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रविवार, 29 जनवरी 2012

मुखपुस्तक की बातें











आइए देखते हैं कि इन दिनों फ़ेसबुक पर दोस्त क्या लिख पढ रहे हैं .............




  • झारखंड में सीएनटी एक्ट का मसला एक बार फिर गर्म है। यहां की राजनीति और मीडिया की जाहिलता उस पर पेट्रोल छिड़क रही है। जबकि कोई तर्क कुछ भी दे..अंग्रेजी हुकुमत द्वारा फूट डालो-शाशन करो की रणनीति के तहत बना यह कानून आदिवासियों के विकास की राह में आज सबसे बड़ा बाधक है।अब इस श्रेणी में यहां के पिछड़े वर्ग की जातियों को लाकर खड़ा कर दिया है। .
     

    आप सभी ने सही मार्ग दिखाया,
    कई मित्रों ने फोन और मेसेज से भी समझाया,
    आप सभी का आभार जो आप सभी मेरे साथ हैं।
    मैं अब अपनी रचनाएँ यहाँ साझा करूँगी ।
    ,,," दीप्ति शर्मा "
     

    Be serious....बहुत हुआ...अब कलम थामो...माउस छोड़ो.
     

    ऐसी कविता कौन लिखेगा
    गर्मी में पढ़ें तो लगने लगे
    कड़ाके की ठंड और गर्मी में
    आए तेज बुखार

    कविता लिखी जा रही है
    खबरदार ...
    या आप खुद ही लिख लें।
     

    चलो अब चलती हूं ............बहुत काम है ......कल स्कूल जाना है , मिलते है कल....................शुभ रात्री
     
     
    जी सिनेमा पर शोले...
    इस समय
     

    कौन है आपकी पहली पसंद ? पंडित नाथू राम गोडसे या महात्मा गाँधी? 30 January गाँधी का बलिदान दिवस है .. कल ही के दिन गोडसे ने गाँधी वध किया था . देश का एक तबका इस करतूत की भर्त्सना करता है वहीँ एक बड़ा तबका इस करतूत को शौर्य का ,हिंदुत्व रक्षण का प्रतीक मानता है .. कौन है आपकी पसंद दोनों में और क्यूँ? दोनों विकल्पों में से श्रेष्ठ विकल्प का चयन सकारण करें.. जय हिंद जय हिंदुत्व जय भारत वन्दे मातरम्
     
    • ‎"मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
      तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे." - मिर्जा ग़ालिब
     

    दोस्तों आज गोरखपुर दूरदर्शन पर जनवाणी कार्यक्रम{जिसे दिल्ली से आई टीम ने आयोजित किया था]में कई राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि आए थे |जनता के नाम पर ज्यादातर दलों के समर्थक ही थे |जो एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे |मैंने भी प्रश्न किया कि क्यों कोई भी दल महिलाओं को खास तबज्जों नहीं दे रहा |उत्तर-प्रदेश में तो महिलाओं को टिकट देने में भी कंजूसी की गयी |आधी आबादी को राजनीति से दूर रखना तथा महिला-आरक्षण का पास न होना क्या दलों की स्त्री-विरोधी नीति को नहीं दर्शाता,फिर क्यों स्त्री -वोटों की उम्मीद राजनितिक दल कर रहे हैं |सभी अपनी-अपनी सफाई देने लगे |यूँ कहें बगलें झाँकने लगे |मेरा प्रश्न ठीक था ना ?
     

    अनगिनत चेहरों को चाहा है ..बारहा ये दिल दिया है ..हमें खुदा क्‍यूं मानते हो के जिसका एक ही मेहबूब है ..
     

    भाषा के नाम पर हाहाकारी, मारामारी मची हुई है.
     

