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सोमवार, 18 जून 2012

चेहरों की बतकही …………

 

 

  • Gyan Dutt Pandey

    भविष्य उन निरक्षर लोगों का है, जो लाइक बटन में दक्ष होंगे!

  • Neeraj Badhwar
    अब ममता दुआ कर रही होंगी कि काश कलाम माओवादी होते तो 'लड़ने' के लिए तैयार हो जाते!
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    • Awesh Tiwari

      कितनी अजीब बात है, जिन व्यक्तियों के पीछे हम अपने जीवन के सबसे खूबसूरत क्षण बर्बाद कर देते हैं, हम अक्सर उन्ही को याद किया करते हैं

     

     

     

  • Pushkar Pushp

    फेसबुक अब केसबुक में तब्दील हो रहा है. कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिसमें फेसबुक की वजह से पति - पत्नी के बीच तलाक की नौबत आ गयी. इसके अलावा ऐसे मामलातों की तो भरमार है जिसमें रियल लाईफ की दोस्ती वर्चुअल स्पेस यानी फेसबुक पर आकर खत्म हुई.

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  • अंशुमाली रस्तोगी

    अब इश्क में दिल से ज्यादा मोबाइल की सुननी पड़ती है.

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  • Vivek Dutt Mathuria

    अब भरोसा करें भी तो किस पर,

    यहाँ तो हम भरोसे के मारे हुए है .

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  • Sanjay Bali

    लड़ाई के मैदान में ही हमेशा बहादुरी देखने को नहीं मिलती है। यह आपके दिल में भी देखने को मिल सकती है , अगर आपमें अपनी आत्मा की आवाज को आदर देने की हिम्मत जग जाती है।

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    • Vandana Gupta

      मगर नहीं बन पातीं पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की

      ना पत्थर बनी

      ना कागज ना मिटटी

      ना हवा ना खुशबू

      बस बन कर रह गयी

      देह और देहरी

      जहाँ जीतने की कोई जिद ना थी

      हारने का कोई गम ना था

      एक यंत्रवत चलती चक्की

      पिसता गेंहू

      कभी भावनाओं का

      कभी जज्बातों का

      कभी संवेदनाओं का

      कभी अश्कों का

      फिर भी ना जाने कहाँ से

      और कैसे

      कुछ टुकड़े पड़े रह गए

      कीले के चारों तरफ

      पिसने से बच गए

      मगर वो भी

      ना जी पाए ना मर पाए

      हसरतों के टुकड़ों को

      कब पनाह मिली

      किस आगोश ने समेटा

      उनके अस्तित्व को

      एक अस्तित्व विहीन

      ढेर बन कूड़ेदान की

      शोभा बन गए

      मगर मुकाम वो भी

      ना तय कर पाए

      फिर कैसे कहीं से

      कोई हवा का झोंका

      किसी तेल में सने

      हाथों की खुशबू को

      किसी मन की झिर्रियों में समेटता

      कैसे मिटटी अपने पोषक तत्वों

      बिन उर्वरक होती

      कैसे कोरा कागज़ खुद को

      एक ऐतिहासिक धरोहर सिद्ध करता

      कैसे पत्थरों पर

      शिलालेख खुदते

      जब कि पता है

      देह हो या देहरी

      अपनी सीमाओं को

      कब लाँघ पाई हैं

      कब देह देह से इतर अपने आयाम बना पाई है

      कब कोई देहरी घर में समा पाई है

      नहीं है आज भी अस्तित्व

      दोनों है खामोश

      एक सी किस्मत लिए

      लड़ रही हैं अपने ही वजूदों से

      मगर नहीं बन पातीं

      पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की

      यूँ जीने के लिए मकसदों का होना जरूरी तो नहीं ...........

     

     

     

    • Padm Singh

      मुझे 3 जी का डोंगल वाला नेट लेना है... इस्तेमाल 3 से 5 GB ... कौन सा वाला बेहतर रहेगा ?

