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शनिवार, 21 सितंबर 2013

हर चेहरा कुछ कहता है …….

 

 

    • कि‍सी अनंतमूर्ति‍ ने कहा कि‍ लोकतंत्र के डर से वह देश छोड़ देगा.
      आपको क्‍या लगता है ? कि‍ वो सचमुच चला जाएगा (?)
      यदि‍ हॉं तो like दबाऐं
      यदि‍ नहीं तो comment दि‍खाएं
      यदि‍ गीदड़भभकी है तो share चटकाएं
      यदि‍ बुद्धीजीवी बन रहा है तो kick लगाऐं (लेकि‍न ज़ुकरबर्ग ये ऑप्शन कब लाएगा रे)
     

     

      • Priyanka Rathore
        समझ सके तो समझ ज़िन्दगी की उलझन को
        सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं.............
        जाँ निसार अख़्तर
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      • Pushkar Pushp
        मुजफ्फरनगर दंगे का असर अब वहां की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है। इस कड़ी में 'चीनी उद्योग' पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। क्योंकि जाट और मुस्लिम दोनों ही मुजफ्फरनगर चीनी उद्योग के लिए बेहद अहम् है। जाट लोगों के पास जमीन है तो मुस्लिम लोगों के पास श्रम शक्ति। अब यदि पलायन कर गयी मुस्लिम आबादी वापस नही लौटती है तो वहां के चीनी उद्योग की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। अर्थव्यवस्था हिन्दू - मुस्लिम में भेद नहीं करती लेकिन राजनीतिज्ञ .............
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      • Ratan Singh Bhagatpura
        समय के साथ सामंतवाद ने भी अपना रूप बदल लिया पहले शासक का बेटा वंशानुगत आधार पर शासक बनता था,
        अब जनता शासक नेताओं के वंशजों को चुनकर शासन सौंपती है मतलब अब सामंतवाद ने लोकतांत्रिक रूप धारण कर लिया !!
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      • Sonali Bose
        चांदनी उतारी है आज खुश्क कलम में, निगाहोँ में ढाला है आसमानी नूर
        हर हर्फ़ में ज़ाहिर है तुम्हारी ही चाहत, आज लिखती हूँ पूरी क़ायनात में तुम्हेँ
        ........सोनाली......
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      • निरुपमा सिंह
        छाया बन के बादल कि दरिया उमड़ पड़ा
        मैं बहती चली गई .. वो समंदर हो गया !!
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      • Piyush Pandey
        लंच बॉक्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली ख्याति ऑस्कर में उसका दावा मजबूत कर सकती थी लेकिन भारत की तरफ ऑस्कर में नामांकन गुजराती फिल्म द गुड रोड को मिला है। द गुड रोड भी शानदार फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है लेकिन लंच बॉक्स को भेजा जाना चाहिए था। अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में इरफान की पहचान भी फिल्म के लिए मददगार हो सकती थी। लेकिन, इस बार बड़ी गलती हुई है
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        • Vaibhav Kant Adarsh
          फिल्म "शोले" रमेश सिप्पी और जावेद-सलीम से
          पूछना चाहूँगा जब रामगढ़ गाँव में
          बिजली नहीं थी तो पानी टंकी में पानी कैसे भरते थे