    थकने सा लगा है अपनी चाहतों का वजूद,
    अब मोहब्बत तो होती है पर वो शिद्दत नहीं रहती |
     

    मौसम की अठखेलियां, हजारों ने लिया आनंद

    बसंतोत्सव का आनंद पहली बार ऐसा देखने को मिला। हजारों हजार लोग पूरे दिन इस उत्सव में डूबे रहे। मैं तो अपने मित्रों के बेटों की शादियों में हिस्सा लेने गया था, लेकिन जब दयाल बाग क्षेत्र में सुबह से पीले फूलों और गुलाब में सराबोर और आनंद में डूबे हजारो हजार लोगों को देखा तो ये आनंन अनोखा रहा। शाम को यही हजारो लोग सकड़ो पर दीप दान कर रहे थे। लंबी कतारे अजीब हर्षोल्लास गजब का जोश, बुर्जग हो या नौंजवान, महिला हो या पुरूष। दयाल बाग क्षेत्र में हर घर पीले फूलों से सजा हुआ था। झालरें भी गजब की रोशनी दे रही थी और नई ऊर्जा। सच तो यह है कि मैं यहा बगैर निर्धारित कार्यक्रम के ही गया। लेकिन इसके बाद तो होटल ताज ओरिजेंट व आनंद भवन के बड़े वैवाहिक कार्यक्रम का आनंद पीछे छूट गया। दयाल बाग के माहौल से मुझे भी काफी ऊर्जा मिली।
     

    • सबैं सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय
      पवन जगावत आग को, दीपहिं देत बुझाय
       

      • कभी धडके तो सही , कभी मचले तो सही
        दिल है तो दिल बने , क्यें बनता पत्थर है
       
     

    मुलायम सिंह ने घोषणा की है कि बलात्कार पीड़ितों को सरकारी नौकरी से नवाजा जाएगा... लेकिन इसमे आरक्षण किसका होगा ये नहीं बताया... कंपटीशन किस आधार पर होगा ये भी नहीं बताया
     
     

    • क्या नशा है तेरे चेहरे में, मयखाने सारे फीके हैं, कोई मद पीये तेरे लब का, या ऑंखो से पी मदहोश रहे, या मधुशाला पूरी पी डाले जो छलक रही इन अंदाजों में, मय भी सारी मदहीन दिखे , जब तेरी तस्वीर दिखे, अब रम लिख दूँ, या व्हिस्की लिख दूँ या कह दूँ जिन संगीन तुझे, चल बस यही सही होगा लिखूं तू पूरी की पूरी मधुशाला.......जय श्री कृष्ण.... जय जय श्री राधे
       
      सियासत के व्यापारी यूपी में डाले हैं डेरा,
      जाति, धर्म के दलालों ने चारों और से है घेरा .
       
     

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

फ़ेसबुक को गरियाने वालों के लिए एक पोस्ट





कोई भी बात शुरू करने से पहले , मेरा आग्रह है कि आप नीचे की इस छवि पर चटका लगा कर एक बार इस खबर को पढ लें ।



तो गोया थोडे में , लुब्बो लुआब ये कि , अब जबकि फ़ेसबुक पर रहते हुए फ़ेसबुक और ट्विट्टर जैसे अभिव्यक्ति मंचों को गरियाते रहने के साथ साथ खुद सरकार और प्रशासन भी इसे घुडकी पिलाने पर लगी है और चूंकि अब मामला न्यायपालिका के संज्ञान में है तो इसलिए निरंकुश अंतर्जालीयों के लिए रेड एलर्ट का ईशारा है , तो इस स्थिति में किसी ऐसी खबर का आना कि , बुंदेलखंड के एक ग्रामीण फ़ेसबुकिए ने मुंबई में बैठे अपने फ़ेसबुकिए दोस्त के आग्रह को स्वीकार करते हुए अपने ग्राम के बच्चों , युवकों और समाज के लिए उपहारस्वारूप ज्ञान का खजाना उन तक पहुंचा दिया । 


पिछले दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सरकार के खिलाफ़ जो माहौल बना और जो बौखलाहट आम लोगों ने , ध्यान रहे कि अंतर्जाल पर लिखने पढने वाले देश के सबसे पिछडे हुए लोग तो कतई नहीं हैं तो यदि वे सब देख सुन और समझ रहे हैं उसके बाद ऐसी तल्ख प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं तो सोचना ये चाहिए कि सरकार , प्रशासन पर लोगों का विश्वास कैसा है । बजाय इसके कि ऐसे अभिव्यक्ति के मंचों को सही दिशा देकर उनके सार्थक उपयोग को बढावा देने के सरकारें इसके लिए दमन का रूख अख्तियार किए बैठी है । 


