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सोमवार, 23 जुलाई 2012

हिंदी तो उनका कुत्ता भी लिख लेता है .,



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इस देश में हिंदी को गरियाने , धकियाने , धमकाने वाले लोगों को तलाशने के लिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडती है । न ही ऐसा है कि वे किसी अहिन्दी भाषी प्रदेश या देश से आते हैं , न न न न वे अंग्रेज , ब्रिटिश  , फ़्रांसीसी आदि भी नहीं हैं , वे आपके हमारे बीच के अपने हमारे मित्र/सखा /दोस्त और परिचित ही हैं । भाषा साहित्य कोई भी बुरी खराब या छोटी बडी नहीं होती । हर भाषा का अपना महत्व , स्थान और मान है , सबको बोलने पढने लिखने और समझने वाले लोग हैं इसलिए हर भाषा का सम्मान किया जाना चाहिए । सबसे जरूरी बात ये कि यदि आपको सम्मान करने से कोफ़्त है तो भी कोई बात नहीं किंतु किसी भाषा का अपमान नहीं किया जाना चाहिए । किंतु यहां ये प्रवृत्ति बहुत तेज़ी से पनप रही है कि किसी एक भाषा की दुम पकड के उसका गुणगान करते हुए दूसरी भाषा को तुच्छ ,घटिया, निम्न साबित किया जाए और सोचिए कि यदि वो भाषा खुद राष्ट्रभाषा हिंदी हो तो । जी हां , ठीक समझ रहे हैं आप , ऐसा लगता है मानो किसी ने खींच के एक चाटा मुंह पर लगा दिया हो । अफ़सोस और खीज़ तब ज्यादा होती है जब वो आपके अपने ही दायरे के हों , फ़ेसबुकिए , ब्लॉगर हों ......देखिए कैसे ,"







ये हमारे फ़ेसबुक और हिंदी ब्लॉगर मित्र डॉ.महफ़ूज़ अली जी के कुछ हालिया फ़ेसबुक अपडेट्स हैं जिन्हें पढ कर सच में दुख और अफ़सोस हुआ , आपको कैसा लगा ????

90 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे तो अली जी का विचार बहुत ही अच्छा लगा। जब हिंदी अपने साथी भाषा के यह करता तब आपका दुख कहाँ था अजय जी। सत्यानाश हो इस हिन्दी का।

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    1. सत्यानाश हिंदी का न तो हुआ है न हो पाएगा अनचिन्हार जी , मैं तो तब भी यहीं था और अब भी यहीं हूं और आगे भी रहूंगा आप शायद जरूर कहीं मूर्छित थे जो यकायक आज जाग पडे हैं । कृपया ये भी तो बताएं कि हिंदी ने कब किस साथा के साथ क्या क्या कर दिया और यदि आपको लगता है कि भाई महफ़ूज़ अली द्वारा कहे शब्द कि हिंदी वैश्या की तरह है जिसे कोई कुत्ता भी लिख सकता है तो यकीन मानिए आपकी सोच पर भी तरस आता है और अफ़सोस भी ।

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    2. हर भाषा के अपने संस्कार,सुंदरता और उसूल होते हैं और हिंदी भाषा भी बहुत सुदृढ़ संस्कारों और उसूलों का भंडार है,इसका सौंदर्य किसी भी दूसरी भाषा से ज़रा भी कम नहीं है बल्कि यदि मेरा दृष्टिकोण पूछा जाए तो बीस ही होगी उन्नीस नहीं, इसका ये कदापि अर्थ नहीं कि दूसरी भाषाओं में कोई कमी है परंतु यहाँ बात हिंदी की हो रही है ,,अजय जी मैं आप से सहमत हूँ कि अकूत शब्द भंडार वाली इस भाषा का न तो ’सत्यानाश’ हुआ है और न होगा
      ये हमारी मातृ भाषा हो या न हो राष्ट्र भाषा है और हमेशा लोगों के दिलों पर राज करती रहेगी
      हर भाषा का अपना अस्तित्व होता है भाषाएं आपस में प्रतियोगिता करने के लिये नहीं होतीं ,,,,, सो कृपया आपसी मतभेदों में भाषाओं को न घसीटें ,उन की पवित्रता बनी रहने दें

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  2. भाई अजय जी पैसे की गंध आदमी का विवेक हर लेता है.... अभी हमारे नरेन्द्र मोदी जापान में हिंदी में भाषण दे रहे हैं..... उसका लाइव इंटरप्रेटेशन हो रहा है जापानी और अंग्रेजी में... अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया था और वह एतिहासिक हो गया था....चंद्रशेखर अपने विदेश यात्रा पर हिंदी में ही बोलते थे... प्रधानमंत्रित्व काल में.. .पैसे से आप जीते जी बदन पर कपडे और सुविधा खरीद सकते हैं.. इतिहास के पन्ने पर स्थान नहीं... वो साहित्य और संस्कृति में योगदान करने से ही आता है... अपनी भाषा के प्रति सम्मान नहीं करना आन्तरिक खोखलेपन को दिखता है...

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    1. अपनी भाषा के प्रति सम्मान नहीं करना आन्तरिक खोखलेपन को दिखता है.....यही तो दिक्कत है अरूण जी कुछ मित्र इसे अपना मानते ही नहीं हैं । न मानें लेकिन अपमान का हक उन्हें कोई नहीं देता

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  3. बहुत अफ़सोस है की खुद हम ही हमारी धरोहर,हमारे सम्मान को बुरा भला कह रहे हैं, कुछ भी हो जाये, किसी भी कीमत पर माँ अपने बेटे को बुरा नहीं कहती फिर बेटा कैसे अपनी माँ (मात्री भाषा) का अपमान अपनी जुबान कर रहा है, बहुत शर्म की बात है...."हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा".

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    1. "हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा"....सच कहा आपने नवीन भाई

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  4. सोते-जागते तो आप लोग हैं अजय जी। आप लोग शायद गांधारी-धृतराष्ट्र है। अंग्रेजी तो दिख गयी मगर हिंदी का साम्राज्य वाद ापको दिख नहीं रहा है।.... हिन्दी मेरी मातृभाषा नहीं है अजय जी और न ही आपकी है। फ्रस्ट्रेशन तो हिन्दी वालो को हो रहा है।


    और हिन्दी राष्ट्र भाषा कब से हो गयी। अजय जी से आग्रह है कि.... जरा प्रमाण दिखायें। और गर मानने से कोइ भाषा राष्ट्र भाषा बन जायें। तो हम मानते है कि " मैथिली" भारत की राष्ट्र भाषा है।

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    1. आशीष जी मैथिली मेरी भी मातृभाषा है लेकिन हिंदी राष्ट्रभाषा है इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है कम से कम भारत में तो नहीं । अपनी आंखों की पट्टी आप खोलिए और किसी भाषा को सम्मान और स्थान दिलाने के लिए जरूरी होता है उसका सम्मान करन अन कि दूसरे भाषा को गरियाते रह कर अपनी भाषा का गुणगान करना जैसे कि अक्सर हाकी की बदहाली के लिए क्रिकेट को कोसा गरियाया जाता है । मैथिली राष्ट्र क्या विश्व भाषा बने मुझे आपसे ज्यादा प्रसन्नता होगी और रही बात फ़्रस्टेशन निकालने की तो वो स्पष्ट दिख ही रहा है । मैथिली के प्रति आपके ज़ज़्बे को मेरा प्रणाम किंतु हिंदी के प्रति आपकी मानसिकता और विचार को धिक्कार । हिंदी मैथिली संस्कृत, भोजपुरी सहित तमाम भाषाएं बोलियां एक तरफ़ और अंग्रेजी और अंग्रेजी से भी अधिक अंग्रेजियत एक तरफ़ । आप खुद तय करिए कि किस तरफ़ हैं

