फ़ेसबुक पर साथी दोस्त मित्र सक्रिय रहते हैं , अपने अपने मिज़ाज़ और अपने अपने अंदाज़ में , दोस्तों को पढने का भी अपना ही एक मज़ा है और फ़िर इसे तो मुखपुस्तक कहा जाता है , तो मैं इन चेहरों को रोज़ पढता हूं और उनमें से कुछ चुनिंदा को यहां इस कोने पर सहेज़ लेता हूं , देखिए आप भी इन दिलचस्प अभिव्यक्तियों को …………
ये बनाया Jyotsana Shekhawat मेडम ने ....
ना मैं सपना हूं ना कोई राज हूं,
एक दर्द भरी आवाज हूं..."
-दुश्मन हैं हजारो यहां जान के,
जरा मिलना नजर पहचान के..
कई रुप में है कातिल..."
बताइए किस गाने का अंतरा है??
भैंसिया को चाहे केतनो रगड़ के गमकौआ साबुन सैम्पू से नहलाके, एसनो पौडर काजल लाली लगाके एकदम साफ़ झकाझक संगमरमर के फर्श पर बैठाय दो, छूटते ही वो कादो कीचड में लोटांने निकल जाएगी।
जय हो लोकतंत्रीय भैंस/मतदाता की(स्पेशली फ्रॉम उत्त पदेस) !!!
मौसम बदल गए तो जमाने बदल गए,
लम्हों में दोस्त बरसों पुराने बदल गए।
दिन भर जो रहे मेरी मोहब्बत की छांव में,
वो लोग धूप ढलते ही ठिकाने बदल गए।
कल जिनके लफ्ज-लफ्ज में चाहत थी, प्यार था,
लो आज उन लबों के तराने बदल गए।
एक शख्स क्या गया मेरा शहर छोड़ के,
जीने के सारे ढंग पुराने बदल गए।
अब वो न वो रहा है, ना मैं ही मैं रहा,
सारे ही जिंदगी के फसाने बदल गए।
- अज्ञात
(शायर का नाम पता हो तो कमेंट बॉक्स में बताते जाईयेगा)
जिनपिंग ने मोदी से इच्छा जाहिर की है, एक बार वे भी Comedy Nights with Kapil में जाना चाहते हैं।
Anju Choudhary feeling crazy
तैरते तिनके झुलाती धार है
डूबता कंकड़ बहुत लाचार है
अमीरों और सौन्दर्य की दुनिया में
क्यों लगता है यारों बाकि सब बेकार हैं
******:)
एवें ही एक ख़याल दिमाग का (मैं तो ऐसी ही हूँ :P)
बुन रही हूँ ज़िन्दगी
कि दुःख का ताना और सुख का बाना है
तागे टूट टूट जाते हैं...
ताने बाने एक से हों
तब न मुकम्मल हो कताई !
~अनुलता ~
- अगर भाषा की बाजीगरी ही सब कुछ होती तो निर्मल वर्मा यकीनन प्रेमचंद और मंटो से बड़े रचयिता होते। इसका मतलब ये नहीं कि निर्मल अच्छे लेखक नहीं हैं, लेकिन उनकी ताकत अलग तरीके की है और लिखने-पढ़ने के इलाके भी हैं ज़ुदा!
- कहना ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी सिर्फ दिखा भर देने से बहुत कुछ कहना मुमकिन हो जाता है।
- हम अपने समय पर गहरी नज़र रखें और उसे लिख पाएं तो वह लिखना सार्थक है।
- नए नज़रिए के बिना कुछ भी लिखना खुद को ही दोहराने जैसा है...
__________ हां, मुंबई में भागती लोकल के बीच भी ऐसी बातचीत मुमकिन है !
मोदी जी उधर सौ सैनिक घिरे हुए हैं और इधर आप प्रोटोकॉल तोड़ने जा रहे हैं. यानी आप फिर उसी रीति-नीति पर आ गए. पहले 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' फिर तिब्बत और 62 का मामला. मने ई पटेल की धरती से नेहरू........ क्या ज़रूरत थी यार!
अरे भाई श्री राजनाथ सिंह जी को लव जिहाद का मतलब समझ में आया की नहीं ?
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कौन हे अपना कौन पराया देखा सब संसार
वक्त आये बुरा तो पड़ोसन भी देती हे मार !!
दरअसल चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग बस यह खुलासा करने भारत आए हैं कि........
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असल में भारत में चाइनीज़ फ़ूड की लॉरियों पर जो बन्दे चाऊमीन बना रहे हैं उनमें से 99% नेपाली हैं, चीनी नहीं
इधर देखना फिर उधर देखना
मेरी छत सुबह दोपहर देखना
दिखाना कि यों जैसे देखा न हो
झुकाकर तुम्हारा नज़र देखना
हंसराज सुज्ञ feeling चिंतन
(10) बुद्धि अंतर........
नकारात्मक वाणी :-
यह उचित अवसर नहीं, जिसका मुझे इंतज़ार है।
सकारात्मक वाणी :-
यही वो अवसर है जिसे मैं अनुकूल बना सकता हूँ।
इश्क लडाने या करने के लिये लडकियों की कमी नहीं है, लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि जो लडकी तुमसे इश्क करे वह शादी भी करेगी. इश्क का तअल्लुक दिलों से होता है और शादी का तनखाहों से. जैसी तनखाह होगी वैसी बीवी मिलेगी..
डा. राही मासूम रज़ा
(टोपी शुक्ला से...)
