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शनिवार, 9 नवंबर 2013

आखिर बात क्या है भाई ???

 

  • Padm Singh

    1-अचानक ओपिनियन पोल पर रोक की वकालत क्यों ...

    2-नेहरू और इंदिरा गांधी के कारनामे दिखाने के कारण (और आडवाणी की तारीफ के कारण) एबीपी न्यूज़ वाला शो 'प्रधानमंत्री' के प्रसारण पर रोक....

    3-पेड न्यूज़ पर रोक लगाने संबंधी अध्यादेश का ड्राफ्ट तैयार है ...

    4-न्यूज़ चैनलों के लिए एड्वाइज़री जारी ...

    5-बार बार सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की भरसक कोशिश...

    .... आखिर बात क्या है भाई ??

  • Ehtesham Akram

    हकीकत खुराफात में खो गई....

    ये उम्मत रवायात में खो गई..... !!!!!

    .........................................................इकबाल

  •  

  • Baabusha Kohli

    रंज इसका नहीं कि हम टूटे, चलो अच्‍छा हुआ भरम टूटे

    आई थी जिस हिसाब से आँधी, उसको देखो तो पेड़ कम टूटे

    [ पता नहीं किसका, पर बब्बर शे'र है. ]

  • Nand Lal

    नेता और डाइफ़र में क्या समानता है ? दोनो को सही समय पर नही बदला गया तो बहुत गन्दगी फ़ैल जाती है ।

  • Gyan Dutt Pandey

    शुद्ध गंवई माहौल! पड़ोस में मेहरारुओं में कजिया हो रही है। जानदार दबंग भाषा का प्रयोग।

      • Tarif Daral

        हम फ़ेसबुकिये भी कितने पागल हैं ,

        जो भी खाते हैं , जो भी करते हैं !

        वो खाने से पहले , करने से पहले ,

        फ़ेसबुक पे स्टेटस अपडेट करते हैं !

      • Manisha Pandey

        अभी 1000 पन्‍ने तो इस भ्रम पर ही लिखे जाने की जरूरत है कि "औरत ही औरत की दुश्‍मन है।"

        पता नहीं लोग मूर्ख हैं या मक्‍कार, जो इतने कॉन्फिडेंस के साथ ऐसा झूठ फैलाया करते हैं। अच्‍छा ही है, औरतें आपस में ही लड़ती रहेंगी तो आपके ऊपर सवाल नहीं उठेगा।

        • Vkboss Katariya

          बात उसकी मुझे कभी रास नहीं आती !

          यही बात सोच वो मेरे पास नहीं आती !!

        • Sanjeev Chandan

          अभी ६ तारीख को पटना आ रहा था तो हाजीपुर से गायघाट तक १२ किलोमीटर की दूरी छः घंटे में तय की थी , इतने से कम समय में पैदल भी आया जा सकता था . मैं उनलोगों से खुशनसीब था , जो पटना से आ रहे थे और बसों में , ट्रकों में , ऊपर नीचे लदे -फदे थे - क्योंकि बस की पहली सीट पर मुझे आरामदायी जगह मिल गई थी .उन लोगों से भी, जो छः घंटे की यात्रा में अपने अपने 'इमरजेंसी काल' को अपने चेहरे पर न आने देने के असफल प्रयास कर रहे थे . इंजीनियरिंग के एक छात्र को तो कंडक्टर से पानी का बोतल लेकर गंगा -ब्रीज के किनारे बैठना ही पड़ गया . इस यात्रा में भांति -भांति के अनुभव हुए . जाम में अपने बस को आगे ले जाने के लिए प्रयास रत अपने उत्साही सहयात्री पर दूसरे बस वाले ने बस चढ़ा देने की असफल कोशिश की , सहयात्री बस का वायपर पकड़कर बचा और वायपर तोड़ डाला . फिर उस बस के दो -तीन स्टाफ उसे देख लेने हमारी बस पर आये . गाली -गलौच और सिफारिशों का धौस शुरू हुआ . बीच में सहयात्री की पत्नी भी दबंगई के साथ आ भीड़ी और उन्होंने ललकारा , ' मैं भी रंगदार खानदान में ही पैदा हुई हूँ .' मामला सुलटा था लेकिन थोड़ी देर के लिए . सहयात्री ने अपने किसी रिश्तेदार एस पी को फोन किया और पटना में पुलिस की सहायता माँगी , चेकपोस्ट पर . उसने कहा कि स्नैचिंग का केस भी ठोक देंगे . यह सब देखते -सुनते पटना पहुंचा . हाजीपुर के गांधी सेतू ( ९ किलो मीटर ) को पार करने में हर दिन ही लोगों को कम से कम चार घंटे लग रहे हैं . बिहार में होना आपको अनेक अनुभवों से संपृक्त कर देता है .. है न ...!


