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रविवार, 30 जून 2013
रविवार, 23 जून 2013
जब दर्द अल्फ़ाज़ बन जाते हैं
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Arun Chandra Roy
यदि हम वाकई उत्तराखंड के हादसे से चिंतित हैं, विचलित हैं तो बिजली की खपत तुरंत कम कर दीजिये ताकि देश को नदियों पर बाँध बनाने की जरुरत ही न पड़े . उर्जा आधारित अर्थव्यवस्था से प्रकृति को अंततः नुक्सान ही है. अभी उत्तराखंड है , कल हिमाचल होगा परसों कश्मीर .... अपना ए सी बंद कीजिये, टीवी वाशिंग मशीन सब रोकिये . बल्ब भर से काम चलाईये . सोच कर देखिये, कल यदि टिहरी बाँध को कुछ हुआ तो दिल्ली के पांच मंजिले मकान तक डूब जायेंगे . यह सबसे उपयुक्त समय है स्वयं जागने का और सरकारों को जगाने का. सरकारी दफ्तरों, कारपोरेट कार्यालयों , बंगलो में सेंट्रली ए सी के खिलाफ विरोध कीजिए .. वरना राजधानी और शहरो की सुविधों की कीमत पहाड़ो को चुकानी होगी .
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दिनेशराय द्विवेदी
"साम्यवादी शासन" शब्द को सारी किताबो से मिटा दो। ऐसी कोई चीज नहीं होती। यह शब्द पूंजीवादी सिद्धान्तकारों की देन है। सारे साम्यवादी विचारक पूंजीवाद से सर्वहारा तानाशाही के दौर से गुजरते हुए साम्यवादी समाज की ओर जाने की बात करते हैं। वर्गीय समाज में कोई भी जनतंत्र अधूरा सच है। उस की कोई भी व्यवस्था शोषक वर्गों के लिए जनतंत्र और शेष के लिए तानाशाही होती है। कोई भी कथित जनतंत्र जनता का जनतंत्र नहीं हो सकता है, और न है। पूंजीवाद के सामंतवाद के साथ समझौते के दौर में पूंजीवाद ने स्वयं अपने विकास को अवरुद्ध किया है। इस कारण अब पूंजीवाद के विकास और सामन्तवाद को पूरी तरह ध्वस्त करने की जिम्मेदारी भी सर्वहारा और उस के मित्र वर्गों के जिम्मे है। यही कारण है कि "जनता की जनतांत्रिक तानाशाही" जैसीा राज्य व्यवस्था का स्वरूप सामने आया है। राज्य के इस स्वरूप मे उपस्थित 'पूंजीवादी सामंती व्यवस्था के शोषकों पर जनता के श्रमजीवी वर्गों की तानाशाही" को पूंजीवाद संपूर्ण जनता पर तानाशाही कहता है। आज बहुत लोग यही कह रहे हैं जो नयी बात नहीं है। यह पूंजीवादी प्रचारकों की ही जुगाली है। दुनिया में कहीं भी साम्यवादी वर्गहीन समाज स्थापित नहीं हुआ है। पर उस की स्थापना उतनी ही अवश्यंभावी है जितना की इस दुनिया में पूजीवाद का वर्चस्व स्थापित होना अवश्यंभावी था।
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Swati Bhalotia
तुम्हारे शब्दों के बीच होती है सड़कें
मैं बसा लेती हूँ शहर पूरा
उन शहरों में होते हैं तुम्हारे सामीप्य से भरे घर
तुम्हारे शब्दों के बीच होती हैं नौकाएँ
मैं बाँध लेती हूँ नदी पूरी
उन नदियों में होती है रवानगी तुम तक पहुँच आने की
तुम्हारे शब्दों के बीच होती हैं सीढियाँ
मैं चढ़ती जाती हूँ पेड़ों से भी आगे
उन पत्तों के बीच होते हैं ताज़ा लाल सेब जिन्हें पीछे छोड़ देती हूँ मैं
तुम्हारे शब्दों के बीच होता है प्रेम-स्पर्श
मैं भर लेती हूँ हर हिस्सा अपना
उन पलों में बरस जाती है सिहरन तुम्हारे होठों के पँखों पर
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Kajal Kumar
मध्यवर्ग के पास जैसे-जैसे पैसा आ रहा है, धार्मिक पर्यटन खूब बढ़ रहा है.