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        • Mukesh Kumar Sinha
          रिश्ते रिस-रिस कर दर्द देते हैं.........
          ____________________________
          उफ़्फ़!! ए जिंदगी !! क्यों नखरे करती हो...................
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        • Rashmi Mishra
          सौरमंडल मे सूर्य तो एक ही जगह स्थित है, घूमती तो पृथ्वी है. और जब धरती सूरज से मुख फेरती है तो उस ओर अँधेरा होता है.
          उसी प्रकार जब हम 'उससे'* मुह फेरते हैं तभी हमारे जीवन मे अन्धकार होता है...!
          ( उससे* , यानी परमात्मा, ईश्वर, खुदा आदि... परमात्मा के रूप और भी हैं, आप जो माने... 'तुझमे रब दीखता है , यारा मैं क्या करूँ..' एक ये भी सही....)
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        • अरुण अरोरा
          ऑस्कर के लिए भेजी गई गुजराती फिल्म 'द गुड रोड' | '
          सेकुलरो ने नाराजगी दिखाते हुए देश छोड़कर जाने की धमकी दी
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        • Gyan Dutt Pandey
          सवा करोड़ में कश्मीर सरकार गिराई जा सकती है तो नुक्कड़ के मशहूर दक्खीलाल कचौड़ीवाले अमरीका सरकार गिरा सकते होंगे।
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        • Amitabh Meet
          चाचा आज भोरे भोरे कहिन हैं :
          "हो गई है ग़ैर की शीरीं बयानी, कारगर
          इश्क़ का उस को गुमाँ हम बेज़बानों पर नहीं"
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        • Geetam Shrivastava
          अपना फोटो लगाके लोग 40 लोगों को क्यों टैग करते हैं समझ नहीं आता.
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        • श्याम कोरी 'उदय'
          उफ़ ! गुमशुदगी दर्ज करा दी है किसी ने.. हमारे नाम की
          सिर्फ हुआ इत्ता कि हम तपते बदन बाहर नहीं निकले ?
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        • Vineet Kumar
          तुम्हारी मां की बड़ी याद आती है शांतनु..उर्मि जब मोबाइल पर शांतनु से बात कर रही थी तो लग रहा था, अब रो देगी..पास अगर शांतनु होता तो पक्का रुला देता..वो बस इतना कहता- देख,देख..अब रोई उर्मि. अब रुकेगी नहीं और उर्मि पहले तो गला दबा दूंगी तेरा कहती और फिर सचमुच रोने लग जाती. लेकिन
          पिछले चार दिनों से मुंबई में फंसा शांतनु फोन पर ऐसा नहीं कर सकता था.उसने पलटकर पूछा- तेरी सास तुझे याद आ रही है और मैं नहीं ?
          शांतनु, सच कहूं..तुम जब भी मुझसे दूर होते हो, तुम्हें मिस्स तो करती हूं लेकिन मांजी की बहुत याद आती है. तुम्हारा कहीं जाना होता कि इसके पांच-सात दिन पहले से मेरे साथ होती. इस बीच तुम कब चले जाते, बहुत पता नहीं चलता. रात होते अपने कमरे में जाती तो देखती कि उन्होंने ऑलआउट लिक्विड हटाकर मच्छरदानी लगा दी है और फिर..आ उर्मि, जरा मूव लगा दूं, घंटों कम्पूटर पर आंख गड़ाए बैठी रहती है.
          अच्छा तो सासू मां की याद इसलिए ज्यादा आती है कि वो सेवा-सत्कार करती थी...सेवा-सत्कार वैसे मैं भी तो कम नहीं करता..सेल्फिश उर्मि..सेल्फिश,सेल्फिश......
        • मंगलवार, 17 सितंबर 2013

