दोस्तों को पढना जितना भाता है , उन्हें सराहना जितना पसंद आता है उतना ही उनकी कही लिखी को संजोने/सहेज़ने में आनंद आता है । इसीलिए मैंने इसके लिए ये खास कोना बना रखा है , गाहे बेगाहे इस पन्ने पर चुन कर कुछ मोती जो फ़ेसबुक पर जडे होते हैं उन्हें यहां चुन कर सज़ा लेता हूं और इस अंतर्जालीय पन्ने को भी यादगार बना के रख लेता हूं , आज फ़िर कुछ दोस्तों के स्टेटस अपडेट्स को मैंने संभाल कर एक ब्लॉग पोस्ट की शक्ल दे दी है , देखिए …………………….
Anulata Raj Nair .
खिलखिलाती ये लडकियाँ camera देख कर संजीदगी से पोज़ दे रही हैं
ईर्ष्या होती है कभी कभी इनके स्वच्छंद जीवन से ......बस्तर की लोक नर्तकियों के साथ- लोकरंग में !!
बचपन में कई बार अपना स्कूल एक कारा लगा करता था और हम में उससे छूट निकलने की होड़ मची रहती थी।
पर इस आयु में आकर लगता है हमने स्वयं को स्वयं ही कितनी काराओं में बंद कर लिया है और छूट कर जाने के लिए कोई खुला स्थान नहीं। छूटने की होड़ करने वाले भी नहीं हैं।
बसंत की दस्तक
दिल-दिमाग खेत-खलिहान की ओर
जंगल के उबड़-खाबड़ रास्ते
नहीं दीखते शहर में चहुओर
जहाँ तक दृष्टि जाती है
कुहरे की कलुषित मानसिकता की कालिमा
और दिखावटी/बनावटी जिन्दगी के पैरहन
पागल बने जीवन में
अकुलाहट पैदा करने की आहट
पपीहे की लुप्त आवाजें
सरसों से गेहूं की शिकायत
चने का केराय से रार
अरहर का गन्ने से करार
टुकड़े-टुकड़े में यादें दस्तक दे रहीं हैं
शब्द मौन व्रत धारण किये रहे
बावजूद वक्त ने लिख दिए
स्नेह की पहली पाती...!!!
...बस ऐसे भटकते गलियों में...
डॉ.सुनीता
लिखना, तुम्हें भूलकर तुम तक पहुंचने की साधना है
आईने का सच
बर्दाश्त करना
कब होता है
आसान
आईना
दिखाता है सब
बिना लीपापोती के
पूरी साफ़गोई के साथ.....है ना ...........किरण आर्य
प्यार करने वालो की किस्मत ख़राब होती है,
हर वक़्त इन्तहा की घडी साथ होती है ,
वक़्त मिले तो रिश्तो की किताब खोल के देख लेना ,
दोस्ती हर रिश्ते से लाजवाब होती है ..
कमाल है तेरी यादों का .......कि, मुझे याद आने का शुक्रिया.....
दीद का सुकूं तो मिला ना मुझे,
तेरी गुफ्तगू का ही शुक्रिया.....
दिल्ली ऎसी नहीं है ,,,दिल्ली नस्लवादी नहीं है। ………मेरे पूर्वोतर के बहन -भाई ,बेटे -बेटियों इस वारदात के कारणों को क्षेत्रवाद से नहीं जोड़े। ………… दिल्ली सबके लिए एक है ,उसकी एकता ,मित्रता ,भाईचारे को किसी एक घटना से जोड़कर दिल्ली पर कीचड ने उछाले। ……………… मौत दुर्भाग्यपूर्ण है ,,,दिल्ली ने सबको अपनी पलकों की छाँव में बिठाया है। नस्लवाद जाति ,क्षेत्र ,धर्म में नहीं व्यक्ति विशेष के दम्भ में है। …… नेताओं के तो खून में बहता है यह नस्लवाद पर एक दुकानदार को अपनी दुकानदारी से मतलब होता है ,दोनों और से किसी में भी सहनशक्ति होती तो यह दुर्घटना नहीं घटती !
पत्रकार: "उपाध्यक्ष बनकर क्या उखाड़ लिए?"
राहुल जी: "गड़े मुर्दे."
मैं अकेली नहीं !
उसके आने के बाद कोई भ्रम नहीं
लगने लगा मैं किसी से कम नहीं
ऐसा भी नहीं, अब कोई गम नहीं
मगर आँखें कभी होतीं नम नहीं !
*****
किसी ने चौसर पर फिर बाजी सजायी है
हम भी खेलेंगे, आवाज हमने लगायी है
वो फेंट रहे हैं मोहरें शकुनि के अंदाज में
मगर जानते नहीं अब बारी मेरी आयी है.
- कामना
(कल की कविता का अगला भाग है यह. कुछ शालीन मित्रों ने पूछा है कि 'वो' नया 'नाम' कौन है. बताऊंगी, लेकिन यही अपनी वाल पर- व्यक्तिगत नहीं,सार्वजनिक. कोई पूछे तो)
कोहरे में लिपटी सहर की धूप गुलाबी सी लग रही है. लिथुआनिया में क्लैपेडा के पास ली गई ये तस्वीर इवेग्निजस ने भेजी है.
