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रविवार, 27 मई 2012

चेहरों की गुफ़्तगू , चेहरों के अफ़साने

 

 

अक्सर दोस्तों को ये कहते देखते सुनता हूं कि फ़ेसबुक ने ब्लॉगिंग का बेडा गर्क करके रख दिया है । ब्लॉगिंग की थमी रफ़्तार के लिए फ़ेसबुक ही जिम्मेदार है आदि आदि । यही सोच कर इस ब्लॉग को बनाया कि , ब्लॉगजगत तक फ़ेसबुक पर कही सुनी जा रही बातों को , साझा किए जा रहे वाक्यों , संदर्भों को ब्लॉगजगत के पाठकों तक पहुंचाया जाए ताकि ये देखा महसूस किया जाए कि क्या सच में ही फ़ेसबुक सिर्फ़ समय की बर्बादी भर है , क्या सच में ही वहां कुछ भी सार्थक , औचित्यपूर्ण नहीं हो रहा है , आइए देखते हैं कि आज वहां मित्र/दोस्त क्या लिख पढ रहे हैं

 

Gyan Dutt Pandey

कल शाम रामबाग स्टेशन गया था। वापसी मे‍ सड़क के किनारे यह गुम्मा सैलून दिखा और उसके पास विज्ञापन - डा. कुमार बवासीर को एक टीके से जड़ से खत्म करते हैं।

डा. कुमार को बायो साइन्सेज मे नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिये। नहीं?

  
     
    • Mahfooz Ali

      गुड मोर्निंग फ्रेन्ड्स... हमारे यहाँ (गोरखपुर में) दो कहावत है...

      १. बाप पदे ना जाने और पूत शंख बजावे (बाप पादना नहीं जानता है और पूत शंख बजा रहा है)

      २. बाप चमार, बेटा दिलीप कुमार.

      यह दो कहावतें बहुत सारे फेसबुकियों और ब्लौगर्ज़ पर बिलकुल फिट बैठती है...(पर्सनल क्सपीरियंस)

      (मैं अपने तानों से बहुत सारे फेसबुकर्ज़ को खो रहा हूँ, पता नहीं क्यूँ लोग यह सोचते हैं कि मैंने उनके लिए लिखा है. थैंक्स गौड.. वो लोग मेरे दोस्त नहीं हैं.)

     

    Pankaj Narayan

    आज फिर से सुबह ने सूरज के लिए दरवाज़ा खोला और मैंने नये दरवाज़ों के लिए अपनी आंखें खोली...

      
     

    Prem Chand Gandhi

    उसका होना भी क्‍या होना है

    जिसे पाना है

    न खोना है

    बस इतना होना है कि

    आंसुओं के झरने में

    ग़म का पैरहन धोना है....

    *'छोटा खयाल' शृंखला से*

      
     

    GK Awadhiya

    मैं यह नहीं कहूँगा कि मैं 1000 बार असफल हुआ, मैं यह कहूँगा कि ऐसे 1000 रास्ते हैं जो आपको असफलता तक पहुँचाते हैं। - थॉमस एडिसन

      
     

      

    अनिल पुसदकर

    पेट्रोल के दाम बढाये जाने के विरोध में मैंने साइकल चलाई.एक ही चक्कर लगाया और नेताओं की तरह फोटो भी खिंचवा ली और फेसबुक मे अपनी दीवार पर पोस्टर की तरह चिपका भी दी.अधिकांश लोगों पसंद भी की लेकिन कुछेक लोगों ने नाराजगी भी जताई.उनका कहना था कि महंगाई मैं तो पेट्रोल गाडी चलाता ही नही तो फिर विरोध क्यों?फिर चार चक्के से सीधे दो चक्के पर आना कुछ जमा नही.मुझे भी लगा की बात तो सही है चार चक्के से सीधे दो चक्के पर आने की बजाय बीच का रास्ता निकाला जाये.अब बीच का रास्ता यानी तीन चक्के की सवारी.या तो आटो या रिक्शा!दोनो ही चलाना अपने बस का नही था.फिर याद आया कि अपने पास तीन चक्के वाली सवारी चलाते हुये एक तस्वीर भी है सो सोचा कि दुनिया भर के पोस्टर हमारी दीवार पर लोग चिपका कर चले जाते हैं तो क्यों ना एक पोस्टर हम खुद अपना भी चिपकाते चलें.लिजिये मज़ा इस पोस्टर का और बताईये कैसा लगा!