          फ़ेसबुक पर आजकल





        • Ranjana Singh
          आयं पिरिया मैडम, ई जो राते दिने भोरे भिनसारे 24*7,सवा सौ करोड़ जनता तक हक़ पहुँचाऊ प्रोजेक्ट में भाई लोग आपको रगेदे हुए हैं, "पांच सौ करोड़ के इमेज बिल्डिंग कॉन्ट्रैक्ट" में से आपको आपका वाजिब हक़ दिया है कि नहीं उन्होंने ??
          देख लीजिये, न दिया हो तो आप अपना हक़ लीजियेगा जरूर..

        • अरुण अरोरा
          राहुल ने हड़ौती क्षेत्र में कहा कि गरीबी के पीछे सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी नहीं वरन निरंतर बीमारी है। गांधी ने कहा कि मजदूरों से पूछिए कि वे इलाज पर कितना खर्च करते हैं। कांग्रेस इस समस्या को पूरी तरह से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है आने वाले सालो में हम आपको रोटी देंगे लेकिन रोजगार नहीं ... ना आपके पास इलाज करने का पैसा होगा ना आप बीमार .. क्योकि बीमारी केवल मानसिक स्थिती है ......
        • Sangita Puri
          मानव जब जंगल में रहते थे , उस समय भी उनकी जन्मपत्री बनायी जाती , तो वैसी ही बनती , जैसी आज के युग में बनती है। वही बारह खानें होते , उन्हीं खानों में सभी ग्रहों की स्थिति होती , विंशोत्तरी के अनुसार दशाकाल का गणित भी वही होता , जैसा अभी होता है। आज भी अमेरिका जैसे उन्नत देश तथा अफ्रीका जैसे पिछड़े देश में लोगों की जन्मपत्र एक जैसी बनती है। लेकिन क्‍या उन जन्‍मपत्रियों को हर वक्‍त एक ढंग से पढा जा सकता है ??

        • Isht Deo Sankrityaayan
          बिलकुल ठीक कह रहे हैं जेठमलानी. केवल आसाराम की पीड़िता ही नहीं, वसंत विहार वाली और यहां तक कि वह 5 साल की वह बच्ची भी मानसिक रोगी थी जो हैवानियत की शिकार हुई. अव्वल तो वो सभी बच्चियां-लड़कियां-स्त्रियां मानसिक रोगी ही हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ की शिकार हुईं या हो रही हैं या होंगी. मानसिक रूप से सबसे ज़्यादा स्वस्थ वही लोग हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ जैसे महान कार्य करते हैं. जेठमलानी तो पता नहीं साबित कर पाएंगे या नहीं, मुजफ्फरनगर गए माननीयों ने इसे साबित भी कर दिखाया

        • Baabusha Kohli
          आ ! मैं अपनी साँसों से तेरे लिए उमर बुन दूँ. सूरज मुझको ला दे साजन, अपने माथे पर जड़ लूँ...
          [मौत से डरी लड़की का बयान]

          • Dipak Mashal
            आज फिर हमारे अंधे क़ानून को असाम के पाँच अवयस्कों ने सामूहिक रूप से मुँह चिढ़ाया। इन जन्मजात शैतानों ने दुष्कर्म के लिए फिर एक दस साल की बच्ची को निशाना बनाया।
            जहाँ के युवा सेक्स को 'शुद्ध देसी रोमांस' और विकृत मानसिकता दिखाने को 'ग्रैंड मस्ती' मानने लगे हों, जहाँ माँ-बाप पर बनने वाले अश्लील चुटकुलों का दखल सुपरहिट फिल्मों तक में हो गया हो, वहाँ की असलियत के बारे में अंदाज़ा लगाने की जरूरत ही नहीं क्योंकि उस समाज का आइना ही उनकी सूरत दिखा रहा है।
            जहाँ के युवा आधुनिकता के नाम पर अपने कोटों में पश्चिम के लोफर और बिगडैल युवाओं की असभ्यताओं की जेबें जोड़ने को आमादा हों, वहाँ क्या उम्मीद करें और कैसे? ये तक नहीं सोचते कि जहाँ के जैसा वो बनना चाहते हैं वहाँ भी सभ्य समाज में वह सब मान्य नहीं जो वो सीख रहे हैं।
            मैंने पहले भी कहा था और फिर कह रहा हूँ कि दिल्ली में हाल ही में फाँसी की सजा सुनाये गए दरिंदों के रोने-कलपने और जिंदगी के लिए गिड़गिड़ाने की फुटेज बनाई जावें और इन अपराधों के परिणाम से डराने के लिए विभिन्न चैनलों पर इन्हें विज्ञापनों की तरह चलाया जावे। हो सकता है कोई फर्क पड़े। माइनरों पर नया क़ानून तो ये लोग बनाने से रहे, क्योंकि माइन और माइनरों से सरकार को बड़ा लगाव है।


          • Manish Seth
            इश्क के नशे में डूबा...............तो ये जाना....
            इश्क में पिट जाओ तो किसी को ना बताना....:)))))

          • Shekhar Suman
            आप सभी को विश्वकर्मा जयन्ती की शुभकामनाएँ... असली इंजीनियर डे तो आज है जी... मेरा निक नेम भी इन्हीं इंजीनियर के नाम पर पड़ा था....


