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मंगलवार, 17 सितंबर 2013
फ़ेसबुक पर आजकल
आयं पिरिया मैडम, ई जो राते दिने भोरे भिनसारे 24*7,सवा सौ करोड़ जनता तक हक़ पहुँचाऊ प्रोजेक्ट में भाई लोग आपको रगेदे हुए हैं, "पांच सौ करोड़ के इमेज बिल्डिंग कॉन्ट्रैक्ट" में से आपको आपका वाजिब हक़ दिया है कि नहीं उन्होंने ??
राहुल ने हड़ौती क्षेत्र में कहा कि गरीबी के पीछे सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी नहीं वरन निरंतर बीमारी है। गांधी ने कहा कि मजदूरों से पूछिए कि वे इलाज पर कितना खर्च करते हैं। कांग्रेस इस समस्या को पूरी तरह से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है आने वाले सालो में हम आपको रोटी देंगे लेकिन रोजगार नहीं ... ना आपके पास इलाज करने का पैसा होगा ना आप बीमार .. क्योकि बीमारी केवल मानसिक स्थिती है ......
मानव जब जंगल में रहते थे , उस समय भी उनकी जन्मपत्री बनायी जाती , तो वैसी ही बनती , जैसी आज के युग में बनती है। वही बारह खानें होते , उन्हीं खानों में सभी ग्रहों की स्थिति होती , विंशोत्तरी के अनुसार दशाकाल का गणित भी वही होता , जैसा अभी होता है। आज भी अमेरिका जैसे उन्नत देश तथा अफ्रीका जैसे पिछड़े देश में लोगों की जन्मपत्र एक जैसी बनती है। लेकिन क्या उन जन्मपत्रियों को हर वक्त एक ढंग से पढा जा सकता है ??
बिलकुल ठीक कह रहे हैं जेठमलानी. केवल आसाराम की पीड़िता ही नहीं, वसंत विहार वाली और यहां तक कि वह 5 साल की वह बच्ची भी मानसिक रोगी थी जो हैवानियत की शिकार हुई. अव्वल तो वो सभी बच्चियां-लड़कियां-स्त्रियां मानसिक रोगी ही हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ की शिकार हुईं या हो रही हैं या होंगी. मानसिक रूप से सबसे ज़्यादा स्वस्थ वही लोग हैं जो बलात्कार या छेड़छाड़ जैसे महान कार्य करते हैं. जेठमलानी तो पता नहीं साबित कर पाएंगे या नहीं, मुजफ्फरनगर गए माननीयों ने इसे साबित भी कर दिखाया
[मौत से डरी लड़की का बयान]
मैंने पहले भी कहा था और फिर कह रहा हूँ कि दिल्ली में हाल ही में फाँसी की सजा सुनाये गए दरिंदों के रोने-कलपने और जिंदगी के लिए गिड़गिड़ाने की फुटेज बनाई जावें और इन अपराधों के परिणाम से डराने के लिए विभिन्न चैनलों पर इन्हें विज्ञापनों की तरह चलाया जावे। हो सकता है कोई फर्क पड़े। माइनरों पर नया क़ानून तो ये लोग बनाने से रहे, क्योंकि माइन और माइनरों से सरकार को बड़ा लगाव है।
इश्क में पिट जाओ तो किसी को ना बताना....:)))))
आप सभी को विश्वकर्मा जयन्ती की शुभकामनाएँ... असली इंजीनियर डे तो आज है जी... मेरा निक नेम भी इन्हीं इंजीनियर के नाम पर पड़ा था....
काश कुछ इलाज़ कर पाती इन जेठमलानियों जैसों की मानसिक बीमारी का.....मैं भी उन हजारों लाखों करोड़ों महिलाओं जितनी ही बेबस हूँ जो सिर्फ घृणा से थूक सकती हैं पर कुछ कर नहीं सकती....
क्या एक जातिहीन और नास्तिक समाज हमारे वर्तमान समाज से बेहतर नहीं होगा? यह मेरी एक सहज जिज्ञासा है, जिसका उत्तर मैं अपने सभी सुधी मित्रों से जानना चाहता हूँ। अगर आपको लगता है कि जातिहीन और नास्तिक समाज ज्यादा श्रेयस्कर है, तो उस दिशा में किस तरह बढ़ा जा सकता है- कृपया व्यावहारिक सुझाव दें।
हम अभी से आपकी तनहायिओ से डरते हैं !!
मुस्किल ही नहीं नामुमकिन है
आपके बोले हुए शब्द ...फिर आप तक वापस आयेंगे इसलिए हमेशा अच्छा और मीठा बोलें ~ET~ _/\_
मुझे आज भी याद है ..जब मै पहली बार हाई स्कूल जाने के लिये बड़ी ही उत्सुक था ...आपस मे दोस्तो के साथ चर्चाये गर्म थी ....तब मेरे बाबूजी ने एक ही बात कही ......'अब बाहर की दुनिया देखोगे, पर याद रखना घर मे तुम्हारी भी बहने है और बाप का सम्मान' ! उस समय इन बातो का अर्थ नहीं समझ पाया था ...पर आज यही मेरा सबक है .....और गुरुमंत्र भी ! अजय'शिशोदिया'
एक बात बताए कि किसान हमें रोटी देता है या हम किसान को रोटी देते है?
,,,,राम जाने कब,,,,,शकुन नसीब होगा,,,,,,,,,,,ऐसे थोड़े होता है ,,,,,,,,,,,,,,,?
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कितना अच्छा लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |सादर मदन
http://madan-saxena.blogspot.in/
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आभार, खबर मिल गयी।
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