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बुधवार, 17 सितंबर 2014

तुम्हारा चेहरा मैं रोज़ पढता हूं ………….

 

    फ़ेसबुक पर साथी दोस्त मित्र सक्रिय रहते हैं , अपने अपने मिज़ाज़ और अपने अपने अंदाज़ में , दोस्तों को पढने का भी अपना ही एक मज़ा है और फ़िर इसे तो मुखपुस्तक कहा जाता है , तो मैं इन चेहरों को रोज़ पढता हूं और उनमें से कुछ चुनिंदा को यहां इस कोने पर सहेज़ लेता हूं , देखिए आप भी इन दिलचस्प अभिव्यक्तियों को …………

    अर्चना चावजी

    ये बनाया Jyotsana Shekhawat मेडम ने ....

    ये बनाया Jyotsana Shekhawat मेडम  ने ....

     

     

    Geeta Shree

    ना मैं सपना हूं ना कोई राज हूं,

    एक दर्द भरी आवाज हूं..."

    -दुश्मन हैं हजारो यहां जान के,

    जरा मिलना नजर पहचान के..

    कई रुप में है कातिल..."

    बताइए किस गाने का अंतरा है??

     

        Ranjana Singh

        भैंसिया को चाहे केतनो रगड़ के गमकौआ साबुन सैम्पू से नहलाके, एसनो पौडर काजल लाली लगाके एकदम साफ़ झकाझक संगमरमर के फर्श पर बैठाय दो, छूटते ही वो कादो कीचड में लोटांने निकल जाएगी।

        जय हो लोकतंत्रीय भैंस/मतदाता की(स्पेशली फ्रॉम उत्त पदेस) !!!

         

         

        Anjule Elujna

        मौसम बदल गए तो जमाने बदल गए,

        लम्हों में दोस्त बरसों पुराने बदल गए।

        दिन भर जो रहे मेरी मोहब्बत की छांव में,

        वो लोग धूप ढलते ही ठिकाने बदल गए।

        कल जिनके लफ्ज-लफ्ज में चाहत थी, प्यार था,

        लो आज उन लबों के तराने बदल गए।

        एक शख्स क्या गया मेरा शहर छोड़ के,

        जीने के सारे ढंग पुराने बदल गए।

        अब वो न वो रहा है, ना मैं ही मैं रहा,

        सारे ही जिंदगी के फसाने बदल गए।

        - अज्ञात

        (शायर का नाम पता हो तो कमेंट बॉक्स में बताते जाईयेगा)

         

         

        Anshu Mali Rastogi

        जिनपिंग ने मोदी से इच्छा जाहिर की है, एक बार वे भी Comedy Nights with Kapil में जाना चाहते हैं।

         

         

        Anju Choudhary feeling crazy

        तैरते तिनके झुलाती धार है

        डूबता कंकड़ बहुत लाचार है

        अमीरों और सौन्दर्य की दुनिया में

        क्यों लगता है यारों बाकि सब बेकार हैं

        ******:)

        एवें ही एक ख़याल दिमाग का (मैं तो ऐसी ही हूँ :P)

         

         

        Anulata Raj Nair

        बुन रही हूँ ज़िन्दगी

        कि दुःख का ताना और सुख का बाना है

        तागे टूट टूट जाते हैं...

        ताने बाने एक से हों

        तब न मुकम्मल हो कताई !

        ~अनुलता ~

         

         

        Chandidutt Shukla Sagar

        - अगर भाषा की बाजीगरी ही सब कुछ होती तो निर्मल वर्मा यकीनन प्रेमचंद और मंटो से बड़े रचयिता होते। इसका मतलब ये नहीं कि निर्मल अच्छे लेखक नहीं हैं, लेकिन उनकी ताकत अलग तरीके की है और लिखने-पढ़ने के इलाके भी हैं ज़ुदा!

        - कहना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी सिर्फ दिखा भर देने से बहुत कुछ कहना मुमकिन हो जाता है।

        - हम अपने समय पर गहरी नज़र रखें और उसे लिख पाएं तो वह लिखना सार्थक है।

        - नए नज़रिए के बिना कुछ भी लिखना खुद को ही दोहराने जैसा है...