       
     

    Satish Saxena

    मुझे याद है ,थपकी देकर,

    माँ अहसास दिलाती थी !

    मधुर गुनगुनाहट सुनकर

    ही,आँख बंद हो जाती थी !

    आज वह लोरी उनके स्वर में, कैसे गायें मेरे गीत !

    कहाँ से ढूँढूँ ,उन यादों को,माँ की याद दिलाते गीत !

      
     

    Ajay Brahmatmaj

    कुछ व्‍यक्ति मिलने के सालों बाद दुख का कारण बनते हें। उनका मुखौटा बहुत मोटा और गहरा होता है। वक्‍त के साथ मुखौटा उतरता है तो घिनौना रूप नजर आता है। कल ऐसा ही कुछ हुआ। बहुत दुखी हूं। क्‍यों मिला और क्‍यों मिलवाया उन्‍हें दोस्‍तों से ? आठ महीने में दो व्‍यक्ति नजरों से गिरे। उन्‍हें सख्‍त चोट आई होगी। बावजूद इन दुखों के विश्‍वास कायम है नए लोगों में।

      
     

    Shambhu Kumar Jha

    शीशा हो तो तोड़ भी देता

    पत्थर दिल को क्या छेड़ूँ

    अपना दिल ही बागी निकला

    पहले उसको तो घेरूँ

    नफरत की दीवार

    खड़ा करने को इतना आतुर हूँ

    घाव की मोती पिरो पिरोकर

    दिनभर उसको ही फेरूँ

       
     

    Kavi Yoginder Moudgil

    aaj ki panktiyan.....

    प्रिंट मीडिया

    हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया

    ख़बरों का संसार

    टीवी या अखबार

    कुछ भी देख लो मेरे यार

    विज्ञापनों ने बदल दी देश की हवा

    एनलार्ज, ब्रेस्ट टोनर, उभार और उभारने की दवा

    विज्ञापनों कि रेल-पेल

    एनर्जिक ३१, सांडा, मस्त कलंदर, जापानी तेल

    इन सबको इतनी मात्रा में इतने विस्तार में

    पढ़ कर लगता है

    देश का पुरुषार्थ कहीं खो गया

    और पूरा देश कहीं हिजड़ा तो नहीं हो गया

    और शायद हो ही गया है

    तभी तो कोई मुंह नहीं खोलता

    भरे चोराहे पर हत्या हो जाये या बलात्कार

    भरे दफ्तर रिश्वत का गरम बाज़ार

    भरे घर में दहेज़ हत्या, भ्रूण हत्या,

    गालियां मंडित अनाचार

    कोई कुछ नहीं बोलता

    कोई कुछ नहीं बोलता

    --योगेन्द्र मौदगिल

        
     

    Padm Singh

    एक क्लासिकल भजन सुन रहा था.... "मनमोहना बड़े झूठे"

    .....अब तक कनफ्यूज़ हूँ ये भजन किसके लिए लिखा गया है ?

      
     

    श्याम कोरी 'उदय'

    कलम मेरी 'उदय', उन मगरुरों के लिए नहीं चलती

    सच ! जो, खुद को कलम के देवता समझते हैं !!

      
       
      • डॉ. सरोज गुप्ता

        जल जलकर आज भी वैसे ही पिघलता है मोम ,

        तुमने पत्थर को पिघलाने के लिए तिल्ली जलाई होगी !

        सुप्रभात !

        
       

      Rajiv Taneja

      बछिया मेरी..सुबह शाम रोती है गाँव में

      चरते चरते छाला जो पड़ गया....पाँव में

        
       

      Vipin Rathore

      पेट्रोल पम्प पर नोटिस बोर्ड:

      डर तो सबको लगता है, लेकिन डर के आगे जीत है! आइये और कार में पेट्रोल डलवाईए!