लोग पहले , जीवन में एक बार हो आने की अभिलाषा पालते थे, अब हर साल चले रहते हैं
Shashank Bhardawaj
चुन्नू की माय नहीं रही..छोर गयी हमर साथ भगवान शंकर के द्वार पर...
बोल था इ 65 साल की उमर मे कहा जाओगी केदारनाथ..बहुत पहाड़ है...दिक्कत होगी..नहीं मानी जिद कर गयी ...
हम तो बाबा के दर्शन को जाएँगी ही...
का करते
दूनो बुढा बुढही चले...
बोल वहा खच्चर ले लेते हैं...पर न मानी बोली तीरथ यातरा पर आये हैं...बाबा अपने पंहुचा देंगा ...शंकर..शंकर का जाप करते करते चढ़ ही गए...भगवान के द्वारे....
केदारनाथ मंदिर मे दर्शन कर ही रहे थी की...पता नहीं का हुवा.कहा से जलजला आया....
बह गयी...बहुत कोशिश की हाथ न छूटे...छूट गया..........................
चली गयी........................................................
अब हमहू जयादा दिन के नहीं हैं..चले जायेंगे ...भगवान शंकर के ही पास..............
उस बुढिया के बिना मन नहीं लगता है बिटवा...........................
Sunil Mishra Journalist
पहाड़, जंगल काट कर घर बनाते है...नदी, तालाब, समंदर पाट कर घर बनाते है...
ऐसे घर से बेघर होना ही पड़ता है........................दुनिया भर के शास्त्र बताते है.
Prem Chand Gandhi
अगर देश के तमाम मंदिरों में बेवजह जमा पड़े सोने और चांदी के आभूषणों को नीलाम कर देवभूमि उत्तराखण्ड के पुनर्निर्माण लगा दिया जाए तो किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आखिर देवी-देवताओं का धन देवी-देवताओं के ही काम नहीं आएगा तो फिर किसके काम आएगा... आस्थावान लोगों को भी इससे शायद ही कोई आपत्ति होगी...
यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि पिछले दिनों राजस्थान के एक प्रसिद्ध मंदिर के प्रबंधन से जुड़े व्यक्ति ने बताया कि मंदिर के पास हज़ारों टन सोना-चांदी है, लेकिन सरकार इसे बेचने नहीं देती।
Rajbhar Praveen Kumar
इंसान अकेलापन भी तभी महसूश करता है जब उसे किसी के साथ रहने की आदत पड़ चुकी होती है.....!!
सतीश पंचम
डीडी नेशनल पर पहाड़ी इलाके में बनी फिल्म नमकीन देख रहा हूँ। नदी और उस पर बने पुल को देख जेहन में फिल्म की बजाय हालिया आपदा कौंध जा रही है कि - यह पुल या इस जैसा पुल भी बह गया होगा, वह दुकान भी :(
Praveen Pandey
काम वही जो मन भाता है,
राग हृदय का गहराता है,
बच्चों को समझो, ओ सच्चों,
लिखा नहीं पढ़ना आता है।
Neeraj Badhwar
मोदी की आलोचना इसलिए हो रही है कि वो उत्तराखंड क्यों गए, राहुल की इसलिए कि वो क्यों नहीं गए। बेहतर यही होगा कि हर नेता प्रभावित इलाके के आधे रास्ते से यू टर्न लेकर लौट आए।
Prashant Priyadarshi
ना किसी की आंख का नूर हूँ , न किसी के दिल का करार हूँ ,
जो किसी के काम ना आ सके , मैं वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ..
Prashant Priyadarshi
ना किसी की आंख का नूर हूँ , न किसी के दिल का करार हूँ ,
जो किसी के काम ना आ सके , मैं वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ..
Ankur Shukla
पुनर्वास का मतलब यह नहीं है कि दान किया और मुह फेर लिया। उजड़ो को बसाने के लिए उनकी दैनिक आमदनी को जिंदा करना होगा। सैलाब आने से पहले ईश्वर की बड़ी कृपा थी इनपर। पर्यटन वृक्ष को हरा -भरा करने के लिए उसकी जड़ को मजबूत करना ज़रूरी हो गया है. जड़ मज़बूत होगी वृक्ष हरा-भरा होगा, तभी तो फल मिलेगा। जय शिव
Amitabh Meet
बरहमी का दौर भी किस दरजा नाज़ुक दौर है
उन के बज़्म-ए-नाज़ तक जा जा के लौट आता हूँ मैं
Arvind K Singh
सेना और अर्ध सैन्य बलों के जवानों को सलाम..