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    2. मैथिली राष्ट्र की भाषा नहीं है ...! ? किसने कह दिया?
      हिन्दी तो राजभाषा है, देश की!
      राष्ट्र की तो कई भाषाएं हैं, अंग्रेज़ी भी।

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  5. "हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा". यह सत्य है लेकिन हिंदी भाषिओं का हाल हकीकत में हिन्दुस्तानियों में भी गरीब जैसा ही है | अमीर पढ़ा लिखा अंग्रेजी बोला करता है| आज तो उत्तेर्प्रदेश जैसी जगहों पे बच्चे को सेब कि जगह अप्प्ल ओर कान कि जगह इयर ही सीखते हैं |

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    1. सच है आपकी बात मासूम जी लेकिन इसका अर्थ क्या ये है कि उस भाषा को गालियां दी जाएं उसका अपमान किया जाए । ये प्रशासनिक कमी है इसे दूर किया जाना चाहिए न कि सबको मिल कर उसे अपमानित करने का प्रयास करना चाहिए

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  6. अगर व्यवहारिक रूप से देखा जाये तो बात सही है, पर अगर भावनात्मक रूप से देखा जाये तो बात गलत है। क्योंकि अंग्रेजी ऐसी भाषा है जिससे इंसान अच्छे से पेट भर सकता है, और जो हिन्दी में लगा रहता है, वो बुढ्ढ़ा होने पर भी अपना पेट ढंग से नहीं भर पाता, वैसे हिन्दी हमारी मातृभाषा है, और मैं हिन्दी का पूर्ण सम्मान करता हूँ, परंतु इतना बबाल क्यों ? ऐसा लगता है कि हम सच शायद सुनना नहीं चाहते और वाकई सच बहुत वीभत्स होता है।

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    1. नहीं विवेक भाई बात सच सुनने का नहीं है न ही किसी भाषा के बडे छोटे होने का है सच तो हम सब रोज़ देख सुन और झेल ही रहे हैं और महज़ भाषा से किसी का पेट नहीं भरता अन्यथा दक्षिण भारत और अन्य अहिन्दी प्रदेशों में तो लोग भूखे ही मर जाते । सवाल सिर्फ़ किसी भाषा के मान अपमान का है जिसे किसी भी स्थिति और दशा में नहीं किया जाना चाहिए

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    2. रस्तोगी जी मां उस समय अपना पेट काटकर पेट भरती है जब हम अपना पेट भरने लायक नहीं होते। ये हमारी मातृभाषा है। हमने अपनी पहली अभिव्यक्ति इसी भाषा में की थी। अत: जो ये कहे कि मैं अपनी मां पे एहसान करता हूं, उसे किस संज्ञा से विभूषित करना चाहिए?

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    3. वही तो हम कह रहे हैं हनुमान मिश्रा जी, अगर कोई माँ का अपमान करने की कोशिश करे तो माँ का अपमान नहीं होता अपमान जो करता है उसका होता है। माँ और भाषा दोनों महान हैं, इसलिये कोई दोनों का अपमान नहीं कर सकता ।

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  7. सच कहें तो ऐसा लगा जैसे कोई सरे बाज़ार अपनी माँ की इज्जत नीलाम कर रहा हो... अगर कोई हिंदी में लिख कर उस पर एहसान करता है, तो कृपा करें, हिंदी को आपके एहसान की आवश्यकता नहीं है... धन्यवाद...

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  8. मानसिक रूप से दीवालिया हो चुके जिन हिन्दुस्तानियों में वर्णसंकरता आ गई है यदि उनका रहन सहन और अभिव्यक्ति का माध्यम भी संकरित हो गया है तो, इसमे आश्चर्य नहीं करना चाहिए। ये उन लोगों में से हैं जो पडोसी को आंटी कहकर प्रेम जताते हैं लेकिन अपनी मां को लतियाते हैं। ये उनके अंदर की कमी है आपकी नहीं। अत: निश्चिन्त रहिए हिन्दी को कुछ नहीं होने वाला है। हिन्दी को सभी भाषाओं की जननी संस्कृत सर्वाधिक स्नेह करती है।

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    1. निश्चिन्त रहिए हिन्दी को कुछ नहीं होने वाला है। हिन्दी को सभी भाषाओं की जननी संस्कृत सर्वाधिक स्नेह करती है।...वाह लाख टके की बात कही आपने

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. कहाँ पागलों के चक्कर में पड़ गए आप?? कहने को हम भी कह सकते हैं कि अंग्रेजों के कुत्ते अंग्रेज़ी में कविता कर सकते हैं. जिस व्यक्ति का अ से लेकर ज्ञ तक झूठ से सना हो उसकी बातों पर ध्यान क्या देना? यहाँ अँगरेज़ और यूरोपियन लोगों के दिलों में हिन्दी के लिए कितना सम्मान है ये ऐसे लोग देख लें तो बेहोश हो जाएँ. ये सब अनर्गल भाषाई उल्टियां लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने का फंडा है जो आप इतने सालों में भी ना समझ पाए. इतना ही गुमाँ था तो ये सब इंग्लिश में लिखा जाता ना कि हिन्दी में, यह लिखा ही इसलिए गया है कि इस पर बहस की जाए इसलिए ऐसे नालायकों को छोड़िये ध्यान मत दीजिये. अब तो विज्ञान भी स्वीकारता है कि सिर्फ हिन्दी और चाइनीज मेंडेरियन ऐसी भाषाएँ हैं जिनका इस्तेमाल करते वक़्त मस्तिष्क के दोनों हिस्से सक्रिय रूप से भाग लेते हैं. खैर अपने-अपने देश और भाग की भाषा है जिनपर सभी गर्व करते हैं इसके लिए लड़ाई क्या लड़ना.. इन जैसे कुछ हिन्दी भाषाई बेवकूफों को छोड़ दें तो दुनिया के हर भाषा का व्यक्ति दूसरी भाषा का सम्मान ही करता है.

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  11. इन जैसे अनपढ़ और जाहिलों पर तरस खाइए... इनकी तरफ देखिये, थोड़ा मुस्कुराइए और चलते बनिए...

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    1. अरे.. दीपक तुम्हारे मन में इतना ज़हर भरा है.. मुझे तो यह पता ही नहीं था.. क्यूँ इतना अपने अंदर भर के रखा था.. गलत बात है ना? अरे .. छोटे भाई.. हो.. फ़ोन कर कह सकते थे.. बहुत बहुत थैंक्स तुम्हारा भी.. मुझे देखो.. जो भी किसी को कुछ भी कहना होता है.. कह देता हूँ.. आगे से ऐसा मत करना.. जो भी कहना हो.. खुल के मुँह पर कहना.. तुम्हे हमेशा छोटा भाई ही ट्रीट किया है.. तुम्हारी सुनना तो मेरा farz banta है.. थैंक्स दीपक...

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    2. अरे.. दीपक तुम्हारे मन में इतना ज़हर भरा है.. मुझे तो यह पता ही नहीं था.. क्यूँ इतना अपने अंदर भर के रखा था.. गलत बात है ना? अरे .. छोटे भाई.. हो.. फ़ोन कर कह सकते थे.. बहुत बहुत थैंक्स तुम्हारा भी.. मुझे देखो.. जो भी किसी को कुछ भी कहना होता है.. कह देता हूँ.. आगे से ऐसा मत करना.. जो भी कहना हो.. खुल के मुँह पर कहना.. तुम्हे हमेशा छोटा भाई ही ट्रीट किया है.. तुम्हारी सुनना तो मेरा farz banta है.. थैंक्स दीपक...