        
       

      Kajal Kumar

      अब फ़ि‍क्‍सरों को साल भर का आराम...

        
       

      पी के शर्मा

      आजकल खबरें आ रही हैं कि..... मंगल पर पानी था......आगे आने वाले समय में आने वाली खबरें होंगी..... पृथ्‍वी पर पानी था...

         
       

      Yagyesh Mani Tripathi

      चेन्नई वाले यह सोचकर मैच हार गए की जीतने वाली टीम को जो कार मिलेगी वो 'पेट्रोल कार' है ...

      शायद धोनी भी अंतिम ओवर में ब्रावो को यही समझा रहे थे.... :P

        
       

      Options

      रजनीश के झा

      शाहरुख़ खान की धमकी काम आई, इस बार के के आर चैम्पियन नहीं बनेगा तो मैं आई पी एल की अपनी टीम बेच दूंगा ;-)

        
       

      Vineet Kumar

      आजतक शाहरुख की तारीफ में ऐसे लोट रहा है,मानो ये रन शाहरुख ने ही बनाए हों. खिलाड़ियों पर कोई बात नहीं हो रही. आइपीएल ने क्रिकेट को मालिक प्रधान बना दिया है, खिलाड़ी टट हो गया है. शाहरुख की टीटीएम,ताबड तोड़ तेल मालिश शुरु..

        
       

      चंदन भारत

      जो चीजें घरों में रहती थी वो अब हर चीज अब बाजारू है

      पहले बाजारों में दूध बिकता था अब गली गली में दारु है|

        
       

      Vk Shekhar

      सोचने से कोई राह मिलती नहीं

      चल दिए हैं तो रस्ते निकलने लगे

        
       

      Grijesh Kumar

      तू ही था जिसपर मुझे नाजिश था कभी

      आज तेरे ख्याल भी खामोश फीके हैं

        
       

      Neeraj Badhwar

      अच्छा होता अगर मुम्बई में अपने ख़राब बर्ताव के साथ-साथ शाहरुख रा वन के लिए लोगों से माफी मांग लेते!

        
       

      धीरेन्द्र अस्थाना

      हर साँस पे आती थी याद, उसकी हंसीं अदा !

      मालूम न था के तन्हाईयों में खंजर बनेंगीं !!

      शनिवार, 12 मई 2012

      हर चेहरा कुछ कहता है








      मैं बहुत कुछ लिखना चाहता हूं, मगर कमजोरी...वह स्‍थायी थकावट, जो मेरे ऊपर तारी रहती है, कुछ करने नहीं देती। अगर मुझे थोड़ा-सा सुकून भी हासिल हो, तो मैं वो बिखरे हुए खयालात जमा कर सकता हूं, जो बरसात के पतंगों की तरह उड़ते रहते हैं, मगर...अगर...अगर करते ही किसी रोज मर जाउंगा और आप भी यह कहकर खामोश हो जाएंगे, मंटो मर गया।...मंटो तो मर गया, सही है... मगर अफसोस इस बात का है कि मंटो के यह खयालात भी मर जाएंगे, जो उसके दिमाग में महफूज हैं।
      --मंटो ने अहमद नदीम कासिमी को 12 फरवरी, 1938 को एक ख़त में लिखा।



      सूरत बदल गई पर दिल तो वही पुराना,
      हम तो समझ रहे पर नासमझ ज़माना !
       



      एक बड़ा तबका निजी और समाजिक जीवन में तमाम सफलताओं के बावजूद इस बात को लेकर दुखी रहता है कि वो जो बनना चाहता था वो बन नही पाया .
       
       



      कद्रदान मुझ जैसे मिला हो कोई तो बताओ ?
      कद मेरा तुमसे पहले न बड़ा था ,न बड़ा है !
      सुप्रभात !
       

      • विवेक और बुद्धि के अभाव में नेता कुछ भी कर सकते हैं......... 
       
