फेसबुक पर बड़े लोगों की पहचान क्या है पता है आपको , चलिए मैं बताता हूँ आपको:--
अपने किसी बेकार पोस्ट पर भी हजारो like और सैकड़ों comments की उम्मीद और दुसरे के अच्छे पोस्ट को भी नज़रअंदाज़ कर देना । फेसबुक पर बड़े लोगो की पहचान है ।
आँसुओं को पी रहा हूँ
कौन मुझसे पूछता अब किस तरह से जी रहा हूँ
प्यास है पानी के बदले आँसुओं को पी रहा हूँ
जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें
आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ
चाहने वाले हजारों जब तेरे शोहरत के दिन थे
वक्त गर्दिश का पड़ा तो साथ में मैं ही रहा हूँ
बादलों सा नित भटकना अश्क को चुपचाप पीना
याद कर चाहत में तेरी एक दिन मैं भी रहा हूँ
क्या सुमन किस्मत है तेरी आ के मधुकर रूठ जाता
देवता के सिर से गिर के कूप का पानी रहा हूँ
सादर
श्यामल सुमन
फैलिन तूफ़ान शाम तक उड़ीसा, आंध्र के तटों तक पहुँचेगा!
तब तक झान्सराम को मीडिया ट्रायल से छुटकारा मिलने के आसार नहीं.
सचिन के सन्यास की खबर से लोग ऐसे दुःखी हो रहे हैं जैसे UPA 3 की सरकार बन गयी हो....
दिल्ली डायरी -26
अभी थोड़ी देर पहले घर पहुंचा हूँ |दरवाजे पर भीड़ थी ,एक ऑटो उसमे बैठे तीन श्वेतवर्ण विदेशी ,गेट पर दो लड़कियां तीन लड़के ,जिनमे से एक नाइजीरियन और बाकी हिन्दुस्तानी ,सभो मूक और बधिर |मैं अन्दर जाने की जगह न होने की वजह से अपनी गाडी पर बैठा बाहर खड़ा रहा ,इन सबके चेहरे बता रहे थे कि ये विदाई का समय है ,मेरी दरवाजे पर उपस्थिति उन्हें और उनके आंसुओं को परेशान कर रही थी |खैर मैंने इशारे से कहा मुझे घर के भीतर जाने की जल्दी नहीं है |कुछ समय बाद ऑटो बढ़ा और फिर घर में साथियों को छोड़ वापस लौट रहे इन युवाओं ने आंसुओं के साथ मेरे लिए रास्ता छोड़ दिया ,मगर इन सबके बीच वो स्याही के रंग की नाइजीरियन लड़की अभी भी सीढ़ियों पर बैठी है ,न जाने क्यों |दिल्ली में दो तरह के लोग हैं एक वो जिन्हें जाना ही है दूसरे वो जिनकी किस्मत में इन्तजार करना ही लिखा है |
कल गाँव जाने की सोच रहा ,सारी ट्रेने भरी हुई है ,न जाने कैसे जाऊँगा ?समझ नहीं पा रहा |दोस्त नाराज रहते हैं कि फोन नहीं उठाता ,मैं उन्हें कैसे समझाऊं ,फोन से मेरा रिश्ता बहुत खराब है ,अक्सर चार्ज करना ही भूल जाता हूँ |आजकल क्रोध जल्दी आता है सोच रहा हूँ कि सम्यक रहकर हम क्रोध को कम कर सकते हैं ,पर सम्यक रहे क्यों ?
"कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से खाली हो मगर नींद न आए"
फ़िराक़ कुछ ज्यादा ही याद आते हैं। फैज़ और साहिर दोनों से पहले। जब भी भुलाने लगती हूँ खुद को तो फ़िराक़ जैसे आके याद दिला जाते हैं।
वह दिन दूर नहीं, … जब फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर, इत्यादि लोगों की प्रसिद्धि व व्यक्तित्व की पहचान व पैमाने बनें … ???
