Followers

रविवार, 17 जुलाई 2011

कुछ चेहरों की गुफ़्तगू तुम तक मैं लाया हूं ..




चलिए देखा जाए कि आज चेहरों सी पुस्तकों पर क्या किसने , कितना लिखा पढा है 



सो कर उठा तो मन के भीतर से किलकारियाँ फूटने लगीं। मुझे लगा कि जैसे अभी ही मेरा जन्म हुआ हो। सुबह से अब तक जन्म की वह खुशी मन में भरी है। हालाकि सांसारिकता मेरी किलकारियों पर बहुत भारी है।
 

किसी ने कुछ कहा हम खुश हो गए , किसी ने कुछ कहा हमें गुस्सा आ गया । ये भी कोई ढ़ंग है जीने का , कोई और हो गया हमारा नियंत्रण कर्त्ता । हमें स्वयं पर नियंत्रण स्वयं करना है और यही है जीवन जीने की कला ..
 
 

दिखायी देते हैं दूर तक अब भी साए कोई
मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आये कोई
चलो न फिर से बिछाये दरियाँ, बजाये ढोलक
लगा के मेहँदी, सुरीले टप्पे सुनाये कोई
पतंग उड़ायें, छतों पे चढ़के मोहल्ले वाले
फलक तो साँझा है, उस में पेंचें लड़ाए कोई
उठो कबड्डी-कबड्डी खेलेंगे सरहदों पर
जो आये अब के तो लौट कर फिर न जाए कोई
नज़र में रहते हो, जब तुम नज़र नहीं आते
ये सुर मिलाते हैं, जब तुम इधर नहीं आते

-Gulzaar
 
 
 

कैसे जीते हैं फ़िक्र को बिस्तर पर सुलाकर
उड जाते हैं फिर इक आशियाना बनाकर
 

जिस देश को विदेशियों ने 1100 साल तक तलवार की नोक पर लूटा हो, उसके एक मंदिर में यदि एक लाख करोड रुपये की संपत्ति बची हो, तो जरा सोचिये कि भारत कितना संपन्न रहा होगा. लोग इसे सोने की चिडिया कहते थे तो वह सही कहते थे. अभी भी हिन्दुस्तान संपन्न है -- लेकिन अब इसे देशी लुटेरे लूट रहे हैं. जब यह बंद हो जायगा तो हम एक आर्थिक महाशक्ति बन जायेंगे.
 

हमने हर बार उनकी राह तकी,
हमने हर बार ख़ुद को समझाया.
उनके आने की उम्मीद फिर भी बाकी है,
इस तरह ज़िन्दगी को हमने बहलाया !
 

एक और मुक्तक

जो भेद खुल गया तो शर्मसार हो गया.
हर आदमी धंदे का तलबग़ार हो गया.
कोई राम बेचता है, कोई नाम बेचता,
संतों के लिये धर्म कारोबार हो गया.
--योगेन्द्र मौदगिल
 

आज एक शिकायत के साथ हाज़िर हूँ.. बहुत सारे दोस्त कहते रहते हैं कि 'बहुत मेल आती है, हम इसीलिए कमेंट्स नहीं करते' बस like करते हैं.. मगर क्या सिर्फ like कर देने से विचारों का आदान-प्रदान संभव है ? क्या like का button आपके मन की बात मुझे बता पाता है ? शब्दों को like button से replace करना कहाँ तक सही है ? वो भी तब जब ये problem सिर्फ १ minut में अपनी privacy setting में जाकर solve की जा सकती है
 
 
 

यू के का यॉर्क शहर - सालों साल धूप और बादलों के बीच चलती ठिठोली. कभी धूप जीत जाती तो कभी बादल जीत कर रिमझिम बरस जाते हैं. एक सिलसिला सा है जो कभी नहीं रुकता. .........
 