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    3. दीपक तुम्हारे मन में इतना ज़हर भरा है.. मुझे तो यह पता ही नहीं था.. क्यूँ इतना अपने अंदर भर के रखा था.. गलत बात है ना? अरे .. छोटे भाई.. हो.. फ़ोन कर कह सकते थे.. बहुत बहुत थैंक्स तुम्हारा भी.. मुझे देखो.. जो भी किसी को कुछ भी कहना होता है.. कह देता हूँ.. आगे से ऐसा मत करना.. जो भी कहना हो.. खुल के मुँह पर कहना.. तुम्हे हमेशा छोटा भाई ही ट्रीट किया है.. तुम्हारी सुनना तो मेरा farz banta है.. थैंक्स दीपक...

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  12. रिटेल की नौकरी मे मेरा खुद का अनुभव है जब पहली बार एक विदेशी को फ्लोर पर देख कर मैंने उन से बोला था -Hello Sir,May i assist you ? और उस अमेरिकन व्यक्ति का कहना था "धन्यवाद जो लेना था मैंने ले लिया है" उसका हिन्दी मे जवाब सुनकर मेरा चेहरा देखने लायक था और इसके बाद अनेक ऐसे अनुभवों से गुज़रा हूँ जब खुद की हिन्दी से बेहतर विदेशी की हिन्दी को पाया है।

    गिरिजेश राव जी ने भी अपनी हालिया पोस्ट (http://girijeshrao.blogspot.in/2012/07/blog-post_17.html) मे लंदन मे संस्कृत पढ़ाए जाने का उल्लेख भी किया है।

    कहने का मतलब यह की अपनी भाषा अपनी ही होती है जिस पर हमे गर्व होना चाहिए। और यह सीख भी हमे रूस,जर्मनी,फ्रांस और जापान के लोगों से खास तौर पर लेनी चाहिए जो अपने देश मे विदेशी भाषा मे बात करने वाले को हिकारत की नज़रों से देखते हैं।

    सादर

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    1. कहने का मतलब यह की अपनी भाषा अपनी ही होती है जिस पर हमे गर्व होना चाहिए। और यह सीख भी हमे रूस,जर्मनी,फ्रांस और जापान के लोगों से खास तौर पर लेनी चाहिए जो अपने देश मे विदेशी भाषा मे बात करने वाले को हिकारत की नज़रों से देखते हैं। ....खरी बात कही आपने यशवन्त भाई

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  13. अरे,..... अजय जी.. गाली खिलवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्. हिंदी को मैंने कहीं भी गाली नही दी है. और बहुत आभारी हूँ आपका.. धन्यवाद.. मैनी मैनी थैंक्स..

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    1. महफ़ूज़ भाई ,
      मैंने कहीं भी और कभी आपको गाली खिलवाने का कोई प्रयास नहीं किया है न ही भविष्य में करूंगा । कोई बात जब भी उचित अनुचित लगी आपके सामने ही कही है बेशक भविष्य में आप मुझसे दूरी बना लें , संवाद खत्म कर लें लेकिन आदत तो आदत है जाएगी नहीं । आप ही देखिए न सिर्फ़ आपकी कही बातों को यहां इस पोस्ट पर बिना कौमा , फ़ुलस्टोप लगाए रख दिया है जस का तस , वो भी तब जब मुझे लगा कि अब इसे रखना जरूरी हो गया है । मुद्दा सिर्फ़ इतना कि भाषा किसी का भी अपमान अनुचित है और फ़िर राष्ट्रभाषा का तो कतई नहीं । आप दक्षिण अफ़्रीका के विक्टर होते या उत्तरी अमेरिका के सेबेस्टियन तो मैं समझता कि भूलवश ऐसा कह गए वो भी एक बार , आप प्रेमचंद या नागार्जुन होते तो हिम्मत ही नहीं करता क्योंकि फ़िर शायद आप अनुभव में हिंदी के अनुभव में नि:संदेह ज्यादा होते , लेकिन अफ़सोस सिर्फ़ इतना कि आप मित्र , हिंदी ब्लॉगर होते हुए भी पीडा समझ न सके ।

      मैं हिंदी को दीवानों की तरह प्यार करता हूं और करता रहूंगा हमेशा

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    2. अजय जी.. मैं आपसे क्यूँ दूरी बनाऊंगा.. इतनी सी बात पर.. हम लोग सब अपना अपना काम करते हैं.. Thanks once again..

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  14. अगर माना जाए तो हिन्दी,
    मां रूपी भारत का आभूषण है। अगर आपकी मां का आभूषण आपके ही सामने कोई उतार ले तो आपको कैसा लगेगा? शायद बर्दाश्त से बाहर,ठीक उसी तरह से, भारतीय संस्कृति और हिन्दी की अवहेलना भी है। आपको इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए। आगे मैं आपको बताना चाहूंगा कि हिन्दी की अवहेलना विदेशों में नही सिर्फ अपने ही देश में हो रही है। और उसके जिम्मेदार सिर्फ हम हैं, विदेशी नहीं, वो लोग तो तरसते हैं,हमारी भाषा सीखने के लिये। शायद यह आपको न पता हो। आपको बताना चाहूंगा कि आप अपने कम्प्यूटर पर सभी मुख्य सॉफ़्टवेयर, इंटरनेट आदि और सभी मुख्य कम्पनियों की मोबाइलों (स्मार्ट्फ़ोन) के
    सारे कार्यों को आप आराम से हिन्दी में कर सकते हैं। सब कुछ आप जल्दी ही हिन्दी में प्राप्त
    कर सकेंगे। यह सब उद्द्योग जगत या आम आदमी की मांग पर नहीं,हमारी हिन्दी के सम्मान में यह कम्पनियां (Google,Samsung, Microsoft, Nokia) कर रही
    हैं। मेरे देश के गुलामों! सुधर जाओ और अपनी मां का वर्चस्व अपने ही हांथों उतार कर फेंकना बंद करो। हिन्दी की किसी भी लिपि से सम्बंधित कोई समस्या हो तो कृपया मुझसे ९८९१३३९६४० पर सम्पर्क करें, मैं आपकी ऐसी हर समस्याओं के समाधान में बेहद खुशी होगी।

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    1. मित्र KBS जी ,
      आपके जज्बे से सहमत हूं आपने सही कहा कि कहीं न कहीं शायद हम जिम्मेदार हैं इसलिए तो हमें खुद को अब सचेत करना होगा ।

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  15. हम खुद को बेहतरीन कहेँ, बहुत बेहतर बात है.... और ऐसा अगर कोई करता है तो मैं समझता हूँ, उस से मुझे भी सीखना चाहिए.... पर इसके लिए हम अपने अजीजो को , अपने परिवार को अपने भाषा को गाली दे, तो बात उतरती नहीं ...वो भी ऐसी गाली की उनको कुत्ते से compare किया जाये, किसी अनाम को ही ये कह देना की उसकी बीबी sexually अपने मोहल्ले पे आश्रित है, कहीं न कहीं न चाहते हुए भी लगता है ऐसा क्या frustration है, ऐसी क्या मानसिकता है. जो ऐसा करने को हर दिन विवश कर देती है...!! अजय भाई आपने आइना दिखाया.... हम खुद हर दिन महफूज़ भाई का wall-status पढ़ कर बौखलाते थे, पर कह नहीं पाते थे, एक दो बार बस इतना कह पाया की आपकी बातों से सहमत नहीं हूँ.....!! लेकिन सच में गलत को गलत कह पाने की आपकी कला भा गयी हमें... उम्मीद करते हैं... प्रिय दोस्त महफूज समझ पाएंगे की हम सबकी बातो को ...