        • Vandana Gupta

          शब्द शब्द झर गया

          कोई अम्बर भर गया

          मेरा ह्रदय गह्वर तो

          बस मौन ही रह गया


        • Mayank Saxena

          मेरे पत्थरों को गुमान है, मेरे हाथ से वो चले नहीं

          मेरे दुश्मनों को ये नाज़ है, कभी वार खाली नहीं गया


        • सुनीता भास्करमहात्मा गाँधी की हत्या के उपरान्त सरदार पटेल ने वह सब किया जो कि आर एस एस के लिए परिस्तिथियों को अनुकूल बनाने के लिए किया जा सकता था.पटेल की ही निगरानी के दौर में मीरबा की छोटी पुरातन मस्जिद जिसे बाबरी मस्जिद भी कहा जाता है, में रहस्यमय ढंग से राम की मूर्तियों को रख दिया गया, जहाँ से ये फिर कभी हटाई नहीं जा सकी..इस तरह कांग्रेस के व्यावहारिक सम्प्रदायवाद ने आर एस एस के सुनियोजित सम्प्रदायवाद का मार्ग प्रशस्त्र किया. .... (बीसवीं सदी की राजनीति में भारत) एक पुराने लेख में एजाज अहमद

        • Rajeev Kumar Pandey

          तुम गिराते रहे हर बार, उठ के चलता रहा हूँ मै ,

          ऐ तूफानों ! अब तो अपनी औकात में रहा करो !!

        • Samvedna Duggal

          सुनो...तुम्हें जवाब नहीं देना तो मत दो ....मेरे प्रश्नों के सिरे ..चूहों की तरह कुतरा मत करो............


          • Shailja Pathak

            जुग जुग जिय तू ललनवा भवनवा क भाग जागल हो ............चलो मान लिया की तुम्हारी जीने से भाग्य जगता है..बाबा पिताजी के बाद तुम मेरे भाई मेरे बेटे ..तुम सबके लिए जीने की दुवायें दिल से ..

            पर हमें मारने के कितने षड्यंत्र ..हमारी इक्छायें बाल्टी के पानी में रेत सी सतह में क्यों ..तुम्हारी पाल वाली नावं ...जो हवा के साथ दिशा बदल दे..तुम जो करो वो सही .हमारे करने के पहले ही तय है की ये गलत ही होगा ...ऐसा क्यों ?तुम्हारे हाथ में ताबिजो में गंडो में बंधी कितनी मनौतियाँ ..हमारे लिए क्रूर योजनायें ..समय ऐसा की लड़की बचाओ का नारा बन गया ..तुम इन्सान बचे रहो तो बचा भी लो बेटी ..

            लड़कियों के लिए बस उस बिचारी चिड़िया वाला गाना ही क्यों जो अपने मन के पंख से उड़ेगी बाबा के आम के पेड़ पर बैठेगी ओर अपने भाई को फलता फूलता देखेगी ....सुपरमैन बना हुवा बैग लड़का ..बार्बी डॉल वाला लड़कियां ऐसा क्यों ?मांगलिक कुंडली वाली लड़कियां ...काले रंग वाली ..कम पढ़ी लिखी ...गरीब ..ये सिर्फ लड़कियां नही हमारी संताने हैं ...

            बड़का जिला के पुराने अस्पताल में जन्मने से पहले मार डालने के बाद जीप में पीछे की सिट पर डाल कर आप अपनी औरत को घर की आग में झोकतें हैं बिना उसके आंसू पोछे की पिछले चार महीने से वो अपने अनदेखे बच्चे से अपना दर्द बाँट कर खुश थी .......पुण्य के इतने त्यौहार ..पाप के कितने कीड़े इन्सान के ही दिमाग में ना..........

            लड़की अपने भैया को धूप से बचाती है ..अपनी इत्ती सी कमर में उसे लाड से उठाती है हाथ का टाफी बाबु खाता है लड़की आँखों से लार गिराती है बाबू की पप्पी लेती है मीठी हो जाती है ..यही लड़की ना ....