 

‎'सबक' बच्चे को पहला सबक ये ही सिखाया जाता है 'प्रेम' खुदा और नेचर की दी गई हमें सबसे बड़ी नेमत है और दूसरे सबक में ही सिखाया जाता है. प्रेम मत करना सबसे बड़ा कुफ्र है ये. या फिर साथ में इतनी सारी कंडीशन अप्लाई कर दी जाती है कि उन्हें ध्यान में रख कर कोई प्यार तो क्या ? ख़ैर नफरत करना भी पसंद ना करे ? फिर भी नेमत के लालच में बच्चे फसते ही हैं. रोकने वाले रोकते रह जाते हैं और करने वाले कर लेते हैं 'प्यार'
-बदचलननामा
 

सफलता के लिए अचूक मंत्र-
हमेशा क्लास में लेट पहुंचो, सारे टीचर तुम्हे याद रखेंगे।

कभी टेस्ट मत दो, बेइज्जती के दो नंबर से इज्जत की जीरो बढिया है।

कभी टाप ना करो, लोग तुमसे जलने लगेंगे।
 

शब्दोँ मेँ जिँदगी छुपी हैःलिखने की जी चाहता है ,बोलने का मन करता है ...ये अद्भुत संसार है ..ये जीवन की ऊँचाईयाँ है तो जीवन का बोझ भी..इसका स्वाद मीठा है या कड़वा भी...!!!आपको चुनना है अपनी जिँदगी!!!
 

पहले ऊगली पकड़ना रह्बर की, फ़िर उसे रास्ता दिखा देना
 

  • विवाह संस्था अपने आप में प्रेम के नाम पर प्रेम का नाश करनेवाली व्यवस्था है क्योंकि यह एक व्यवस्था है, रूटीन है जो प्रेम को खत्म कर डालती है। हमारे यहाँ विवाह बहुत कम आयु में कर दिए जाते हैं। विवाह की उम्र स्त्री के लिए ३०-३५ साल होनी चाहिए ताकि वह अपने कार्य, चयन के प्रति अपने अनुभवों के आधार पर निर्णय ले सके। प्रेमहीन विवाह निश्चित रूप से विवाहहीन प्रेम को जन्म देता है। -लवलीन
 
 

उसे छोड़ने के लिए पैदल ही निकल पड़ा कैंप। मुखर्जीनगर से आगे बढ़कर हम इंदिराविहार में थोड़ी देर के लिए रूक गए। उसने धीरे से कहा-तुम चले जाओ मैं अकेले निकल लूंगी, मैंने पूछा कहा चला जाऊं...ऐसे सवाल अक्सर हमें मोड़ पर खड़े कर देते थे। मैंने मुड़कर देखा तो हमदोनों मुखर्जीनगर मोड़ पर ही तो खड़े थे..(रवीश मैनिया..जारी)
 

हिंदी फिल्मों में अकसर किसी फिल्म के सीक्वेल के नाम के साथ "२" जोड़ा जाता है. जैसे मर्डर २, दबंग-२ लेकिन निर्देशक अभिषेक चौबे ने इश्किया के सीक्वेल का नाम इश्किया २ की बजाय" डेढ़ इश्किया" रखा है. फिलहाल फिल्म के नाम को प्रस्तुत करने का तरीका औरों से अलग है. फिल्म कैसी होगी, आगे पता चलेगा
 

सूरत भी खूबसूरत ,सीरत भी खूबसूरत
कोई नहीं जो आपका, अब सामना करे !!
 

संग कुछ घड़ी खेलना मेरा तब ही कतल करना
ऐ शैयार मैं उम्र भर तनहा यहाँ रहा हूँ
जिस शाख पे खुली आँख लहू गिराना मिरा वहीं
बाकी ज़माने भर में मैं फिरता यहाँ रहा हूँ
मेरी सूरत-ए-हाल पे हँसते हैं जो मुसाफिर
'मंजिल थी हर कदम पे मेरी' उनको जता देना
मेरी उम्र का पड़े गर अंदाज़ तो बताना
मैं खुद तो बेखबर हूँ कि कितना यहाँ रहा हूँ...
दीपक मशाल
 
 

हादसे भी खबर , हमले भी खबर , हैं लाशें खबर , असले भी खबर ,
हमने हैवानों को दी मौत की है सज़ा , काश , कभी ऐसी निकले भी खबर
 