          • अंजू शर्मा
            काश कुछ इलाज़ कर पाती इन जेठमलानियों जैसों की मानसिक बीमारी का.....मैं भी उन हजारों लाखों करोड़ों महिलाओं जितनी ही बेबस हूँ जो सिर्फ घृणा से थूक सकती हैं पर कुछ कर नहीं सकती....


          • Hareprakash Upadhyay
            क्या एक जातिहीन और नास्तिक समाज हमारे वर्तमान समाज से बेहतर नहीं होगा? यह मेरी एक सहज जिज्ञासा है, जिसका उत्तर मैं अपने सभी सुधी मित्रों से जानना चाहता हूँ। अगर आपको लगता है कि जातिहीन और नास्तिक समाज ज्यादा श्रेयस्कर है, तो उस दिशा में किस तरह बढ़ा जा सकता है- कृपया व्यावहारिक सुझाव दें।


          • Harish Sharma
            कुछ उजाले की चकाचौंध से डरते हैं,
            कुछ अँधेरे में परछायिओं से डरते हैं,
            हम भी हैं तनहा अपनी रहबर निहारते,
            पर जाने क्यूँ आपकी अंगडायिओं से डरते हैं !
            कुछ को ख्वाब देख के जीने की आदत है,
            कुछ को मैखाने में पीने की आदत है ,
            हम हैं परेशां दीवानापन की आदतों से,
            पर जाने क्यों शादी की शहनाईयों से डरते हैं!!
            इंतजार कर रहा हूँ जुश्तजू जो है ,
            इज़हार भले ही न करूँ आरज़ू तो है ,
            कुछ मोहबत में किस्से सुने हैं ऐसे ,
            हम अभी से आपकी तनहायिओ से डरते हैं !!


          • Deepa Sharma
            राहुल के भाषण का इंतज़ार
            12 पार्टियां कर रही है
            लेकिन......
            राहुल का भाषण देना
            मुस्किल ही नहीं नामुमकिन है


          • Era Tak
            आपके बोले हुए शब्द ...फिर आप तक वापस आयेंगे इसलिए हमेशा अच्छा और मीठा बोलें ~ET~ _/\_


          • Ajay Singh Sishodiya
            मुझे आज भी याद है ..जब मै पहली बार हाई स्कूल जाने के लिये बड़ी ही उत्सुक था ...आपस मे दोस्तो के साथ चर्चाये गर्म थी ....तब मेरे बाबूजी ने एक ही बात कही ......'अब बाहर की दुनिया देखोगे, पर याद रखना घर मे तुम्हारी भी बहने है और बाप का सम्मान' ! उस समय इन बातो का अर्थ नहीं समझ पाया था ...पर आज यही मेरा सबक है .....और गुरुमंत्र भी ! अजय'शिशोदिया'


            • Ajit Gupta
              एक बात बताए कि किसान हमें रोटी देता है या हम किसान को रोटी देते है?


            • Vm Bechain
              कुछ भी शांत नही है ,,
              न देश,
              ,न सियासत,
              , न दिल
              , न दिमाग,
              ,न धडकन
              और
              न ही मन,
              ,,,,,,,,,,एक अजीब सी बेचैनी ने घेर रखा है,,
              ,,मुझे और मेरे वतन को,,,,
              ,,,,राम जाने कब,,,,,शकुन नसीब होगा,,,,,,,,,,,ऐसे थोड़े होता है ,,,,,,,,,,,,,,,?


            • अजय कुमार झा
              खडी खबड : दंगा इतना बडा था और दिल्ली को बताया तक नही : पी एम
              कम से कम बता देते तो मैं ये तो कह देता : ठीक है
            • शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

              चेहरों का फ़ैसला ………

               

