.Twitter तो .एक चालीस का लोकल है सरबा ....एक कोमा का भी बढोत्तरी होते ही आपको ...कान के नीचे कट्टा लगा के कहेगा ....आप एक ठो कौमा फ़ालतू लगाए हैं ...आप चतुर नहीं है ..और ढेर चतुर बनिए :) । मन तो करता है कै बार कि कहें । काहे बे ई एक सौ चालीस का लिमिट कोन हिसाब से डिसाइड किए हो बे । फ़ेसबुक में ई लफ़डा नय है , इसलिए मित्र सखा दोस्त सब एक से एक अभिव्यक्ति देते हैं , बानगी देखिए
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शुक्रवार, 29 जून 2012
ये एक चालीस का लोकल नहीं है ..........
.Twitter तो .एक चालीस का लोकल है सरबा ....एक कोमा का भी बढोत्तरी होते ही आपको ...कान के नीचे कट्टा लगा के कहेगा ....आप एक ठो कौमा फ़ालतू लगाए हैं ...आप चतुर नहीं है ..और ढेर चतुर बनिए :) । मन तो करता है कै बार कि कहें । काहे बे ई एक सौ चालीस का लिमिट कोन हिसाब से डिसाइड किए हो बे । फ़ेसबुक में ई लफ़डा नय है , इसलिए मित्र सखा दोस्त सब एक से एक अभिव्यक्ति देते हैं , बानगी देखिए
मंगलवार, 26 जून 2012
फ़ेसबुक पर होती बातें
आइए देखें कि आज दोस्त/मित्र अपनी फ़ेसबुक यानि मुखपुस्तक पर क्या लिख बांच रहे हैं ...........>>>>>
क्या अब मुँह खोलेंगे P.M.!!
गैंग्स आफ डिसबैलेन्सपुर
बड़ी मुश्किल से खुद को “गैंग्स आफ वासेपुर” का रिव्यू लिखने से रोक पा रहा हूं। अब औचित्य नहीं है। अनुराग कश्यप चलती का नाम गाड़ी हो चुके हैं। स्पान्सर्ड रिव्यूज का पहाड़ लग चुका है। वे अब आराम से किसी भी दिशा में हाथ उठाकर कह सकते हैं- इतने सारे लोग बेवकूफ हैं क्या? फिर भी इतना कहूंगा कि दर्शकों को चौंकाने के चक्कर में कहानी का तियापांचा हो गया है।
धांय-धांय, गालियों, छिनारा, विहैवरियल डिटेल्स, लाइटिंग, एडिटिंग के उस पार देखने वालों को यह जरूर खटकेगा कि सरदार खान (लीड कैरेक्टर: मनोज बाजपेयी) की फिल्म में औकात क्या है। उसका दुश्मन रामाधीर सिंह कई कोयला खदानों का लीजहोल्डर है, बेटा विधायक है, खुद मंत्री है। सरदार खान का कुल तीन लोगों का गिरोह है, हत्या और संभोग उसके दो ही जुनून हैं। उसकी राजनीति, प्रशासन, जुडिशियरी, जेल में न कोई पैठ है न दिलचस्पी है। वह सभासद भी नहीं होना चाहता न अपने लड़कों में से ही किसी को बनाना चाहता है। उसका कैरेक्टर बैलट (मतिमंद) टाइप गुंडे से आगे नहीं विकसित हो पाया है जो यूपी बिहार में साल-दो साल जिला हिलाते हैं फिर टपका दिए जाते हैं। होना तो यह चाहिए था कि रामाधीर सिंह उसे एक पुड़िया हिरोईन में गिरफ्तार कराता, फिर जिन्दगी भर जेल में सड़ाता। लेकिन यहां सरदार के बम, तमंचे और शिश्न के आगे सारा सिस्टम ही पनाह मांग गया है। यह बहुत बड़ा झोल है।