     

     

    • Manaash Grewal
      “अक़्सर ऐसा होता है कि हमें अपने ढ़ोंग का अहसास नहीं हो पाता। हम अपनी गंभीरता के आवरण को बनाए रखने के लिए और बढ़ती उम्र की नैतिकता के नाम पर प्रेम कविताओं को पसंद करने या उन पर टिपण्णी करने से बचना चाहते हैं। लेकिन क्या प्रेम से बचा जा सकता है? जब हम समाज की अराजकताओं पर प्रहार करते हैं, समाजवाद के निर्माण का स्वप्न देखते हैं और जब अपने बचपन एवं युवावस्था को एक आह लेकर याद करते हैं, तो साथ ही हम स्वीकार कर रहे होते हैं; -प्रेम और उसकी सार्वभौमिकता को। दर‍असल यह एक किस्म की ग़ुलामी है जिसका हमें भान नहीं हो पाता। मैं अपनी आवारगी और मुक्तता से दुआ करूंगा कि कोई भी उम्र मुझे प्रेम की सराबोरिता से दूर ना करें। यही प्रेम है, मेरी आज़ादी है और सार्वभौमिकता की तरफ़ बढ़ते मेरे क़दमों की आहट भी। क्योंकि हर एक महान रचना के पीछे, एक उतनी ही विशाल और महान चाहत छुपी होती है। मृत्यु जो सार्वभौमिकता की दास है, न केवल उसे उसकी दासता से मुक्त करवाना है बल्कि यह भी पता लगाना है कि आखिरकार मृत्यु जैसी विशाल रचना के पीछे कौनसी और किसकी चाहत काम कर रही है? दलित के झोपड़े से लेकर दूर कहीं अनंत में किसी तारे के सुपरनोवा विस्फोट का प्रेम ही सार है।”
      -- मनास ग्रेवाल।

     

     

     

    • Suman Pathak
      सब कुछ है पास ..
      फिर भी इंतज़ार क्या है..
      यूँ दूर कुछ धुन्ध सा..
      दिखता क्या है...
      मंज़िल नहीं है मेरी ..
      मन की कोई ख्वाहिश..
      सफ़र में ये तमाशा क्या है...

     

  • Lalit Sharma

    डोकरा तुमने ठीक नहीं किया :(

    डोकरा तुमने ठीक नहीं किया :(

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    • Ratnesh Tripathi
      मन की प्रशन्नता जब द्वन्द के बादल से टकराती है
      बहुत सारे अर्थ अनर्थ हो जाते हैं
      इस जड़वत हो चुके संसारी रिश्तों में
      घुटने लगता है मन
      खोजता है फिर वो टकराहट
      जिससे की टूट जाए ये रिश्ते
      और बरस पड़े बादल
      ताकि बह जाएँ संसारी रिश्ते
      और ..........जन्म ले नया कोंपल
      ताकि मन फिर प्रसन्न हो सके
      और द्वन्द जड़वत हो जाये .....................रत्नेश

     

     

     

    • Pushkar Pushp

      धारावाहिक 'अफसर बिटिया' का नाम बदलकर 'जासूस बिटिया' कर देना चाहिए. BDO मैम आजकल कुछ ज्यादा ही जासूसी करने लग गयी है. ऐसी जासूसी किसी BDO के द्वारा पहले नहीं देखी. अब धारावाहिक के निर्देशक अति कर रहे हैं.

     

     

    • Amrendra Nath Tripathi

      बहुत कुछ मीडिया के तात्कालिक-दिखाऊ भावुक-वायवीय संस्कारों से प्रेरित होकर हिन्दी की वर्तमान दशा से दुखी को 'हा हिन्दी, हा हिन्दी' का रूदन सुनने में आता रहता है. अक्सरहा लगता है कि यह पढ़े लिखों की चोचलेबाजी भी है, जो खुद अपने बच्चों का भविष्य अंगरेजी माध्यम में देखते हैं, और उपदेश हिन्दी-हित का देते हैं. इसमें मुझे मध्यवर्गीय उत्तरभारतीयों का दोहरा चरित्र दिखता है जिसकी चिंता और कर्म/व्यवहार में धरती और आकाश के बीच का अंतर होता है. लेकिन वह दूर क्षितिज में दोनों के मिलने की काव्यात्मक कल्पना में खुश रहता है, खुद को मागालते में रखे वह इसी खुशी की जद्दोजहद में लगा रहता है! (हिन्दी को कैरियर के रूप में लेने वाले भी इस निष्कर्ष से बावस्ता होते रहते हैं कि 'हिन्दी पढ़ के कौन अपना भविष्य बर्बाद करे!, जिसमें सच्चाई भी है) देखने में आता है कि हिन्दी न आकाश तक छहर सकती है न धरती पर पसर सकती है, यह इसका दुर्भाग्य है. आकाश पर अंगरेजी है और धरती पर लोकभाषाएं. जो धरती पर लोकभाषाएं हैं वे इसके(हिन्दी के) क़दमों के नीचे हैं और यह खुद अंगरेजी के क़दमों के नीचे है. दुर्भाग्य से यह त्रिशंकु स्थिति में है, और कर्मनाशा में नहाना अपन का धर्म/दायित्व/जरूरत/नियति/खुशी!(जो भी शब्द दे लीजिये)