ऊपर की खबर बता रही है कि सरकार , प्रशासन , और इन मंचों पर अपने तथाकथित उद्देश्यों को लेकर कलाबाजी लगा रहे तमाम अंतर्जालीयों की रस्साकशी के बीच इन मंचों से जुड रहे युवा सिर्फ़ भटकाव के रास्ते पर ही नहीं हैं ,वे गढ रहे हैं , वे रचना कर रहे हैं , लिख रहे हैं , प्रश्न कर रहे हैं ,बहस कर रहे हैं और अपने वाजिब तर्क रख रहे हैं । अगर दिल्ली पुलिस ट्रैफ़िक व्यवस्था को दुरूस्त रखने के लिए , और उत्तर भारतीय रेलवे अपने जानकारियां साझा करने के लिए इन साइट्स की तरफ़ मुडता है तो ये साबित होता है न कि , यदि चीज़ों को ठीक दिशा में मोडने के लिए ठीक दिशा में प्रयास किए जाएं तो परिणाम राज्य और समाज के हक में ही आएगा । 


सरकारें इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स को लेकर क्या रुख अख्तियार करती हैं और न्यायपालिका इसकी कौन सी और कितनी विधिक सीमा तय करती है ये तो भविष्य ही बताएगा किंतु ये तय है कि यदि नकारात्मकता का उभार ज्यादा मुखर रहा तो फ़िर आम जनता को इन साइट्स से हाथ धोना पडेगा ,लेकिन खुद को अभिव्यक्त करने वाली आम जनता कोई न कोई और साधन तलाश ही लेगी । आइए कोशिश करें कि अपनी उपस्थिति से ऐसे मंचों को सार्थक बनाया जाए ।






गुरुवार, 12 जनवरी 2012

दोस्तों की बतकही















जाति-जनगणना के लिए सरकार ने शुरू कर दिया काम,
चलो ,संभालो अपनी ड्यूटी ,बहुत हुआ आराम !!





  • बाबू सिंह कु ...स्वाहा के लिए गाना....

    चल थकेला, चल थकेला, चल थकेलाआआआ..
    तेरा हांथी पीछे छूटा बाबू चल थकेला..
     


    ‎''मेरा मानना है कि किसी भी युवा का मूल चरित्र वाम होता है। क्योंकि वह प्रयोगों के लिए सबसे ज्यादा उपजाऊ होता है। आजकल सारे विज्ञापन अगर युवाओं के आसपास केंद्रित हो रहे हैं,तो उसके पीछे उसकी प्रयोगधर्मिता ही है। यही नहीं वह परिवर्तन के लिए सच्चाई से लड़ने वाला योद्धा भी होता है। मुझे तो युवा मिलते हैं,जिनमें प्रयोग का जज्बा तो है,लेकिन सच्चाई या न्याय की नैसर्गिक शर्त पर खुद को थामे रखने की हिम्मत नहीं दिखाई देती है। जिनमें दिखाई देती है,उनके संख्या बल से पूरे देश को युवाओं का देश कहने में हिचक है।''
    Rishi Kumar Singh
     


    कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब लगता है कि अभी के अभी मर जाऊं तो निश्चय ही मुक्ति मिलेगी... कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती. काश ! ऐसे ही किसी क्षण मृत्यु से मुलाकात हो... क्योंकि अगले ही पल... नयी इच्छाएं प्रकट होने लगती हैं !
     


    सवाल:- "मेरा हौसला देख
    मैं जानता हूँ तू नहीं समझेगा
    फिर भी बोलता हूँ!"

    जवाब:- "मेरा जज़्बा देख
    तेरी बात नहीं माननी है
    फिर भी तुमको सुनता हूँ!"
     