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  16. हम खुद को बेहतरीन कहेँ, बहुत बेहतर बात है.... और ऐसा अगर कोई करता है तो मैं समझता हूँ, उस से मुझे भी सीखना चाहिए.... पर इसके लिए हम अपने अजीजो को , अपने परिवार को अपने भाषा को गाली दे, तो बात उतरती नहीं ...वो भी ऐसी गाली की उनको कुत्ते से compare किया जाये, किसी अनाम को ही ये कह देना की उसकी बीबी sexually अपने मोहल्ले पे आश्रित है, कहीं न कहीं न चाहते हुए भी लगता है ऐसा क्या frustration है, ऐसी क्या मानसिकता है. जो ऐसा करने को हर दिन विवश कर देती है...!! अजय भाई आपने आइना दिखाया.... हम खुद हर दिन महफूज़ भाई का wall-status पढ़ कर बौखलाते थे, पर कह नहीं पाते थे, एक दो बार बस इतना कह पाया की आपकी बातों से सहमत नहीं हूँ.....!! लेकिन सच में गलत को गलत कह पाने की आपकी कला भा गयी हमें... उम्मीद करते हैं... प्रिय दोस्त महफूज समझ पाएंगे की हम सबकी बातो को ...

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  17. हम खुद को बेहतरीन कहेँ, बहुत बेहतर बात है.... और ऐसा अगर कोई करता है तो मैं समझता हूँ, उस से मुझे भी सीखना चाहिए.... पर इसके लिए हम अपने अजीजो को , अपने परिवार को अपने भाषा को गाली दे, तो बात उतरती नहीं ...वो भी ऐसी गाली की उनको कुत्ते से compare किया जाये, किसी अनाम को ही ये कह देना की उसकी बीबी sexually अपने मोहल्ले पे आश्रित है, कहीं न कहीं न चाहते हुए भी लगता है ऐसा क्या frustration है, ऐसी क्या मानसिकता है. जो ऐसा करने को हर दिन विवश कर देती है...!! अजय भाई आपने आइना दिखाया.... हम खुद हर दिन महफूज़ भाई का wall-status पढ़ कर बौखलाते थे, पर कह नहीं पाते थे, एक दो बार बस इतना कह पाया की आपकी बातों से सहमत नहीं हूँ.....!! लेकिन सच में गलत को गलत कह पाने की आपकी कला भा गयी हमें... उम्मीद करते हैं... प्रिय दोस्त महफूज समझ पाएंगे की हम सबकी बातो को ...

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  18. अजय भाई,
    आप अपनी ऊर्जा को कहाँ खपा रहे हैं? हर व्यक्ति का अपना स्टाइल होता है.कुछ लोग जानबूझकर शेखी बघारकर या गरियाकर 'नोटोरियस' होना पसंद करते हैं तो ठीक है.
    हिंदी ऐसे हिलाने से हिलेगी नहीं,आप ज़ोरदार कविताई करके ज़वाब दे दें !

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  19. मुंडे-मुंडे मतिर्भिना..
    क्या कहें हमें तो हिंदी लिखने पढने में बहुत अच्छी लगती है ...व्यवसायिक दृष्टि से भले ही आज इसे अपनाने से सभी झिझकते हैं फिर ही हमसबको हिंदी पर गर्व होना ही चाहिए आखिर इसी भाषा में हम अपने को अच्छी तरह आपस में व्यक्त कर पाते हैं ..

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  20. हिन्दी को लेकर महफूज की पोस्ट कुछ ज्यादा सायनिक हो गयी है र -हिन्दी अब गरीब की जोरू नहीं रही .....
    मगर अच्छी तरह हिन्दी आती कितनों को है ?

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  21. भाषा का एकमात्र प्रयोजन ,अपनी भावनाएं , संवेदनाएं, वेदनाएं , प्रसन्नता , दुःख, प्रेम,स्नेह, सम्मान ,मतभेद , नाराज़गी और मनः स्थिति , प्रकट करने का है और संपर्क में आने वाले लोगों से बस अपना पक्ष रखने का ध्येय होता है | किसी भाषा का सम्मान करने का सीधा अर्थ है उस व्यक्ति का सम्मान करना और उसे महत्त्व देना है जो उसके प्रयोग से अपना पक्ष रख रहा है | और सम्मान पाने के लिए दूसरे का सम्मान करना नितांत आवश्यक है | दुःख की बात है इतने शिक्षित लोग इस तरह के मसायल में उलझ गए जिनसे उम्मीद की जाती है कि वे इससे भी अधिक गंभीर मसले सुलझाने में अपने विवेक और अनुभव का इस्तेमाल करेंगे | सिर्फ एक शब्द ही काफी है ऐसी स्थिति के लिए "unfortunate"

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  22. क्या कहें ...

    विनाश काले विपरीत बुद्धि ...

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    1. आज काफी सोचा विचारी के बाद और महफूज को आखिरी बार समझाने की कोशिश करने के बाद मैंने उसको अपनी मित्र सूची से बाहर कर दिया है ! चाहे महफूज हो या कोई और मेरा परिचय उनसे हिन्दी ब्लोगिंग की वजह से हुआ है ... कह सकते है कि हिन्दी की वजह से हुआ ... ऐसे मे एक नए रिश्ते (उस ब्लोगर से) को निभाने के चक्कर मे मैं पुराने रिश्ते (हिन्दी से) को छोड़ दूँ या उसका अपमान करूँ या किसी को करने दूँ तो लानत है मुझ पर !

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    2. शिवम भाई , दुख की बात है कि आज आपही नहीं हम और कुछ और मित्रों ने यही फ़ैसला किया । चलिए अच्छा ये है कि महफ़ूज़ भाई को इसका कोई मलाल नहीं है । तभी मैं ये कह रहा था कि शायद हमें ही समझने में कोई भूल हुई हो । जो भी हो , अब संवाद समाप्त हो चुका है उनसे । वे जैसे हैं वैसे रहें हमें कोई उर्ज़ नहीं है ।

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    3. सच कहूँ तो दुख बिलकुल नहीं है ... हाँ गुस्सा काफी है अब भी मेरे अंदर ... पूरे मामले को ले कर ... बेशर्मी की भी एक हद होती है !

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  23. जो बात हमें अपने लिए खराब लगती है वह दूसरों के लिए नहीं बोलनी चाहिए !