              • अनूप शुक्ल

                कोई हमको दस-बीस साल के लिये प्रधानमंत्री बना दे तो हम देश की तस्वीर बदल के धर देंगे । माने बदलने की गारण्टी है सुधारने की नही


              • Anil Saumitra

                मुझे पता नहीं है, किसी मित्र को पता हो तो कृपया जरूर बताएं- क्या मार्क्स की माँ भी छठपूजा करती थी, क्या प्रसाद में अफीम रखा जाता था? अगर नहीं तो कुछ मार्क्सवादी छठपूजा में भी अफीम क्यों ढूंढ लेते हैं? इसे भी मातृसत्तात्मक-पितृसत्तात्मक माइंडसेट से क्यों व्याख्या करते हैं. हमारे लिये छठपूजा माँ और छठी-मैया का आशीर्वाद है, बस!

              • Arun Arora

                कांग्रेस का कहना है सी बी आई समवैधानिक संस्था है .. बस उस रेजोल्यूशन का ड्राफ्ट राहुल जी से गुस्से में फट गया था .


                • Shivam Misra

                  बेचारा 'तोताराम' ... ५० साल की नौकरी के बाद पैंशन का सपना तो टूटा ही मासिक वेतन भी खटाई मे न पड़ जाये ... अब सुप्रीम कोर्ट की शरण मे गए है |


                • Kumud Singh

                  दिल्‍ली मुंबई में नये फैशन की जानकारी चाहे मॉडलों के कैटवाक से हो या कॉलेजों में नये सत्र से, लेकिन मेरे यहां तो आज भी फैशन का नया ट्रंड छठ के घाट पर ही दिखता है। सही में इस जाडे का फैशन दिखाने की परंपरा इस बार भी कायम रही। गुनगुनी ठंड ने सहयोग भी खूब किया।

                • Shirish Chandra Mishra

                  भगवान हो या ना हो सूर्य तो हैं, और वो हैं तो हम हैं, ये जीवन है, ये दुनिया है। छठ पूजा मेरी नजर में बहुत हद तक वैज्ञानिक है, और इस तरह से मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार, और कृतज्ञता एवं महानता बिहार की, देते वक्त सब पूजा करता है लेकिन बिहार जाते समय भी करता है, बांकी बचपन से जो यादें, जो उत्साह जो उल्लास जुडी है इस पर्व से , उसके बारे में क्या कहना उसको तो बस वही समझ सकता है जिसने महसूस किया है!!!:))

                • धीरेन्द्र अस्थाना

                  गेहूँ

                  उगाने में खेत को

                  जरूरत होती है

                  पसीने की बूँदे ,

                  और उस मेहनत को

                  महसूस कराने वाली

                  शब्द वेदना

                  हो सकती है

                  कविता ,

                  जिसे रचा नहीं जा सकता,

                  सिवा महसूस करने के !

                    • Kajal Kumar

                      कि‍सी भी पोस्‍ट में मोदी का नाम लि‍ख भर तो दो

                      वि‍रोधी और समर्थक दोनों ही में जम कर हि‍ट

                        • Shah Nawaz

                          सिर्फ इस तरह के उपदेश देने से काम नहीं चलेगा कि दहेज़ और बारातों का चलन लड़की वालों पर ज़ुल्म है, बल्कि मज़हब के रहनुमाओं को निकाह पढ़ाते समय इस तरह की बातों के होने पर निकाह पढ़ाने से इंकार करने जैसे सख्त़ कदम उठाने पड़ेंगे।

                          तभी जाकर समाज में इनकी हकीक़त रूबरू होगी और जो लोग इसके ख़िलाफ़ हैं वह खुलकर सामने आ पाएंगे। ज़िम्मेदारियों से कब तक बड़ी-बड़ी बातें करके पीछा छुड़ाएंगे???

                            • Ravish Kumar

                              अब पेट फट जायेगा । रिज़र्व बैंक आफ़ लबरा ! लबरा मतलब झूठा । ये क्या होता है । उनके पास एक से एक झूठ है । नया नया । जैसे रिज़र्व बैंक के पास हमेशा नया नोट होता है न वैसे ही रिज़र्व बैंक आफ़ लबरा के पास होता है । उँ जब बोलेगा नया झूठ बोलेगा । नाम ? अब इ तुम मत लिख देना । राजनीति में कौन हो सकता है ।

                              4 टिप्‍पणियां:

                              पोस्ट में फ़ेसबुक मित्रों की ताज़ा बतकही को टिप्पणियों के खूबसूरत टुकडों के रूप में सहेज कर रख दिया है , ...अब आप बताइए कि आपको कैसी लगे ..इन चेहरों के ये अफ़साने