    जो ज़ख़्म दिये तूने मुझको,
    मैंने खुद को ही भुला दिया ।
    होनी अनहोनी में तूने,
    कविता करना सीखा दिया ।।
    ::::"दीप्ति शर्मा "

     


    जिस भाषा के आलोचक सिर्फ मुफ्त में मिली परिचितों की किताबें उलटते-पुलटते हों...वह अगर आलोचकों के कहे पर ध्यान नहीं देती तो हर्ज क्या है?
     
     


    मैं रहता इस तरफ़ हूँ यार की दीवार के लेकिन
    मेरा साया अभी दीवार के उस पार गिरता है

    बड़ी कच्ची सरहद एक अपने जिस्मों-जां की है
     


    पांच राज्यों में काला धन कमाने के लिये काला धन खर्च करने का उत्सव क्या शुरु हुआ,
    अन्ना को भूल गया देश !
     


    हमे देख कर यह तो कोई भी कह देगा कि हम किसी भी तरह से "राष्ट्रीय शर्म" के मानकों पर फिट नहीं बैठते है ... "राष्ट्रीय गर्व" के मामले में हम पर विचार किया जा सकता है ... और जो हम "राष्ट्रीय गर्व" हो सकते है ... तो काहे नहीं हम को "भारत रत्न" दे देते बे ???
     
     


    इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में सबसे खुशनसीब इंसान वह है जिसकी ज़िन्दगी में कोई ऐसा हो, जो ये कहे कि "मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा/करूंगी...."
     
     


    नेता नेता कहे पुकार, खरबूजा हो कटने तैयार
    पांच साल में आए हैं, तुझको खा कर जाएंगे !
     


    देव बाबा के भक्त जनों को राम राम....
     


    दिल्ली की एक अदालत फेसबुक के पीछे पड़ गई है कि आपत्तिजनक सन्देश नहीं हटाये तो ब्लाक कर देंगे. फेसबुकिये खुद ही गलत संदेशों को नकार देते हैं. अदालत को परेशान होने की जरुरत नहीं है.
     
     


    आरोहन अवरोहन के स्वर
    गूँज रहे हैं अंतर्मन में।
    वेद ऋचाएँ जाग उठी हैं
    साँसों के सुरभित उपवन में
    जीवन का व्याकरण जटिल है
    टूट-टूट जाता है संयम।

    (अज्ञात)
     


    लोकतंत्र की अनेको बार हत्या के प्रयासों के साथ अब कोंग्रेस लोगो की हत्या पे तुली है, कमरतोड़ महंगाई, भ्रष्टाचार और तानाशाही, एक आम हिंदी, भारतीय कैसे रहे? आत्मसम्मान के साथ ज़िन्दगी बसर करना कोंग्रेस की नीतिओ एवं रीती की वजह से दुश्वार है, हजारो करोड़ रुपे खा जाने के बाद भी अगर इस रावन राज में कोई इसके खिलाफ आवाज़ भी उठाये तो ठीक अंग्रेजो की तरह उसपे दमन शुरू हो जाते है, अब निर्धार करे, क्या बच्चो को भीख मांगते और "मेडम" को और उनकी फ़ौज को मौज करते देखते रहना है, या जिंदा रहना है और खा के सोना है? अगर आने वाले दिनों में हम में भूख, गरीबी सहने और सडको पे सोने की ताकत है तो चलने दीजिए कोंग्रेस यानि रावन के राज को अन्यथा निर्धार करे के अब बहोत हो चूका, उसे उखाड़ फैकना है.
     

रविवार, 8 जनवरी 2012

चेहरे भी जाने क्या क्या कह जाते हैं








पथरे क हाथी लियाउब मोरी धनिया
हथीया के ओढ़ना ओढ़ाउब मोरी धनिया
जाड़ा लगिहे तोहे त जिनि फिकिरया किहू धनिया
कल्ले से मोर करेजवा तब सटाउब तोहे धनिया

पथरे क हथीया लियाउब मोरी धनिया :)

( मैं पत्थर का हाथी लाउंगा प्रिये,
उसे ओढने से ढंक ठंड से बचाउंगा प्रिये
तुम्हें जो ठंड लगे तो चिंता मत करना प्रिये
हौले से तुम्हें कलेजे से सटाउंगा प्रिये

मैं पत्थर का हाथी लाउंगा प्रिये :)

- सतीश पंचम



आज आये हो और कल चले जाओगे....ये मोहब्बत को मेरी गवारा नही...|
उम्र भर का सहारा बनो तो बनो.....चार दिन का सहारा सहारा नही....|
अनूप जलोटा जी के गजल से!