कहानी के साथ संगति न बैठने के कारण ऊमनिया समेत लगभग सारे गाने बेकार चले गए हैं। ‘बिहार के लाला’ सरदार खान के मरते वक्त बजता है। गोलियों से छलनी सरदार भ्रम, सदमे, प्रतिशोध और किसी तरह बच जाने की इच्छा के बीच मर रहा है। उस वक्त का जो म्यूजिक है वह बालगीतों सा मजाकिया है और गाने का भाव है कि बिहार के लाला नाच-गा कर लोगों का जी बहलाने के बाद अब विदा ले रहे हैं। इतने दार्शनिक भाव से एक अपराधी की मौत को देखने का जिगरा किसका है, अगर किसी का है तो वह पूरी फिल्म में कहीं दिखाई क्यों नहीं देता
बिगरी बात बने नहीं लाख करे किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को मथे न माखन होय॥
सेबेस्तियो सल्गादों की इस तस्वीर के साथ दुनिया भर के मेहनतकश मजदूरों को मेरा सलाम ,मुमकिन हो तो प्रार्थना के स्वर बदल दीजिए ,हमारी प्रार्थना जय मेहनतकश ,जय मजदूर होनी चाहिए |आइये इस तस्वीर के साथ पढ़ें नरेश अग्रवाल की ये कविता
अभी सूरज भी नहीं निकला होगा
और तुम जा जाओगे
तुम्हारे जागते ही
जाग जायेंगे
ये पेड़-पक्षी और
धूलभरे रास्ते
तुम हॅंसते हुए
काम पर बढ़ोगे
और देखते ही देखते
यह हॅंसी फैल जायेगी
ईंट- रेत और सीमेंट की बोरियों पर
जिस पर बैठकर
हॅंस रहा होगा तुम्हारा मालिक
वह थमा देगा तुम्हारे हाथों में
कुदाल, फावड़े और बेलचे
बस शुरू हो जायेगी
तुम्हारी आज की लड़ाई
इस लड़ाई में
खून नहीं पसीना गिरेगा
जिसे सोखती जायेगी धरती
एक रूमाल बनकर बार-बार
जीत होगी दो मुट्ठी चावल
एक थकी हुई शाम
घर लौटने का सुख
और बच्चों की याद
बच्चे कभी नहीं पूछेंगे
तुम कौन सा काम करते हो
वे समझ जायेंगे
तुम्हारी झोली देखकर
हमेशा की तरह
तुम आज भी
हार कर लौटे हो ।
बड़का बड़का लीडर लोग "ते सब हंसे मष्ट करि रहहू" की मुद्रा में जमे हैं। बेचारे वीरभद्र सिंह को तो त्यागपत्र देना पड़ रहा है!
हर तरफ हर जगह बे शुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
तन्हाइयाँ कई तरह की हैं
आखिरकार पत्नी समेत वीरभद्र पर भ्रष्टाचार का आरोप हो गया तय ,
जय हो , कांग्रेस की सरकार में करप्शन का खूब बना रहता है लय ,
आउर जुलुम तो ई देखिए कि , भारत निरमान भी होता रहता है एकदम्मे से
सुनो मुक्तिबोध, यहां सब 'अंधेरे में' हैं...
"पति " शब्द ....मेरे विचार से उचित नहीं ....मालिक होने का भ्रम पैदा कर देता है ....पतिव्रता होना .....गुलामी ...या वफादारी का सर्टिफिकेट है .....
व्रत तो एक ही उत्तम है .......सत्य का अनुगमन करने का ....अगर सत्य को जीवन मे उतरने दिया जाय ..फिर किसी स्वांग की जरूरत भी नहीं ......और जब सभी सत्य पर होंगे तो सत्य हारेगा किससे ?..सत्य मेव जयते ही रहेगा ...बेकार के तमाम आडम्बर अपने आप स्वाहा हो जायेंगे ....
मैं पति की बजाय साथी कहलाना ज्यादा पसंद करूँगा ...वाकई मे कोई किसी का मालिक कैसे हो सकता है ...जब सभी का मालिक एक है ....
अपनी पत्नी के लिये भी जीवन-साथी शब्द का इस्तेमाल ही ज्यादा श्रेयस्कर है ....इसी बात पर एक गीत याद आया ....