 

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

ये बोलते चेहरे ..happy facebooking

देखें कि चेहरे इस बीच क्या कुछ बोलते सुनते रहे हैं , कुछ मित्रों के फ़ेसबुक अपडेट्स






आतंकवादी बम देते हैं, राजनेता बयान. यह दोनों ही समान रूप से मुझे खतरनाक लगते हैं. मुंबई में पहले एक पत्रकार की ह्त्या. अब एक के बाद एक तीन धमाके. हिम्मत देखिए मुंबई बम धमाके के आरोप में जेल में बंद आतंकवादी कसाब के जन्मदिन वाले दिन ये धमाके हुए. क्या कसाब के लिए यह जन्मदिन का उपहार था? मुंबई बम विस्फोट पर नेता जैसे भाषण दे रहे हैं वह भी अपने आप में शर्मनाक है. मसलन राहुल गाँधी कहते हैं ऐसे हमले होते रहते हैं और उन्हें पूरी तरह रोकना मुमकिन नहीं है. और दिग्विजय सिंह कहते हैं -भारत, पाकिस्तान से बेहतर है जहां हर दिन, हर सप्ताह विस्फोट होते हैं. ऐसे बयानों को निकम्मेपन के अलावा और क्या कहा जा सकता है?


मुंहजोर' औरतों से हर मर्द डरता हैं. संभ्रांत मर्द ताकत या कमाई की वजह से अपनी औरतों को दबा देते हैं.मजदूर बस्ती में औरतें मर्दों से ज्यादे कमाती हैं,चूल्हा इन्ही की अंटी से जलता है. मर्दों की कमाई शराब पर खर्च होती है. शराब जब दिमाग पर चढ़ के बोलती है तो ये संभ्रांत मर्दों से सीखे हुनर का खुल के मुजायरा करते हैं. बस्ती के मर्द आज गुस्से से कांप रहे हैं एक शराबी पति को उसकी बीवी ने सिखाया है चिमटे से 'सबक
-बदचलननामा


इस देश को सरकार की जरूरत नहीं ना ही सांसदों व विधायकों की क्योकि ये सब इस देश की जनता का खून चूसने के सिवा कुछ भी नहीं करते हैं ऊपर से इनके लूट व शर्मनाक भ्रष्टाचार को पकरने के लिए जन लोकपाल के नियुक्ति की बात होती है तो ये कहते हैं जनता ने हमें चुना है...लेकिन इन शर्मनाक भ्रष्टाचारियों को ये नहीं पता की वोटिंग के साथ अगर इनको अयोग्य घोषित करने के साथ इनको कभी भी चुनाव नहीं लड़ने देने का विकल्प हो तो 99% को जनता सदा के लिए चुनाव लड़ने से वंचित कर देगी..क्या यही है संसदीय गणतंत्र...?


आज गुरु पूर्णिमा को मेरी छुट्टी नहीं थी,फिर भी ले ली .संयोग से श्री श्री १००८ अनूप शुक्ल जी 'फुरसतिया ' के साथ भाई निशांत मिश्र और भाई अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी'अवधी-भक्त' से जेएनयू कैम्पस में चिरकुटिया-चिंतन हुआ.वास्तव में हम धन्य हो गए.विशेष आभार अमरेन्द्र भाई का जो भारी व्यस्तता के बीच इस बैठक के संयोजक बने !
 
 


काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास
- अदम गोंडवी साहब
 



राहुल गांधी ने एक प्रतिशत खतरे के बने रहने और उसे रोक ना पाने की बात की तो लोग टूट पड़े उन पर
तो क्या यह गलत है है, झूठ है?
क्या कोई भी, किसी भी चीज की शत प्रतिशत गारंटी दे सकता है?

मतलब कि आज का समाज किसी से फर्जी और झूठे बयान की उम्मीद करता है और उसी गलतबयानी पर बिल्ली सरीखा आँखें बंद कर खुश हो जाना चाहता है??
 