      बुधवार, 13 जून 2012

      फ़ेसबुक की बातें




      लघुकथा
      उसके आँसू....
      वो एक कोने मे बैठ कर बुरी तरह रो रही थी. लोग उसे समझा रहे थे मगर वह रोये चली जा रही थी.
      उसका देख कर आसपास खड़े लोगों की आँखें भी नम हो गयीं. क्या करें, कैसे समझायें इसको. जो आता है, एक दिन जाता है.
      एक ने पूछा- ''आखिर ये है कौन, और किसके गम में फूट-फूट कर रो रही है?''
      दूसरे ने उदास स्वर में कहा-'' इसका नाम है 'ग़ज़ल' . यह मेहंदी हसन की मौत पर आंसू बहा रही है.''



      Hari Jaipur was tagged in India Against Congress's photo.



      भूगोल की किताबों में कभी पढ़ा था कि रबर की खेती भूमध्यरेखीय क्षेत्र, अमेजन, वर्षा वनों , हिल आदि में ज्यादा होती है लेकिन देख रहा हूँ सबसे अच्छा रबर रायसेना हिल्स क्षेत्र में पाया जाता है....जिसकी गुणवत्ता इतनी उच्च स्तर की है कि सजा पाये शख्स की मौत भी रबर की तरह अगली फसल आने तक खिंचा उठती है :)



      हसरतें दिल की, तो कब की टूट के बिखर गईं हैं 'उदय'
      अब ... ये कौन है, जो खामों-खां दस्तक दे रहा है वहां ?




      वो गिल्ली डंडा , वो कंचे, वो इमली के चिंये , वो कटी पतंग , वो बहती नाक और वो सरकती नेकर और वो चुरा कर खाना मलाई दूध की , बहुत कुछ याद आता है बचपन का , पर कमबख्त अब वो बचपन लौट कर नहीं आता है |


      आज फिर सजे हैं दिल पे उदासियों के मेले
      आज फिर एक बार मेरे मन की नहीं हुई :-(




      प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हाल ही में जब वर्मा से लौट रहे थे तो रास्ते में पत्रकारों ने पूछा था कि आप क्या राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं, उस समय उन्होंने कहा था कि मैं अपने पद पर खुश हूँ।



      हम ना बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
      हम जब भी मिलेंगे अंदाज़ पुराना होगा |



      • इस करुणा कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती
        क्यों हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती
        क्यों शून्य क्षितिज से आती लौट प्रतिध्वनि मेरी ? ... 'प्रसाद'

        होता है रोज दिल पर� बेचैन गम का अटैक
        क्यों मेरी बातों में सारे शिट होते पैक
        क्यों जाती है मोबाइल पर हर काल खाली मेरी? ...'उत्तराधुनिक कवि'



      ‎26 जनवरी की परेड में सलूट लेने के अलावा राष्‍ट्रपति‍ का काम होता क्‍या है.... अरे भई कोई भी बने, चैनल काहे पगलाए पड़े हैं....



      रहिमन अही संसार में
      सब सुन मिलिए धय
      न जाने केही रूप में
      नारायण मिल जाए




      इक जमाना लगता है जुड़ने में
      तुम इक पल का खेल समझते हो
      पकते पकते पकता है कोई रिश्ता
      जिसे तुम इक झटके में तोड़ देते हो ............रत्नेश



      वर्तमान वित्त मंत्री को प्रधान मंत्री ,एवं वर्तमान प्रधान मंत्री को राष्ट्रपति बनने हेतु मेरी अग्रिम शुभकामनाएँ !



      सच में हमारे देश का इलेक्ट्रानिक मीडिया बहुत ज्यादा तेज़ है.जभी तो राष्ट्रपति क चुनाव हुआ नही है और सवाल पूछने लग गये है कि अगला प्रधानमंत्री कौन?