अगर आज की युवा पीढ़ि टीवी फिल्मो की गुलाम ना होती तो आज "प्रेम" का सही मतलब "शारीरिक आकर्षण" ना होकर "इंसानियत" होता।feeling शर्मसार
जो लोग मनमोहन को शांति का नोबेल मिलने की उम्मीद लगाए बैठें थे, उन्हे पता होना चाहिए नोबेल, शांति के लिए दिया जाना था, सन्नाटे के लिए नहीं।
-
महजनेन येन गतः सः पन्था..कु और सु संस्कार ऊपर से नीचे प्रसारित होता है.
क्या लालू या इन जैसों को सजा केवल इस कारण होनी चाहिए कि इन्होंने किसी घोटाले को अंजाम दिया था ?
नहीं...
इन जैसों को कठोरतम दण्ड इसलिए मिलना चाहिए क्योंकि इन्होने पूरी एक संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट किया,जिन्होंने यह कल्पना से परे कर दिया कि ईमानदार कभी तरक्की कर सकता है चैन से जी सकता है,बिना घूस दिए कोई सरकारी काम हो सकता है,जघन्यतम अपराध से पहले एक बार ठिठका डरा जा सकता है,हिन्दू मुसलमान ब्राह्मण यादव धोबी दुसाध आदि आदि बन नहीं,एक भारतीय नागरिक बन रहा जिया जा सकता है.
यूँ अपने संविधान में अभी इसकी व्यवस्था नहीं और न ही न्यायलय को यह ज्ञात है कि एक राजा जिसके संरक्षण में अपहरण उद्योग,भ्रष्ट,निरंकुश,अत्याचारी तंत्र फले फूले, अनाचार इतने गहरे पैठ जाए कि वह लोगों का संस्कार बन जाए,उसे कितनी और कैसी सजा देनी चाहिए, इसके लिए जनता को ही आगे बढ़कर यह तय करना होगा कि ऐसे राजाओं/नेताओं का क्या करना है .
दुर्गाष्टमी,महानवमी और विजय दशमी पर सभी मित्रों को ह्रदय से मंगलकामनाएं----
अन्तर की शक्तियों को जगाने की रात है ।
श्रद्धा से शीश अपना झुकाने की रात है ।
देकर के अर्घ्य अश्रुओं का,हाथ जोड़कर
सच्चे ह्रदय से मॉं को मनाने की रात है ।।
-----मनोज अबोध
दिल्ली में कार चालकों की ड्राइविंग का तरीका देखकर आप आसानी से अनुमान लगा सकते है कि कौन कौन कार चालक बाइक से कार में अपग्रेड हुआ है !!
दरअसल दिल्ली में बाइक सवारी छोड़ कार सवारी में अपग्रेड हुए ज्यादातर लोग बाइक चलाना तो छोड़ देते है पर ट्रेफिक में बाइक इधर उधर कर घुसेड़ने वाली आदत नहीं छोड़ते और कार को ऐसी ऐसी जगह घुसेड़ने लगते है जैसे वे बाइक चलाया करते थे !!
'मोबाइल' टॉयलेट में गिर जाए तो निकाल लेना चाहिए या फ्लश कर देना चाहिए !!