पूरे देश से सेना के लिए दुआएं दी जा रही हैं...हमारी सेना जिन पर भारत के नागरिकों के टैक्स की एक लाख करोड़ रुपया से अधिक राशि हर साल खर्च होती है..कारगिल तो अपनी ही जमीन से पाकिस्तानियों को निकालने की जंग थी..बाकी लंबे समय से सेना आंतरिक सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं में लोगों की मदद करती है...उनके पास ऐसी आपात हालत से निपटने के लिए तमाम साधन, संसाधऩ और विशेषज्ञता है...बेशक प्राकृतिक आपदाओं में भारतीय सशस्त्र सेनाओं और हमारे अर्ध सैन्य बलों के जवानों ने ऐतिहासिक भूमिका हर मौके पर निभायी है...मैं कई बार सोचता हूं कि अगर ऐसी आपदाओं में सेना और अर्धसैन्यबलों के जवानों को नहीं लगाया जाये आपदा प्रबंधन की राज्य सरकारों की टीम के भरोसे तो शायद ही कोई पीडित बच सकेगा...उत्तराखंडजैसी जगहों पर प्रमुख सामरिक सड़कों को बनाने का काम सीमा सड़क संगठन के जो मजदूर करते हैं, उनकी भूमिकाओं को भी कमतर आंकना ठीकनहीं...उनके बदौलत ही जाने कितने लोग बाहर आ सके है...इन सबको सलाम...
अजय कुमार झा
प्राकृतिक आपदाओं पर कभी किसी का जोर नहीं रहा , और न ही रहेगा , हां जिस तरफ़ से प्राकृतिक आपदाओं की रफ़्तार पूरे विश्व में बढ रही है उससे ये ईशारा तो मिल गया है कि भविष्य की नस्लें ही वो नस्लें होंगी जो अपनी और धरती की तबाही के मंज़र की गवाह बन पाएंगी , खैर ये तो जब होगा तब होगा , मगर जिस देश में अरबों खरबों रुपए के घोटाले होते हों , उस देश के लोगों द्वारा अब तक वो मुट्ठी भर लोग नहीं पहचाने चीन्हे जा सके जो कम से कम ऐसे समय पर जान भी बचा पाने लायक माद्दा नहीं रखते ...साठ साल का समय कम नहीं होता .......अफ़सोस कि भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की जो फ़सल आज लहलहा रही है उसे इसी समाज ने , हमने , आपने अपने हाथों से बोया है ।
रविवार, 9 जून 2013
मुख-पुस्तक के कुछ मुखडे ……..
Gyan Dutt Pandey
वो कहते हैं कि एक रोटी कम खाओ और एक मील रोज और चलो तो दस साल ज्यादा जियोगे। आईडिया बुरा नहीं है!
सनातन कालयात्री
कल घंटा भर एक सज्जन को सुनने के पश्चात अचानक यह अनुभव किया कि पूर्वार्द्ध में जिन माँगों को लेकर वे बहुत ही अधीर थे, उत्तरार्द्ध में उन सबको एक एक कर खारिज कर दिये। मैं केवल उतना ही बोला जितना कि वार्तालाप के जारी रहने के लिये आवश्यक हो और आवश्यक रुचि भी दिखाई। जाते समय बहुत ही संतुष्ट दिखे जब कि मैं अब तक शॉक में हूँ कि वे किस लिये आये थे? कहीं सज्जनता में मैं टाइमपासी का शिकार तो नहीं हो गया!
Neeraj Badhwar
क्या पवन बंसल का भांजा आडवाणी साहब का 'पीएम इन वेटिंग' कंफर्म करवा सकता है?
Prashant Priyadarshi
सिनेमा अच्छी होनी चाहिए, मशालेदार तो चिली चिकेन भी होता है!!!
