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शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

रूबरू-हूबहू चेहरे …….

दोस्तों को पढना जितना भाता है , उन्हें सराहना जितना पसंद आता है उतना ही उनकी कही लिखी को संजोने/सहेज़ने में आनंद आता है । इसीलिए मैंने इसके लिए ये खास कोना बना रखा है , गाहे बेगाहे इस पन्ने पर चुन कर कुछ मोती जो फ़ेसबुक पर जडे होते हैं उन्हें यहां चुन कर सज़ा लेता हूं और इस अंतर्जालीय पन्ने को भी यादगार बना के रख लेता हूं , आज फ़िर कुछ दोस्तों के स्टेटस अपडेट्स को मैंने संभाल कर एक ब्लॉग पोस्ट की शक्ल दे दी है , देखिए …………………….



Anulata Raj Nair .

खिलखिलाती ये लडकियाँ camera देख कर संजीदगी से पोज़ दे रही हैं
ईर्ष्या होती है कभी कभी इनके स्वच्छंद जीवन से ......बस्तर की लोक नर्तकियों के साथ- लोकरंग में !!

खिलखिलाती ये लडकियाँ camera देख कर संजीदगी से पोज़ दे रही हैं :-)<br />ईर्ष्या होती है कभी कभी इनके स्वच्छंद जीवन से ......बस्तर की लोक नर्तकियों के साथ- लोकरंग में !!

 

DrKavita Vachaknavee

बचपन में कई बार अपना स्कूल एक कारा लगा करता था और हम में उससे छूट निकलने की होड़ मची रहती थी।
पर इस आयु में आकर लगता है हमने स्वयं को स्वयं ही कितनी काराओं में बंद कर लिया है और छूट कर जाने के लिए कोई खुला स्थान नहीं। छूटने की होड़ करने वाले भी नहीं हैं।

 

 

डॉ. सुनीता

बसंत की दस्तक
दिल-दिमाग खेत-खलिहान की ओर
जंगल के उबड़-खाबड़ रास्ते
नहीं दीखते शहर में चहुओर
जहाँ तक दृष्टि जाती है
कुहरे की कलुषित मानसिकता की कालिमा
और दिखावटी/बनावटी जिन्दगी के पैरहन
पागल बने जीवन में
अकुलाहट पैदा करने की आहट
पपीहे की लुप्त आवाजें
सरसों से गेहूं की शिकायत
चने का केराय से रार
अरहर का गन्ने से करार
टुकड़े-टुकड़े में यादें दस्तक दे रहीं हैं
शब्द मौन व्रत धारण किये रहे
बावजूद वक्त ने लिख दिए
स्नेह की पहली पाती...!!!
...बस ऐसे भटकते गलियों में...
डॉ.सुनीता

 

 

 

Chandi Dutt Shukla

लिखना, तुम्हें भूलकर तुम तक पहुंचने की साधना है

 

 

किरण आर्य

आईने का सच
बर्दाश्त करना
कब होता है
आसान
आईना
दिखाता है सब
बिना लीपापोती के
पूरी साफ़गोई के साथ.....है ना ...........किरण आर्य

 

 

Anju Sharma

प्यार करने वालो की किस्मत ख़राब होती है,
हर वक़्त इन्तहा की घडी साथ होती है ,
वक़्त मिले तो रिश्तो की किताब खोल के देख लेना ,
दोस्ती हर रिश्ते से लाजवाब होती है ..

 

Rashmi Mishra

कमाल है तेरी यादों का .......कि, मुझे याद आने का शुक्रिया.....
दीद का सुकूं तो मिला ना मुझे,
तेरी गुफ्तगू का ही शुक्रिया.....

 

 

डॉ. सरोज गुप्ता

दिल्ली ऎसी नहीं है ,,,दिल्ली नस्लवादी नहीं है। ………मेरे पूर्वोतर के बहन -भाई ,बेटे -बेटियों इस वारदात के कारणों को क्षेत्रवाद से नहीं जोड़े। ………… दिल्ली सबके लिए एक है ,उसकी एकता ,मित्रता ,भाईचारे को किसी एक घटना से जोड़कर दिल्ली पर कीचड ने उछाले। ……………… मौत दुर्भाग्यपूर्ण है ,,,दिल्ली ने सबको अपनी पलकों की छाँव में बिठाया है। नस्लवाद जाति ,क्षेत्र ,धर्म में नहीं व्यक्ति विशेष के दम्भ में है। …… नेताओं के तो खून में बहता है यह नस्लवाद पर एक दुकानदार को अपनी दुकानदारी से मतलब होता है ,दोनों और से किसी में भी सहनशक्ति होती तो यह दुर्घटना नहीं घटती !

 

 

Shiv Mishra

पत्रकार: "उपाध्यक्ष बनकर क्या उखाड़ लिए?"
राहुल जी: "गड़े मुर्दे."