तेरी यादों से रोशन हैं ये दुनीयाँ मेरी
हर राह पर उजाला ही नज़र आता हैं
मन जो चाहे वो हो तो अच्छा ना हो तो बहुत अच्छा क्योकीं मेरा अच्छा भगवान मुझसे बेहतर जानता हैं
हम इतने मूर्ख भी नहीं कि देश-काल की सीमाओं को न देखें और सिर्फ एक ही बात को आधार बनाकर किसी के पूरे जीवन और काम को रिजेक्ट कर दें। जैसेकि मान लीजिए कि अगर उन लेखक की अपनी ही जाति में अरेंज मैरिज हुई थी तो इसे लेकर मैं कोई बिलकुल जजमेंटल नहीं होऊंगी। उस वक्त ऐसा ही होता था। वो समय-समाज दूसरा था। आपके विचार जो भी हों, लेकिन आप बहुत कुछ प्रैक्टिस नहीं कर पाते क्योंकि वक्त उसकी इजाजत नहीं देता। जैसे अभी मेरे ही विचार तो जाने क्या-क्या हैं, लेकिन मैं सबकुछ प्रैक्टिस कहां करती हूं।
एक उदाहरण तो मेरे घर पर ही है। पापा एकदम भयानक वाले मार्क्सवादी थे, लेकिन 1978 में 29 साल की उम्र में शादी उनकी भी अरेंज ही हुई थी और वह भी ब्राम्हण लड़की के साथ। मैं कभी-कभी उन्हें चिढ़ाती और कभी सीरियसली इस बात पर नाराज होती कि आपने ऐसा किया कैसे। पापा का जवाब सिंपल था - "जिस तरह के सामाजिक-आर्थिक परिवेश से मैं आया था, मेरे आसपास कोई लड़की नहीं थी।" प्रेम तो छोडि़ए, पापा की तो कभी कोई महिला मित्र भी नहीं थी। और ये शादी भी लगभग पकड़कर करवा दी गई थी। उन्होंने मां की एक फोटो तक नहीं देखी थी शादी से पहले। हम आज भी पापा को चिढ़ाते हैं, "यू आर सच ए ड्राय मैन। नॉट एट ऑल रोमांटिक। जिंदगी में कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं। धरती पर आपका जीवन व्यर्थ है।" साठ साल के बूढ़े अब्बा को ये ज्ञान उनकी बेटियां दिया करती हैं।
उनकी अपनी जिंदगी में जो भी हुआ हो, दीगर बात ये है कि अपनी लड़कियों के साथ उन्होंने क्या किया। आप जरा मेरे घर जाकर कोई दुबेजी, तिवारी जी दूल्हा उनकी बेटियों के लिए सजेस्ट करके तो आइए और देखिए क्या होता है। वो आपको चौराहे तक खदेड़ देंगे। वो कल्पना नहीं कर सकते कि हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर और माथे पर भगवा साफा बांधकर अपनी बेटियों का कन्यादान करें। खुद पंडिताइन से ब्याह करने वाले वो ऐसे शख्स हैं, जिनसे उनकी बेटियां अपने ब्वायफ्रेंड और रिलेशनशिप डिसकस करती हैं। जिन्होंने अपनी अस्सी साल की बूढ़ी मां के लाख रोने-धोने के बावजूद काम वाली का बर्तन अलग रखने से मना कर दिया, "मेरे घर में ये नहीं चलेगा, आप बेशक इस घर में न रहें।" बुढ़ापे में दादी का धर्म भ्रष्ट हुआ सो अलग।
सो इन नट शेल मेरे कहने का अर्थ ये है कि अगर किसी ने सारे प्रगतिशील दावों और लेखन के बावजूद अपनी जिंदगी में कास्ट सिस्टम को फॉलो किया, बेटे-बेटियों की अपनी जाति में शादी की, दहेज लिया और दहेज दिया, बेटे के चक्कर में ढेरों बेटियां पैदा कीं तो ये बात माफी के लायक कतई नहीं है। आप अपनी जिंदगी में नहीं कर पाए, लेकिन अपनी बच्चों की जिंदगी में बहुत आसानी से कर सकते थे।
आपने नहीं किया क्योंकि दरअसल भीतर से आप बहुत बड़े जातिवादी और मर्दवादी हैं। अंतरजातीय विवाह का समर्थक न होना घोर रिएक्शनरी एटीट्यूड है।
नॉट एक्सेप्टेबल बॉस। ये चलने का नहीं।
खबर है की महारानी एलिजाबेथ दितीय के खाते में मात्र नौ करोड़ 75 लाख रुपल्ली ही रह गये है लिहाजा ब्रिटिश सरकार ने उनकी तन्खवाह में 22 फीसद इजाफे की घोषणा की है..