                Photo: 13th SEPT.,2013, INDIA KESARI ME PRAKASHIT YE MUKTAK YADI AAPKE MAN KI BHI AWAAZ HAI TO PL APNE VICHAAR ZAROOR DIJIYE - DINESH RAGHUVANSHI - 09811139028 FARIDABAD
                आज सुबह जब मैंने फ़ेसबुक पर मित्रों से पूछा
                आज दिल्ली बलात्कार कांड पर आरोपियों की सज़ा का निर्णय आ सकता है । मौजूदा कानूनों के अनुसार चारों को ही " मृत्युदंड या आजीवन कारावास" में से कोई एक सज़ा सुनाई जाएगी । मैं आप सबसे सिर्फ़ एक सज़ा चुनने को कहूंगा और ये भी कि सिर्फ़ यही सज़ा क्यूं । शाम को , इन्हें सुनाई गई सज़ा और उसका प्रभाव और जो सज़ा इन्हें नहीं दी गई , दोनों पर एक कानूनी पोस्ट लिखूंगा , मैं यहां आप सबकी राय भी लेना चाहता हूं ............आप देंगे न
                • Bhavesh Kumar Jha bhai inko baizzat bari kar do public dekj legi

                        Raja Kumarendra Singh Sengar
                        फाँसी देने से अपराधियों को उनके कुकृत्य की सही सजा नहीं मिलेगी.....आजीवन कारावास हो ताकि वे पूरी उम्र अपने दुष्कर्म को याद कर अपने हश्र को देख, महसूस कर सकें...

                      • Vipin Mehrotra
                        Life sentence because themain perpetrator of crime is going virtually scot free.

                              Shivam Misra
                              मैं कोई कानूनी जानकार नहीं हूँ पर मेरी राय मे मृत्युदंड से कुछ भी कम सज़ा देना इस तरह के अपराधियों के हौसले बुलंद करना होगा ! जेल मे वो क़ैद मे तो रहेंगे पर मौज मे रहेंगे ... अपने यहाँ की जेलों मे जिस तरह का माहौल है वो छिपा नहीं है ... पैसे के दम पर सज़ा हाल मज़ा बन जाती है !

                            • Dinesh Raghuvanshi
                              AJAY JI, MAINE APNE WALL PAR JO LIKHA HAI VO ZAROOR DEKHNA SIR

                            • Ramkumar Kumar
                              No jail no death.. Hath pavan kaat do aur chhod to mathe pe likh ke ............. Main. B...... Ri hun. Agr koi eske baad himat kr le to..

                                    Amit Kumar Srivastava
                                    सिर्फ और सिर्फ 'मृत्यु दंड'
                                    कारण ----जब कोई बलात्कार की घटना होती है तब संजीदे व्यक्ति के मन में तुरंत यह ख्याल आता है ,ऐसा उसकी बहन,बेटी , पत्नी, बहु के साथ भी हो सकता है और इस कल्पना मात्र से ही वह भयभीत और उससे उपजे क्रोध से विचलित / पागल सा हो जाता है । पीड़ित के विषय में घटना का नाट्य क्रम जानकार बस बेबस सा हो जाता है और तुरंत यही इच्छा होती है कि बलात्कारी को जान से मार दिया जाए । जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी ऐसे अपराधी को जान से मार देना चाहिए तभी लोगो का नज़रिया बदल सकता है ,अपराधियों का भी और जनता का भी । आजीवन कारावास पाए हुए ,जीवित अपराधी के प्रति धीरे धीरे कहीं न कहीं ऐसा माहौल बनने लगता है ,समय के साथ ,कि उसे सहानुभूति मिलने लगती है । जबकि ऐसे अपराधी के प्रति किसी भी प्रकार की दया दिखाने वाले को भी सजा दी जानी चाहिए ।
                                    "एक अलिखित व्यवस्था ऐसी भी होनी चाहिए कि ऐसे मामलों में कोई भी वकील इन अपराधियों की ओर से इनकी पैरवी न करे "।

                                    Pradeep Nagar
                                    हाथ पाँव काटने या नपुंसक करने की सजा अभी यहाँ नही है। । ।उम्रकैद देने से भी उनको तो सही सजा मिलेगी लेकिन बाकी समाज में सही सन्देश नही जायेगा । । क्यूंकि इस तरह के अपराध में सजा होने में सालो लगते थे । तो सबको ये ही लगता था के अगर रहने की बात है तो जेल में भी रह लेंगे । । और ये ही बात उम्रकैद में है क्यूंकि कोई कितना भी अपंग हो या कैद में हो जीना चाहता है और मेरे हिसाब से इन अपराधियों से जीने का अधिकार ही छीन लिया जाये । । तो मृत्युदंड

