आज दोस्तों की बतकहियां , गलबतियां ,चुहल , चुटकियां , कहा सुना सब दिखाते हैं आपको देखिए ……………….
अगर यह संशय हो कि फ़लाने नेता सेकुलर हैं या नहीं, तो उनका डीएनए टेस्ट करवा लेना चाहिये - कोर्ट के आदेश पर। शायद उससे तय हो सके!
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बरसात की फ़ूहारों से बीज जाग उठे, अंगडाई ली और कोपलें फ़ूट पड़ी। इस हफ़्ते में धरती हरियाली की चादर ओढ कर सावन की प्रतीक्षा करगी। जब सावनी हिंडोले डलेगें, सावन की फ़ूहारों के साथ पींगे मार मार कर झूलना होगा………… सुप्रभात मित्रों
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Animal Farm में कम्युनिस्ट कुशासन के बारे में पढ़ा था - All are equal but some are MORE EQUAL.
अब पूँजीवाद प्रतीक फेसबुक सुझा रहा है - All are friends but some are CLOSE FRIENDS. बोले तो 'more friends' ... मलाई काटने वाले एक ही भाषा बोलते हैं।
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इस वक्त बनारस पर आधारित शानदार कार्यक्रम डीडी भारती पर देख रहा हूँ। केदारनाथ सिंह दिख चुके हैं, रांड़, सांड़, सीढ़ी, बीएचयू भी दिख चुके हैं....देखते हैं आगे और कौन नजर आते हैं।
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Sudha Upadhyaya
नहीं
जानती कौन हूँ मैं ...
रुदाली या विदूषक ,
मृत्यु का उत्सव मनाती ,
बुत की तरह शून्य में ताकते लोगों में संवेदना जगाती
इस संवेदन शून्य संसार में मुझी से कायम होगा संवाद
भाषा की पारखी दुनिया में मैं तो केवल
भाव की भूखी हूँ .....
फिर फिर कैसे संवाद शून्य संवेदन में भर दूं स्पंदन .....डॉ सुधा उपाध्याय
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Mausam mastana....... Chal kahi door nikal jaayein.....
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फेसबुक के प्रेमी भी क्या खूब हैं दिन भर इसकी या उसकी दीवार पर चढ़ते-उतरते रहते हैं...बढ़िया है..
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चैन से जीने के लिए..."नहीं" बोलना सीखना बहुत ज़रूरी है...हम लोगो का लिहाज करते हुए कभी कभी ना करने में बड़ा हिचकते हैं...ऐसे में लोग हमारा फायदा उठाने लगते हैं... :(
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आँखों की नमी का सबब ना पूछो तो बेहतर
भाप की बूंदे है जो पलकों पे उभर आती है
ज़रा मिले तन्हाई तो मचलती है ऐसे
कोरों को छोड़ कर गालों पर उतर जाती है ...सोनल रस्तोगी
जेबकतरे पहले जेबकतरे ही हुआ करते थे। अब तो वे सभी व्यवसायों में पैठ गये हैं। और कुछ तो उल्टे उस्तरे से मूड़ने की काबलियत रखते हैं!
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डा.बी. आर. अम्बेडकर ने कहा था '' कांग्रेस एक धर्मशाला के सामान है,जो मूर्खों ,धूर्तों, मित्र और शत्रु, साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष, सुधारवादी और कट्टरपंथी, पूंजीवादी और पूंजीवाद विरोधी सभी लोगों के लिए खुली हुई है.''
राष्ट्रपति पद को लेकर प्रणव मुखर्जी को मिल रहे समर्थन पर डा. अम्बेडकर की उक्ति सटीक बैठ रही है ....
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कथित "हिन्दु हृदय सम्राट" माननीय बाला साहेब ठाकरे ने "हिन्दु और राष्ट्रवादी" विचारों को ताक पर रख कर पिछले राष्ट्रपति चुनावों में संकिर्ण क्षेत्रियवाद के तहत 'मराठी' व्यक्ति का समर्थन किया. और देश ने सबसे बेहुदा राष्ट्रपति झेला. एक बार फिर ठाकरे वैसा ही करने जा रहे है. ठाकरे जी, प्रणव जीते या हारे, इतिहास में आप किस तरफ दिखाई देंगे इस पर विचार किया है?
किसी का भी लिया नाम तो आयी याद तू ही तू...
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सड़कों पर भागमभाग किसी को सबर नहीं।
काफी दिनों से धीरेश सैनी की खबर नहीं।
बड़बड़ाहटों में छिपे हुए हैं टोटके फिजूल के।
दो अरब से ऊपर हाथ है पर एक नजर नहीं।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे आगे ...ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ...
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गज़ब कि..........तेरे मेरे रिश्तों से ज़माना अनजान है
शायद आँखें उसकी खुली नहीं और बन्द..दोनों कान हैं
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Suresh Chiplunkar
मित्रों… राष्ट्रपति चुनाव में जैसी राजनीति(?) हुई है, वह 2014 का स्पष्ट संकेत है…। और जैसा कि नज़र आ रहा है निम्न दो स्थितियों में से आप कौन सी स्थिति पसन्द करेंगे???
1) 180-190 सीटों के साथ भाजपा "अपनी हिन्दूवादी शर्तों" के साथ सत्ता का दावा पेश करे, जिसे साथ आना हो आए वरना भाड़ में जाए (अर्थात 180-190 सीटों के साथ भाजपा विपक्ष में बैठे… )
2) नीतीश, शरद यादव और मुलायम जैसे "लोटे" कांग्रेस के समर्थन से (यानी सोनिया के तलवे चाटते हुए) सत्ता में दिखाई दें… ताकि जल्दी ही मध्यावधि चुनाव हों…
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प्रमुख सवाल यह है कि, क्या नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके, जद(यू) जैसे सेकुलर भाण्डों को लतियाकर, भाजपा 180 सीटें भी नहीं ला सकेग़ी???
और मान लो कि "हिन्दुत्ववादी राजनीति" करके यदि 180 सीटें आ गईं तो क्या तब भी भाजपा "अछूत" ही रहेगी???
sundar !
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