उप-चुनाव के 'नतीजों' को 'अच्छे दिनों' से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए... ज़रूरी तो नहीं कि हवा हमेशा सुखद ही लगे!
रिश्ते जिंदगी के साथ-साथ नहीं चलते....
रिश्ते एक बार बनते हैं फिर जिंदगी साथ चलती है .. .. !
मत कर तू अभिमान बंदे जीवन है छलावा
करनी अपनी छुपा कर मत करना तुम दिखावा
जीवन में जैसा करे गा वैसा ही भरे गा
पाये सब कर्मो का फल काहे का पछतावा
रेखा जोशी
खनक उठती उमीदो की मुझे अब भी सताती है
मेरे खेतों को बारिश भी यहाँ अक्सर रुलाती है
यहाँ होती सहर फांको बता दो वक़्त की रोटी
तुम्हे देखे बिना हमको नहीं अब नींद आती है
बहुत हो गयी दूसरों की नौकरी अब तो गावं वापस लौटकर किसान बन जाने का दिल करता है
कल के चुनाव परिणाम के बाद प्रकाश झा की फ़िल्म चक्रव्यूह फ़िल्म का यह गाना बार- बार होठो पर मचल रहा है जिसे जनता की प्रतिक्रिया कह सक्ते है । क्रिया की प्रतिक्रिया को ही गुजरात माडल कहते है " भइया देख लिया है बहुत तेरी सरदारी रे , अब तो अपनी बारी रे न्। महंगाई की महामारी ने हमरा भट्ठा बिठा दिया , चले हटाने गरीबी, गरीबो को हटा दिया , शर्बत की तरह देश को गटका है गटागट-आम आदमी की जेब हो गयी है सफ़ाचट । बिड़ला हो या टाटा , अम्बानी को या बाटा , अपने-अपने चक्कर में देश को है बाटा, हमरे ही खून से इनका ईंजन, चले है धक्काधक , अब तो नही चलेगी तेरी ये रंगदारी रे , अब तो हमरी बारी रे न" और गोरख पाण्डेय का वो मशहूर अभियान गीत जिसे" इंडियन ओसन " पाप ग्रुप ने भी गया " जनता के चले पलटनिया , हिलेले झकह्जोर दुनिया" पर यार इस देश की जनता क्या वाकई इतनी नाराज है , मोदी जी से जनम दिन की खुशी छीन ली । अब किस मुह से चीनी राषट्रपति का स्वागत करेंगे और किस कलेजे से अमेरिका में भाषण देंगे ।
काग़ज़ की कश्ती में बादशाहत का ताज था|
बचपन की हस्ती में मुस्कुराहट का नाज था|
शनै शनै ये ताजो' नाज छूटते चले गए,
अब वक्त की रवानगी में अनुभव का राज था|
*ऋता शेखर 'मधु'*
आसमान में उड़ने वाले धरती पर उतारे जाएँगे!
कभी सोचा न था कि पाकिस्तानी राह दिखाएँगे!
उन्हों ने अपने अंगरेज गुरुओं से सीखा कि रियाया को धर्म और मजहब के नाम पर लड़ा कर कैसे राज किया जाता है। पर वे भूल गए कि अंग्रेजों को चुनाव नहीं लड़ने पड़ते थे।
आह ! और अब ये मेरा तकियाकलाम सा ही समझिये ....... सुकून यहीं हैं ……
'छत पर, आकाश अगोरते ..........
"हारे को हरिनाम" ………
कभी तो सुनेगा, जब नामे "हरि" रखिस है ???
बनना काफ़िर मंजूर है लेकिन....
सज़दे उसके नहीं जो रब नहीं मेरा
Richa Srivastava feeling confused
कुछ साल पहले हम लोग सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश घूमने गए थे। वहां के बच्चे छोटी छोटी टोलियों में ये नारा लगाते घूम रहे थे
चाईना का माल लेना नहीं
लेने के बाद धोना नहीं
धोने के बाद रोना नहीं।
आज हमारे देश में चीनी निवेश और चीनी राष्ट्रपति के आगमन की बड़ी चर्चा है ,,तो जाने क्यों ये नारा मेरे कानों में गूँज रहा !!!!
मैं इतनी बार तुमसे इस फूल का जिक्र सुन चुकी थी. चूँकि मैं इसे पहचानती नहीं थी, मेरी कल्पना में हर बार इसे नया रूप मिलता. मैं इसकी पँखुडियों के बारे में सोचती. कभी इसकी गँध के बारे में. तुमने कहा कि पूरा आसमान इन फूलों से खिला हुआ सा था. मैं बादल को इन फूलों के आकार में सोचती. इतने दुर्लभ इन फूलों के साथ उनसे भी दुर्लभ तुम्हारी याद के बारे में सोचती. मैं पूरे साल में उनका एक बार खिलना देखती. तुम्हारी आँखों में आई उस खुशी को पकड़ती. फिर उनका सिंहपर्णी के फूलों की तरह बिखर कर उड़ जाना देखती. हर सफेद फूल में मैं एक झलक इनकी देखती. मोगरा, चम्पा, चमेली, पारिजात... कभी कपास के फूलों में तो रजनीगँधा की खुशबू में. मेरी कल्पना के खाके में इनका आकार बनता बिगड़ता.
आज इसका पौधा मेरे हाथ आया. गमले में लगाते हुए कोई रंग रूप मन में नहीं था. था तो बस तुम्हारी आँखें, तुम्हारी नज़र और तुम्हारा सुकून.
सुकून जो शायद मेरे फूल के खिलने के इंतज़ार भर करने से हासिल था.
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