 


शायद ही किसी को याद हो ... पर एक साल पहले आज के ही दिन ... अपने रुपये को अपनी पहचान मिली थी .
 
 


तुमने
पहले एक खाली आसमान दिया मुझे
फिर धीरे-धीरे
लगाते गए मेघ उस पर
और वे बरस रहे हैं अब
और तुम कुछ करते भी नहीं

तुम्हें शायद भींगना अच्छा लगता होगा
पर इसके लिए कुछ भी करना अच्छा तो नहीं..
.
 
 


आज गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर अपने सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाये ..! अपेक्षा यही आप सभी अपने - अपने गुरु के आदर्शों का पालन कर ..अपने गुरु , देश और धर्म का सम्मान करेंगे ..और अपना जीवन सोदेश्ये बना कर अपने जीवन में प्रसन्नता का अनुभव करेंगे ....!!
 
 


फटे सूखे सिसकते होठों की, मुस्कान बन जाना
भले टूटा हो, घर के आईने का मान बन जाना
फ़रिश्ता जब भी बनना चाहोगे, बन जाओगे भाई
मगर मौका मिले तो, पल भर को इंसान बन जाना
 


दहकत देंह बुड़ो के जल मा, आगी अपन बुताइस होही.
तात हावय तरिया के पानी, वो हर इंहा नहाईस होही.
(मुकुंद कौशल)
 
 


खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे,
मधुर भंडारकर कभी इतना महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है जितना स्टार न्यूज़ उसे बना कर दिखा रहहि तो क्या ये मान लिया जाय कि भंडारकर ने जिस खबरिया चैनल को भाव न देते हुआ भगा दिया उस भाव को पाने के लिए स्टार भंडारकर को स्टार बना रहा है. हद है बेहूदा और बेवकूफी भरी पत्रकारिता की वैसे भी जहाँ दीपक चौरसिया नामक पनवाड़ी हो उस चैनल के तो कहने ही क्या...
 
 


हादसे भी खबर , हमले भी खबर , हैं लाशें खबर , असले भी खबर ,
हमने हैवानों को दी मौत की है सज़ा , काश , कभी ऐसी निकले भी खबर
 

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

ये चेहरे कुछ कहते हैं ...happy face-booking







  • देश का मौसम बारिशाना और तिहाड़ाना दोनों साथ साथ हो रहा है
     
     
     
     
    एक रुपये की कलम चाहे तो नेता के कपडे भी उतार सकती है मगर ...अफ़सोस की आज वही कलम नेता के हाथ की कटपुतली बनी हुई है
     
     
     

    • तोसे नैना लड गये जो इक बार
      अब खुद को ढूँढे इत उत बावरी बयार

      श्याम प्रेम मे री्झ गये दो नैना मतवार
      दरस प्यास बुझत नाही चाहे देखे आठों याम
     
     


    कलमाड़ी, कनि, राजा जेल में है, मारन भी जाने वाले हैं...यही वक्त है कि पद्मनाभ मंदिर के तहखाने का छठा दरवाज़ा खोल लिया जाए!

     
     


    तुम्हें भूल पाने की क़वायद में हमने,
    याद से भी ज़्यादा याद किया !




    • हम तो तेरे शहर के मेहमां हैं चंद लम्हों के...
       
       

      • हमारा देश भ्रष्ट लोगों के हाथ में है..लूटेरों के हाथ में है...ज्यादातर राजनेता भ्रष्ट हैं और हमने ही उन्हें जीताया है...हम क्यों उन्हें जीतातें हैं उन्हें क्यों मालाएं पहनातें हैं....कोई नेता चाहे भ्रष्ट हो हम उन्हें मालाएं पहनाने की होड़ में लग जाते है....हमारी मानसिकता क्या है...अपनी अपनी पार्टियों का पक्ष लेते हैं...चाहे उनमे कितने ही भ्रष्ट क्यों न भरें पड़ें हों....
       
