगे क्या चुनाव आयोग बेचारा साबित हो रहा है या फिर चुनाव आयोग में शेषण जैसे चुनाव आयुक्त की कमी हो गई है जो खुल्ले सांढ़ बनते जा रहे राजनेताओं पर नकेल नहीं कस पा रही है. अपने आप में स्वतंत्र और स्वायत जवाबदेह चुनाव आयोग को नेता हों या मंत्री अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए मतदान और मतगणना तक जानता के प्रति जवाबदेह होते हुए तमाम निर्णय लेने होंगे सामने कोई भी मंत्री संतरी हो,
     

    • जब मालूम हो गया मेरा देवता पत्थर है
      किसलिए माथा रगड़कर मुनाजात करूंगा

      इस जन्म का तो कोटा पूरा हो गया बेचैन
      अब तो अगले जन्म प्यार के ख्यालात करूंगा
     


    बिंदिया चमकेगी .... चूड़ी खनकेगी ...... आसपास कहीं नजदीक ही आर्केस्ट्रा हो रहा है ... कोई लड़की गा रही है .... बहुत गजब का गा रही है .... आवाज, लय और सुर बहुत जोरदार और मस्त है .... हम सुनते हैं .... शुभ रात्रि मित्रवर .... जय श्री कृष्ण ... जय जय श्री राधे
     



    • सबकी सुनता है फिर अपनी कहता हु
      शायद यही गलती करता हु ....सबको सच्चा समझता हु
      सीधीबात कहता हु ...इसी लिए सबको खलता हु
      कल्पनाओ में नही जीता ...तर्क की बाते करता हु ...
      मेरे दोस्त तुम आज नही तो कल समझोगे ....
      में यथार्थ के धरातल पर रहता हु ....शायद यही गलती करता हु ....
      तुम्हे अपना समझता हु ...इसी लिए मुखर हो कहता हु ...
      हजारों मिल जाएँगे दिल्लगी ठिठोली करने वाले .....चोराहे में
      पर दर्पण ना मिलेगा .... .चोराहे में
      तुम्हे अपना समझता हु ...इसी लिए मुखर हो कहता हु ...
      शायद यही गलती करता हु ....****************
     


    जय जवान, जय किसान

    85 %किसानो वाले उत्तर प्रदेश में किसानो के मुद्दे गायब और भारत की 1 प्रतिशत से कम आबादी वाले और उसकी सेना की 10 % हिस्सेदारी वाले उत्तरखंड में सैनिको के मुद्दे गायब थे. वाह री!! राजनीति किसान और जवान दोनों गायब बस हर जगह बेनी, माया, मुलायम, राहुल, उमा व् सलमान है हाजिर, कोई लखनऊ में तो कोई नयी दिल्ली में मौज करेगा,यूँ ही चल रहा है ऐसे ही चलेगा किसान मर रहे देश में और सरहद पर जवान मरेगा!!
     



    • रूह तक नीलाम हो जाती है, बाज़ार-ऐ-इश्क मैं !
      इतना आसान नहीं होता, किसी को अपना बना लेना !!



    वो पूछे हमसे यार ये फसेबूक क्या बवाल है ?????
    हमने भी झन्ना कर बोल दिया ये वो शहर है जो कभी नही सोता और ना सोने देता है ;-)
     

    जिसपर लिखना मुश्किल लगे समझिए सबसे ज्यादा पसंद है.
     

    कल एक षोडशवर्षीय कन्या को "नरसों" शब्द का अर्थ समझाया। दरअसल उसे "परसों" शब्द ही पता नहीं था, तो नरसों क्या खाक समझती। बड़े धैर्य से उसे "Day after tomorrow के बाद आने वाला दिन" कहकर समझाया कि "नरसों" किसे कहते हैं।

    हालांकि वह "या या या, आई नो… आई नो" कहती रही, परन्तु मुझे शक है कि जब कभी उस कन्या को "नरसों" शब्द का उपयोग करने की जरुरत पड़ेगी, तब भी वह वही कहेगी, जैसा मैंने उसे समझाया।

    मेरे सौभाग्य से उसने यह नहीं पूछा कि "क्या नरसों का अगला दिन सरसों" होगा? वरना मुझे "सरसों और नरसों" के बीच का अन्तर समझाने के लिए उसे पंजाब तक ले जाना पड़ता… :)
    ============
    अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व के कारण आम बोलचाल वाली हिन्दी के कई शब्द विलुप्ति की कगार पर हैं जबकि उर्दू के शब्द तो खत्म ही हो चुके…
     
    तू ने क़सम मैकशी की खाई है "ग़ालिब"
    तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
     
     

    आदम के हौवा के रिश्तों की दुनिया ओ दुनिया रे!!
    ग़ालिब के मोमिन के ख्वाबों की दुनिया,
    मजाजों के उन इन्क़लाबों की दुनिया..
    फैज़ फिराकों, साहिर मखदूम, मीरे के जौकों की दागों की दुनिया!!
    ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!!

    मौसम महीना आया बौराने का , कल से सुरताल में फ़कीरा गाएगा ,
    रे फ़ागुन आ गया अंगना मोरे ,कल से जोगी फ़िर , जोगीरा गाएगा ...

    ..तैयारी करिए हो , मंडली , ढोल मंजीरा ले के तैयार रहो
    जी