"जीवन साथी हैं .....दिया और बाती हैं ...."कोई मेरा मित्र ढूंढ कर इस गीत को यहाँ पोस्ट भी कर देगा ...ऐसा मेरा विश्वास है .....नमस्कार मित्रों !!!
चिलचिलाती धूप में अक्सर कुछ लोगों को नाक से खून बहने की शिकायत होती है। इसे नकसीर भी कहा जाता है। यह मौसम के अनुसार शरीर में अधिक गर्मी बढ़ने से भी हो सकता है और कुछ लोगों को अधिक गर्म पदार्थ का सेवन करने से भी होती है।
पन्नों को महकने के लिये शब्दों का इत्र तो चाहिये
जीवन को चहकने के लिये मोहब्बत का कलरव तो चाहिये
ये अजब पर्दानशीनी है तेरे मेरे बीच या रब
तुझसे मिलन के लिये एक कसक तो कसकनी चाहिये
चहूँ ओर ... अस्त-व्यस्त
जनता त्रस्त
मंत्री-अफसर मस्त
सत्ताधारी मदमस्त
और लोकतंत्र हुआ है पस्त
कब होगा 'उदय' -
इन भ्रष्टों का सूरज अस्त ?
बचपन में एक कहावत पढ़ी थी ये आज भी उतनी ही सही यानि सोलह आने सच है - लोग अपने दुखों/परेशानियों से उतने दुखी नहीं हैं जितना दूसरों के सुख/तरक्की देखकर उन्हें खुजली होती है, या दूसरे शब्दों में (सरल भाषा में) कहें तो परेशानी होती है।
तुम्हारी करवटों की सलवटें हम तक पहुँच गई
सिसकिया हमारी उमड़ी और अम्बर से बरस गई ...सोनल
शुक्रवार, 22 जून 2012
कुछ गलबतियां
आज दोस्तों की बतकहियां , गलबतियां ,चुहल , चुटकियां , कहा सुना सब दिखाते हैं आपको देखिए ……………….
अगर यह संशय हो कि फ़लाने नेता सेकुलर हैं या नहीं, तो उनका डीएनए टेस्ट करवा लेना चाहिये - कोर्ट के आदेश पर। शायद उससे तय हो सके!
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बरसात की फ़ूहारों से बीज जाग उठे, अंगडाई ली और कोपलें फ़ूट पड़ी। इस हफ़्ते में धरती हरियाली की चादर ओढ कर सावन की प्रतीक्षा करगी। जब सावनी हिंडोले डलेगें, सावन की फ़ूहारों के साथ पींगे मार मार कर झूलना होगा………… सुप्रभात मित्रों
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Animal Farm में कम्युनिस्ट कुशासन के बारे में पढ़ा था - All are equal but some are MORE EQUAL.
अब पूँजीवाद प्रतीक फेसबुक सुझा रहा है - All are friends but some are CLOSE FRIENDS. बोले तो 'more friends' ... मलाई काटने वाले एक ही भाषा बोलते हैं।
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इस वक्त बनारस पर आधारित शानदार कार्यक्रम डीडी भारती पर देख रहा हूँ। केदारनाथ सिंह दिख चुके हैं, रांड़, सांड़, सीढ़ी, बीएचयू भी दिख चुके हैं....देखते हैं आगे और कौन नजर आते हैं।
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Sudha Upadhyaya
नहीं
जानती कौन हूँ मैं ...
रुदाली या विदूषक ,
मृत्यु का उत्सव मनाती ,
बुत की तरह शून्य में ताकते लोगों में संवेदना जगाती
इस संवेदन शून्य संसार में मुझी से कायम होगा संवाद
भाषा की पारखी दुनिया में मैं तो केवल
भाव की भूखी हूँ .....
फिर फिर कैसे संवाद शून्य संवेदन में भर दूं स्पंदन .....डॉ सुधा उपाध्याय
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Mausam mastana....... Chal kahi door nikal jaayein.....