       


      बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं...मौसम भी कर रहा है, जैसे अनजाने परिंदों का इस्तकबाल...जो अपने परों और पंजों में खुशियों के बीज समेटकर लाएंगे और मेरे दिल के वीराने खेतों को आबाद कर देंगे मोहब्बत की फसल से। ऐसा होगा...होगा ज़रूर।
       


      एक अदीब कहानी की नायिका की तलाश में शहर के हर संभ्रांत घर में गया. वहां उसकी नायिका मिली मगर किसी संभ्रांत महिला के रूप में नहीं, बल्किं उन घरों में पोछा, झाड़ू, कपडे धोती नौकरानी में. शहर के आखिरी घर को खंघालने के बाद अदीब गुस्से और छोब से नौकरानी के पीछे - पीछे चल पड़ा और लिख डाली उसकी कहानी. कहानी को पढने के बाद लोगों के गुस्से से थरथराते होठों से केवल एक ही शब्द निकला 'अश्लील'.
      - बदचलननामा
       
       



      उम्र की आंच पर
      चढ़ा दी है अनुभवों की देगची
      पक रहा है दुःख
      बिखर रही है खुशबू
      बस थोड़ी ही देर में
      परोसा जायेगा ज्ञान...
       


      अपनी सुविधाओं पर नव प्रयोग करते हुए गूगल अपने ब्‍लॉगर इन ड्राफ्ट का भी चोला बदला.
       


      जोश में होश नहीं गंवाना चाहिए पर, शांति के नाम जोश की हवा भी नहीं निकालनी चाहिए। आप पत्रकार हों या न हों, सनसनीखेज और कुख्यातों को कभी अभयदान नहीं देना चाहिए। उसका क्रमिक तरीके से और बारिकी से नाश कर देना चाहिए ताकि गंगा में कोई पापी न धुले और गंगा साफ रह सके। इस सबके लिए योजनाबद्धता और धीरज की आवश्यकता होगी। यह कभी न भूलें।
       


      दिन के कड़वाहट को मीठे सपने दो ,जब हम पहूवे महके अपना विस्तर भी
       
       


      सरकार को आखिरकार CBI का ulternate मिल गया है ..अब उसकी जगह लेने वाली है ..CID ....SONY TV वाली CID ..पर डे के हिसाब से एक केस हल कर देगी रात को ..फ़िर अगले दिन ...दिन में उसी केस को फ़िर से solve कर देती है ..बेटवा ने बताया ..अरे पापा रिपीट होता है वो ..बताओ यार CBI ...एक बार नहीं हल कर पाती ..sony की CID ..दिन रात में दो बार ..
       
      मनमोहन सिंह ने एक वित्त मंत्री के रूप में जितनी ख्याति अर्जित की थी एक प्रधानमंत्री के रूप में उतना ही अधिक घिना दिए हैं , अब तो लंबर माईनस में मिल रहा है उनको ..न हो रहा हो तो उन्हें , अपनी ईमानदारी बचाए रखने के लिए ,..अब पद्मनाभ मंदिर के खाली तहखाने में बंद करके रख देना चाहिए
       
      जिस तरह से ईमानदारी प्रधानमंत्री के सभी मंत्री एक लंबर के बेइमान , घूसखोर , लालची , घोटालेबाज निकल रहे हैं ....ई मोहन बबा केतना दिन ..अपना ईमानदारी वाला सीडी को रिपले करेंगे ..जनता अगला लिंक पर क्लिक करने के लिए बेहाल है ..
       
       
      जिस तरह से एक एक करके सारे मनमोहिनी मंतरी लोग तिहाड पहुंच रहे हैं उसको देखते हुए सरकार ये फ़ैसला लेने की सोच रही है कि फ़िर ,संसद के पास ही क्यों न तिहाड का एक ब्रांच खोल दिया जाए ..सुना है इससे संसद में खुशी की लहर दौड गई है .