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  24. अजय
    मैने बहुत से हिन्दुस्तानियों को पोर्न खोलते प्लेन में देखा हैं और उनका लेपटोप हिंदी में कन्फुगार्ड होता हैं . लोग हिंदी या देव नागरी लिपि को देख कर नहीं उस कंटेंट को देख कर माथे पर बल लाते हैं
    और यही लोग बेफिजूल प्लेन उडने से पहले लेप टॉप खोल कर बैठ जाते हैं और लेप टॉप तभी बंद होता हैं जब एयर होस्टेस आकर अपने हाथ से बंद करती हैं ,
    कुछ लोग हर स्त्री को माँ , बहिन , दीदी कह देते हैं और कुछ मॉम भी कहते हैं और फिर उनसे लम्बी लम्बी प्यार की जप्पी की दरकार रखते हैं
    जो व्यक्ति मदर टेरीसा के लिये अपशब्द कह चुका हो आप उस पर अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं
    और ये पोस्ट हटा दे क्युकी आप की ये पोस्ट उनको अपनी शान में कसीदा लग रही हैं
    पर गलती उनकी भी इतनी नहीं हैं क्युकी जब आप लोग किसी को सिर चढ़ाते हैं और उनको ब्लॉग जगत का रजनीकांत कहते हैं तो क्या किया जा सकता हैं . लिंक दिया आपने इस लिये कमेन्ट कर रही हूँ , अपशब्द आये तो देख लीजियेगा , क़ानूनी कार्यवाही आप ही करेगे

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    उत्तर
    1. रचना जी मैं ये पोस्ट नहीं हटाने जा रहा हूं चाहे इसके निहितार्थ कुछ भी लगे लगाए जाएं । किसने किसको व्यक्तिगत रूप से क्या कहा मुझे नहीं पता न ही जानने का इच्छुक हूं क्योंकि ब्लॉगजगत के सभी ब्लॉगर्स अपने में सक्षम और काबिल हैं , कम से कम अपना भला बुरा समझने लायक तो जरूर ही हां उनकी भाषा और व्यवहार अनुचित लगा , परिचित थे सो उन्हें टोकना रोकना बनता था , वही किया , खैर ।
      हां आपको लिंक इसलिए दिया था क्योंकि मुझे लगा कि अनावश्यक रूप से किसी टिप्पणी में महिलाओं के लिए वो लिख दिया गया था जो नहीं लिखा जाना चाहिए था । खैर अब इस विषय पर ज्यादा उर्ज़ा व्यर्थ नहीं करना चाहता । ,मत रखने के लिए शुक्रिया

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  25. अब क्या आप सनकियों व हिले हुऐ लोगों पर भी लिखेंगे, वह जो कुछ भी लिखता है पगलाने के कारण लिखता है, दो भैंसों के साथ फोटो खिंचाता है तो फार्महाउस बोलता है, अपनी बॉडी ऐसा दिखाता है जैसे किसी और के पास वैसी नहीं है, सूरत की तारीफ करता है अरे उसमें ऐसा क्या खास है सिवाय इसके कि अल्लाताला ने एक सीधा चेहरा दे दिया है कुछ टेढ़ा मेढ़ा नहीं किया, बाइपोलर साइकोसिस से ग्रस्त है यह लड़का, नर्सरी राइम लिखता है और बोलता है जर्मनी में छप रही है,हिन्दी को गाली दे कर बात करता है पर खुद इसकी वेबसाइट http://www.medicaherbals.com/chairman.html पर इसकी अंग्रेजी का नमूना तो देखिये:-

    An eminent scholar in Economics and a renowned poet and writer. Dr. Mahfooz Ali also founded the Medica Herbal and Research Laboratory, as known as MHRL in 2008. His name and fame have, however, traveled outside the country and he is a well-known figure among the academicians and the literary society. A graduate of Commerce and a post graduate of Economic Administration and Applied Aconomics along with PhD in Economic Reforms, Mr. Ali had started his career as a lecturer and a freelance journalist and also having a Rich experience in working with World Bank and WHO, then turned himself into a Promoter of MHRL.
    He has conferred many international research papers and presented his own research papers in all IIM’s international conferences and seminars.

    Our goal is to empower people and organizations to look at all of the relationships and consequences related to what they do and to grow into full responsibility for making informed decisions that consider their effect on all people and all species, now and in the future.

    सर नोच लेगा इन्सान मतलब निकालने में,

    अपना और अन्यों का समय व्यस्त कर रहे हैं आप इस पर, इसके भाई व इसकी मम्मियों को इसका नाम जपने दीजिये।

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  26. हिन्दी के उद्धार के लिए ऐसे महात्माओं का आह्वान किसने किया था कि अपनी क्लास से उतरकर हिन्दी को अनुग्रहीत करें? मुकेश कुमार सिन्हा ने जैसा अंदाजा लगाया, ये एक फ्रस्ट्रेशन है जो भाषा से जाहिर हो जाती है|

    'चुपके-चुपके' मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है, उसमें भी भाषाई हठधर्मिता को विषय बनाकर ताना बाना रचा गया है लेकिन वो तरीका और ये तरीके कितने अलग हैं| तरीकों में ये अंतर किन वजहों से आता है, सोच देखिये|

    अजय, मेरी बात आपको अजीब लग सकती है लेकिन यहाँ के लोगों की मानसिकता समझने के लिए ऐसे चरित्र बहुत काम आते हैं, कम से कम मेरे बहुत काम आये हैं| कमेंट्स-पब्लिसिटी का मोह और गाली-अपशब्दों का भय यहाँ के लोगों को कितना कुछ सुनवाता है|अभी चैक किया है, साड़ी-पेटीकोट, जवान लड़कों वाली पोस्ट पर 39 likes हैं| हम कितना गंभीरता से सोचते हैं, दिख जाता है|गौर से देखें तो ऐसी बात किसके बारे में कोई कह सकता है?

    व्यक्तिगत मित्रता से ऊपर उठकर ऐसी पोस्ट लिखकर मेरे हिसाब से आपने बहुत अच्छा किया है| जिन्हें समझना हो वो समझ लेंगे, न समझने वालों के लिए वो पीठ में पेड़ उगने वाला उदाहरण है ही कि हम तो उसकी छाँव में बैठेंगे, तुम्हें क्या? इस बहाने कम से कम आपकी अपनी प्रतिबद्धता तो जाहिर हो ही जाती है|

    बाय द वे, टिप्पणी बोक्स के नीचे लिखे शब्द पढ़ रहा हूँ और इस पोस्ट के साथ जोड़कर देखता हूँ तो एक स्माईली बन रही है :)

    @ रचना जी,
    बेशक गलत सिद्ध होऊं लेकिन अभी 'अपशब्द' नहीं आयेंगे, ऐसा मेरा मानना है| समझ रही हैं न?

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    उत्तर
    1. शुक्रिया संजय भाई , मेरा प्रयास भी सिर्फ़ यही बताना भर था कि हिंदी के प्रति ये मानसिकता कम से कम हिंदी भाषी , हिंदी लेखक के मन में तो कतई नहीं आनी चाहिए फ़िर हमें दूसरों को दोष देने का कोई हक नहीं रहता कि अमुक भाषा वाले ने हिंदी का ऐसा वैसा अपमान किया । शुक्रिया आपका

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  27. महफूज की समय समय पर टिप्पणी पढ़कर सोचने को मजबूर होता हूँ कि आखिर इस तरह की बात करने की पीछे मकसद क्या हो सकता है किसी का भी- कभी तसल्लीशुदा जबाब तक न पहुँच पाया और तब तक पुनः एक नया कारनामा- समझ नहीं आता.