        __________ हां, मुंबई में भागती लोकल के बीच भी ऐसी बातचीत मुमकिन है !

         

         

        Isht Deo Sankrityaayan

        मोदी जी उधर सौ सैनिक घिरे हुए हैं और इधर आप प्रोटोकॉल तोड़ने जा रहे हैं. यानी आप फिर उसी रीति-नीति पर आ गए. पहले 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' फिर तिब्बत और 62 का मामला. मने ई पटेल की धरती से नेहरू........ क्या ज़रूरत थी यार!

         

         

        Santosh Jha

        अरे भाई श्री राजनाथ सिंह जी को लव जिहाद का मतलब समझ में आया की नहीं ?

         

         

        Pramod Mishra

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        कौन हे अपना कौन पराया देखा सब संसार

        वक्त आये बुरा तो पड़ोसन भी देती हे मार !!

         

         

        सतीश आहुजा

        दरअसल चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग बस यह खुलासा करने भारत आए हैं कि........

        .

        असल में भारत में चाइनीज़ फ़ूड की लॉरियों पर जो बन्दे चाऊमीन बना रहे हैं उनमें से 99% नेपाली हैं, चीनी नहीं

         

         

        आचार्य रामपलट दास

        इधर देखना फिर उधर देखना

        मेरी छत सुबह दोपहर देखना

        दिखाना कि यों जैसे देखा न हो

        झुकाकर तुम्हारा नज़र देखना

         

         

        हंसराज सुज्ञ feeling चिंतन

        (10) बुद्धि अंतर........

        नकारात्मक वाणी :-

        यह उचित अवसर नहीं, जिसका मुझे इंतज़ार है।

        सकारात्मक वाणी :-

        यही वो अवसर है जिसे मैं अनुकूल बना सकता हूँ।

         

         

        ब्रजभूषण झा

        इश्क लडाने या करने के लिये लडकियों की कमी नहीं है, लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि जो लडकी तुमसे इश्क करे वह शादी भी करेगी. इश्क का तअल्लुक दिलों से होता है और शादी का तनखाहों से. जैसी तनखाह होगी वैसी बीवी मिलेगी..

        डा. राही मासूम रज़ा

        (टोपी शुक्ला से...)

         

        Shahnawaz Siddiqui

        उप-चुनाव के 'नतीजों' को 'अच्छे दिनों' से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए... ज़रूरी तो नहीं कि हवा हमेशा सुखद ही लगे!

         

         

        वसुन्धरा पाण्डेय

        रिश्ते जिंदगी के साथ-साथ नहीं चलते....

        रिश्ते एक बार बनते हैं फिर जिंदगी साथ चलती है .. .. !

         

         

        Rekha Joshi

        मत कर तू अभिमान बंदे जीवन है छलावा

        करनी अपनी छुपा कर मत करना तुम दिखावा

        जीवन में जैसा करे गा वैसा ही भरे गा

        पाये सब कर्मो का फल काहे का पछतावा

        रेखा जोशी

         

         

         

        Sagar Suman

        खनक उठती उमीदो की मुझे अब भी सताती है

        मेरे खेतों को बारिश भी यहाँ अक्सर रुलाती है

        यहाँ होती सहर फांको बता दो वक़्त की रोटी

        तुम्हे देखे बिना हमको नहीं अब नींद आती है

         

         

         

        मनीष के झा

        बहुत हो गयी दूसरों की नौकरी अब तो गावं वापस लौटकर किसान बन जाने का दिल करता है

         

         