सोमवार, 4 जुलाई 2011

देखें कि , कुछ चेहरों ने क्या की है गुफ़्तगू ----happy facebooking




कल ही शिवम मिश्रा जी ने शिकायत की , कि इस ब्लॉग पर पोस्टें क्यों नहीं आ रही हैं , यही शिकायत मित्र संतोष त्रिवेदी जी भी कर चुके हैं। मैंने जब इस ब्लॉग को बनाया था तो योजना भी यही थी कि रोज़ फ़ेसबुक मित्रों में से  चुनिंदा के स्टेटस अपडेट को यहां ब्लॉगजगत तक पहुंचाऊंगा । चलिए अब ये कोशिश की जाएगी ।



  • जनविरोधी छवि साफसुथरी करने के लिए इस्तेमाल करें:

    मीडिया छाप न्यू धुलाई का साबुन!!!

    खूब झाग उठाये-जनता की आँख जलाये!!!

    -दाम में कम, काम में दम-


  • खुश हुए देखकर जिनको, वो हाफ़ लाईन हो गए।
    नेट बंद क्या हुआ मुआ, वो ऑफ़ लाईन हो गए॥
     

    फेसबुक आने के बाद विरही-विरहिणियों की संख्या बढ़ी है या घटी है ? विरह का प्रसार हुआ है या अवसान हुआ है ?

    महबूब वो कि सर से क़दम तक ख़ुलूस हो
    आशिक़ वही जो इश्क़ से कुछ बदगुमाँ भी हो- फिराक गोरखपुरी
     

    ‎"यहाँ मजदुर को मरने की जल्दी कुछ यूँ भी है
    जिंदगी की कशमकश में कफ़न महंगा न हो जाए.."
    via Abhishek
    सुना कई बार इसलिए ही टाल दिया मरना ,
    बरसात में सूखी लकडियां ,बहुत कीमत में बिकती हैं
    via अजय कुमार झा
     

    याद है स्कूल के वे दिन...चार कम्पार्टमेंट वाला वो स्टील का डिब्बा...जिसके हर हिस्से से प्यार टपकता था...वो दिन जब स्कूल ना जाने के हमारे पास हजार बहाने होते थे और कमाल की बात है एक भी काम नहीं आते थे...

    उ उन मम्मी पेट दर्द कर रहा हैं.
    हूँ. कोई बात नहीं बेटा अभी ठीक हो जायेगा.
    मम्मी आज स्कूल नहीं जाना. सच्ची में बड़े जोरों से पेट दर्द कर रहा है.

    मम्मी मुस्कुराते हूवे- ओह स्कूल नहीं जाना इसलिए पेट दर्द कर रहा है ना. बेटा जी अभी तो खेल रहे थे तो पेट दर्द नहीं कर रहा था. अब स्कूल जाना है तो पेट दर्द. अच्छा चलो तुम्हारा पेट सहला देते हैं अभी ठीक हो जायेगा.
    पैर पटकते हूवे- नहीं मम्मी नहीं जाना स्कूल ...

    मम्मी के पास उसकी भी दवा. पैर पटकते रह गए हम और मम्मी सहला के धमका के फुसला के - आज चलो टिफिन में तुम्हारी पसंद की ये डिस देंगे वो डिस बना के डाल देती हूँ. चलो अच्छे बेटा अब तंग मत करो तैयार हो जावो वरना अब पिट जावोगे. अपन बुल्के टपकते हूवे तैयार होके चल देते थे.
    कभी वो बनाती थी जब हमारी पसंद के पराठे....और कभी कभी उसमें होता था. पराठों के साथ नानी या दादी के हाथों के बने आचार भी.

    याद ही होगा ना भी याद हो तो शाम को जब कहीं से पूरी तरह थके घर से दूर किसी महानगर के अपने किसी तरह पैर फैला भर की जगह रखने वाले कमरे में पैर रखते हैं और खाने बनाने की हिम्मत नहीं होती तब वो दिन जरुर याद आ ही जाते हैं.

