ललित जी , एक सजग सचेत ब्लॉगर हैं , सत्ता और सरकार के गलियारों में चल रही उठापटक से रूबरू रहते हैं , आज हुकूमत की नई पाबंदियों पर कुछ कह रहे हैं देखिए क्या
सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून २००८ में चोरी-चोरी चुपके -चुपके किया गया यह बदलाव हमे छत्तीस साल पहले इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार द्वारा लागू किए गए आपातकाल की याद दिलाता है ,लेकिन आपातकाल हटते ही उन दिनों की इंदिरा कांग्रेस का क्या हश्र हुआ था ,यह आज की सोनिया कांग्रेस को अच्छी तरह याद तो रहना चाहिए . अप्रिय इतिहास ने खुद को दोहराया है , उस वक्त की सत्ता ने कुछ न कुछ ज़रूर खोया है.
ओह ...90 में सिर्फ ४ परसेंट कम मिले १० वी में.. ८६ % मिले है दोस्तों , कोई बात नहीं यार ८६ तो ८६ मै तो खुश हु ..आप मेरी ख़ुशी में शामिल है की नहीं ? मै तो ये मिठाई लेकर आया हु , आप सबके आशीर्वाद से ही मुझे ये सफलता मिली जो है आओ और मुंह मीठा तो करो यारो ...:)))))))))))))))))))))))
या तो बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे मार्ग दर्शकों को सपोर्ट करिये या फिर कोई वैकल्पिक रास्ता चुनते हुए देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाइये .. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में न्यायाधीश बन कर अन्ना या रामदेव बाबा का मूल्यांकन करने की ज़रूरत नहीं है... ज़रूरत है सिपाही बन कर लड़ने की... बलिदानी की तरह आहुति देने की...
शीर्ष कलश की चमक बरकरार रखनी है तो नींव का पत्थर भी बनना ही होगा
आंदोलन करना स्वामी रामदेव का काम नहीं - शाहरूख खां.
बाबा रामदेव योग सिखाते हैं योग ही सिखाएं तो बेहतर - दिग्विजय सिंह
मेरा सवाल है,आंदोलन करना किसका काम है? नेता, समाजसेवी या फिर कौन? यदि ऐसा है तो अबतक कितने आंदोलन हुए. नहीं हुए तो क्यों
वो कहते है की उनके काबिल नहीं हूँ मैं,मेरे ना होने की कमी तो उनसे पूछो जिनको हांसिल नहीं हूँ मैं..!!
काले धन की कालिमा किसको पसंद है, कौन चाहता है इसका वरण करना, जल्दी से नाम लिखें
बाबा रामदेव भगवा पहनते हैं, सभाओं में वन्देमातरम के नारे लगवाते हैं, भारत स्वाभिमान संगठन के झण्डे में "ओ3म" का निशान है - क्या इतने कारण पर्याप्त नहीं हैं दिग्विजय सिंह, लालू यादव इत्यादि को "सुलगने" के लिये?
अतः बाबा रामदेव समर्थकों से अनुरोध है कि - कांग्रेस, दिग्गी, लालू, सिब्बल इत्यादि की "शारीरिक", "भौगोलिक", "सामाजिक", "धार्मिक", "राजनैतिक", "आर्थिक" - सभी प्रकार की मजबूरियों को समझते हुए उनसे सहानुभूति रखें।
भूख से मरते आदमी के लिए आज अपनी जान बचाने का एक तरीका है। वो घोषणा कर दे कि मैं सरकार के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठने जा रहा हूं। तभी उसकी सुध ली जाएगी!
कुछ शख्सियतों की यादें रसगुल्ले की रस की तरह जीवन में मिठास भरती हैं। मेरे लिए गुलजार की नज्में भी यही करती हैं। इसे ही देखिए- ये गर्मियाँ कितनी फीकी होती हैं - बेस्वादी। हथेली पे लेके दिन की फक्की, मैं फाँक लेता हूं...और निगलता हूं रात के ठन्डे घूंट पीकर,ये सूखा सत्तू हलक से नीचे नहीं उतरता...
गर्मी में बारिश की घुसपैठ,मतलब बारिश में सूखा....अब इसके लिए कहाँ अनशन किया जाये ?
सरकार बौरा गई है , बार बार कभी अन्ना से तो कभी बाबा के हाथों घिर रही है , लगता है अब इसके घिरने नहीं गिरने का समय नजदीक आ रहा है , फ़ेसबुक , ट्विट्टर और ब्लॉगिंग जैसे माध्यमओं पर अंकुश लगाने से सरकार सच को नहीं दबा सकेगी । वो और भी ज्यादा तीव्र होगा और एक दिन सरकार के सभी नियम कायदे धरे रह जाएंगे .
पाकिस्तान में हल्ला है कि भारत सरकार पर जनता का दबाव है कि कसाब को फ़ांसी पर चढाने के लिए वो नया बिल लाए ...सुना है कोई जनलोकपाल बिल है ..
आज के लिए बस इतना ही , फ़िर पढेंगे कुछ चेहरों को , क्योंकि हर चेहरा कुछ कहता है , कहता है न ??
वाह ये भी बढ़िया प्रयोग चल रहा है :)
जवाब देंहटाएंवाह, निराला अंदाज़... क्या बात है!
जवाब देंहटाएंप्रेम रस
बारिश की तरह 'टेम'से पहले क्यों नहीं आ जाते ?
जवाब देंहटाएंअबकी इन्तज़ार लम्बा करवाया !
बस युही चहेरे पढ़ते रहिये ..
जवाब देंहटाएंवाह झा जी, ये प्रयोग भी उम्दा है।
जवाब देंहटाएंआभार