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  28. उत्तर
    1. हां मैंने देखा था और चौंका भी था और बाद में कह भी दिया था

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  29. पोस्ट भी पढ़ी और इस पर आने वाली सभी टिप्पणियाँ भी पढ़ी कहीं आश्चर्य हुआ तो कहीं अफसोस
    बात भाषा कि हो रही थी और लोग उसे कहाँ से कहाँ ले गए खैर मेरा ऐसा मानना है कि "भाषा चाहे कोई भी हो, वह अपने आप में इतनी महान होती है कि कोई भी तुच्छ प्राणी उसका मज़ाक नहीं बना सकता" और जो ऐसा सोचते हैं कि वह उसका मज़ा बना सकते हैं या बना रहे है। वह वास्तव में उस वक्त खुद का मज़ाक बना रहे होते है। क्यूंकि उनको खुद किसी भी भाषा का सही ज्ञान नहीं होता।

    जवाब देंहटाएं
  30. हिंदी माँ के हाथ बनी,
    नरम नरम लंगोटी है,
    अंग्रेजी असहज डायपर है,
    हिंदी माँ का आँचल है,
    अंग्रेजी बाटल का दूध है,
    हिंदी माँ का दुलार है,
    अंग्रेजी क्रेच का एकाकीपन है,
    हिंदी माँ की उंगलियाँ है,
    अंग्रेजी प्रैम और वाकर के पहिये है,
    हिंदी नाक पोंछते माँ के पल्लू हैं,
    अंग्रेजी सूखे खुरदुरे टिशु पेपर है,
    हिंदी के पहले बोल म--माँ हैं,
    अंग्रेजी के पहले बोल हाय हैं,
    हिंदी माटी के मकान में गोबर की लिपाई की खुशबू है,
    अंग्रेजी फाल्स सीलिंग की तरह पूरी फाल्स है,
    हिंदी गाय का थन है,
    अंग्रेजी पाउडर मिल्क है,
    हिंदी घी लगी रोटी पे रखी चीनी है,
    अंग्रेजी चाय में पड़ी शुगर क्यूब है,
    हिंदी खाजा है,
    अंग्रेजी पिज्जा है,
    हिंदी "तुम्हारा साथ अच्छा लगता है " है,
    अंग्रेजी "आई लव यू" है,
    हिंदी संस्कार हैं,
    अंग्रेजी फैशन है,
    हिंदी तरंग है,
    अंग्रेजी कण है,
    हिंदी मेहँदी है,
    अंग्रेजी टैटू है,
    हिंदी प्रकृति है,
    अंग्रेजी प्रवृत्ति है !!!!!
    -AMIT

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    उत्तर
    1. बेहतरीन बात मुकेश भाई बेहतरीन बात , यदि मुझे कोई हिंदी के बारे में कुछ लिखने को कहे तो जाने क्या कितना लिखता जाउं । इससे खूबसूरत बात और कोई नहीं हो सकती

      हटाएं
    2. लाजवाब !!!
      इस कविता से बेहतरीन जवाब भला क्या हो सकता है !

      साधुवाद !!!

      हटाएं
  31. Watch your thoughts, they become words.
    Watch your words, they become actions.
    Watch your actions, they become habits.
    Watch your habits, they become your character.
    Watch your character, it becomes your destiny.

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    उत्तर
    1. जी मतलब ,
      अपने विचारों को देखिए वे ही आपके शब्द बनते हैं ,
      अपने शब्दों को देखिए वे ही आपका व्यवहार बनते हैं ,
      अपने व्यवहार को देखिए वे ही आपकी आदत बनते हैं ,
      आपनी आदत को देखिए वो ही आपका चरित्र बनता है ,
      अपने चरित्र को देखिए वही आपकी नियति बन जाती है ,


      यदि कुछ गलत हुआ हो तो क्षमा करिएगा जी

      हटाएं
    2. @ अजय जी आपने बिलकुल सही कहा |
      क्योंकि बात यहाँ हिंदी की हो रही है, तो हिंदी में ही कहना लाज़मी था, लेकिन बात व्यक्तिविशेष की भी हो रही है और सुना है लोगों को हिंदी से असुविधा है, और अंग्रेजी से प्रेम, तो सोचा, अगर हमारी हिंदी नहीं समझ आई तो ? जिस भाषा में भी काम बने...मतलब तो काम बनने से है...
      चलिए आपने हिंदी में भी भावार्थ बता ही दिया है...फिर भी हम भी कुछ कह ही देते हैं....
      अपने विचारों पर नज़र रखो, क्योंकि वही तुम्हारे शब्द बन जाते हैं
      अपने शब्दों पर नज़र रखो, क्योंकि उसी अनुसार तुम काम करने लगते हो
      अपने काम पर नज़र रखो, क्योंकि वही तुम्हारी आदत बन जाते हैं
      अपनी आदतों पर नज़र रखो क्योंकि वही तुम्हारा चरित्र बन जाता है
      और अपने चरित्र पर नज़र रखो, क्योंकि वही तुम्हारा भाग्य बन जाता है

      हटाएं
    3. वाह अदा जी ,
      आपकी अदा ज्यादा पसंद आई वो ज्यादा सटीक और प्रभावित करने वाली है । वाह

      हटाएं
  32. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
    बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल.

    हमारा इतिहास गवाह है कि बाहरी और भीतरी और घनघोर विषमताओं और अंतर्विरोधों के कारण हम अपनी भाषा को अपेक्षित सम्मान नहीं दिला सके और उसे व्यापक स्तर पर रोजी-रोटी का जरिया नहीं बना सके. लेकिन यह हमारी लोक संस्कृति, परम्पराओं, और अद्भुत अनुभूतियों और अनुभवों को व्यक्त करनेवाली प्यारी भाषा है जिसे इतना नीचे गिरकर बेईज्ज़त नहीं कर सकते.

    महफूज़ भाई के फेसबुक स्टेटस/कमेंट्स पढ़कर यही कह सकता हूँ कि ये हमारे उस तथाकथित बौद्धिक वर्ग या 'क्लास' के सदस्य हैं जो श्रेष्ठि वर्ग में प्रवेश कर लेने के बाद अपनी जड़ों की ओर हिकारत से देखने लगते हैं. दुर्भाग्य से ऐसे जन अपना प्रशंसकवर्ग बखूबी बना लेते हैं उनके विचारों को उन्नतिमूलक माना जाता है.

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    उत्तर
    1. निशांत भाई ,
      माफ़ी चाहता हूं , आजकल टिप्पणियां सीधा स्पैम में जाकर आराम फ़रमाती हैं गूगल बाबा भी लगता है ग्लोबल वार्मिंग के शिकार हो गए हैं

      हटाएं
  33. संकीर्ण सोच का क्या किया जाए?
    अब हिंदी को अपनी उपस्थिति इस देश में नहीं बतानी है।
    बेमतलब की बहस है, यह।

    आज हिंदी हिंद की धड़कन है।

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  34. महफूज क्‍या प्रयास कर रहा है, यह भी समझ में नहीं आ रहा है। अगर वह पेड जोकर (पैसा लेकर इंटरनेट पर विशेष विचारधारा के लिए लिखने वाला) है तो यह बहुत खतरनाक बात है। और अगर वह बेवकूफी में ऐसा कर रहा है तो समय आने पर उसे समझ आ जाएगी।

    पैसा लेकर लिखने वाले लोगों में उसे शामिल करने का ख्‍याल इसलिए आता है कि जिस तरह की प्रोफाइल वह अपनी बताता है वैसी व्‍यवहारिक रूप से दुरूह है। असंभव तो नहीं, लेकिन असंभव के करीब है। दूसरी तरफ अपने विरोध के बावजूद जिस अडिगता से वह खड़ा रहता है, उसके लिए "पीछे की शक्ति" होने की आशंका बढ़ती है। यह मेरा अनुमान ही है कि समय के साथ उनकी हर्बल फार्मा कंपनी घाटे में आ चुकी हो या संगठन विशेष का दबाव हो तो वह इस प्रकार लिखना शुरू कर सकता है।

    इंटरनेट पर हिन्‍दी का वर्चस्‍व तेजी से बढ़ रहा है। ब्‍लॉगिंग के बाद अब फेसबुक पर भी। यह कई संगठनों के लिए चिंता का सबब हो सकता है।

    इतने सालों में उसने जो इमेज बनाई है, उसे सावधानी से कैश कराने का समय है। जैसा विरोध आपने किया है, उसकी उसे उम्‍मीद नहीं थी। यहां तक कि अपने कमेंट को दो बार रिपीट कर उसने दीपक मशाल को भी गरियाने का प्रयास किया है।