‎... तबियत मस्‍त करता कोहरा और गरमागरम पकौडि़यों के संग मैजिक मूवमेंट !!! अब सारे काम भी बन जाएंगे, जाड़े की ऐसी की तैसी। कोहरे के बावजूद सब कुछ क्लियर दिख रहा है। बोलिए भैरवनाथ की जय... अब आप भी लगाओ। चीयर्स ... जय हो।
 
 

तेरे सिवा भी कई रंग ख़ुशनज़र थे मगर
जो तुझको देख चुका हो वो और क्या देखे
गुज़र गए हैं बहुत दिन रिफ़ाक़ते-शब में
इक उम्र हो गई चेहरा वो चाँद-सा देखे...
 
 

किस किस को दीपक प्यार करे ......जब लाख पतंगे जलते हों ....:P
 
 

शीत पर - ३ -

“कोहरा से डरा-डरा, भोर भिनुसार काँपै,

सगरौ जँवार, काँपै सुरुज-किरिनियाँ।

खेत-खरिहान अनुमान कै किसान काँपै,

राह सुनसान काँपै, काँपै दीन-दुनियाँ।

पतिया सिरात काँपै, दिन काँपै, रात काँपै,

बच्चन कै दाँत काँपै, दादी कै कहनियाँ।

तन काँपै, मन काँपै, धरती-गगन काँपै,

कान्हा कै सपन काँपै, राधा कै ओढ़नियाँ॥३॥” ~कवि आदित्य वर्मा
 
 
 

यह कौन-से आंदोलन का प्रभाव है कि हर पार्टी भ्रष्टाचार-विरोधी की ‘इमेज’ भी बनाना चाह रहीं हैं और धड़ाधड़ दलबदलुओं को भी ‘ऐडजस्ट’ कर रहीं हैं !
 
 
 

मेरी फोटोग्राफी !





बस आँखों में डाल आँखें पास मेरे बैठी रह
 कबूल तेरे सब इल्जाम ठंड और संडे दोनों है
 

का संडे है...जड़ान जड़ान दिन लागत है नून में भी गुड मार्निंग है बड़ा कनफूजन है भैया
 
 

चले थे अकेले
जुडते रहे लोग
कारवां चलता रहा.
आये कुछ मोड़
छोड़ गये साथी,
आज इस मोड़ पर
खड़ा अकेला
देख रहा हूँ
कदमों के निशां
उस कारवां के.

...कैलाश शर्मा
 
 

निर्वाचन आयोग को गाँधी, नेहरू, इन्दिरा और राजीव की मूर्तियों और चित्रों को सार्वजनिक स्थानों से हटाने का आदेश देना चाहिये जिन के नामों को काँग्रेस पार्टी वोट बटोरने के लिये इस्तेमाल करती है। इस के अतिरिक्त उन सभी सरकारी योजनाओं पर रोक लगानी चाहिये जो उन के नाम पर सरकारी खर्चे पर चलायी जा रही हैं।

काँग्रेस का झण्डा राष्ट्रीय झण्डे का भ्रम पैदा करता है इस लिये उसे भी इस्तेमाल करने पर रोक लगनी चाहिये।
 
 

यह चुनाव आयोग का पक्षपात ही कहा जाएगा जिसने बुतों को ढकवाने का फतवा जारी कर दिया पर सरकारी योजनाओं में एक परिवार के लोगों का नाम आने को कभी गलत नहीं समझा । कांग्रेस का झण्डा राष्ट्रीय झण्डे से मिलता-जुलता है लिहाजा राष्ट्रीय झण्डे को भी चुनाव तक छिपा देना चाहिए
 

आज से मैं 'एलीट' किस्म की भक्त हूँ ..!!!
 