                                  • Shah Nawaz
                                    मृत्यु दंड, क्योंकि यह उस लड़की के साथ न्याय होगा!
                                      • Kamlesh Kumar
                                        मृत्यु दंड ही क्यों ? क्या इस से बड़ी सजा नहीं सोची जा सकती ?
                                        Kamlesh Kumar
                                        मेरे सोच के हिसाब से सर मुंडबा के हल्दी चुना और कालिख लगा के जूतें की माला पहना के गधे पर बीठा के एक सहर में घुमाया जय अगर बच गया तो दुसरे सहर में |

                                        Suresh Kumar
                                        sajaye maut Ajay ji ....
                                        q ki esse jo ensaan ke roop me darinde hain unke man me kuch to dar paida hoga.

                                        Nivedita Srivastava
                                        सिर्फ मृत्यु दंड ...... क्योंकि ऐसा करने से किसी और को ऐसी हरकत करने का साहस नहीं होगा और न्याय व्यवस्था पर भी विश्वास बहाल होगा ...... इसमें भी मैं विशेषकर नाबालिग मान कर कम सजा पाए को तडपा - तडपा कर ....

                                        Sumit Saxena
                                        मेरा मानना है कि इन चारो को बीच चौराहे पर लटकाकर गोली मार देनी चाहिए जिससे कि जो देखे वह भी एक बार गलत काम करने से सोंच में पड़ जायेगा

                                        Ranjana Singh
                                        ऐसों को दिए जाने लायक सजा का प्रावधान अपने देश की संविधान में है ही नहीं

                                        Darshan Kaur Dhanoe
                                        मृत्युदंड XXXXX

                                        Pooja Singh
                                        mrityudand... kyunki ye ajiwan karawas me to ye log aish karte hain....free me khana, free me rahna... aur jo aise darinde hain unhe koi pachhtawa kabhi nahi hoga...

                                        Harish Sharma
                                        Aisi saja jo ouro ke liye bhi sabak ban jay - inhe beech chourahe par gaad kar aam public se pitwa pitwa kar marva do.

                                        Pallavi Saxena
                                        bilkul denge ji aap likhiye to sahi ...

                                        Shikha Varshney
                                        life imprisonment till death... (उम्र कैद बा मुशक्कत) फांसी तो मुक्ति है.

                                        निन्दक नियरे राखिये
                                        मृत्युदंड छोड़कर कुछ भी. सीधी बात! जो जीवन दे नहीं सकता, वो जीवन ले भी नहीं सकता

                                        इन प्रतिक्रियाओं के अलावा इसी फ़ैसले के बाद और पहले आई और प्रतिक्रियाएं कुछ यूं रहीं


                                  • Vineet Kumar
                                    मैं ऐसे दर्जनों न्यायप्रिय चेहरे को दानता हूं दो स्त्री आवाज को कुचलने का कोई मौका नहीं छोडते लेकिन बात-बात पर फांसी से कम तो न्याय ही नहीं लगता

                                  • दिनेशराय द्विवेदी
                                    अभी देश में यह मुद्दा है ही नहीं कि फाँसी की सजा दंडसूची में होनी चाहिए या नहीं। अभी तो वह सर्वोच्च दंड है। इस मामले में इस से कम दिया नहीं जा सकता था। इस कारण जो हुआ वह ठीक है। मुझे लगता है कि अभी जो परिस्थितियाँ हैं उन में फाँसी के दण्ड को दण्ड सूची से हटाना मुद्दआ नहीं बन सकता। अभी तो समाज खुद कितना न्यायपूर्ण है? जब समाज एक स्तर तक न्यायपूर्ण होगा तो फाँसी की सजा को दण्ड सूची से हटाना मुद्दआ बन सकता है औऱ उसे वहाँ से हटाया भी जा सकता है।

                                  • Avinash Chandra
                                    आज सभी देश की न्याय प्रणाली की गौरव गाथा गा रहे हैं। कोई कह रहा है अब भी देश में कानून जिंदा है, कोई कहता है देश में कानून निष्पक्ष है...
                                    कुछ दिनों पहले नाबालिक बलात्कारी को बाल सुधार गृह भेजे जाने के निर्णय पर यही लोग देश की न्यायिक प्रणाली पर लानत भेज रहे थे???