    अजीब है... ।

    हिन्‍दी के प्रति कटिबद्धता देखकर मन प्रसन्‍न होता है, लेकिन आसन्‍न खतरों के बारे में सोचकर एक डर बैठता है।

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    उत्तर
    1. सिद्धार्थ जी ,
      मुझे किसी भी ब्लॉगर के निजि जीवन से कोई सरोकार नहीं है । सफ़लता विफ़लता उनकी अपनी है , मैं्ने सिर्फ़ उनके द्वारा हिंदी के लिए कही जा रही बातों का , विचारों को यहां रख दिया क्योंकि मुझे लगा ये जरूरी था , इस शर्त के साथ भी नहीं कि उन्हें ये नहीं करना कहना चाहिए क्योंकि ये तो सर्वथा उनकी सोच और उनका अधिकार है । हां हिन्दी के प्रति कटिबद्धता जरूर रहती है मन में , आगे भी रहेगी मित्रों /दोस्तों से कैसा खतरा ????

      हटाएं
  35. दोस्तों , मैं वैसे तो तेलुगुभाषी हूँ , लेकिन हिंदी में मेरे प्राण बसते है . मैं हिंदी बोलता हूँ, हिंदी पढता हूँ , और हिंदी लिखता हूँ. और मैं ये सोचता हूँ कि आज हिंदी साहित्य में मेरी और मेरी नज्मो की कोई पहचान है तो वो सिर्फ हिंदी की वजह से ही है .. और हिंदी का ये अहसान मैं ताउम्र नहीं भूलूंगा . हिंदी को नमन. हिन्दिवासियो को नमन. भारत देश को नमन.

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  36. कुत्ते हो तो लिखकर दिखाइए।
    हम इंसान हैं इसीलिए लिख लेते हैं।

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  37. कुछ बातें ऐसी होती हैं , जिन्हें आप कितनी भी हिकारत से देखें उसके अस्तित्व पर आँच नहीं आती , बल्कि उन पर आती है - जो उसका मखौल उड़ाते हैं . जैसे , ईश्वर , प्रकृति, गंगा, पहाड़ , हिंदी , माँ , प्यार , मित्रता , रिश्ते ..............

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  38. हिन्दी तो मेरे माथे की बिन्दी है।
    "हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा। जय हिन्द।

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  39. अभी अभी मैने चर्चामंच पर एक पोस्ट पर टिप्प्णी की थी वो यहाँ भी सार्थक लग रही है !!

    फेसबुक हो या कोई और बुक
    सबका होगा एक ही सा लुक
    बाबा जी समझा करते नहीं आप
    ये सब भी तो आ रहे हैं वहीं से
    जहाँ रहते है हम ये और आप
    कंप्यूटर कोई पारस पत्थर है क्या
    जो ये यहाँ आ कर सोना बन जायेगे
    जो जैसा होता है वहाँ भी होता है
    यहाँ आता है तो वैसा ही यहाँ भी होता है
    वहाँ मुह खोलता है बोलता है कौन है बताता है
    यहाँ कुछ नहीं लिखता इसलिये ज्यादा पता
    कुछ नहीं चल पाता है पर कहीं गलती से भी
    चूक कर एक शब्द भी कहीं लिख जाता है
    तो अपनी पोल अपने आप खोल ही जाता है !

    जवाब देंहटाएं
  40. ..महफूज अली जी ने अगर अपना सच्चा निजी अनुभव फेसबुक पर बांटा है...तो भी साफ़ नजर आता है कि वे निराशावादी है!...उनके विचारों से प्रेरणा किसी को नहीं मिल सकती!

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  41. हिंदी को दी गालियाँ, उर्दू पर क्या ख्याल ।

    लिपि का अंतर है मियाँ, करते अगर बवाल ।

    करते अगर बवाल, भूल जाते मक्कारी ।

    रहते ना महफूज, डूब जाती मुख्तारी ?

    अंग्रेजी में छपो, हमेशा फेरो माला ।

    तन-मन का ये मैल, निगल खुद बना निवाला ।।

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    उत्तर
    1. रविकर जी !!
      टिप्पणी करते समय थोडा होश रखें-
      लगता है काफिया और वजन के चक्कर में-
      आप कुछ भी लिख डालते हैं-
      बताइये तो तन-मन का मैल से आपका क्या मतलब है.

      दूसरी बात आप उर्दू की बात यहाँ कहाँ घुसेड बैठे -
      वो तो उनकी पवित्र भाषा है ||
      केवल मुंह से अंग्रेज है यह-
      अन्दर से तो आज भी फतवे का डर लेकर महफूज है-
      अपनी माँ सभी को अच्छी लगती है-
      केवल बीबियाँ दूसरों की-
      चलो बीबियाँ नहीं आंटियां कह लेता हूँ -

      हटाएं
  42. सारे फ़साने में जिसका जिक्र तक न था
    बस वो ही बात उन्हें बहुत नागवार गुजरी है. (फैज़ साहब)

    अजय जी, आपका गुस्सा भी बस ऐसा ही लग रहा है. महफूज़ अली साहब ने कहीं भी हिन्दी को गाली दी हो ऐसा तो नहीं लगा मुझे. दुःख है उनका जो निकला है, और निकलना चाहिए. वो कहते हैं न कि रेत में सर घुसा लेने से जान जाती है, तूफ़ान नहीं.
    मसला यह है कि हिन्दी की ये हालत है और बिलकुल है. मसला ये है कि हिन्दी के कितने बड़े लेखक अपने बच्चों को 'हिन्दी माध्यम' के स्कूलों में भेजते हैं? मसला यह है कि ११०० प्रतियां बिक जाने पर हिन्दी में 'बेस्ट सेलर' हो जाती हैं. सो दिक्कत तो है, और उस दिक्कत को सामने लाना कोई गलत काम नहीं है.
    बाकी ये राष्ट्र कहाँ है जिसकी भाषा 'हिन्दी' है? याद करिये कि सपाई अबू आज़मी के हिन्दी में शपथ लेने पर राज ठाकरे के गुंडों ने वहीं विधानसभा में उन्हें पीटा था. और फिर काश्मीर से लेकर असम तक बिहारियों पर होने वाले हमले भी रोज की ही बात हैं. मसला यह है कि हिद्नी खुद में आधिपत्य की भाषा है, सामंतों की भाषा है. (मैं भी लिख रहा हूँ इससे कुछ नहीं बिगडता). इसने अवधी/ब्रज/भोजपुरी आदि को क़त्ल कर के ये मुकाम पाया है. (देहाती/गंवार जैसे शब्द हम जैसे 'विद्वत जन'किन लोगों के लिए इस्तेमाल करते हैं जानते हैं न आप?
    और फिर व्यवहार तो खुद के साथ वही होता है जो आप दूसरों के साथ करते हैं.
    सो कुल जमा ये.. कि गलती आईने में नहीं, चेहरे में साहब.

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  43. छि ...छि ..छि ....आप लोग डिस्कस भी क्यों कर रहे हैं उन्हें ...अपना कीमती वक़्त जाया न कीजिये ...