 

देखा है मैने ,और तुमने भी,.....कि चाहे वह सूरज हो या हो चाँद !
सुबह -साझ की कोख मे से ही जनम लेते है ,और सुबह - साझ की गोद मे ही सो जाते है ।
वह सुबह -साझ कभी तुम होते हो, कभी मैं.............."गोपाल सहर जी "
 

चल कर नेहरू प्‍लेस
कुछ तकलीफ पैरों को दूं

ऊंगलियां तो कीबोर्ड पर
सुबह से नृत्‍य कर रही हैं

पैरों को तकलीफ देने का वायदा
जालिम ऊंगलियों ने ही किया है

हाथ की ऊंगलियां बख्‍शती नहीं
न पैरों को, न दिमाग को, न खुद को।
 

  • दिल की कोई कहाँ सुनता है जमाने के आगे ...
    सब सिर्फ ये कहकर ही वक्त गुजार देते हैं |
    दिल ने मुझसे कही और हमने तुमसे कह दी
    अब बस जमाने के हाँ कहने भर की देरी है |
 
 

परेशान हूँ यारों....दिल्ली की सर्दी...ऑफिस की गर्मी....क्या है इलाज़ इसका
 
 

  • ‎" अंत " की दिशा में" सँलग्न " रहो " मुस्कुराओ " अपनी असमर्थता पर …

    तब हो " सकता " है नवीन जीवन की उदय भावना -

    फिर भी " मुस्कुराना " मेरी असमर्थता पर …
    वैरागी " अंतर्द्वंद " से कुछ निकलना होगा -

    " जँगलों " की वीरानगी को चीरते हुवे -

    " ऊँची " - " ऊँची " चट्टानों , से सानिध्य बनाओ नदियों से -

    फिर भी चिल्लाते - मुस्कुराते हो अपनी असमर्थता पे-
 
 

  • चांद अब नहीं उतरता आंगन में मेरे
    पड़ोसी ने जोड़ी फिर मकां में 'स्टोरी'।
 

अरे गजब हो गया भाई, कानपुर के कैंट इलाके में एक हाथी सड़क पर मदमस्त होकर टहल रहा था, वो भी बिना पर्दे के.. उधर साइकिल भी चल रही थी..अरे अरे..ट्रैफिक पुलिस वाले भैया हाथ दिखाकर मुझे रोक रहे हैं लाल बत्ती पर.. और उधर सड़क के किनारे एक छोटी बच्ची टोकरी में कमल बेच रही है.. गजब हो गया भाई ...सब संहिता का अचार बना रहा है भाई... (यूपी वाणी)
 


फेसबुक सक्रियता को मेरा ठलुआपन ना समझ मेरे दोस्त,
संचार संसाधन तो अब हथेलियों में सिमट सा गया है. ..

कुछ बातें, कुछ सपने, कुछ इंसान और भी न जाने क्या क्या... बहुत कुछ ऐसा होता है जो भुलाए नहीं भूलते... इंसान की सोच इतनी खुरदरी होती है न कि काफी कुछ फंसा रह जाता है... भूलने और याद रखने के बीच का ये गलियारा जहाँ हर परछाईं से हम बचना चाहते हैं, लेकिन ऐसा कर नहीं पाते...




काश के जिंदगी भी किसी सिल्वर स्क्रीन की ही तरह होती, एक फंतासी ताउम्र बनी रहती, वे दोनों जब उसी ऑटोरिक्शा में जब आखिरी बार कुछ लम्हों के लिए हाथ पकड़े बैठे रहे थे, बस उसी छण कैमरे का क्लोज अप उन हाथो पर जाकर खत्म हो जाता.. आगे क्या हुआ, किसी को पता नहीं.. सभी किसी कयास में ही डूबे रहते.. किसी हैप्पी इन्डिंग की तरह सभी खुश रहते हैं..

मगर यह यथार्थ है, असली जिंदगी.. कोई परिकथा नहीं जिसमें सब वैसा ही अच्छा-अच्छा होता रहे जैसा आप चाहते हैं..