        Nand Lal

        कल के चुनाव परिणाम के बाद प्रकाश झा की फ़िल्म चक्रव्यूह फ़िल्म का यह गाना बार- बार होठो पर मचल रहा है जिसे जनता की प्रतिक्रिया कह सक्ते है । क्रिया की प्रतिक्रिया को ही गुजरात माडल कहते है " भइया देख लिया है बहुत तेरी सरदारी रे , अब तो अपनी बारी रे न्। महंगाई की महामारी ने हमरा भट्ठा बिठा दिया , चले हटाने गरीबी, गरीबो को हटा दिया , शर्बत की तरह देश को गटका है गटागट-आम आदमी की जेब हो गयी है सफ़ाचट । बिड़ला हो या टाटा , अम्बानी को या बाटा , अपने-अपने चक्कर में देश को है बाटा, हमरे ही खून से इनका ईंजन, चले है धक्काधक , अब तो नही चलेगी तेरी ये रंगदारी रे , अब तो हमरी बारी रे न" और गोरख पाण्डेय का वो मशहूर अभियान गीत जिसे" इंडियन ओसन " पाप ग्रुप ने भी गया " जनता के चले पलटनिया , हिलेले झकह्जोर दुनिया" पर यार इस देश की जनता क्या वाकई इतनी नाराज है , मोदी जी से जनम दिन की खुशी छीन ली । अब किस मुह से चीनी राषट्रपति का स्वागत करेंगे और किस कलेजे से अमेरिका में भाषण देंगे ।

         

         

         

        ऋता शेखर 'मधु'

        काग़ज़ की कश्ती में बादशाहत का ताज था|

        बचपन की हस्ती में मुस्कुराहट का नाज था|

        शनै शनै ये ताजो' नाज छूटते चले गए,

        अब वक्त की रवानगी में अनुभव का राज था|

        *ऋता शेखर 'मधु'*

         

         

        Ghughuti Basuti

        आसमान में उड़ने वाले धरती पर उतारे जाएँगे!

        कभी सोचा न था कि पाकिस्तानी राह दिखाएँगे!

         

        दिनेशराय द्विवेदी

        उन्हों ने अपने अंगरेज गुरुओं से सीखा कि रियाया को धर्म और मजहब के नाम पर लड़ा कर कैसे राज किया जाता है। पर वे भूल गए कि अंग्रेजों को चुनाव नहीं लड़ने पड़ते थे।

         

         

        Amitabh Meet

        आह ! और अब ये मेरा तकियाकलाम सा ही समझिये ....... सुकून यहीं हैं ……

        'छत पर, आकाश अगोरते ..........

        "हारे को हरिनाम" ………

        कभी तो सुनेगा, जब नामे "हरि" रखिस है ???

         

         

        Sunita Samant

        बनना काफ़िर मंजूर है लेकिन....

        सज़दे उसके नहीं जो रब नहीं मेरा

         

         

        Richa Srivastava feeling confused

        कुछ साल पहले हम लोग सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश घूमने गए थे। वहां के बच्चे छोटी छोटी टोलियों में ये नारा लगाते घूम रहे थे

        चाईना का माल लेना नहीं

        लेने के बाद धोना नहीं

        धोने के बाद रोना नहीं।

        आज हमारे देश में चीनी निवेश और चीनी राष्ट्रपति के आगमन की बड़ी चर्चा है ,,तो जाने क्यों ये नारा मेरे कानों में गूँज रहा !!!!

         

         

        Beji Jaison

        मैं इतनी बार तुमसे इस फूल का जिक्र सुन चुकी थी. चूँकि मैं इसे पहचानती नहीं थी, मेरी कल्पना में हर बार इसे नया रूप मिलता. मैं इसकी पँखुडियों के बारे में सोचती. कभी इसकी गँध के बारे में. तुमने कहा कि पूरा आसमान इन फूलों से खिला हुआ सा था. मैं बादल को इन फूलों के आकार में सोचती. इतने दुर्लभ इन फूलों के साथ उनसे भी दुर्लभ तुम्हारी याद के बारे में सोचती. मैं पूरे साल में उनका एक बार खिलना देखती. तुम्हारी आँखों में आई उस खुशी को पकड़ती. फिर उनका सिंहपर्णी के फूलों की तरह बिखर कर उड़ जाना देखती. हर सफेद फूल में मैं एक झलक इनकी देखती. मोगरा, चम्पा, चमेली, पारिजात... कभी कपास के फूलों में तो रजनीगँधा की खुशबू में. मेरी कल्पना के खाके में इनका आकार बनता बिगड़ता.

        आज इसका पौधा मेरे हाथ आया. गमले में लगाते हुए कोई रंग रूप मन में नहीं था. था तो बस तुम्हारी आँखें, तुम्हारी नज़र और तुम्हारा सुकून.

        सुकून जो शायद मेरे फूल के खिलने के इंतज़ार भर करने से हासिल था.

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