    स्टेनली जिसकी माँ नहीं है जो उसे टिफिन तैयार करके दे सके. स्टेनली के दोस्त जो अपनी टिफिन का खाना उसे साथ शेयर करते हैं. स्टेनली अपने फ्रेंड्स की माँओं के हाथ का बना खाना खाते हूवे शायद थोडा थोडा अपने हिस्से की माँ का खाना शायद खा रहा होता है. एक टिचर जिसमें स्टेनली शायद अपनी मम्मी को ढूंढता रहता है. एक खडूस टिचर या कहें खाने की मशीन जो लंच ब्रेक में बच्चों का खाना खुद हजम कर जाता है. बच्चे उसे खिलाना नहीं चाहते वे अपनी टिफिन स्टेनली के साथ बाँटते हैं भुक्खड़ टिचर को ये पसंद नहीं उसे लगता है. जैसे उसके हिस्से का ही खाना कोई चोरी से खा जाता हो.

    स्टेनली को एक चेतावनी टिफिन नहीं तो स्कूल नहीं और स्टेनली स्कूल से गायब और फिर एक रोज जब लौटता है स्टेनली अपने डब्बे के साथ. स्टेनली का डिब्बा सबसे पहले खोलता है उसी भुक्खड़ और खडूस टिचर के सामने तो टिचर उससे नज़रे नहीं मिला पाता और स्कूल छोड़ कर कहीं और चला जाता है. स्टेनली का डिब्बा अब सबके लिए खुला है अपने दोस्तों के साथ साथ टीचरों के लिए अब स्टेनली खुद खाता कम दूसरों को खिलाने में अब वो मस्त है. स्टोरी का दी एंड है ये लेकिन वो खडूस टिचर बार - बार याद आता है उससे लाख नफरत होने के बावजूद.

    लाइफ बहुत सिम्पल है, गोल गोल मत बोल
    जल्दी से इसको चख ले, चटकारे ले के डोल

    (नोट- फिल्म 'स्टेनली का डिब्बा'में कुछ कमिय भी हैं. लेकिन इस फिल्म को देखने बाद उन कमियों को गिनाने का मूड नहीं है. अमोल गुप्ते कमाल के डायरेक्टर,स्क्रिप्ट राईटर और एक्टर. दिब्या दत्ता - ये पहली वो ऐक्ट्रेस हैं जिन्सको किसी भी फिल्म में देखने के बाद किसी भी भूमिका में सिर्फ मैने चार चाँद ही लगाते देखा है.हर बार वे हैरान कर जाती हैं अपने अभिनय से.)
    - अंजुले
     

    • लिव-इन रिलेशनशिप पर आपकी क्या राय है ??? गंभीर वार्ता करें, स्वागत है..बेकार के और किसी पर किये गए निजी कमेंट्स डिलीट कर दिए जायेंगे...
     
     
    • ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
      पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो!
      दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो!
      • मुझे ,फ़ूल , पौधों ,पेडों से बहुत प्यार है , घर में फ़िलहाल फ़िर से कम से कम बाईस गमलों में फ़ूल और पत्तियां मुस्करा रही हैं , कमाल है कि पुत्र को भी ये सब खूब पसंद हैं । सो अब उन्हीं की फ़रमाईश और बहुत समय बाद , एक बार फ़िर से गमलों में टमाटर , मिर्च , नींबू के पौधों और तोरी , करेला आदि की बेलों को लगाने की तैयारी चल रही है , संडे की गुडमॉर्निंग ड्यूटी यहीं से शुरू होती है
       

      इन आँखो को एक ख्वाब दिखा दिया आपने ,
      हमे जिन्दगी तो दी थी किसी और ने ,
      पर बेपनाह प्यार देकर जीना सीखा दिया आपने ।
     
    • उठौने के दूध का भाव 1 जुलाई से 2 रूपए प्रति लीटर बढ़ गया है मेरे यहां मुंबई में। अब बढ़े दर की सिर्फ सूचना दी जाती है। कोई मोल-मोलाई नहीं। 34 रूपए प्रति लीटर हो गया। आप के यहां क्‍या भाव है? शहर और दर लिखें।
       
       आज के लिए इतना ही , चलिए कल से आप यहां पर नियमित रूप से कुछ चेहरों की किताबों पर लिखे हर्फ़ पढ पाएंगे ।