Abhishek Kumar
निमिषा : तुम जब से ब्लॉग बनाये हो तो कुछ भी लिख देते हो और हमको कभी समझ में नहीं आता... ट्रैफिक के शोर में प्यार के तीन शब्द???...हे भगवान..इसका मतलब क्या हुआ?क्यों लिखे थे ये? कौन बोलता है ये शब्द...और कैसा कौन सा शब्द....ट्रैफिक में तो खाली होर्न सुनाई देता है...तुम शब्द कहाँ से सुन लेते हो भैया?..तुम्हारा ब्लॉग सब कैसे पढ़ लेता है..ये सब फ़ालतू बात को पढ़कर तुम्हारा ब्लॉग पर इत्ता लोग कुछ कुछ लिखता भी है....हमको तो टाईम बर्बाद करना लगता है...
मैं : तुमको समझ में नहीं आएगा बाबु....अभी तो तुम बच्ची हो न रे..
निमिषा : हम अभी अभी बड़े हुए हैं..हमको पता चल जाएगा तुम बताओ चुपचाप
मैं : तुम अभी बड़ी हुई है या बड़ी हो रही है?
निमिषा : चुप रहो...हम बड़े हो नहीं रहे..(फिर कुछ देर सोचकर कहती है)हम बड़े हो चुके हैं..हम अकेले ऑटो पे बैठ कर जा सकते हैं....वहां(वनस्थली, उसका कॉलेज) सारा काम अकेले करते हैं...और भी बहुत कुछ करते हैं तो हम बड़े हो चुके हैं तुम हमको बच्ची मत बोलो नहीं तो बात नहीं करेंगे.
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(पिछले साल की एक बात)
Prabhat Ranjan
जिस आदमी के नेता बनने की खबर मात्र से एक पार्टी में इस कदर अफरा-तफरी मच गई हो, सोचिये अगर वह कहीं धोखे से प्रधानमन्त्री बन गया तो देश का क्या हाल होगा!
Amitabh Meet
शेर मेरे भी हैं पुरदर्द, वलेकिन 'हसरत' !
'मीर' का शेवा-ए-गुफ़्तार कहाँ से लाऊँ ?
Suresh Chiplunkar
जो "बुद्धिजीवी" आज नरेंद्र मोदी और भाजपा का रास्ता रोकने की कोशिश कर रहे हैं...
यही लोग कल UPA-3 के भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर घड़ियाली आँसू भरे स्टेटस लिखते दिखाई देंगे...
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नोट :- बुद्धिजीवी = अपनी बुद्धि बेचकर (या गिरवी रखकर) जीविका कमाने वाले...
सुप्रभात मित्रों...
Vani Geet
यह पहेली भी खूब रही कि नदी ने पत्थरों को तराशा या नदी को पत्थरों ने किनारों में बाँधा !
Vandana Gupta
यूँ तो पी जाती गरल भी
और रह जाती ज़िन्दा भी
मगर
बरसेगी कभी तो कोई बूँद मेरे नाम की
इस आस में युग युगान्तरों से बैठी है
मेरी प्यास .....ओक बन ...........मोहब्बत के मुहाने पर
क्योंकि
ये कोई सूदखोर का ब्याज नहीं जो चुकाने पर खत्म हो जाये
मोहब्बत की किश्तें तो जितनी चुकाओ उतनी ही बढा करती हैं
Sunita Shanoo
कुछ देर उनसे बात हो
ख्वाबों में ही सही,
बस मुलाकात हो
सुप्रभात दोस्तों
Anup Shukla
फ़ेसबुक पर किसी भी स्टेटस पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी/लाइक करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी/लाइक करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी/लाइक करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
Suman Pathak
पहले लगता था ..
अपनी इच्छाओं को मारकर एक खुबसूरत रिश्ता तो बनाया जा सकता है पर एक खुबसूरत ज़िन्दगी नहीं ..
पर अब लगता है कि अपनी इच्छाओं के साथ जीकर खुश होने से अगर अपनों को दुःख पहुंचे तो शायद उस ख़ुशी का भी कोई महत्व नहीं ...
सच है के इन्सान को कुछ सीखने के लिए दूसरों के पास जाने की ज़रुरत नहीं ... समय के साथ हर ज्ञान खुद बा खुद इन्सान में आ जाता है .. ..
Deepti Sharma
यू. पी. बोर्ड दसवीँ में तीन लाख 42 हज़ार छात्र हिन्दी में फेल ।
उफ़...
Kajal Kumar
लगता है कि आडवाणी, केंद्र के केशुभाई बनने की तैयारी में हैं
Kailash Sharma
कितना सूना है घर का हर कोना,
एक आवाज़ को तरसता है.
