इन दिनों दोस्त , फ़ेसबुक की दीवारों पर क्या कुछ कह सुन रहे हैं , आइए देखते हैं
आइबीएन ने एनडीटीवी की तरह सरकार की चमचागीरी न कर, कुछ बुराई क्या कर दी, मुकेश अंबानी उसकी औकात बताने की ठान ली है। मोटा भाई ने कहा है कि इस पूरे ग्रुप को खरीद लो। इसे कहते है मीडिया का सौदा। लोग पेड न्यूज पर हंगामा करते हैं, जहां तो संस्था ही पेड हो रही है।
आयोडेक्स मलिए..... काम पे चलिए...
मैं घोर संघ विरोधी हूँ मगर क्या किसी के संघ प्रचारक के भ्रष्टाचार विरोधी होने पर इस देश में पाबंदी है। अण्णा और संघ में रिश्ते की खोज में समय बरबाद करने वाले लोग सीधे सीधे भ्रष्टाचार पर बात क्यों नहीं करते ।
वह बात-बात पे जी भर के बोलने वाला
उलझ के रह गया डोरी को खोलने वाला
-बानी
कहीं पढ़ रखा था किसी प्रसिद्द व्यक्ति का कथन है>>>
"स्त्रियाँ दो तरह की होती हैं. एक वे जिन्हें देख कर सिर्फ देखते रहने का
मन करता है और एक वे जिन्हें देख कर छूने का मन करता हैं."
उस प्रसिद्द व्यक्ति के प्रशंसकों से क्षमा मांगते हुए इसमें हम एक संशोधन करना चाहेंगे>>>
महाशय द्वारा बताईं गईं स्त्रियों के साथ-साथ एक और भी प्रकार होता है
स्त्रियों का.."जिन्हें देख कर सिर्फ और सिर्फ डर के मारे भागने का मन करता
हैं."
(एक बार उत्तर प्रदेश के तमाम राजनैतिक दलों और सत्ता पक्ष के मंत्रियों से पूछ कर तो देखो)
"स्त्रियाँ दो तरह की होती हैं. एक वे जिन्हें देख कर सिर्फ देखते रहने का मन करता है और एक वे जिन्हें देख कर छूने का मन करता हैं."
उस प्रसिद्द व्यक्ति के प्रशंसकों से क्षमा मांगते हुए इसमें हम एक संशोधन करना चाहेंगे>>>
महाशय द्वारा बताईं गईं स्त्रियों के साथ-साथ एक और भी प्रकार होता है स्त्रियों का.."जिन्हें देख कर सिर्फ और सिर्फ डर के मारे भागने का मन करता हैं."
(एक बार उत्तर प्रदेश के तमाम राजनैतिक दलों और सत्ता पक्ष के मंत्रियों से पूछ कर तो देखो)
दीवार पर लगी तस्वीर में एक चेहरा खाली है
उसे इंतज़ार है बेसब्री से मेरे चेहरे का
और मुझे भी इंतज़ार है दीवार पर टंगने का
किसी की नज़र तो अपना समझ कर देखेगी मुझ को
और फिर कह देगी नज़रों से नज़रों की बातों को
ये बात और है कि सुनने के लिए मैं न होउंगा ज़मीन पर
हिलती तस्वीर ही कह देगी मेरी बात हवा के झोंकों पर
महसूस करना न करना उसकी मर्ज़ी है
बेज़बानों को इतना तो दर्द होता ही है
------यशवन्त माथुर
नाच गाना लड़ना झगड़ना बकना बहकना तड़पना ही रियलटी शो नहीं होता
देख रहा हूँ रियल रियलटी शो
स्टार प्लस पर
आज
फिर एक्स नजर आई, किंग्सवे कैम्प (दिल्ली) में मेट्रो के पास से अपने
दोस्त के साथ गुज़रती हुई...पहले से थोड़ी मोटी और पहले से थोड़ी और
कांफिडेंट ...वाई के इतना कहते ही उछलते हुए सी ने पूछ...कौन था उसके साथ
अ, ब या वही नॉर्थ ईस्ट वाला?