      • आपके और हमारे चहेते गायक नहीं रहे.दरअसल ऐसी शख्सियत को महज़ गायक कहना भी उचित नहीं है.मेंहदी साहब हमारे जीवन का हिस्सा थे और ऐसे में उनका न रहना हमें हमारी रूह से जुदा करता है :-(

        ...तुम कहीं नहीं गए,शामिल मेरी साँसों में हो,
        रंजिश ही सही पास मेरे,लौट आओ तुम !



      लीजिये मुलायम - ममता की बैठक के बाद 3 नाम आए है राष्ट्रपति पद के लिए :-
      1॰ डा ॰ ए पी जे अब्दुल कलाम
      2 ॰ डा ॰ मनमोहन सिंह
      और
      3 ॰ सोमनाथ चेटर्जी

      काँग्रेस के दोनों नाम यानि ... हमीद अंसारी और प्रणव मुखर्जी ... को खारिज कर दिया गया है !


      प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनवाने के पीछे कही अमेरिका की लौबिग तो नहीं है ....? वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने देश की जनता के साथ जो व्यवहार किया है वह पूरी तरह से अमेरिकी आर्थिक नीतियों के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता को दर्शाता है .....अगर ऐसा है , तो बेहद अफसोसजनक ही कहा जायेगा .....हे राम



      पापा कहते हे, बेटा बड़ा नाम करेगा . . . :)) 

      रविवार, 3 जून 2012

      बोलते बतियाते चेहरे ..........




      चलिए आज देखते हैं कि कौन कहां क्या देख पढ सुन रहा है अंतर्जाल के उस मंच पर जिसे मुख पुस्तक कहा जाता है ..



      ये चि‍त्र दि‍ल्‍ली के एक मॉल का है...
      यहॉं आटा-चक्‍की तो पहुँच गई, बस दातुत भी पहुँचती ही होगी ☺


      पूजा ने एक बार कभी अपने ब्लॉग में सही लिखा था :

      "होता है न जब आप सबसे खुश होते हो...तभी आप सबसे ज्यादा उदास होने का स्कोप रखते हो."




      पिछले साल भी कहा था "आजादी की लड़ाई है", फ़िर से इस साल.. जनता कन्फ़यूज हो गई है आजादी की कितनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी ।



      • समय के साथ चलने के मुहावरे सुन कर जब बोर होने लगा, तब समय ने ही खड़ा होना सिखाया। खड़ा होने पर जब कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था, तब पांवों में आंखों का जन्म हुआ और धरती ने चलना सिखाया। चलते हुए जब समझा कि मंज़िल दूर है, तब धरती को दूसरे छोर पर छूते आसमान ने उड़ना सिखाया।




      आज सुबह से ही मीडिया वाले रामदेव और अन्ना के एक मंच पर आने से दुखी और परेशान लग रहे थे.उनकी हर कोशिश यही थी कि किसी तरह वह यह साबित कर दें कि रामदेव और टीम अन्ना में बहुत मतभेद हैं और यह मिलन बस आज ही समाप्त हो जाएगा. हर चेनल ने कुछ ऐसे बंदे इकट्ठे कर रहे थे जो वही कह रहे थे जो चेनल वाले चाहते थे. पर यह संभव नहीं हो पाया. रामदेव और आना ने घोषणा कर दी कि उन्हें कोई ताकत अलग नहीं कर सकती. बेचारा बिका हुआ मीडिया अपने खरीदारों को खुश नहीं कर पाया.



      पत्नी की याद में

      मैं एक उलझी लट हूँ तुम्हारी
      जिसे सुलझाना भूल गई हो
      मैं तुम्हारी आँखों का बिखर गया काजल हूँ
      जिसे निखारना भूल गई हो
      मैं मांग भराई के समय माथे तक फैल गया सिंदूर हूँ
      जिसे अब सिंदूरदान में रखने की जरूरत नहीं है
      मैं तुम्हारी वो रात हूँ
      जिसके तमाम तारों पर तुमने खुद घने बादल मढ़ दिए हैं
      मैं तुम्हारा वो बिछुआ हूँ जो धान के खेत में गिर गया.....