       
      किस्मत का हाल भी है तेरी जुल्फ के जैसा

      अपनी कोशिशों से तो बस ये उलझा ही करे


      रिश्तों के बदले सीन, हीर मिले मजनूं से

      और लैला से मुलाकात तो अब रांझा ही करे


      दारु मिल जाये उसे, तो खेंच ले अकेला ही

      दुख हों अगर पास, तो उनको वो सांझा ही करे


      एयर इंडिया का पायलेट है या सुब्रहण्यम स्वामी

      जो मिल जाये उसे, उससे वो जूझा ही करे


      दूर रहना आलोक से, खतरनाक से हैं

      उन्हे तो रोज ही खुराफात सूझा ही करे


      इश्क की पहेली के हल होते ही नहीं

      जो भी बूझे, उम्र भर बूझा ही करे
       
      आदमी विज्ञापन ,
      आदमी इंटरनेट ,
      आदमी है घोटाला
      आदमी कुछ नहीं साइबर का एक शोला
      नाचता , हांफता , दौड़ता सा आदमी
      निरंतर बैचेन , बेलिहाज़
      अब पूंजी में बदल गया है आदमी
      चंचल पूंजी ...
      हर समय अस्थिर ...
      न जाने हम कि अब क्या है आदमी
      हमारी पकड़ से तो अब बाहर है आदमी
      आदमी है एक पहेली
      वो न सुलझी है न सुलझा है आदमी |
       
       

      • कभी कभी ये नादान शब्दों के घेरे हमारे जज्बातों को समेट नहीं पाते, ये एहसास यूँ ही बारिश के रंग में घुलकर बहते रहते हैं इन गलियारों में... जाने क्यूँ अचानक से इस बारिश में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, जैसे ऑक्सीजन इन पानियों में भीगकर कुछ और ही बन गया है...
         

        दोस्तो ! इस बार गर्मियों की छुट्टियों में कहां जाना चाहिये ? ज़रा मशवरा दीजिए ।

      तारो के तेज में चन्द्र छिपे नहीं

      सूरज छिपे नहीं बादल छायो

      चंचल नार के नैन छिपे नहीं

      प्रीत छिपे नहीं पीठ दिखायो

      रण पड़े राजपूत छिपे नहीं

      दाता छिपे नहीं मंगन आयो

      कवि गंग कहे सुनो शाह अकबर

      कर्म छिपे नहीं भभूत लगायो।


      कवि गंग
      चिलचिलाती धुप
      सुलगती जमीन
      और आग उगलता आसमान
      ऐसे ठीक दुपहरिया में
      किसी वीराने में जाकर
      एकदम से मस्त होकर
      सुहानी मौसम का आनंद महसुसना
      कितना मनमोहक
      बोलो भला
      पगला गया है क्या
      मरने का उपाय सुझा रहे हो का

      हे हे
      दिखावे पे ना जाओ
      अपनी अकल लगाओ
       
       
       

      ‎... मूलत: यह मातृत्त्व से घृणा है जो कि पुरुष के प्रति अभिव्यक्त होती है। - समझावन साव के एक गम्भीर आलेख की अंतिम पंक्ति।
       

      एक उम्र जीती है हमने .....एक उम्र हार के ..। ;)
       

      जरा सोचिए......देश के भविष्य का वास्ता देकर एक नारा दिया गया था ...... दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे । इस पर देश वासियों ने अमल किया भी, नहीं भी । कारण कुछ भी रहे हों, तीन बच्चे... अच्छे होते तो थे.... पर घर में, सफर में नहीं । अब नारा देने वालों ने मुसीबत कम करने में मदद की और दूसरा सीधा सपाट सा नारा ठोंक दिया... हम दो, हमारे दो । जी हां, हम दो, हमारे दो । इसके बाद, चैन से सो...हरकत बंद, तीसरे पर प्रतिबंध । यह नारा कुछ ठीक लगा । सफर में रंग रहे । दो बच्चों का संग रहे । मियां बीवी के गिले शिकवे समाप्त । परिवार की इस मिली-जुली उपलब्धि को फिफ्टी-फिफ्टी बांट कर चलो मजे से, सफर हो या सैर सपाटा । परिवार, न बढ़ा, न घटा । जनसंख्या भी जहां की तहां । मगर मेरे देश के लल्लुओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी और बड़े परिवार को संभालने में चारा तक खा गये । नतीजा..... नारा, न रहा ।
       