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फेसबुक के प्रेमी भी क्या खूब हैं दिन भर इसकी या उसकी दीवार पर चढ़ते-उतरते रहते हैं...बढ़िया है..
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चैन से जीने के लिए..."नहीं" बोलना सीखना बहुत ज़रूरी है...हम लोगो का लिहाज करते हुए कभी कभी ना करने में बड़ा हिचकते हैं...ऐसे में लोग हमारा फायदा उठाने लगते हैं... :(
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आँखों की नमी का सबब ना पूछो तो बेहतर
भाप की बूंदे है जो पलकों पे उभर आती है
ज़रा मिले तन्हाई तो मचलती है ऐसे
कोरों को छोड़ कर गालों पर उतर जाती है ...सोनल रस्तोगी
जेबकतरे पहले जेबकतरे ही हुआ करते थे। अब तो वे सभी व्यवसायों में पैठ गये हैं। और कुछ तो उल्टे उस्तरे से मूड़ने की काबलियत रखते हैं!
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डा.बी. आर. अम्बेडकर ने कहा था '' कांग्रेस एक धर्मशाला के सामान है,जो मूर्खों ,धूर्तों, मित्र और शत्रु, साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष, सुधारवादी और कट्टरपंथी, पूंजीवादी और पूंजीवाद विरोधी सभी लोगों के लिए खुली हुई है.''
राष्ट्रपति पद को लेकर प्रणव मुखर्जी को मिल रहे समर्थन पर डा. अम्बेडकर की उक्ति सटीक बैठ रही है ....
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कथित "हिन्दु हृदय सम्राट" माननीय बाला साहेब ठाकरे ने "हिन्दु और राष्ट्रवादी" विचारों को ताक पर रख कर पिछले राष्ट्रपति चुनावों में संकिर्ण क्षेत्रियवाद के तहत 'मराठी' व्यक्ति का समर्थन किया. और देश ने सबसे बेहुदा राष्ट्रपति झेला. एक बार फिर ठाकरे वैसा ही करने जा रहे है. ठाकरे जी, प्रणव जीते या हारे, इतिहास में आप किस तरफ दिखाई देंगे इस पर विचार किया है?
किसी का भी लिया नाम तो आयी याद तू ही तू...
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सड़कों पर भागमभाग किसी को सबर नहीं।
काफी दिनों से धीरेश सैनी की खबर नहीं।
बड़बड़ाहटों में छिपे हुए हैं टोटके फिजूल के।
दो अरब से ऊपर हाथ है पर एक नजर नहीं।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे आगे ...ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ...
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गज़ब कि..........तेरे मेरे रिश्तों से ज़माना अनजान है
शायद आँखें उसकी खुली नहीं और बन्द..दोनों कान हैं
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Suresh Chiplunkar
मित्रों… राष्ट्रपति चुनाव में जैसी राजनीति(?) हुई है, वह 2014 का स्पष्ट संकेत है…। और जैसा कि नज़र आ रहा है निम्न दो स्थितियों में से आप कौन सी स्थिति पसन्द करेंगे???
1) 180-190 सीटों के साथ भाजपा "अपनी हिन्दूवादी शर्तों" के साथ सत्ता का दावा पेश करे, जिसे साथ आना हो आए वरना भाड़ में जाए (अर्थात 180-190 सीटों के साथ भाजपा विपक्ष में बैठे… )
2) नीतीश, शरद यादव और मुलायम जैसे "लोटे" कांग्रेस के समर्थन से (यानी सोनिया के तलवे चाटते हुए) सत्ता में दिखाई दें… ताकि जल्दी ही मध्यावधि चुनाव हों…
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प्रमुख सवाल यह है कि, क्या नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके, जद(यू) जैसे सेकुलर भाण्डों को लतियाकर, भाजपा 180 सीटें भी नहीं ला सकेग़ी???
और मान लो कि "हिन्दुत्ववादी राजनीति" करके यदि 180 सीटें आ गईं तो क्या तब भी भाजपा "अछूत" ही रहेगी???