एक व्यक्ति ने टैक्सी ली और ड्रायवर को एक स्थान का नाम बताकर चलने को कहा। जब टैक्सी अपनी रफ्तार से चलने लगी तो पिछली सीट पर सवार व्यक्ति ने कुछ पूछने के लिए ड्रायवर की पीठ पर धीरे से हाथ रखा।
हाथ रखते ही अचानक टैक्सी का संतुलन बिगड़ा और वह लहराने लगी। बड़ी मुश्किल से एक्सीडेंट होते होते बचा। इस पर सवार व्यक्ति बहुत शर्मिन्दा हुआ और ड्रायवर से बोला- माफ कीजिए, मुझे नहीं पता था कि मेरे हाथ रखने से आप इतने विचलित हो जाएंगे।
ड्रायवर- नहीं, आपकी गलती नहीं है। दरअसल टैक्सी चलाने का यह मेरा पहला दिन है। इससे पहले मैं पिछले 17 सालों से मुर्दाघर का वाहन चलाता था। ...
प्रिय दीपिका पादुकोण जी,
निवेदन यह है की हमे लगता है की एक
आप ही हैं जो इस देश की जनता को ख़ुशी दे सकती है.
क्यूँ की सबसे पहले आप शाहरुख़खान के साथ फिल्म
बनाये उसके बाद उसकी लगातार कई पिक्चरें पिट गयी
युवराज सिंह की जिंदगी में आई उस वक़्त उसके
करियर की वाट लग गयी थी .....
फिर आप बी एस एन एल में आई ...उस वाक्क्त
बी एस एन एल की भी वाट लग गयी ....
फिरआप किंगफिशर में आई तो खबर आ रही है
की किंग फिशर बर्बाद हो गया है एवं बंद होने
की कगार पर है ....
सो हमारा आपसे अनुरोध हैकी कृपया आप
Congress में शामिल हो जाएँ बड़ी मेहरबानी होगी
आपके जवाब की प्रतीक्षा में समस्त देशवासी.
प्रेम ,
तरल है
पलती है उसमें ,
एहसासों की सुनहरी मछलियाँ !
जब देना होता है प्रेम को आकार
रख देनी होती है
इन मछलियों के मुख में अग्नि
और बहा देना होता है
इन्हें ऐसी जगह
जहाँ का खारापन
दे जाता उन्हें एक नया जीवन !
मुखाग्नि उगली जाती हैं
समुद्र धरातल में, और ;
उठ आती है विशाल लहरें
जो दावानल की भूख लिए
खा जाती हैं किनारे बैठे हर विकल्प को ...
तब ;
हवाएं जान जाती है कि
लहरें उठाना अब उनका काम नहीं
आश्वस्त हो ,खेलने चली जाती है
पहाड़ी की मंदिर में..
एक बार फिर बज उठती है घंटियाँ....
और ;
तुम कहते हो ..........
“आरती का वक़्त हो गया “!!!
हे भगवान ,यहाँ तो सब सहेज उठता है ताकि सनद रहे ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमित जी , सब कुछ अनमोल अमिट है मेरे लिए तो
हटाएंवाह,,,
जवाब देंहटाएंभाई अजय जी
बहुत मेहनत की आपने
साधुवाद......
नहीं जी मैंने तो सिर्फ़ सहेज़ लिया है मेहनत तो लिखने वालों की है :)
हटाएंवाह फेसबुक का निचोड़ मिल जाता है।
जवाब देंहटाएं:) :)
हटाएंकुछ स्टेटस अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंचलिए कुछ के लिए शुक्रिया और बाकी के लिए आभार :) :)
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार कविता जी
हटाएं