      आमिर ख़ान के साथ 'दिल पे लगी और बात बनी' सुनिए। सभी हिंदी भाषी राज्‍यों में अभी ग्‍यारह बजे से। ये कार्यक्रम टीवी शो सत्‍यमेव जयते का फॉलोअप है। अगर अभी चूक जायें तो विविध भारती पर दिन में साढ़े तीन बजे सुनिएगा।



      मैंने यहाँ कोई एक बात लिखी..उसी आशय की कोई बात किसी और ने कही दूसरी जगह पढ़ी ..उसने कहा ..कि उसने तो ये बात कही और पढ़ी ..ये आपकी नहीं है जब कि मैंने कही से पढ़ के नहीं लिखी थी..जानती हूँ कि मै अपनी जगह पे सही हूँ.फिर भी सवाल ये है कि --- एक ही विचार/बात क्या दो लोगो के दिमाग में नहीं आ सकती ?

      एक पुरानी, घिसी-पिटी कहानी को नए अंदाज में किस तरह कहा जा सकता है, निर्देशक हबीब फैज़ल ने 'इशकजादे' में इसी कौशल को दिखाया है। फिल्म में किलो के भाव में गोलियां चली हैं, लेकिन मुंबइयां फिल्मों की तरह इन गोलियों के अंधड़ में मरता एक भी नहीं है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर को केंद्र में रखकर लिखी इस कहानी में पुलिस नाम की चिड़िया दूर दूर तक नहीं दिखायी देती। लेकिन, पर्दे पर जो भी दिखायी देता है, उसे भरोसे लायक बनाने में अर्जुन कपूर और परिणिती चोपड़ा ने शिद्दत से कोशिश की है। फिल्म पैसा वसूल है, लेकिन बच्चों को न दिखाएं तो बेहतर है :-)



      आज शाम को जबरदस्त गोलगप्पा पार्टी होगा..... घर में ही बनेगा और फ़िर नो लिमिट का गैरैन्टी.... :-)


      जब कोई पूरे होशो-हवास में यह कह रहा हो कि फ़लां को फ़लां अपराध के लिए सरे-आम गोली मार देनी चाहिए, फ़ांसी पर लटका देना चाहिए, सामाजिक बहिष्कार कर देना चाहिए......तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि वह फ़ासीवादी-तालिबानी मानसिकता का अहंकारी व्यक्ति है और लोकतंत्र और उदारता का चोला उसने किसी मजबूरी या रणनीति के तहत पहन रखा है। अपनी बात को अंतिम सत्य मानने वाले ऐसे किसी समूह के हाथ में सत्ता दे देने का मतलब है कि भविष्य में आप भ्रष्टाचार या अन्य किसी बुराई की अपनी तरह से व्याख्या करने की स्वतंत्रता भी खो देने वाले हैं।


      शंकर ने एक कार्टून बनाया जब अम्बेडकर और नेहरु दोनों ज़िंदा थे. मुझे पूरा यकीन है कि इन दोनों ने इस कार्टून को पसंद किया होगा. मगर इस पर ही दलित राजनीति शुरू हो गई. सरकार ने तुरंत माफी मांग ली. किताब से हटा दो, यह फतवा भी इशु हो गया. कल संसद में जो हुआ उस पर ही एक कार्टून बनना चाहिए.



      हँसी आती है मुझे तेरी हर बात से
      बेतुकी जो होती हमेशा शुरुआत से


      इश्क में दिल सबसे ज्यादा संक्रमित होता है इसलिए डिटोल का इस्तेमाल अवश्य करें...



      • खुद को जानना सबसे कठिन काम होता है. आदमी अपना चेहरा कभी नहीं देख पाता, अगर आइना, पानी, कैमरा या ऐसी ही चेहरा दिखाने वाली दूसरी वस्तुएँ इस दुनिया में ना हों तो.
        हम खुद में क्या सोचते हैं, ये हमीं जानते हैं, पर हमारे दूसरों के प्रति व्यवहार का आकलन दूसरे लोग ही ज्यादा ठीक से कर पाते हैं.