      कुछ है की हवा का रुख बदला सा है
      क्या कहीं लोगों का जमीर जगा सा है
      क्या बदलते हालात भरोसे के लायक हैं?
      या की ये सब बस हवा सा है.......................रत्ने




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      चार अक्षर चालीस छपेंगे
      घट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
      इस धंधे की माया ऐसी
      मोल तोल मे झोल करेंगे

      ©यशवन्त माथुर


      ये भ्रम भी अच्छी नहीं साहब
      वक्त गुजरने से गम नहीं गुजरते




      लो मैं आ गया..........................

      ये रात ये तन्हाई,
      ये दिल के धड़कने की आवाज़,
      ये सन्नाटा
      ये डूबते तारों की
      खामोश गज़लख्वानी,
      ये वक्त की पलकों पर
      सोती हुई वीरानी
      ज़ज्बात-ए-मुहब्बत की
      ये आखिरी अंगड़ाई
      बजती हुई हर जानिब
      ये मौत की शहनाई
      सब तुम को बुलाते हैं
      पल भर को तुम आ जाओ
      बंद होती मेरी आँखों में
      मुहब्बत का
      इक ख़्वाब सजा जाओ.




      • हर्ष , फिर विषाद / पनकौवे पर सवार / नौका मछलीमार । (बाशी )




      मै जो देख रहा हूँ , वो बिना चश्मे के....और आप ?


       Profile Picture
      मुझे ये पंकज की लिखी सबसे बेहतरीन पोस्ट में से एक लगती है..कुछ भी कहना आसान नहीं है इस पोस्ट पर..कई बार पढ़ चूका हूँ इसे अब तक..पिछले कुछ दिनों से पंकज के ब्लॉग के चक्कर लगाता रहा हूँ..सच में यार, बहुत दिन हो गए..अब कुछ तो लिखो..I really miss your blog posts Pankaj
      pupadhyay.blogspot.com
      फ़ोन पर एक लंबे सन्नाटे के बाद मैंने कहा, रिजर्वेशन करवा देता हूँ। ’रहने दो, इंटरसिटी से ही आ जाऊंगा।’ मैंने कहा ’दिक्कत होगी।’ ’नहीं होगी! रहने दो।’



      यूं मैं कुछ नहीं
      यूं तो तू भी कुछ नहीं
      पर तू जो है, मैं हूं जितना भी
      हम हैं, बस हैं।
      यही तोलते हुए,
      जो था, सुनहरा था
      जो है, बुरा है,
      होना चाहिए जो, वो होगा ही नहीं
      निकलते जाते हैं हाथ से सब लम्हे
      एक-एक कर
      कभी तो तराजुओं को अलग रख यूं ही कुछ बटोर लें
      सीपियों और मोतियों के बिना भी रेत मौजूद रहती है।
      दिल में चंद घरौंदे बनाने की ख़ातिर ज़रूरी है,
      समंदर की नीली चादर के कुछ भीगे क़तरे।


      अश्क जिनको हंसी में छुपाकर पीने आ गए
      समझो उनको जीने के तमाम करीने आ गए
      आशा

      बाय दोस्तों 9 बजे की बस से कोटा रवानगी






      इस्पीक इंगलिस !

      श्रीमती टीमटाम को गम था कि
      कभी न पढी अंग्रेजी.
      कसक निकाली बचुवा को
      भेज के स्कूल अंग्रेजी में.

      अब बचुवा का रोज देख
      कंठ लंगोट,
      टीमटाम देवी समझे अपने को मेम.

      इंगरेजी सब्द सीखे देवी ने
      बचुवा से,
      फिर सीखा उनको जोडना.

      भिखारी आया द्वारे पें,
      तो लगा कि मौका अच्छा
      अभ्यास का.

      बोलना था उससे कि
      “बोलें बिखारियों से,
      हम सिर्फ अंग्रेजी में”.
      बोल दिया,
      “वी बेगर्स
      इस्पीक ओनली इंगलिस”


      सदियों -युगों से टूटे हुए पुल को जोड़ने की कवायद में !




      भ्रष्टाचार, अकड़, बेशर्मी, बेईमानी

      बेतक्ल्लुफ़ी से काम क्यों नही लेती

      मेरे प्यारे भाईयो, देश वासियो, भारत के लोगो

      मोहतरमा प्रधानमम्मी ये सब क्या है

      आप हमारा नाम क्यों नही लेती



      भ्रष्टाचार और कालधन के विरुद्ध लड़ाई का एक और पड़ाव... जन्तर मन्तर 3 जून 2012