 

 

Kamna Tak

मैं अकेली नहीं !
उसके आने के बाद कोई भ्रम नहीं
लगने लगा मैं किसी से कम नहीं
ऐसा भी नहीं, अब कोई गम नहीं
मगर आँखें कभी होतीं नम नहीं !
*****
किसी ने चौसर पर फिर बाजी सजायी है
हम भी खेलेंगे, आवाज हमने लगायी है
वो फेंट रहे हैं मोहरें शकुनि के अंदाज में
मगर जानते नहीं अब बारी मेरी आयी है.
- कामना
(कल की कविता का अगला भाग है यह. कुछ शालीन मित्रों ने पूछा है कि 'वो' नया 'नाम' कौन है. बताऊंगी, लेकिन यही अपनी वाल पर- व्यक्तिगत नहीं,सार्वजनिक. कोई पूछे तो)

 

शेइला गुड्डो दादी

कोहरे में लिपटी सहर की धूप गुलाबी सी लग रही है. लिथुआनिया में क्लैपेडा के पास ली गई ये तस्वीर इवेग्निजस ने भेजी है.
ये तस्वीर भी इवेग्निजस ने ही भेजी है. वे कहते हैं, "ये सुबह की ओस की बूंदे हैं."
जॉर्जिया के निनोट्समिंडा शहर में ली गई ये तस्वीर बोरिस कर्स्ल्यान ने भेजी है. इस बार इस दक्षिणी देश में ख़ूब सर्दी पड़ी है.
(चित्र वा टिप्णी बी बी सी से अनुसरण)

 

Richa Pandey

दर्द की झोली यूँ ही भारी ना थी
इतनी नमीं थी वहाँ कोई जगह खाली ना थी
खुद से परेशान हूँ आईने से सवाल क्या पूछूं
तूफानों में जीती हूँ वहाँ हरियाली ना थी
ऋचा

 

 

Richa Srivastava

 

दोस्तों..पिछले दिनों मेरे पडोसी पलाश दा मिले।मनमौजी,अलमस्त,शम्मी दी के चिर प्रतीक्षित,चिर प्रेमी,चिर कुंवारे पलाश दा हम सब के प्रिय हैं। कुछ अस्वस्थ से दिख रहे थे,सो हमने इलाज के लिए मुफ्त की सलाह दे डाली। वो बोले."एई दीदी मनी...की बोलून....हमरा इलाज तो दुनियां का कोई डॉक्टर नहीं करने सकता।"हमने पुछा कि ऐसा क्यूँ कह रहे है दा??बोले..ओहो..जब हमारा एक्स रे और ecg रिपोर्ट डॉक्टर देखा तो बेहोश हो गया।"अरे,,वो क्यूँ"?हमने भी बेहद आश्चर्य से पुछा।तो पलाश दा मीठी हंसी हँसते हुए बोले"ओहो दीदी मनी,तुमि ना बुझलम..अरे मेरे हार्ट के एक्स रे में तुमारी शम्मी दी की फोटो प्रिंट होकर निकली..और ecg के ग्राफ में तुम्हारी शम्मी दी का नाम....अब बोलो doctor बिचारा क्या करने सकेगा...हा!हा!हा!.....................
तब से मैं सोच में पड़ी हूँ की ये इश्क की इन्तहा है,या कल्पनाशक्ति की पराकाष्ठा।
आप का क्या ख़याल है दोस्तों???

 

 

Baabusha Kohli

ख़ाक करो हमें तो फिर ख़ाक उड़ा दिया करो...

 

Vandana Gupta

मन
एक प्यासा कुआँ
जिसकी मुँडेर पर
कोई राहगीर नहीं ठहरता अब
बस इसी तरह
कुछ शब्द ठिठके खड़े हैं
ख्यालों की जगत पर
जाने किस बसंत के इंतज़ार में ?
और ठिठुरन है कि बढती ही जाती है अकडाव की हद तक ………………

 

सनातन कालयात्री

बीते सप्ताह का प्रश्न: आप परफेक्शनिस्ट क्यों हैं?
उत्तर: मेरा कोई इष्ट नहीं, मैं नास्तिक हूँ।
प्रतिप्रश्न: नहीं, नहीं... वह नहीं। मेरा मतलब था कि स्माल डिटेल्स पर भी इतना ध्यान, नाइस प्रेजेंटेशन, क्यों?
उत्तर: ऐसा इसलिये है कि मुझे अपनी सीमायें, कमजोरियाँ पता हैं और मैं उन्हें कभी भूलता नहीं। आप जिसकी प्रशंसा कर रहे हैं, वह असल में उन्हें छिपाने का सायास यत्न भर है।
प्रत्युत्तर: यू आर डिफिकल्ट!
________________
�:(

 

Meena Pandey

औरत
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केवल ऊपर वाला
नहीं लिखता
तकदीर औरत की,
नीले आकाश के नीचे भी
लिखी-पढ़ी-बोली
जाती है औरत,
खुली किताब होकर भी
अक्सर
बंद किताबों में
सबसे ज्यादा।
- मीना पाण्डेय

 

 

Shyamal Suman

टूटे हैं कई सपने साकार हो गए
हालात जो भी सामने स्वीकार हो गए
अंजाम सुमन इश्क में गम ही सदा मिले
दौलत समझ के प्यार को बेकार हो गए

 

 

Avinash Das

मैंने तो सर दिया, मगर जल्‍लाद
किसकी गर्दन प यह बवाल पड़ा
ख़ूब रू अब नहीं हैं गंदुम गूं
"मीर" हिंदोस्‍तां में काल पड़ा
[ख़ूबरू = अच्‍छी सूरत वाले, गंदुमगूं = गेहुंआ रंग]