ये तस्वीर भी इवेग्निजस ने ही भेजी है. वे कहते हैं, "ये सुबह की ओस की बूंदे हैं."
जॉर्जिया के निनोट्समिंडा शहर में ली गई ये तस्वीर बोरिस कर्स्ल्यान ने भेजी है. इस बार इस दक्षिणी देश में ख़ूब सर्दी पड़ी है.
(चित्र वा टिप्णी बी बी सी से अनुसरण)
दर्द की झोली यूँ ही भारी ना थी
इतनी नमीं थी वहाँ कोई जगह खाली ना थी
खुद से परेशान हूँ आईने से सवाल क्या पूछूं
तूफानों में जीती हूँ वहाँ हरियाली ना थी
ऋचा
Richa Srivastava
दोस्तों..पिछले दिनों मेरे पडोसी पलाश दा मिले।मनमौजी,अलमस्त,शम्मी दी के चिर प्रतीक्षित,चिर प्रेमी,चिर कुंवारे पलाश दा हम सब के प्रिय हैं। कुछ अस्वस्थ से दिख रहे थे,सो हमने इलाज के लिए मुफ्त की सलाह दे डाली। वो बोले."एई दीदी मनी...की बोलून....हमरा इलाज तो दुनियां का कोई डॉक्टर नहीं करने सकता।"हमने पुछा कि ऐसा क्यूँ कह रहे है दा??बोले..ओहो..जब हमारा एक्स रे और ecg रिपोर्ट डॉक्टर देखा तो बेहोश हो गया।"अरे,,वो क्यूँ"?हमने भी बेहद आश्चर्य से पुछा।तो पलाश दा मीठी हंसी हँसते हुए बोले"ओहो दीदी मनी,तुमि ना बुझलम..अरे मेरे हार्ट के एक्स रे में तुमारी शम्मी दी की फोटो प्रिंट होकर निकली..और ecg के ग्राफ में तुम्हारी शम्मी दी का नाम....अब बोलो doctor बिचारा क्या करने सकेगा...हा!हा!हा!.....................
तब से मैं सोच में पड़ी हूँ की ये इश्क की इन्तहा है,या कल्पनाशक्ति की पराकाष्ठा।
आप का क्या ख़याल है दोस्तों???
ख़ाक करो हमें तो फिर ख़ाक उड़ा दिया करो...
मन
एक प्यासा कुआँ
जिसकी मुँडेर पर
कोई राहगीर नहीं ठहरता अब
बस इसी तरह
कुछ शब्द ठिठके खड़े हैं
ख्यालों की जगत पर
जाने किस बसंत के इंतज़ार में ?
और ठिठुरन है कि बढती ही जाती है अकडाव की हद तक ………………
बीते सप्ताह का प्रश्न: आप परफेक्शनिस्ट क्यों हैं?
उत्तर: मेरा कोई इष्ट नहीं, मैं नास्तिक हूँ।
प्रतिप्रश्न: नहीं, नहीं... वह नहीं। मेरा मतलब था कि स्माल डिटेल्स पर भी इतना ध्यान, नाइस प्रेजेंटेशन, क्यों?
उत्तर: ऐसा इसलिये है कि मुझे अपनी सीमायें, कमजोरियाँ पता हैं और मैं उन्हें कभी भूलता नहीं। आप जिसकी प्रशंसा कर रहे हैं, वह असल में उन्हें छिपाने का सायास यत्न भर है।
प्रत्युत्तर: यू आर डिफिकल्ट!
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�:(
औरत
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केवल ऊपर वाला
नहीं लिखता
तकदीर औरत की,
नीले आकाश के नीचे भी
लिखी-पढ़ी-बोली
जाती है औरत,
खुली किताब होकर भी
अक्सर
बंद किताबों में
सबसे ज्यादा।
- मीना पाण्डेय
टूटे हैं कई सपने साकार हो गए
हालात जो भी सामने स्वीकार हो गए
अंजाम सुमन इश्क में गम ही सदा मिले
दौलत समझ के प्यार को बेकार हो गए
मैंने तो सर दिया, मगर जल्लाद
किसकी गर्दन प यह बवाल पड़ा
ख़ूब रू अब नहीं हैं गंदुम गूं
"मीर" हिंदोस्तां में काल पड़ा
[ख़ूबरू = अच्छी सूरत वाले, गंदुमगूं = गेहुंआ रंग]
चहेरा पढ़ने मे तो आप माहिर है ... जय हो |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिवम भाई
हटाएंफ़ेसबुक के महासागर में डूब कर कुछ सार्थक निकाल लाना सरल कार्य नहीं।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रवीण भाई
हटाएंसचमुच संकलनीय
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार सर
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआपकी पसंद अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया देवेन्द्र भाई
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