                                  • Ghughuti Basuti
                                    ओह, निर्भया के अपराधियो, तुमने उसे ही नहीं थोड़ा हमें व हमारी आत्मा को भी मारा है। तुम्हें फाँसी की सजा मिलने पर हमारा संतुष्ट होना यही सिद्ध करता है। तुम हम सबके भी अपराधी हो। काश, तुमने मनुष्य योनि में जन्म न लिया होता। काश, किसी स्त्री ने तुम्हें अपने गर्भ में न पाला होता। तुम मॉन्स्टर किसी स्त्री के पुत्र, भाई, पति या पिता न होते। ताकि कोई स्त्री तुम्हारा पक्ष लेकर और तुम्हारे लिए टसुए बहाकर स्त्री जाति को और अधिक क्षोभ और लज्जा का पात्र न बनाती।

                                  • Mukesh Panjiyar
                                    मेरी मानो तो मौत से भी भयानक सजा मिलना चाहिए था उन चारो दानवों को . मगर क्या इससे उन लुच्चे लफंगे गली के कुत्तों को कोई फर्क पड़ेगा . आँखों में एक्सरे मशीन लगा कर लड़कियों को घूरने वाले , फब्तियां कसने वाले उन कमीनों को कोई फर्क पड़ेगा ?
                                    मुझे नहीं लगता हैं .
                                    दामिनी बलात्कार केस में जो फैसला आया है वो सभी पिता और भाई के लिए बहुत बड़ी जीत है मगर आधी .
                                    जब तक गलियों में मुहल्लों में स्कुल कॉलेज सार्वजनिक स्थलों पर इनको चिन्हित कर के पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई जायेगी तब तक कुछ नहीं बदलने वाला .
                                    साथ ही लड़कियों को भी तैयार रहना पड़ेगा विरोध करने के लिए चाहे वो बात से हो या लात से हो .
                                    ऐसे कितने वाकये हैं जिसमें लड़कियाँ अपने परिवार के सदस्यों से उन पिल्लों की शिकायत नहीं कर पाते हैं क्यों की उन्हें डर रहता है खुद के पाबन्दी का भी और पिल्लों से भी .
                                    इस लिए हमें अपने घर से ही इसकी शुरुआत करनी होगी अपने बहन को बेटी को बताना होगा की हर परिस्थिति में हम उनके साथ हैं .
                                    तब जा कर कुछ बदल सकता है और जीस दिन हमारी बेटियां उन नामुरादों को सबक सिखायेगी उस दिन हमें पूरी जीत मिलेगी .
                                    मैं सभी क्रांतिकारी संग मिडिया एवं सोशल मिडिया तथा सामाजिक संगठन का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ की उनलोगों के बदौलत ही हम आज एक परिवर्तन कर सके .



                                  • Amit Kumar
                                    जैसे कोई बेहतर लिबास हो वैसे ही ये सजा इन घटिया लोगों पर खूब अच्छी लग रही है..मानवता का यैसा भी पैरोकार नहीं की दरिंदो के लिए मौत दूभर लगे.. बल्कि आगे के अपील के लिए इन्हें कोई वकील न मिले वैसा कुछ हो ..लेकिन कोई बेगैरत तो निकल ही आएगा


                                  • Haresh Kumar
                                    गैंगरेप के चारों आरोपियों को जिला अदालत के द्वारा फांसी की सजा देने का अभी फैसला आया है, ये फिर उच्च न्यायालय में जायेंगे फिर सुप्रीम कोर्ट जायेंगे और फिर राष्ट्रपति के पास जायेंगे। सारा मामला इसे अधिक से अधिक दिन तक खींचने का है।