''तू पागल है क्या सी, जब वह सामने हो तो कहीं और नजर जाती है क्या????''
(एक्स-वाई की कहानी से)
मुझे
हमेशा से ये लगा है कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ये जरुरी है कि कभी हम
राजनीतिक परिस्थितियों से संतुष्ट न हो ,अगर ये असंतुष्टि नफरत की हद तक हो
,तो भी गुरेज नहीं करना चाहिए |मुख्या चुनाव आयुक्त एस वसई कुरैशी जब ये
कहते हैं कि "आप लोकतंत्र को पसंद करें और राजनैतिकों से नफरत करें यह
मुमकिन नहीं " तो मुझे ये बात हजम नहीं होती ,एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए
जरुरी है हम नफरत की आग को भड़का के रखे और मौके दर मौके परिस्थितियों के
हिसाब से आग को फूल में तब्दील करने की जादूगरी भी जाने
हर आदमी के पास
होती है
थोड़ी-सी ताकत
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़ी-सी मोहब्बत
आओ
मिला दे हम
अपनी-अपनी ताकत,उम्मीद और मोहब्बत
जिससे बन जाए
एक नई दुनिया
सबके जीने के लायक |
उसे इंतज़ार है बेसब्री से मेरे चेहरे का
और मुझे भी इंतज़ार है दीवार पर टंगने का
किसी की नज़र तो अपना समझ कर देखेगी मुझ को
और फिर कह देगी नज़रों से नज़रों की बातों को
ये बात और है कि सुनने के लिए मैं न होउंगा ज़मीन पर
हिलती तस्वीर ही कह देगी मेरी बात हवा के झोंकों पर
महसूस करना न करना उसकी मर्ज़ी है
बेज़बानों को इतना तो दर्द होता ही है
------यशवन्त माथुर
नाच गाना लड़ना झगड़ना बकना बहकना तड़पना ही रियलटी शो नहीं होता
देख रहा हूँ रियल रियलटी शो
स्टार प्लस पर
आज
फिर एक्स नजर आई, किंग्सवे कैम्प (दिल्ली) में मेट्रो के पास से अपने
दोस्त के साथ गुज़रती हुई...पहले से थोड़ी मोटी और पहले से थोड़ी और
कांफिडेंट ...वाई के इतना कहते ही उछलते हुए सी ने पूछ...कौन था उसके साथ
अ, ब या वही नॉर्थ ईस्ट वाला?
''तू पागल है क्या सी, जब वह सामने हो तो कहीं और नजर जाती है क्या????''
(एक्स-वाई की कहानी से)
मुझे हमेशा से ये लगा है कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ये जरुरी है कि कभी हम राजनीतिक परिस्थितियों से संतुष्ट न हो ,अगर ये असंतुष्टि नफरत की हद तक हो ,तो भी गुरेज नहीं करना चाहिए |मुख्या चुनाव आयुक्त एस वसई कुरैशी जब ये कहते हैं कि "आप लोकतंत्र को पसंद करें और राजनैतिकों से नफरत करें यह मुमकिन नहीं " तो मुझे ये बात हजम नहीं होती ,एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरुरी है हम नफरत की आग को भड़का के रखे और मौके दर मौके परिस्थितियों के हिसाब से आग को फूल में तब्दील करने की जादूगरी भी जाने
हर आदमी के पास
होती है
थोड़ी-सी ताकत
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़ी-सी मोहब्बत
आओ
मिला दे हम
अपनी-अपनी ताकत,उम्मीद और मोहब्बत
जिससे बन जाए
एक नई दुनिया
सबके जीने के लायक |
होती है
थोड़ी-सी ताकत
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़ी-सी मोहब्बत
आओ
मिला दे हम
अपनी-अपनी ताकत,उम्मीद और मोहब्बत
जिससे बन जाए
एक नई दुनिया
सबके जीने के लायक |
खूब सुनाये महाराज ... जय हो !
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