चलिए आज देखते हैं कि कौन कहां क्या देख पढ सुन रहा है अंतर्जाल के उस मंच पर जिसे मुख पुस्तक कहा जाता है ..
भ्रष्टाचार और कालधन के विरुद्ध लड़ाई का एक और पड़ाव... जन्तर मन्तर 3 जून 2012
ये चित्र दिल्ली के एक मॉल का है...
यहॉं आटा-चक्की तो पहुँच गई, बस दातुत भी पहुँचती ही होगी ☺
पूजा ने एक बार कभी अपने ब्लॉग में सही लिखा था :
"होता है न जब आप सबसे खुश होते हो...तभी आप सबसे ज्यादा उदास होने का स्कोप रखते हो."
पिछले साल भी कहा था "आजादी की लड़ाई है", फ़िर से इस साल.. जनता कन्फ़यूज हो गई है आजादी की कितनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी ।
आज सुबह से ही मीडिया वाले रामदेव और अन्ना के एक मंच पर आने से दुखी और परेशान लग रहे थे.उनकी हर कोशिश यही थी कि किसी तरह वह यह साबित कर दें कि रामदेव और टीम अन्ना में बहुत मतभेद हैं और यह मिलन बस आज ही समाप्त हो जाएगा. हर चेनल ने कुछ ऐसे बंदे इकट्ठे कर रहे थे जो वही कह रहे थे जो चेनल वाले चाहते थे. पर यह संभव नहीं हो पाया. रामदेव और आना ने घोषणा कर दी कि उन्हें कोई ताकत अलग नहीं कर सकती. बेचारा बिका हुआ मीडिया अपने खरीदारों को खुश नहीं कर पाया.
पत्नी की याद में
मैं एक उलझी लट हूँ तुम्हारी
जिसे सुलझाना भूल गई हो
मैं तुम्हारी आँखों का बिखर गया काजल हूँ
जिसे निखारना भूल गई हो
मैं मांग भराई के समय माथे तक फैल गया सिंदूर हूँ
जिसे अब सिंदूरदान में रखने की जरूरत नहीं है
मैं तुम्हारी वो रात हूँ
जिसके तमाम तारों पर तुमने खुद घने बादल मढ़ दिए हैं
मैं तुम्हारा वो बिछुआ हूँ जो धान के खेत में गिर गया.....
कुछ है की हवा का रुख बदला सा है
क्या कहीं लोगों का जमीर जगा सा है
क्या बदलते हालात भरोसे के लायक हैं?
या की ये सब बस हवा सा है.......................रत्नेश
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चार अक्षर चालीस छपेंगे
घट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
इस धंधे की माया ऐसी
मोल तोल मे झोल करेंगे
©यशवन्त माथुर
ये भ्रम भी अच्छी नहीं साहब
वक्त गुजरने से गम नहीं गुजरते
लो मैं आ गया..........................
ये रात ये तन्हाई,
ये दिल के धड़कने की आवाज़,
ये सन्नाटा
ये डूबते तारों की
खामोश गज़लख्वानी,
ये वक्त की पलकों पर
सोती हुई वीरानी
ज़ज्बात-ए-मुहब्बत की
ये आखिरी अंगड़ाई
बजती हुई हर जानिब
ये मौत की शहनाई
सब तुम को बुलाते हैं
पल भर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आँखों में
मुहब्बत का
इक ख़्वाब सजा जाओ.
मै जो देख रहा हूँ , वो बिना चश्मे के....और आप ?
मुझे ये पंकज की लिखी सबसे बेहतरीन पोस्ट में से एक लगती है..कुछ भी कहना आसान नहीं है इस पोस्ट पर..कई बार पढ़ चूका हूँ इसे अब तक..पिछले कुछ दिनों से पंकज के ब्लॉग के चक्कर लगाता रहा हूँ..सच में यार, बहुत दिन हो गए..अब कुछ तो लिखो..I really miss your blog posts Pankaj
यूं मैं कुछ नहीं
यूं तो तू भी कुछ नहीं
पर तू जो है, मैं हूं जितना भी
हम हैं, बस हैं।
यही तोलते हुए,
जो था, सुनहरा था
जो है, बुरा है,
होना चाहिए जो, वो होगा ही नहीं
निकलते जाते हैं हाथ से सब लम्हे
एक-एक कर
कभी तो तराजुओं को अलग रख यूं ही कुछ बटोर लें
सीपियों और मोतियों के बिना भी रेत मौजूद रहती है।
दिल में चंद घरौंदे बनाने की ख़ातिर ज़रूरी है,
समंदर की नीली चादर के कुछ भीगे क़तरे।
अश्क जिनको हंसी में छुपाकर पीने आ गए
समझो उनको जीने के तमाम करीने आ गए
आशा
बाय दोस्तों 9 बजे की बस से कोटा रवानगी
इस्पीक इंगलिस !
श्रीमती टीमटाम को गम था कि
कभी न पढी अंग्रेजी.
कसक निकाली बचुवा को
भेज के स्कूल अंग्रेजी में.
अब बचुवा का रोज देख
कंठ लंगोट,
टीमटाम देवी समझे अपने को मेम.
इंगरेजी सब्द सीखे देवी ने
बचुवा से,
फिर सीखा उनको जोडना.
भिखारी आया द्वारे पें,
तो लगा कि मौका अच्छा
अभ्यास का.
बोलना था उससे कि
“बोलें बिखारियों से,
हम सिर्फ अंग्रेजी में”.
बोल दिया,
“वी बेगर्स
इस्पीक ओनली इंगलिस”
सदियों -युगों से टूटे हुए पुल को जोड़ने की कवायद में !
भ्रष्टाचार, अकड़, बेशर्मी, बेईमानी
बेतक्ल्लुफ़ी से काम क्यों नही लेती
मेरे प्यारे भाईयो, देश वासियो, भारत के लोगो
मोहतरमा प्रधानमम्मी ये सब क्या है
आप हमारा नाम क्यों नही लेती
भ्रष्टाचार और कालधन के विरुद्ध लड़ाई का एक और पड़ाव... जन्तर मन्तर 3 जून 2012
यह कमाल का आइडिया है!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया तरीका रहा...
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है, यह द़ष्टीकोण भी बढ़िया है
जवाब देंहटाएंचेहरो की भाषा पढ़ना तो कोई आप से सीखे ... जय हो !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कहीं छुट्टियाँ ... छुट्टी न कर दें ... ज़रा गौर करें - ब्लॉग बुलेटिन
वाह, यह भी ब्लॉग चर्चा का बढिया स्टाइल है ।
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