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  44. फेसबुक बड़ा सही नाम है। सभी के फेस को बुक बनाकर खोल देता है। खोपड़ी की नंगई बाहर आ जाती है।:(

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  45. चलिए हिंदी तो अंग्रेजों का कुत्ता भी लिख लेता है इससे हिंदी की बोध क्षमता सारल्य का ही बोध होता है .सबकी अपनी अपनी समझ है थरूर साहब ने भी केटिल क्लास इकोनोमी क्लास में सफर करने वालों के लिए कहा था .सबका अपना अपना कोम्प्लेक्स है आप क्या करिएगा ?
    महफूज़ अली साहब बस इतना जान लीजे हिंदी की सहोदरी उर्दू और उसका साहित्य अपनी रूमानियत में अंग्रेजी साहित्य से कहीं आगे है .भाषा को लेकर कैसा कोम्प्लेक्स ये तो अनुराग का विषय है जितनी भाषाएँ आप सीख लें ,उतनी ही कम आपकी सोच का दायरा सूचना का मुहावरों का दायरा विकसित ही होगा -
    चलिए दो हलके फुलके शैर सुन लीजिए -
    इतने शहरी हो गए लोगों के ज़ज्बात ,
    हिंदी भी करने लगी अंग्रेजी में बात .

    और बस एक और -
    एक गज़ल कुछ ऐसी हो ,बिलकुल तेरे जैसी हो ,

    मेरा चाहे जो भी हो ,तेरी ऐसी तैसी हो .
    रही बात पारिश्रमिक की तो ज़नाब हमने तो रेडिओ से बतौर वार्ताकार २५ रूपये लेकर भी बोला है (१९७० -७१ )में २५० और ५०० भी १९९० के दशक में .ये संस्थान हमारा प्रशिक्षण स्थल थे पारिश्रमिक मानद ही रहा है हमारे लिए लक्ष्य नहीं ,(हाँ हिंदी पत्रकारिता दारिद्र्य लिए हुए है ,हिंदी गुलामों की भाषा है ऐसा आज भी कुछ लोग सोचते हैं .)चाहे वह अखबार में छपे लेख रहें हों या रेडिओ से वार्ताएं .लक्ष्य निज भाषा में खुद को अभिव्यक्त करना रहा है जन -जन, जन मन तक पहुंचना रहा है न की पैसा .हिन्दुस्तान के हर हिंदी रिसाले के लिए लोकप्रिय विज्ञान लेख लिखें हैं .पैसे के लिए नहीं एक सनक को एक मिशन को पूरा करने को .अली साहब का पाना ख्याल है .ख्याल अपना अपना पसंद अपनी अपनी .

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  46. आपकी पोस्ट भी पढ़ी टिप्पणियों पर बहस भी पढ़ी बस यही कहूँगी आसमान की तरफ थूकोगे तो वापस तुम्हारे मुख पर पड़ेगा हिंदी हमारा आसमान है हमारी मात्र भाषा जो हमे माँ की तरह प्यारी है आप अपने बहुमुखी विकास के लिए हजारों भाषाएँ सीखो पर अपनी मात्र भाषा का अपमान नहीं सहन करना हिन्दुस्तान में रहकर अपनी मात्र भाषा हिंदी राष्ट्र भाषा का सम्मान नहीं कर सकते तो हिन्दुस्तान में क्यूँ रहते हैं किसी भी विषय पर अपनी बात अपना तर्क सभ्य शिष्ट भाषा में भी रख सकते हैं उसके लिए इतने गंदे उद्धरण रखने की क्या जरूरत या फ़िल्मी दुनिया या राजनीतिज्ञों की चाल की तरह लाइम लाईट में आने के हथकंडे हैं ??

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  47. आपकी पोस्ट भी पढ़ी टिप्पणियों पर बहस भी पढ़ी बस यही कहूँगी आसमान की तरफ थूकोगे तो वापस तुम्हारे मुख पर पड़ेगा हिंदी हमारा आसमान है हमारी मात्र भाषा जो हमे माँ की तरह प्यारी है आप अपने बहुमुखी विकास के लिए हजारों भाषाएँ सीखो पर अपनी मात्र भाषा का अपमान नहीं सहन करना हिन्दुस्तान में रहकर अपनी मात्र भाषा हिंदी राष्ट्र भाषा का सम्मान नहीं कर सकते तो हिन्दुस्तान में क्यूँ रहते हैं किसी भी विषय पर अपनी बात अपना तर्क सभ्य शिष्ट भाषा में भी रख सकते हैं उसके लिए इतने गंदे उद्धरण रखने की क्या जरूरत या फ़िल्मी दुनिया या राजनीतिज्ञों की चाल की तरह लाइम लाईट में आने के हथकंडे हैं ??

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  48. अजय जी ये जो स्टेटस अभी पढ़े इन्हें पढ़कर लगा लोग अगर नहीं लिखना चाहते ना लिखे पर ये सब लिखकर क्या चाहते है? भाषा अभिव्यक्ति का साधन है और जरुरी नहीं की अगर कोई भी लिख रहा है तो पैसे के लिए ही लिखे.इस तरह ही सोच नहीं होनी चाहिए.हिंदी के साथ सच में समस्याएं होने लगी है पर इसमें हिंदी की गलती नहीं प्रयोग करने वालो की गलतियाँ है .मैं आपकी बात से सहमत हू ये गलत है की अंग्रेजी को इतना सर चढ़ाया जाए.......और एसे क्या सच में क्लास मेंटेन कर लेंगे? मुझे गर्व है हिंदी पर हमेशा रहेगा...

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  49. हिंदी मेरी जान है,
    भारत की पहचान है ;
    भारत भाल की बिंदी है,
    निज भाषा अभिमान है |

    खत्री से बच्चन तक ने,
    सींचा जिसे वो प्राण है;
    संस्कृत के वृक्ष से निकली,
    अद्भुत भाषा महान है |

    देश को जोड़े एक सूत्र में,
    मधुर-सी एक तान है;
    है इसका समृद्ध-साहित्य,
    हिन्द की ये शान है |

    हिंदी ही पूजा है सबकी,
    हिंदी ही अजान है;
    होली, दीवाली हिंदी है,
    हिंदी ही रमजान है |

    देश को विकसित कर सकती,
    हिंदी गुणों की खान है;
    हिंदी अहित है देश अहित,
    हिंदी हिन्दुस्तान है |
    हिंदी हिन्दुस्तान है |


    हिंदी के प्रति मेरे यही भाव हैं जो मैंने कविता के रूप में उकेरा है ।
    हिंदी को किसी के एहसान की जरुरत नहीं है । हिंदी में वो सामर्थ्य है और इसके साथ इतने लोग हैं कि ये विश्व में अपना जगह बना लेगी ।
    पूरा देश देखेगा और ये दुनिया देखेगी, हिंदी का उत्थान तो होकर ही रहेगा । जितने भी मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम अभी भारत में रह रहे हैं उन सबका दंभ चूर होना ही है ।

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  50. मुझे तो ये समझ में नहीं आता है कि कुछ लोगों को ये भी पता नहीं है कि 14 सितम्बर 1950 को हिंदी को अधिकारिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा घिषित किया गया है ( हिंदी को सरकार अभी तक प्रयाप्त एवं वांछित अधिकार नहीं दे पाई है वो अलग बात है और निंदनीय भी है ) ।
    पता नहीं ये लोग जानते नहीं हैं या जान कर भी अन्जान बनके अंग्रेजी का ही गुणगान करते रहना चाहते हैं । मुझे तो स्वयं को विद्वान् समझने वाले ऐसे लोगों की विद्वता पे तरस भी आता है और रोष भी ।

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पोस्ट में फ़ेसबुक मित्रों की ताज़ा बतकही को टिप्पणियों के खूबसूरत टुकडों के रूप में सहेज कर रख दिया है , ...अब आप बताइए कि आपको कैसी लगे ..इन चेहरों के ये अफ़साने