....कैलाश शर्मा

Vivek Singh
आडवाणी जी का नाम प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में यूँ ही लिखवाकर मामला रफादफा क्यों नहीं कर देते.......
Abhishek Cartoonist
आदमी का उतावलापन तो देखो ... ज्येष्ठ माह में ही बरसात मांग रहा है ..... हे भगवान् !
देवेन्द्र बेचैन आत्मा
आज सुबह चार बजे उठे। आस पास के पाँच और लोगों को जो रोज मार्निंग वॉक करने जाते हैं, जुटाकर तीन मोटर साइकिल से सूर्योदय से पहले दशाश्वमेध घाट गये। दशास्वमेध से तुलसी घाट तक पैदल वॉक किया। खूब जमकर फोटोग्राफी करी। गंगा स्नान किया। तैराकी की। (अधिक नहीं तैर पाया..चलने के बाद थक चुका था। :( ) नहाकर बाबा विश्वनाथ का दर्शन किया। दर्शन के बाद चौक चौराहे में कचौड़ी-जिलेबी का नाश्ता किया, मगही पान जमाया और साढ़े नौ बजे तक सारनाथ वापस।
कोई लाख कहे गंगा घाट पर खूब गंदगी है, गंगा मैली हो गई है लेकिन आज भी सूर्योदय से पहले घाटों पर टहलने और गंगा स्नान करने में जो आनंद है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। ऑपरेशन 'सुबहे बनारस' सफल रहा।
Girish Mukul
मेरे महबूब का साथ मिला जब से मुझे
मेरे होने का एहसास मिला तब से मुझे !
दूर आती पाजेब की सुन के छन छन-
उसके आने का आभास मिला तब से मुझे !!
Ajit Wadnerkar
दूषत जैन सदा शुभगंगा।
छोड़ हुगे यह तुंग तरंगा।।
महाकवि केशवदास की उक्त पंक्ति का भाव है कि जैनी अगर गंगा की निन्दा करते हैं तो करते रहें, सिर्फ इसी वजह से क्या हम उत्ताल लहरों वाली गंगा को पूजना छोड़ देंगें? मैं नहीं जानता कि जैन वांङ्मय की किस धारा में गंगा की निन्दा है। हाँ, गंगा तीरे यानी काशी में तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए थे। अहिंसा विचार के मद्देनज़र देखे रामायण का एक प्रसंग है कि तो वनगमन के दौरान सीता ने गंगा पार करते वक्त भयवश देवी गंगा यह प्रार्थना की थी कि सकुशल लौट आने पर वे उन्हें मांस का चढ़ावा देंगी। क्या यह वजह है निन्दा की ? जैन, बौद्ध और अनादि काल से चले आ रहे जातियों के सांस्कृतिक संघर्ष में न जाने कितनी हिंसा हुई, लहू से गंगा गाढ़ी नहीं हुई, बल्कि हिंसा की गहनता को तरह बना दिया। सागर की अतल गहराई में पहुँचा दिया। गंगा तो आज खुद हिंसा की शिकार है। हजारों साल पहले की पुण्य सलिला की निंदा भी क्या हिंसा नहीं ? अगर हिंसा ही वजह थी तब आज की गंगा को प्रदुषित करने वाले तमाम धर्मावलम्बियों के विरुद्ध कैसी कार्रवाई होनी चाहिए?
Xitija Singh
देवदार पुकार रहे हैं ... :)))))))))))))) —
feeling excited at off to SHIMLA ... .
Awesh Tiwari
मैदान चाहे क्रिकेट का हो या फिर राजनीति का ,विदाई एक ही तरीके से होती है ,आडवाणी को देखकर मुझे गांगुली और अजहर याद आ रहे हैं
Geeta Gaba Geet
मेरे महबूब का साथ मिला मुझे जब से
खुश रहने के बहाने मिले तब से ..
Bhawesh Jha
हम भी तम्हें उँचाइयों पर दिख गए होते..
अगर हम भी थोड़ा-सा बिक गए होते
Mayank Saxena
कभी बारिश, कभी मिट्टी में मैं सन जाता हूं
तुम्हारे पास आ के बच्चा बन जाता हूं
हज़ार बार मैं इनकार करता हूं सबको
तुम्हारी आंख झपकने से ही मन जाता हूं
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