आवाज़ें।
मीठी, तिक्त, गुनगुनाती, सहलाती, दुलराती, थपकाती, दुत्कारती, पुचकारती,
बहलाती, भगाती, बुलाती, मिलाती, हटाती, समझाती आवाज़ें। कभी संगी, तो कहीं
बैरी आवाज़ें। आवाज़ें, झरनों की, ज्यूं बहनों की। हवा की, ज्यूं प्रेयसी
की। समंदर की, जैसे धैर्य स्वर, जिद्दी प्रलय को उत्कट, जो बात न मानी तो
संकट लाने को आतुर सुनामी की तरह। की-बोर्ड की, जैसे रचा जा रहा हो
तुरत-फुरत में क्षणभंगुर साहित्य। कभी सनसनाती, कभी सिहराती आवाज़ें। मौन तोड़, नया सन्नाटा रचने को आतुर आवाज़ें।
किसी लता ने दरख्त से सटकर कहा है... मेरी कोंपलें तुम्हारा सीना छूकर कुछ
उकेरना चाहती हैं। कुरेदना चाहती हैं तुम्हें, ताकि तुम लहलहा उठो।
बांस के दिल में बैठकर हवा ने आवाज़ का जिस्म ओढ़कर मिठास की गंगा बहाई है।
एक आवाज़, गुम हो गई थी कहीं, सीप की कोख में, मोती बनने के लिए।
बागानों में उगी चाय की पत्तियों से छनकर आई थी भूपेन हजारिका की आवाज़।
पठार में तैर रहा है कितने ही मजनुओं का आर्तनाद और उधर, मथुरा की बयार में
व्याप्त है कान्हा का आह्वान। उनकी ओर भागती गोपियों के पैरों की पायल की
छनछन की आवाज़ें शहद सी कानों में घुलती जा रही हैं।
आवाज़ों के इस
झुरमुट में मन कभी खो जाना चाहे, पुकारे इन्हें तो कहीं दूर हटकर चुप्पियों
की चादर ओढ़ने को मन ललचाए। आवाज़ का जंगल दूर-दूर तक फैला है। इनके बीच
किस पगडंडी पर ठहरी हुई है मां तुम्हारी लोरी की आवाज़... आओ, सुनाओ न अपनी
दैवीय आवाज़ में एक गीत... बहुत कड़ी दोपहर है मां... मैं थोड़ी देर सोना
चाहता हूं।
खूब प्रसन्न रहो वत्स ... बाबा के ज्ञान का ऐसे ही प्रचार करते रहो ... जय हो !
जवाब देंहटाएंवाह...क्या जबरदस्त संकलन है....
जवाब देंहटाएंबहुतै बढ़िया...